यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए
क्या आप भी इस दुनिया की भीड़ में अपनी एक जगह ढूँढ रहे हैं? यह किताब आपको बताती है कि कैसे आप अपने लिए जगह ढूँढना बंद कर के अपने लिए जगह बना सकते हैं।
इंटरनेट और सोशल मीडिया के आविष्कार हम सभी को एक दूसरे को करीब ले आने के लिए किया गया था लेकिन इस किताब में हम देखेंगे कि कैसे ये चीजें हमें बाँटने का काम कर रही हैं। इस किताब की मदद से आप अपने गुस्से को सही तरह से इस्तेमाल करना सीख कर अपना और लोगों का भला कर सकते हैं।
इस किताब के अंत में हम देखेंगे कि कैसे हम अपने समाज को एक नया रूप दे सकते हैं।
- टीवी और इंटरनेट कैसे हमारे समाज को बाँटने का काम रहे हैं ।
- कैसे हम समाज में फैले अकेलेपन और भेद भाव को दूर कर सकते
- गुस्से को अपने अंदर दबा कर रखने से हिंसा कैसे फैल सकती है।
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हम जिन्दगी भर यह खोजते रहते हैं कि हमारा वास्ता कहाँ से है।
हम में से हर कोई सोचता है कि भगवान ने हम सभी के लिए इस दुनिया में एक जगह बनाई है। हम सभी लोग मानते हैं कि हम सभी की जिन्दगी का एक मकसद है जिसे पूरा करने के लिए हम इस धरती पर आए हैं। लेकिन क्या हो अगर आप को अपनी जगह और अपना मकसद ना मिले? ऐसे में जीना बहुत मुश्किल हो जाता है। लेखिका के साथ कुछ ऐसा ही हुआ।
लेखिका को बचपन से ही ऐसा लगने लगा था कि उनकी इस दुनिया में कोई जगह नहीं है। हालाँकि भगवान ने हर किसी के लिए एक जगह बनाई है लेकिन लेखिका को लगता था कि भगवान उन्हें बना कर भूल गया है। इसका उनके दिमाग पर गहरा असर हुआ।
जब लेखिका चार साल की थीं तब उनका परिवार न्यु आर्लियन्स में जा कर बस गया जहाँ के लोगों में अब भी रंगों और जाती के आधार पर भेद भाव करने की भावना थी।
लेखिका का पूरा नाम ब्रीन कसैन्ड्रा ब्राउन ( Brené Cassandra Brown ) है। कसैन्ड्रा नाम ऐफ्रिकन अमेरिकन लोगों का होता है जिसकी वजह से उन्हें अपने स्कूल के गोरे स्टुडेंट्स के बीच जगह नहीं मिली। लेकिन लेखिका का रंग गोरा था जिसकी वजह से उन्हें काले स्टुडेंट्स में भी जगह नहीं मिली।
लेखिका के बचपन में उन्हें लगने लगा कि वे अपने स्कूल के बच्चों के साथ साथ अपने परिवार वालों से भी बिल्कुल अलग हैं। उनके परिवार में उनके पिता अपने स्कूल के समय में फुटबाल प्लेयर थे और उनकी माँ चीयरलीडिंग टीम का हिस्सा थीं। लेकिन बहुत कोशिश करने के बाद भी जब लेखिका को चीयरलीडिंग में नहीं लिया गया तो वे हताश हो गई और उन्हें लगने लगा कि उनके परिवार में भी उनके लिए कोई जगह नहीं है।
कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती। तनाव में रहते रहते उन्हें शराब की लत लग गई और इससे छुटकारा पाने के लिए उन्होंने एल्कोहोलिक एनोनाइमस ( Alcoholic Anonymous ) नाम की एक संस्था में जाना शुरू किया। लेकिन वहाँ के स्पाँसर ने लेखिका से कहा कि उनके हालात वहाँ के लोगों से नहीं मिलते और उन्हें को-डिपेंडेंट्स एनोनाइमस (Co-dependents Anonymous ) नाम की संस्था से जुड़ना चाहिए जहाँ वो अपने लिए एक अच्छा पार्टनर ढूँढ सकती हैं। लेकिन वहाँ से भी उन्हें निकाल दिया गया।
आपकी जिन्दगी की शुरुआत तब होती है जब आप इस दुनिया में अपनी जगह ढूँढना बंद कर के अपनी जगह बनाने लगते हैं।
अगर इस दुनिया में हमारा किसी से वास्ता है तो वो अपने आप से है। इसलिए सबसे बेहतर यही होगा कि हम इस दुनिया में अपनी जगह ना ढूँढें और ना ही किसी की जरूरत या सोच के हिसाब से अपने आप को बदलिए। इस दुनिया में आप खास हैं और आपको अपने लिए एक खास जगह बनानी होगी।
लेखिका को इस बात का एहसास तब हुआ जब वे अपने पति स्टीव से पहली बार मिलीं। स्टीव से मिलने से पहले लेखिका अपने आप को बरबाद करने पर तुली हुई थीं। शराब पीना, सिगरेट पीना और ड्रग्स लेना तो उनके लिए आम बात हो गई थी। लेकिन स्टीव से मिलने के बाद उनके हालात बदल गए।
जब लेखिका को एक आपराह शो में बुलाया गया तो उन्होंने वहाँ के लोगों को बताया कि किस तरह उन्होंने अपनी जिंदगी का मकसद ढूँढा। उन्होंने फैसला किया कि अब से उनकी जिन्दगी का मकसद है खुश रहना और हर दिन को कुछ इस तरह से जीना कि जैसे वो जिन्दगी का आखिरी दिन हो।
आपराह में लेखिका की मुलाकात एक कवि से हुई जिनका नाम माया एंजेलोउ ( Maya Angelou) था। उन्होंने लेखिका को सलाह दी – कभी भी अपने आप को दूसरों के लिए मत बदलो। अपनी कीमत को समझो और दूसरों की राय लेकर अपनी जिन्दगी के फैसले मत करो।
लेखिका ने शिकागो में बिजनेस पर स्पीच देते वक्त उनकी इस बात को याद रखा। वहाँ उन्हें एक बिजनेस एटायर पहन कर जाना था लेकिन क्योंकि वो कपड़ा उन्हें अच्छा नहीं लगा इसलिए उन्होंने उसे निकाल कर अपनी पसंद के कपड़े पहने। उन्हें बाकी के स्पीकर्स के मुकाबले सबसे ज्यादा रेटिंग मिली।
इस दुनिया के जंगल से निकलने का रास्ता आसान नहीं है।
ये दुनिया भी एक जंगल की तरह है। यहाँ पर रहने के लिए आपको कुछ चीजें सीखनी होगी और यहाँ से निकलने के लिए आपको बहादुरी का इस्तेमाल करना होगा। यहाँ भी हर कदम पर खतरा है और उससे निपटने के लिए आपको ज्ञान की जरूरत पड़ेगी।
सबसे पहले तो हम यह देखेंगे कि जंगल से हमारा मतलब क्या है। जंगल का मतलब उस जगह से है जहाँ से होकर आपका रास्ता गुजरता है। एक ऐसी जगह जो खतरों से भरी पड़ी है और जिनका सामना कर के ही आप आगे बढ़ सकते हैं। इनसे बचने का एक ही तरीका है कि आप वापस मुड़कर चले जाएं। आगे बढ़ने के लिए आपको इन मुश्किलों का सामना करना होगा। ये मुश्किलें बिन बुलाई भी हो सकती हैं।
इन मुश्किलों का सामना करने के लिए आपको कुछ नई बातें और चीजें सीखनी होगी। आपको अपने आप को पहले से बेहतर बनाना होगा और खुद पर काम करना होगा, अपने बारे में जानना होगा और अपनी कमियों को पहचान कर उन्हें दूर करना होगा। आपको अपने डर पर काबू पा कर हँसी खुशी आगे बढ़ना सीखना होगा।
सबसे पहले आपको अपने आप का और दूसरों का भरोसा जीतना होगा।दूसरों का भरोसा जीतने के लिए आपको एक खुली किताब बनना होगा। अपने आप को किसी भी तरह के पर्दे में रखने से या हद से ज्यादा राज़ रखने से आप लोगो का भरोसा नहीं जीत सकते।
दूसरों का भरोसा जीतने के लिए आपको अपनी गलतियों को मानना होगा, दूसरों को इज्जत देना होगा, दूसरों की कमियों को नजरअंदाज कर उन्हें अपनाना होगा,अच्छे फैसले लेने सीखने होंगे और अच्छा व्यवहार करना होगा।
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इंटरनेट और टेलीविजन मीडिया,की वजह से आज हम और भी अकेले पड़ गए हैं।
पिछले कुछ दशकों में आपने देखा होगा कि लोग पहले से ज्यादा तनाव में और अकेले रहने लगे हैं। टीवी और इंटरनेट इसकी असल वजह हैं।
जब हमारा आमना सामना अपने से अलग लोगों और विचारों से होता है तब हमें लगता है कि इस दुनिया में हम अकेले नहीं हैं। हम जो सोचते हैं उसके अलावा भी कोई सोच है। लेकिन जब से इंटरनेट और टीवी हमारे समाज का हिस्सा बन गए हैं तब से हम हर जगर अपनी जैसी सोच वाले लोगों को ढूंढते रहते हैं। अपनी जैसी सोच रखने वाले लोगों को ढूंढना आसान हो गया है जिसकी वजह से ये समाज अलग अलग भागों में बँट गया है।
अगर आँकड़ों की माने तो अब से 40 साल पहले अमेरिका में सिर्फ 25% लोग ही किसी एक पार्टी को वोट देते थे। लेकिन अब 80% लोगों ने या तो हिलरी क्लिंटन को वोट दिया है या डोनल्ड ट्रंप को।
इससे ये बात साफ हो गई है कि पिछले कुछ सालों में हमने अपने आप को अपनी जैसी सोच रखने वालों से घेर रखा है जिससे हमारा सामना अलग तरह के लोगों से नहीं होता और हम अकेलापन महसूस करते हैं। एक सर्वे के हिसाब से इन्हीं सालों में जिन लोगों ने अपने आप को अकेलेपन का शिकार बताया उनकी संख्या दोगुनी हो गई है।
इसलिए हमें अपने जैसे लोगों को छोड़कर दूसरी सोच वाले लोगों के साथ रहना चाहिए जिससे हम सभी एक हो सकें। इससे हम जातिवाद को खत्म कर सकते हैं और समाज के भेद भाव को कम कर सकते हैं।
जुलियाना होल्ट लंस्टैट ( Julianne Holt Lunstad ) ब्रीघम यंग यूनिवर्सिटी में साइकोलॉजी और न्युरोसाइंस की प्रोफेसर हैं। उनके हिसाब से ज्याना देर तक अकेला रहना हमारी सेहत पर बुरा असर डालता है। ये मोटापे, शराब या प्रदूषण से ज्यादा खतरनाक है।
इसलिए आप समाज में निकल कर अपने से अलग लोगों के साथ रहिए जिससे भेद भाव कम हो सके और हम सभी एक हो सकें।
अकेलेपन को दूर करने के लिए आप अपने आस पास की चीज़ों को महसूस करना सीखिए।
हम इस समाज को एक करने के लिए बहुत से कदम उठा सकते हैं आइए देखें कि वे कदम कौन कौन से हैं।
हमेशा टीवी के सामने बैठे रहने से आपको इस दुनिया की असलीयत के बारे में कभी पता नहीं चलेगा। इसलिए आप टीवी छोड़कर बाहर की दुनिया में निकलिए जिससे आपको सही बातों के बारे में पता चल सके। जैसे टीवी पर हमेशा यह दिखाया जाता है कि सारे नेता बेईमान होते हैं। लेकिन अगर आप किसी राजनीतिक दल से जुड़ें तो शायद आपको पता लगे कि कुछ लोग वाकई समाज का विकास करना चाहते हैं।
इस दुनिया में आपको बिगड़ी सोच वाले बहुत से लोग भी मिलेंगे। ऐसे लोगों के पास पूरी जानकारी नहीं होती है इसलिए ये रास्ता भटक जाते हैं। अगर आप किसी ऐसे आदमी की सोच को बदलने की कोशिश करें तो आप उसके साथ अच्छा व्यवहार कीजिए। आप गुस्से में आकर कोई भी फैसला मत कीजिए।
आप अपने पड़ोसियों से अच्छे संबंध बनाने के लिए उनका साथ देना शुरू कीजिए। उनका साथ देने के लिए आप बहुत से काम कर सकते हैं । आप उनके फेवरेट टीम को सपोर्ट कीजिए या फिर मुश्किल हालात में उनकी मदद कीजिए।
ऐसा जरूरी नहीं है कि अगर आप लोगों का भला करने निकलें तो आपको लोगों का प्यार मिले। जैसा कि पहले ही कहा गया कि यहाँ आपको बहुत से बिगड़े लोग भी मिलेंगे जिनके पास पूरी जानकारी नहीं होती। अगर ऐसे लोग आप से नफरत करें तो आप इन्हें अनदेखा करना सीखिए।
एक्ज़ाम्पल के लिए आप लेखिका की दोस्त जेन हैटमेकर ( Jen Hatmaker) को ले लीजिए जो एक क्रिश्चन हैं लेकिन LGBTQ कम्युनिटी को सपोर्ट करती हैं। क्रिश्चन LGBTQ कम्युनिटी के खिलाफ हैं जिसकी वजह से उन्हें अपने ही लोगों से बुराई झेलनी पड़ी। लेकिन उन्होंने उनके साथ भी अच्छा व्यवहार किया और समय के साथ एक आदर्श बन गई।
अपने गुस्से को अपने अंदर दबाइए मत बल्कि इसका इस्तेमाल आप अच्छे कामों के लिए कीजिए।
कभी कभी हम अपने गुस्से को अपने अंदर दबा कर रखते हैं। हम ना ही इसे बाहर आने देते हैं और ना ही इसे खत्म कर पाते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि ये गुस्सा एक ज्वालामुखी की तरह एक दिन फट जाता है और तबाही का रूप ले लेता है। आप समाज में फैल रही हिंसा इसी दबे हुए गुस्से का नतीजा है।
हमें अपने गुस्से की एनर्जी को बदलाव लाने में लगाना चाहिए। 9/11 के हमलों के बाद पूरे अमेरिका में गुस्से और दुख का माहौल छा गया था। ऐसे में सरकार के खिलाफ बहुत सी आवाजें उठने लगी कि उन्होंने लोगों की जान बचाने के लिए कुछ भी नहीं किया। अगर देखा जाए तो आतंकवादियों का यही मकसद था कि वे लोगों में हिंसा भड़का कर उन्हें आपस में ही लड़ने पर मजबूर कर देंगे।
ऐसे में एंटोनी लीरिस (Antoine Leiris) ने “तुम्हें मेरी नफरत नहीं मिलेगी” के नाम से चिठ्ठियाँ लिखना शुरू किया। उन्होंने लिखा कि भले ही उसने हमलों में अपनी पत्नी को खो दिया लेकिन वो उन्हें उनके मकसद में कामयाब नहीं होने देगा। वो उनके फैलाए हुए आतंक को और फैलने नहीं देगा। वो पहले भी खुशी से रहता था और अब भी खुशी से रहेगा।
इस तरह से एंटोनी ने अपने गुस्से से निकली हुई एनर्जी को सही जगह पर लगा कर बदलाव लाने की कोशिश की। गुस्से को अपने अंदर पनपने देने से वो एक दिन हिंसा का रूप ले ही लेगी। इसलिए इसे कभी अपने अंदर बैठने मत दीजिए।
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कुल मिला कर
हम सभी इस दुनिया में अपनी जगह ढूँढते रहते हैं। अपनी जगह ढूँढने का सफर आसान नहीं है और इसके रास्ते में हमें बहुत सी तकलीफें और समस्याएं झेलनी पड़ सकती हैं। लेकिन सही ज्ञान और साधन की मदद से और खुद पर काबू पा कर हम इस दुनिया में अपने लिए एक जगह बना सकते हैं।
अगर आप किसी से सहमत नहीं हैं तो आप उससे एक अच्छे तरीके से बहस कर सकते हैं।
अगर अगली बार आपको कोई ऐसा व्यक्ति मिले जिसकी बातों से आप सहमत नहीं हैं तो आप अपनी असहमति एक अच्छे तरीके से जताएँ। अक्सर लोग बहस करते वक्त एक दूसरे से झगड़ा कर लेते हैं और उन्हें गालियाँ देने लगते हैं। लेकिन आप बिना गाली दिए भी अपनी बात को साफ सुथरे शब्दों में सामने वाले के सामने रख सकते हैं।