Rising Strong Book Summary in Hindi –
इंट्रोडक्शन
क्या आपने कभी अपनी जिंदगी में किसी ऐसे चैलेंज का सामना किया है जिसमें आप फेल हो गए हों और जिसने आपको बहुत लंबे समय तक दुखी कर दिया था? क्या उस फेलियर ने आपके आत्म सम्मान, दूसरो के साथ आपके रिश्ते या अपने खुद के साथ आपके रिश्ते को चोट पहुंचाई थी? कोई भी फेलियर या लाइफ का लो फ़ेज़ । किसी भी इंसान के लिए एक depressing पॉइंट हो सकता है.
आपकी लाइफ में कई बार ऐसा भी हो सकता है जब आपने सही काम करने में अपना सारा समय और एनर्जी लगा दी होगी और जमकर कड़ी मेहनत की होगी लेकिन वो सब अंत में waste हो जाता है और आपको उसका कोई भी रिजल्ट नहीं मिलता जिससे आप बिलकुल निराश हो जाते हैं. ऐसा भी हो सकता है कि आप फ़िर कभी कुछ भी ट्राय ना करने की कसम खा लें. जब आपको एक के बाद एक फेलियर का सामना करना पड़ता है तो संभलना काफ़ी मुश्किल लगने लगता है. आप ख़ुद पर ही सवाल उठाने लगते हैं और डर के सामने घुटने टेकने लगते हैं.
ये बुक आपको याद दिलाएगी कि आप अकेले नहीं हैं. इस पूरी दुनिया में ऐसा एक भी इंसान नहीं है जो ये कह सके कि लाइफ में हमेशा उसके साथ सिर्फ अच्छा ही हुआ है. इस बुक की मदद से आप सीखेंगे कि फेलियर और हार के बाद आप कैसे दोबारा मज़बूती के साथ खड़े हो सकते हैं.
और इसे ही बुक की ऑथर ब्रेने राइजिंग स्ट्रोंग कहती हैं. इसके ज़रिए उन्होंने ये समझाने की कोशिश की है कि जब आप हिम्मत कर अपने सपने की ओर क़दम बढ़ाते हैं तो आपको उस रास्ते में फेलियर का सामना भी करना होगा और जब आपको ठोकर लगती है तो उससे कैसे उभरना है और कैसे दोबारा खड़े होना है इसे ही राइजिंग स्ट्रोंग कहा जाता है.
इस प्रोसेस के तीन स्टेज होते हैं – reckoning, rumble और revolution. बहादुर होने का मतलब ही है ट्राय करना, फेल होना, हिम्मत कर दोबारा खड़े होना और एक बार फ़िर से ट्राय करना.
The Physics of Vulnerability आप एक ही समय में एक साथ बहादर और सेफ़ दोनों नहीं हो सकते. इसी का मतलब होता है अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर आना. लगभग 100% चांस है कि आप लाइफ में अनगिनत बार फेल होंगे. आप सोच रहे होंगे, “तो फ़िर मैं अपने कम्फर्ट जोन से बाहर क्यों निकलूँ?”
किसी अनजान चीज़ का सामना करना आपको लाइफ के चैलेंजेज के लिए ज़्यादा मज़बूत और तैयार करता है. ये आपको ये भी सिखाता है कि वल्नरेबल होने में एक ताकत छुपी हुई है. अब वल्नरेबल होने का क्या मतलब होता है? इसका मतलब है अपनी गलतियों, दुःख और डर को छुपाने या उससे भागने के बजाय उसे खुलकर अपनाना. जब आप इस बात को एक्सेप्ट कर लेते हैं कि आप हमेशा स्ट्रोंग नहीं हो सकते तब आपको महसूस होता है कि आपमें कितनी हिम्मत है. ज़्यादातर लोग इस बात को स्वीकार नहीं करेंगे कि लाइफ में कई बार वो कई सिचुएशन से ज़रूर घबराए हैं.
फेलियर हमारी लाइफ का एक इम्पोर्टेन्ट हिस्सा है, उससे घबराना नहीं चाहिए. हाँ, ये सच है कि इसे कोई भी एक्सपीरियंस नहीं करना चाहता लेकिन ये फेलियर ही है जो हमें ज़्यादा स्ट्रोंग बनाती है. ब्रेव होने का मतलब है कि ये पता होने के बावजूद कि आप फेल हो सकते हैं फ़िर भी उस काम को ट्राय करना और अपना 100% देना. इन नेगेटिव थॉट्स के बावजूद आप उस काम को कंटिन्यू करते हैं क्योंकि आप जानते हैं कि अंत में उससे आप कुछ ना कुछ ज़रूर सीखेंगे.
कई दफ़ा ऐसा भी होगा जब फेल होने के बाद आप निराश भी होंगे और आपको बहुत दुःख भी होगा. लेकिन ऐसा महसूस करने में कुछ भी गलत नहीं है क्योंकि भावनाएं हमारी लाइफ का एक अहम् हिस्सा हैं, यही हमें इंसान बनाती हैं. अपनी फीलिंग्स को एक्सेप्ट करने से आपको ख़ुद को बेहतर समझने में मदद मिलेगी. ये आपके लिए एक लर्निंग एक्सपीरियंस होगा क्योंकि आप जान पाएंगे कि किस चीज़ ने आप पर सबसे ज़्यादा असर डाला है और आप इन फीलिंग्स को किस तरह हैंडल कर सकते हैं.
इससे लड़ने का एक तरीका ये है कि आप दूसरे लोगों की कहानियों से इंस्पिरेशन लेकर ख़ुद में हिम्मत पैदा कर सकते हैं. इसी तरह, दूसरे भी आपसे इंस्पायर हो सकते हैं. जब भी आप कुछ बड़ा करने वालों हों जैसे किसी नई जगह या घर में शिफ्ट होना तो आपके मन में कई बार सवाल भी उठेंगे. आपको चिंता हो सकती है कि, “अगर मुझे वहाँ जॉब नहीं मिली तो क्या होगा? अगर मेरे पड़ोसी मतलबी हुए तो? अगर मैं अंत में फेल हो गया तो?” ये सवाल आपको और भी ज़्यादा डराएंगे और आपको अगला स्टेप लेने से रोकेंगे. डर आपके मन में डाउट पैदा कर देता है.
लेकिन पॉजिटिव विचारों से आप इन नेगेटिव थॉट्स को हरा सकते हैं और वो आपको आगे बढ़ने के लिए पुश करेंगे. बिलकुल सिक्के की तरह, जिंदगी में भी हर सिचुएशन के दो पहलू होते हैं, पॉजिटिव और नेगेटिव. पॉजिटिव पहलू को देखने का नज़रिया अपनाएं जैसे आप ये भी तो सोच सकते हैं कि, “क्या पता मुझे वहाँ ऐसे दोस्त मिलें जिनके साथ जिंदगी भर का रिश्ता जुड़ जाए. क्या पता वहाँ मेरी जिंदगी पहले से बेहतर हो जाए.” इस बात को स्वीकार करना कि आप डरे हुए हैं आपको उस चीज़ से लड़ने में मदद करता है. अगर आप अब भी कोई बड़ा कदम उठाने में हिचकिचा रहे हैं जैसे किसी नई जगह शिफ्ट होना तो ऐसे दोस्तों से बात करें जो ख़ुद किसी नई जगह शिफ्ट हुए हों. वो आपको इसे संभालने के लिए कुछ टिप्स और सलाह दे सकते हैं. आप जितना ज़्यादा इनफार्मेशन इकट्ठा करेंगे आपका डर उतना ही कम होता जाएगा.
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CIVILIZATION STOPS AT THE WATERLINE
जब आप वल्नरेबल होने का फ़ैसला लेते हैं तो वो सबसे मुश्किल काम हो सकता है. लेकिन ये ह्यूमन नेचर है कि हम अपने डर और कमजोरियों को दबाते रहते हैं. लोग इसे एक कमज़ोरी के रूप में देखते हैं और आपका फ़ायदा उठाने की कोशिश करते हैं. लेकिन खुल कर कहना कि आप कैसा फील कर रहे हैं आपको निराश या गुस्सा होने से बचा सकता है. लेकिन हम कभी-कभी ये कहने से हिचकते हैं कि हम क्या महसूस कर रहे हैं. मगर आपको ये समझना होगा कि जब सामने वाला इंसान हमारी फीलिंग्स को समझ नहीं पाता तो इसमें उनकी गलती नहीं है लेकिन इसके बावजद हम उन पर गस्सा होने लगते हैं. ऐसी सिचुएशन में हमें बहुत गुस्सा आता है. लेकिन जब आप खुल कर अपनी बात को कहेंगे कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं तो सामने वाला इंसान कंफ्यूज नहीं होगा.
और कौन जानता है कि आपको देखकर वो भी खुलकर अपनी बात आपके सामने रख दे. इस बुक की ऑथर ब्रेने ने अपने एक्सपीरियंस के बारे में बताया कि कैसे एक फॅमिली ट्रिप के दौरान वो अपने पति स्टीव के सामने वल्नरेबल हो गई थीं. ट्रिप पर एक दिन, जब उनके बच्चे सो रहे थे तो ब्रेने और उनके पति पास के झील में स्विमिंग के लिए जाना चाहते थे. ब्रेने ये बताने की कोशिश कर रही थीं कि वो इस बात से बहुत खुश थी कि वो सब एक साथ समय बिता रहे थे लेकिन उनके पति ने उनकी बात पर गौर ही नहीं किया.
ब्रेने को ये व्यवहार देखकर बहुत आश्चर्य हुआ क्योंकि आमतौर पर वो दोनों एक दूसरे से खुलकर बातचीत करते थे. उन्होंने दोबारा कोशिश की लेकिन फ़िर स्टीव ने अनदेखा कर दिया. अब यहाँ गुस्सा होने के बजाय ब्रेने ने स्टीव को बताया कि उन्हें कैसा लग रहा था. ब्रेने ने अपनी बात को खुलकर कहा तब जाकर स्टीव ने इस बात पर ध्यान दिया.
पहले तो स्टीव इस बात से बचने की कोशिश करने लगे लेकिन ब्रेने मानने वाली नहीं थीं. उन्होंने कहा कि उन्हें एक दूसरे से सच बोलने की ज़रुरत है. तब जाकर स्टीव के बताया कि वो पानी में जाने को लेकर चिंतित थे और ब्रेने का इससे कोई लेना-देना नहीं था. स्टीव के मन में कई बातें चल रही थीं इसलिए उन्हें पता नहीं चला कि वो ब्रेने को अनदेखा कर रहे थे. उन्होंने ब्रेने को बताया कि रात को उन्हें एक सपना आया कि उनके बच्चे पानी में डूब रहे थे और वो उन्हें बचाने के लिए कुछ भी नहीं कर पाए. स्टीव सिर्फ अपने डर की वजह से परेशान थे।
ये सुनकर ब्रेने ने कहा कि वो ख़ुश थी कि स्टीव ने अपनी कमज़ोरी उनके साथ शेयर की. उन्होंने स्टीव को सांत्वना दिया और कहा कि उन्हें एक दूसरे पर भरोसा करना होगा. उस दिन, जब वो झील से बाहर आए तो उनका रिश्ता ज़्यादा मज़बूत हो गया था क्योंकि दोनों ने अपनी अपनी कमज़ोरी के बारे में बताया और अपनी वल्नेरेबिलिटी को खुलकर अपनाया.
OWNING OUR STORIES
राइजिंग स्ट्रोंग का प्रोसेस आपको हमेशा गिरकर दोबारा खड़े होने के लिए और धीरे-धीरे अपनी गलतियों को ख़त्म करने के लिए कहता है. इसके तीन स्टेज होते हैं. पहला स्टेज है “recokning”.
Recokning का मतलब होता है जब आपका अपने इमोशंस से सामना होता है. इसका मतलब है अपने इमोशंस को समझना. ये समझना कि उसकी वजह से आप कैसा महसूस कर रहे हैं. इस प्रोसेस में आप अपने व्यवहार, विचार और फीलिंग्स के बारे में सोचने लगते हैं. ये तब होता है जब आप अपनी गलतियों को एक्सेप्ट करते हैं और इस बात पर ध्यान देते हैं कि आप सच में कैसा महसूस कर रहे हैं.
दूसरा स्टेज हैं “rumble”. ये तब होता है जब आप अपनी फीलिंग्स को गहराई से समझने लगते हैं और ये जानने लगते हैं कि आप उस बुरी सिचुएशन के बारे में, अपने बारे में और दूसरों के बारे में कैसा फील कर रहे हैं.
तीसरा स्टेज है “revolution”. ये तब होता है जब आप अपने विचारों में बदलाव करते हैं, ख़ुद को हील करने लगते हैं और यकीन मानिए कि ऐसा करने का बाद आपकी लाइफ में होने वाले बदलाव किसी रेवोल्यूशन से कम नहीं होंगे. अब सवाल ये है कि आप इसे अपनी लाइफ में कैसे अप्लाई कर सकते हैं. आप ऐसा कहानी सुनाकर या क्रिएटिविटी की मदद से कर सकते हैं. स्टीव जॉब्स का मानना था कि क्रिएटिविटी कई चीज़ों को एक दूसरे के साथ जोड़ने से आती है. जब आप अपने पास्ट और प्रेजेंट एक्सपीरियंस को कनेक्ट कर कुछ नया बनाते हैं तो उसे एक क्रिएटिव प्रोसेस कहा जाता है.
एग्ज़ाम्पल के लिए, आपने अपने अलार्म पर snooze बटन को दबाकर वापस सो जाने के दर्द को एक्सपीरियंस किया होगा. अब आपके अंदर की क्रिएटिविटी इस प्रॉब्लम को सोल्व करने के लिए एक ऐसा अलार्म क्लॉक बना सकती है जो तब तक आपके रूम में चारों ओर घूमता रहता है जब तक आप उसे ऑफ नहीं कर देते. अब क्योंकि आपको अलर्म बंद करने के लिए उठना पड़ेगा तो आपकी नींद पूरी तरह खुल जाएगी. क्रिएटिविटी का मतलब ही होता है कुछ नया बनाना. एक मोबाइल अलार्म क्लॉक के अलावा आप इसे कहानी सुनाकर भी एक्सप्रेस कर सकते हैं. अब आप कहानियां कहाँ से लाएंगे? ख़ुद पर और अपने आस पास की दुनिया के रियल घटनाओं को नोटिस कर आप ऐसा कर सकते है.
कहानी सुनाने की भी अपनी एक अलग और कमाल की पॉवर होती है. कहानी के ज़रिए आप उन चैलेंजेज के बारे में बता सकते हैं जिनका सामना आपने किया है और अपने लिए एक हैप्पी एंडिंग बना सकते हैं. आप दूसरों की कहानियों से भी सीख सकते हैं. चाहे आपका कितना भी मन क्यों ना करे लेकिन अपनी कहानी से उन हिस्सों को ना हटाएं जिसमें आप फेल हुए थे क्योंकि अगर आप फेल नहीं होते तो आप उससे सीखकर समझदार नहीं बन पाते.
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THE RECKONING
RECKONING के स्टेज में आपका सामना अपने डर और कमियों से होता है. इस स्टेज में आप अपने इमोशंस को समझने की कोशिश करते हैं. कई बार कुछ सिचुएशन में आपको इसके फिजिकल साइन भी देखने को मिलेंगे जैसे हमारी हार्टबीट बहुत तेज़ हो जाती है, हथेलियों में पसीना आने लगता है वगैरह. आपको ये समझने की ज़रुरत है कि ऐसा क्यों होता है. जब हम इसका कारण नहीं जानते तो हम नेगेटिव तरीके से रियेक्ट करने लगते हैं जैसे गुस्सा करना, चिल्लाना. बिना किसी तकलीफ का जीवन सनने में तो अच्छा लग सकता है लेकिन असली मायनों में ऐसी लाइफ से आपको पूरी तरह सैटिस्फैक्शन महसूस नहीं होगा क्योंकि फेलियर और गलतियों आपको बहुत कुछ सीखाते हैं जिससे आपकी ग्रोथ होती है.
फेलियर हमें याद दिलाता है कि लाइफ परफेक्ट नहीं है और चीजें हमेशा हमारी मर्जी के मुताबिक़ नहीं हो सकतीं. इसके बावजूद हम में डट कर खड़े रहने का ज़ज्बा होना चाहिए. जब आप recokning कहते हैं तो इसका मतलब है इस बात को कैलकुलेट करना कि आप इस वक़्त लाइफ के किस मोड़ पर और कहाँ खड़े हैं. अगर आप इस बात पर ध्यान नहीं देंगे कि अभी आप लाइफ में कहाँ हैं तो आपको पता नहीं होगा कि आपको फ्यूचर में कहाँ जाना है. अगर आप अपनी फीलिंग्स को अनदेखा करेंगे तो आप आगे नहीं बढ़ पाएंगे. आपके मन में उथल-पुथल होगी और वो कड़वाहट से भर जाएगा. ऐसी सिचुएशन में आपको ये जान कर आश्चर्य होगा कि आप ख़ुद अपने इमोशंस से अनजान हो गए हैं.
आप अपने इमोशस के समझना या उसे एक्सेप्ट करना ही नहीं चाहते क्योंकि वो आपको कमज़ोर बनाता है. परेशान करने वाली इमोशंस से उभरने के लिए इस बात का पता लगाएं कि आप उन चीज़ों को क्यों महसूस कर रहे हैं. जब आप अपने इमोशंस के बारे में जानना चाहते हैं तो आप वल्नरेबल हो जाते हैं.
इस वल्नेरेबिलिटी के दौरान ही आप ख़ुद को ज़्यादा समझ पाएंगे. हालांकि इन इमोशंस को नज़रंदाज़ करना ज़्यादा आसान लगता है लेकिन इन्हें टालने से आपकी प्रॉब्लम सोल्व नहीं होगी. बुरी घटनाएं हमें बुरे इमोशंस की याद दिलाती हैं लेकिन ये आपको बदलने के लिए encourage कर सकती हैं. हमारे सामने लाइफ में कई बार बुरे एक्सपीरियंस और बुरे पल आएँगे जैसे मान लीजिए कि आप जॉब में प्रमोशन पाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं. इसके लिए आप बहुत उम्मीद लगाए बैठे हैं क्योंकि आप कई सालों से उस कंपनी में काम कर रहे हैं और आपके अच्छे काम को कभी ना कभी आपके बॉस ने ज़रूर नोटिस किया होगा. अनाउंसमेंट वाले दिन आप बहुत होप के साथ ऑफिस जाते हैं और वहाँ आपको पता चलता है कि आपके साथ काम करने वाले को प्रमोशन दिया गया है, आपको नहीं.
बेशक, आपको बहुत दुःख होगा और गुस्सा भी आएगा क्योंकि आप इस प्रमोशन के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे थे फिर भी आपको कुछ नहीं मिला. अब आप ये सोचने लगते हैं कि आपके साथ नाइंसाफ़ी हुई है. इस बात को समझने के बजाय कि आप सच में उस प्रमोशन के हकदार हैं या नहीं आप नेगेटिव तरीके से रियेक्ट करने लगते हैं. आप अपने बॉस और उस एम्प्लोई पर गुस्सा करने लगते हैं जिसे आपके बजाय प्रमोशन मिला है.
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THE RUMBLE
Rumble वो स्टेज है जिसमें आपके सामने स्ट्रगल, confusion, निराशा और frustration सब एक साथ आ जाता है. जब आप फेल होने के बाद खुद को हारा हुआ देखते हैं तो आप अपने आप से पूछते हैं कि आखिर आप उस पोजीशन में क्यों हैं? इस स्टेज में आप अपने इमोशंस के पीछे के कारण को समझते हैं.
वो इमोशन आपको क्या महसस करवा रहा है आप उसे समझते हैं.
जब भी आपके साथ कुछ बुरा हो तो ख़ुद से पूछे कि मुझे इस सिचुएशन से और क्या सीखने और समझने की ज़रुरत है. मुझे इस सिचुएशन से अपने बारे में और दूसरों के बारे में क्या सीखने और समझने की ज़रुरत है. ये आपको बहुत कुछ सोचने का मौक़ा देता है और कई बेकार की बातें आपके दिमाग से निकलने लगती हैं. आप अपने इमोशन को गहराई से समझने लगते हैं. ये प्रोसेस आपको प्रॉब्लम की सही जड़ को समझने में मदद करता है. क्योंकि जब आपको कारण समझ में आ जाता है तब जाकर ही आप उसे सोल्व कर सकते हैं.
सक्सेस मिलने के बाद जब आप किसी को अपनी कहानी सुनाएं तो आपको अपनी जर्नी के स्ट्रगल और चैलेंजेज को छुपाकर ये नहीं जताना चाहिए कि आपको सक्सेस आसानी से मिल गई क्योंकि आपकी स्ट्रगल ही आपकी कहानी को सच्ची और इमानदार बनाती है.
असल जिंदगी में सक्सेसफुल लोगों की सक्सेस स्टोरी का ग्राफ हमेशा सीधा या ऊपर की ओर नहीं जाता. उसमें कई गलतियां और फेलियर शामिल होते हैं. अक्सर लोग ये बताने के बजाय इन्हें छुपाकर इनकी जगह झूठ से भर देते हैं. आप ऐसा भी कह सकते हैं कि वो डींग मारते हैं। कि उन्हें कभी फेलियर का सामना नहीं करन पड़ा और सक्सेस का रास्ता बड़ा ही आसान था. लेकिन रियल लाइफ में ऐसा नहीं होता.
आपको अपनी लाइफ के हर उतार चढ़ाव को समझना सीखना होगा. इस बुक में एक कहानी बताई गई है जो ये साबित करती है कि हम कितनी आसानी से झूठ बोल देते हैं और हमें अहसास तक नहीं होता कि हम झूठ बोल रहे हैं. आइए इसे एक एग्ज़ाम्पल से समझते हैं.
साइकोलोजिस्ट की एक टीम ने शॉपिंग करने वाले कुछ लोगों को मोज़े के पांच जोड़ों में से एक चुनने के लिए कहा और उन्होंने उसे क्यों चुना उसका कारण बताने के लिए भी कहा. हर शॉपिंग करने वाले ने अपनी चॉइस के लिए अलग-अलग कारण दिया जैसे किसी ने कहा रंग, किसी ने कहा प्रिंट. आश्चर्य की बात तो देखिए, उनमें से ऐसा एक भी नहीं था जिसने ये कहा हो कि उन्हें नहीं पता कि उन्होंने उस जोड़ी को क्यों चुना. अब यहाँ चीजें दिलचस्प हो जाती है.
सच तो ये है कि सभी जोड़े बिलकुल सेम थे, सेम ब्रैड, साइज़, स्टाइल वगैरह. असल में, शॉपिंग करने वालों ने बस अपने डिसिशन को सही बताने के लिए उसके पीछे एक कारण जोड़ दिया था लेकिन कारण वो ख़ुद भी नहीं जानते थे.
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ARE YOU DOING YOUR BEST?
हम अक्सर लोगों को उसी तरह जज करने लगते हैं जैसे हम अनजाने में खुद को जज करते हैं. अगर हम ख़ुद के साथ कठोर होते हैं तो ज़्याद possibility है कि हम दूसरों के साथ भी कठोर होते हैं. ब्रेने ने कई लोगों से पूछा कि क्या उन्हें लगता है कि दूसरे जो काम कर रहे हैं उसमें वो अपना बेस्ट परफॉर्म कर रहे हैं. हाँ कहने वाले लोगों ने कहा कि उन्हें दूसरों के काम के बारे में ज़्यादा पता नहीं है लेकिन हमेशा दूसरों में अच्छाई ही देखनी चाहिए.
जिन लोगों ने ना कहा उन्होंने बहुत कांफिडेंस के साथ जवाब दिया और इसके लिए उन्होंने ख़ुद का भी एग्ज़ाम्पल दिया. ये लोग एक्सेप्ट करते हैं कि वो काम में अपना 100% नहीं देते और इसलिए उन्हें लगता है कि दूसरे भी वैसा ही करते होंगे. ब्रेने ने महसूस किया कि जिन लोगों ने ना कहा था वो दूसरों के लिए इसलिए कठोर थे क्योंकि वो ख़ुद के लिए भी कठोर थे.
ब्रेने ने ये भी देखा कि जिन लोगों ने हाँ कहा था वो अपनी भावनाओं के प्रति वल्नरेबल और खुले हुए थे. जो लोग अपनी फीलिंग्स को सुनना बंद कर देते हैं वो हर चीज़ में परफेक्शनिस्ट होने की कोशिश करने लगते हैं. इस परफेक्शन की चाहत में वो ख़ुद के लिए और दूसरों के लिए कठोर हो जाते हैं.
ब्रेने को ये भी पता चला कि हाँ कहने वालों के ग्रुप के लोग इस बात को मानते हैं कि वो हमेशा अपना बेस्ट परफॉर्म नहीं कर पाते और उनसे भी गलतियां होती हैं. ये सोचने के बजाय कि क्या हो सकता था ये लोग सिर्फ़ फ़िर से कोशिश करने और अच्छे इरादों पर ध्यान फोकस करते हैं. कुछ साल पहले, ब्रेने को एक प्रोग्राम में एक स्पीकर के तौर पर इनवाईट किया गया था. ब्रेने ने उसे एक्सेप्ट तो किया लेकिन बेमन से किया था. उन्हें स्पीकर बनने में कोई दिलचस्पी नहीं थी लेकिन प्रोग्राम के आर्गेनाइजर ने इतना ज़ोर देकर कहा कि उन्हें हाँ कहना पड़ा. आर्गेनाइजर ने उनसे कहा कि उन्हें उस इवेंट के लिए मना नहीं करना चाहिए क्योंकि जब वो एक जानी मानी ऑथर नहीं थीं तब उस ग्रुप ने उन्हें सपोर्ट किया था. उसने ये भी कहा कि उन्हें उम्मीद है कि नाम और शोहरत उनके सर पर नहीं चढ़ा होगा.
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जिस बात से ब्रेने को सबसे ज़्यादा शर्मीदगी महसूस हुई वो था उनका सवाल “आप ख़ुद को समझती क्या हैं, आप हैं कौन?” यही कारण था कि ब्रेने जाने के लिए सहमत हो गईं. यहाँ तक कि जब उन्हें पता चला कि उन्हें एक दूसरे स्पीकर के साथ अपना रूम शेयर करना होगा तब भी उन्होंने कोई शिकायत नहीं की.
लेकिन वहाँ पहुँचने के बाद ब्रेने को पता चला कि उनकी रूममेट काफ़ी बददिमाग लड़की थी जिसने ब्रेने का मूड बिलकुल ख़राब कर दिया था. पूरे प्रोग्राम में उनका चेहरा उतरा रहा. यहाँ तक कि घर जाने के वक़्त जब वो एयरपोर्ट पर थीं तब भी उनका मूड ख़राब था. तब ब्रेने ने सोचा कि उन्हें किसी को भी इतनी सख्ती से जज नहीं करना चाहिए जैसे वो उस लड़की को कर रही थीं क्योंकि जब उनका मूड ख़राब होता है तब लोग भी उनके बारे में वही सोचते होंगे जो उन्होंने अपनी रूममेट के बारे में सोच लिया था.