मेडिटेशन का मतलब प्रेजेंट में रहना है, साउंड मेडिटेशन से शुरूआत करना एक बेहतर ऑप्शन हैं
Advice Not Given Book Summary in Hindi- जिंदगी में अच्छा खासा हिस्सा स्ट्रेस और घबराहट का है, पैसे और करियर की फिक्र से लेकर रिलेशनशिप तक और इनके बीच सामना करने के लिये लगातार आ रही डिस्ट्रक्शन की रुकावट. और इसके चलते बहुत सारे लोग इन सब से निकलने और अपनी जिंदगी में क्लियरिटी लाने के लिए साइकोथैरेपिस्ट की मदद लेते हैं.
आथर मार्क एपस्टीन, टेंड और लाइसेंस्ड साइकोथैरेपिस्ट हैं इसलिए उन्हें मॉडर्न जिंदगी के स्ट्रेस प्वाइंट के बारे में मालूम है. लेकिन जो चीज मार्क को अलग बनाती है वह यह है कि मार्क मेडिटेशन करते हैं और यह दावा करते हैं कि कई हद तक मेडिटेशन, साइकोथैरेपिस्ट की तरह ही आपकी मदद करता है.
मेडिटेशन सिर्फ आपको डिस्ट्रैक्शन से बचा कर प्रेजेंट में रहने में ही मदद नहीं करता बल्कि यह आपके ऑब्सेसिव थॉट्स को सुलझाने और आपके बिहेवियर और रिलेशनशिप से जुड़े मामलों की डीप जानकारी हासिल करने में भी आपकी मदद करता है, …. | लेकिन सबसे बड़ा फर्क यह है कि मेडिटेशन फ्री है|इसके अलावा आप जानेंगे कि क्यों जरूरत से ज्यादा माइंडफुलनेस घातक है? मेडिटेशन, ऑब्सेसिव थॉट से बाहर निकलने में आपकी मदद कैसे करता है? और कैसे मेडिटेशन की मदद से एक महिला अपने पास्ट को क्लियर तरीके से समझ सकी?
अगर किसी को मेडिटेशन से प्रॉब्लम है तो इसकी वजह उनकी प्रैक्टिस और ज्यादा रिलैक्सड और खुशहाल बनने के मकसद का प्रेशर हो सकता है. यह एक अलग नज़रिया है क्योंकि मकसद फ्यूचर के लिए होता है, और मेडिटेशन का काम आपको प्रेजेंट में ले आना है.हालांकि, प्रेजेंट में रहना कहने जितना आसान नहीं है. हममें से बहुत सारे लोगों के लिए, शांति से बैठकर पास्ट के पछतावे और फ्यूचर की फिक्र से आजाद रहना बहुत मुश्किल है.
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अगर आपसे कहा जाए कि आप जो भी कर रहे हैं उसे छोड़कर शांति से बैठ जाएं, तो आप कुछ सेकेंड के अंदर ही उन कामों में लग जाएंगे जिन्हें इस हफ्ते तक पूरा किया जाना है. या फिर आप उस नेगेटिव इवेंट के बारे में सोचने लगेंगे जहां किसी को तकलीफ पहुंची थी.
आमतौर पर हमारा दिमान ऐसे ही चलता है, आपको ऑब्सेसिव थॉट्स से भरी एक इमैजिनरी दुनिया में ले जाता है जहां या तो आप फ्यूचर की फिक्र करते रहते हैं या फास्ट में हुए मतभेदों को याद करते रहते हैं, और यह सारी चीजें आपको प्रेजेंट में जीने से रोकती हैं.
दिमाग के प्रेजेंट से दूर रहने की दो प्राइमरी वजहें होती हैं.
पहली वजह इसका नया और अनप्रिडिक्टेबल होना है, हमारे सेंसेज़ हर पल नये रिएक्शन चुनते रहते हैं, इसका मतलब है हमारे सेंसेज़ हमेशा पल-पल बदलते रहते हैं.दूसरा, जब कुछ बुरा होता है तो हमारा मन, उसी से जुड़े पुराने वाक्यों पर चला जाता है. इसलिए डरावने, नये और अनक्लिकेबल प्रेजेंट का सामना करने के बजाए, यह इसी तरह की फिक्र से जुड़े पुराने हादसों पर वापस चला जाता
हलांकि, प्रैक्टिस के ज़रिए आप अपने दिमाग को प्रेज़ेन्ट में रहने की आदत डाल सकते हैं. ऐसा करना कारगर है, क्योंकि इसके, स्ट्रेस और मज़बूत इम्यून सिस्टम जैसे कई फायदे हैं.अपने दिमाग को प्रेजेंट की आदत डालने की प्रैक्टिस, साउंड मेडिटेशन से शुरू कीजिए.
ऐसा आप कंफर्टेबल और सुकून वाली जगह ढूंढ कर वहां आंख बंद करके बैठने से कर सकते हैं. उसके बाद आवाज़ों पर ध्यान दें जो आपके आसपास से आ रही हैं. ऐसा करने के दौरान, बिना जजमेंट या अपने दिमाग में सेनैरियो बनाए बिना, सेंसेशन (दिमागी रिएक्शन) का मेंटल नोट लेते रहिए. मिसाल के तौर पर सोचिए कि आपके कान में पढ़ने वाली आवाज बच्चे के तेज़ी रोने की है. या फिर मंद मंद चल रही हवाओं की है. आवाज़ों को आवाजें ही रहने दीजिए. उन्हें बिना किसी इंटरप्रिटेशन के चलने दीजिए.
मेडिटेशन जिंदगी को नजरअंदाज करने की कोई स्ट्रैटेजी नहीं है, यह पूरी तरह जीने का तरीका है जब आपको खाली वक्त में कोई काम करने के लिए कहा जाए, तो हो सकता है कि मेडिटेशन आपको एक्साइटिंग ना लगे. हालांकि मेडिटेशन की रेपुटेशन पहाड़ चढ़ने या विंडसर्किंग जैसी नहीं है, लेकिन मेडिटेशन जिंदगी को पूरी तरह से जीने का तरीका है.फिर भी, बहुत सारे लोग मेडिटेशन की प्रैक्टिस को लेकर गलत समझ रखते हैं, उन्हें लगता है कि मेडिटेशन आंखें बंद करके बैठने और अपनी जिंदगी की प्रॉब्लम नजरअंदाज करने को कहते हैं.
लेखक के दोस्त और साइकोथैरेपिस्ट जैक इंगलर को मेडिटेशन का असल मतलब हिंदुस्तान के दौरे पर समझ आया, जब वह हिंदुस्तान के जाने-माने संत गुरु मनिंदर से मिलने आए थे. गुरु मनिंदर के साथ गुजारे गए शुरुआती 2 हफ्तों में दिक्कतें आई, मनिंदर जब भी इंग्लर से बात करते उनके मल त्याग के बारे में सवाल पूछते, इंग्लर को एहसास हुआ कि हिंदुस्तान में लोग कब्ज़ और दस्त के बारे में ऐसे बात करते हैं जैसे अमेरिकी मौसम के बारे में बात करते हैं.
आखिरकार एक दिन इंग्लर ने गुरु मनिंदर का सामना किया, और उन्हें बताया कि वह यहां अपने मल त्याग के बारे में बात करने नहीं बल्कि धर्म के बारे में कुछ सीखने आए हैं, जिसे ज्ञान से रास्ते के रूप में जाना जाता है और जो मेडिटेशन से जुड़ा हुआ है.तब मनिंदर ने इंग्लर को समझाया कि क्यों उन्होंने शुरुआती दो हफ्तों में कोई मेडिटेशन टेक्निक नहीं सिखाई. वह समझाना चाहते थे की मेडिटेशन कोई अलग चीज़ या इसका मतलब अपनी जिंदगी की हकीकत से भागना नहीं है. दरअसल मेडिटेशन का मतलब अपनी जिंदगी के प्रेजेंट मोमेंट से पूरी तरह इंगेज होना है, चाहे यह कोई अच्छा एक्सपीरियंस हो या बुरा. मनिंदर इंग्लर को समझाना चाहते थे कि मेडिटेशन इतना बेसिक है जितना कि आपका टॉयलेट जाना.
मेडिटेशन का इस्तेमाल अपनी जिंदगी की हकीकत से भागने के लिए नहीं किया जाना चाहिए, हालांकि यह भी सच है कि कई लोग इस जाल में फंस कर मेडिटेशन का इस्तेमाल अपनी जिंदगी की प्रॉब्लम्स से भागने के लिए करते हैं.
यकीनन, जॉब ढूंढने, अपने रिलेशनशिप को ठीक करने जैसी जिंदगी की रियल प्रॉब्लम पर ध्यान देने के बजाय एक किनारे बैठ कर सिर्फ अपनी सांसो पर फोकस करना अच्छा लग सकता है. फिर भी, मेडिटेशन आप की जिम्मेदारियों के बीच दीवार खड़ी करने का नाम नहीं है. मेडिटेशन यह सीखने का एक तरीका है कि कैसे आप अपने प्रेजेंट मोमेंट पर फोकस कर सकते हैं- चाहे वह मोमेंट अपने पार्टनर के साथ झगड़े का हो या पहाड़ों पर कोई दिल लुभाने वाला नज़ारा हो. मेडिटेशन से आपके अंदर पूरी तरीके से प्रेजेंट में जीने की स्किल डेवलप होती है.
माइंडफूलनेस मेडिटेशन का सबसे अच्छा तरीका है, लेकिन बेहतर है कि से ज्यादा ना किया जाए।
आज के दौर में हर कोई मेडिटेशन कर रहा है, और माइंडफूलनेस, एम्मा वाटसन जैसी पब्लिक फिगर के बढ़ावे के बाद, लोगों की सनक बन चुका है। तो, क्या मेडिटेशन और माइंडफूलनेस में फर्क है? हां माइंडफूलनेस मेडिटेशन का एक तरीका है, और आज की मॉडर्न दुनिया में इस तरीके का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है.
जहां एक तरफ मेडिटेशन की ज्यादातर प्रैक्टिसेज, मंत्र या मोमबत्ती जैसी किसी एक चीज़ पर फोकस करती हैं, वहीं दूसरी तरफ माइंडफूलनेस का मतलब किसी एक चीज़ पर ठहरना नहीं बल्कि हर तरह के सिनेरियो के लिए तैयार रहना है.यकीनन माइंडफूलनेस फायदेमंद है, लेकिन इसकी सनक चढ़ जाना भी मुमकिन है. याद रखें माइंडफुलनेस सिर्फ खुद को बेहतर बनाने का एक तरीका है, आपको हर गुज़रते हुए मिनट पर बहुत ज्यादा ध्यान देने की जरूरत नहीं है.
बौद्ध धर्म किसान की एक कहानी के ज़रिए हेल्थी माइंडफूलनेस समझाने की कोशिश करता है. फसल काटने से पहले किसान को ध्यान रखना होता है कि गायें उसकी फसल को खा ना लें, लेकिन फसल काटने के बाद उसे सिर्फ इतना ही श्योर करने की जरूरत है कि गायें इधर-उधर ना भटकें.आप यही नज़रिया माइंडफूलनेस के लिए भी अपना सकते हैं, कुछ वक्त अटेंटिव रहने के बाद, माइंडफुलनेस दूसरी प्रायोरिटी बन जाता है, इसलिए आपको यह ऑब्सेसिव प्रैक्टिस जारी रखने की जरूरत नहीं है.
माइंडफुलनेस की पॉपुलैरिटी की एक सबसे बड़ी वजह यह भी है, कि यह दूसरे एडवांस मेडिटेशंस की तरफ बढ़ने के लिए पहला कदम है. बहुत सारी बुद्धिस्ट ट्रैडिशन में माइंडफूलनेस का इस्तेमाल इसी वजह से किया जाता है, माइंडफुलनेस, मेन कोर्स को समझने के लिए पहला कदम है.
एक और बौद्ध कहानी के हिसाब से. बुद्ध माइंडफूलनेस को नदी के पार निकलने का एक जरिया समझते थे. एक बार जब आपने नदी पार कर ली हो तो उस ज़रिये को अपने साथ ले जाने की कोई जरूरत नहीं है. माइंडफूलनेस को पीछे छोड़ दीजिए ताकि आप मेडिटेशन के दूसरे तरीके सीख सकें.
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कंसंट्रेशन मेडिटेशन की वजह से आपकी जिंदगी कम स्ट्रेसफुल हो सकती है
मेडिटेशन को कोई स्प्रिचुअल या मुश्किल काम समझने की जरूरत नहीं है. आप इसे कंसंट्रेशन एक्सरसाइज की तरह समझ सकते हैं। दिमाग में यह बात रखकर, आप नीचे दी हुई टेक्निक अपना सकते हैं, जिसे कंसंट्रेशन मेडिटेशन कहते हैं
सबसे पहले बैठने के लिए एक शांत जगह ढूंढिए, अगर आप यह एक्सरसाइज सुबह करें तो ज्यादा अच्छा होगा. एक बार आप कंफर्टेबल हो जाएं तो किसी एक चीज पर अपनी सारी अटेंशन के साथ फोकस करें. यह आपकी सांस या मेट्रोनोम(एक तरह का म्यूज़िक डिवाइस) की आवाज़ जैसा कुछ हो सकता है.बताने में तो यह आसान लगता है, लेकिन प्रैक्टिस के दौरान, फोकस बनाए रखना काफी मुश्किल हो सकता है. सांसों की कुछ गिनतियां गिनने के बाद बहुत सारे लोग देखेंगे कि उनके दिमाग में काम, अपनों या डिनर प्लान्स के खयाल आने लगे हैं.
दिमाग में यहां-वहां की बातें आना नॉर्मल है, खास तौर पर शुरुआत में, लेकिन हार ना मानना और अपने ध्यान को दोबारा ब्रीथिंग की तरफ से ले आना इंपॉर्टेट है. अगर दोबारा ऐसा होता है तो दोबारा अपनी अटेंशन ब्रीथिंग की तरफ ले आइए और कुछ देर तक ऐसा करते रहिए. शुरुआत में यह वक्त 5 से 10 मिनट तक काफी है लेकिन धीरे-धीरे यह वक्त कम से कम 1 घंटे तक ले जाना चाहिए. जितना ज्यादा आप यह प्रैक्टिस करते रहेंगे उतना जल्दी आपका मन शांत होने लगेगा, और ज्यादा देर तक फोकस्ड रहना आसान होगा.
कंसंट्रेशन मेडिटेशन का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह रोजमर्रा की जिंदगी में होने वाला स्ट्रेस कम कर देता है.
बुद्ध ने कंसंट्रेशन मेडिटेशन को सोना साफ करने के तरीके से कंपेयर किया था क्योंकि यह गंदगी निकाल कर कीमती चीज को चमकदार और फ्लैक्सिबल बनाता है। (जैसे सोने को किसी भी आकार में डाला जा सकता है वैसे ही हमारा दिमाग किसी भी सिचुएशन के लिए तैयार रहता है)
अब तो, मेडिटेशन के फायदे साइंटिफिकली भी साबित हो चुके हैं. बहुत सारी स्टडीज में पाया गया है कि मेडिटेशन बॉडी को रिलैक्स करता है, और इससे स्ट्रेस में कमी, बेहतर डाइजेशन और दिल की धड़कन की स्पीड में कमी जैसे फायदे होते हैं. कुछ ही दिनों की प्रैक्टिस से फायदा नज़र आने लगता है और जैसे-जैसे प्रैक्टिस बढ़ती है फायदे भी बढ़ते हैं.
एपस्टीन कैंसर से जूझ रहे एक युवक को जानते थे, जिसे पीईटी टेस्ट सहित बहुत सारे टाइम टेकिंग टेस्ट कराने पड़ते थे, यह टेस्ट काफी स्ट्रेसफुल होते थे. लेकिन अच्छी बात यह है कि वह युवक कंसंट्रेशन मेडिटेशन करता था जिसकी वजह से यह स्ट्रेसफुल काम उसके लिए काफी आसान हो गया था.
मेडिटेशन साइकोथेरेपी की तरह होता है और यह नेगेटिव थॉट्स को पहचानने में मददगार है। मेडिटेशन और साइकोथैरेपीज को एक जैसा नहीं समझा जाता, लेकिन असल में इन दोनों में ही काफी चीजें एक जैसी हैं। मेडिटेशन और साइकोथेरेपी दोनों ही आपके थॉट की ताकत को अच्छी तरीके से समझते हैं.
मेडिटेशन का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह आपको अपने थॉट पैटर्न को समझने और बार बार आने वाले थॉट्स को पहचानने में मदद करता है.मिसाल के तौर पर, जब भी आप मेडिटेशन करते हैं, खुद पर बहुत सख्त हो जाते हैं, आपके दिमाग में बार-बार “मैं यह नहीं कर सकती, मैं अच्छे से नहीं कर पा रही हूं” जैसे कमतरी का एहसास करवाने वाले ख़याल आने लगते हैं.
अगर मेडिटेशन फायदेमंद ना होता तो ऐसे थॉट पैटर्न का शिकार इंसान नशे की लत में पड़ जाता. या फिर उसे पार्टी करने, दिन भर घर में बैठकर शो देखने और इन प्रॉब्लम्स को लेकर बेहद परेशान होने की आदत भी पड़ सकती है.
फॉर्च्नेटली, हमारे पास मेडिटेशन का ऑप्शन है, यहां तक की कुछ देर का मेडिटेशन नेगेटिव इमोशन और उसके नतीजे में दुखी होकर बैठने और आइस क्रीम खाने की चाहत जैसी चीज़ों से बचने में मदद कर सकता है. जब आप मेडिटेशन करते हैं, तो यह आपको बैठकर अपने इमोशन समझने और यह जानने में मदद करता है कि इन नेगेटिव इमोशंस की वजह क्या है.मेडिटेशन का दूसरा मेडिकल फायदा यह है कि यह आपको नेगेटिव थॉट्स को पहचानने और उन्हें बदलने की अपॉर्चुनिटी देता है। इसका एक एग्जांपल यह हो सकता है कि आप चार्मिंग, दरियादिल, मजबूत और कामयाब होने का दिखावा कर रहे हो जबकि अंदर से बुज़दिल, बेईमान, जरूरतमंद और न जाने कितने ही नेगेटिव थॉट का शिकार हों.
हालांकि इन थॉट्स की रियलिटी जाने बगैर अपने आप को कोसना बहुत आम है. लेकिन मेडिटेशन की वजह से इन थॉट्स को पहचानने और इन्हें हल करने में मदद मिलती है. इसमें अगर आपके दिमाग में खुद को कमतर समझने वाले खयाल आएं, तो आप ठहर कर इसके पीछे की वजह का पता लगा सकते हैं. तो अगली बार जब आप आपने पार्टनर की अटेंशन खींचने की कोशिश करें तो आपको पता हो कि आपने ऐसा अपने रिश्ते की डर वजह से किया है.
जब आप मेडिटेशन करते हैं और अपने नेगेटिव थॉट्स की वजह समझने की कोशिश करते हैं तो आप प्रॉब्लम को सॉल्व करने के लिए साइकोथेरेपी से मिलता-जुलता तरीका अपनाते हैं। (मतलब साइकोथेरेपी और मेडिटेशन काफी हद तक एक जैसे हैं)
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मेडिटेशन फोकस करने और ऑब्सेसिव थॉट्स से निपटने में मददगार है
Advice Not Given Book Summary in Hindi- ‘मेडिटेशन प्रॉब्लम को नजरअंदाज करता है, इसके साथ ही मेडिटेशन के बारे में लोगों को एक और गलतफहमी यह है की मेडिटेशन आपके दिमाग में अनचाहे थॉट्स नहीं आने देता.सच यह है, कि मेडिटेशन आपको कुछ ऐसे प्रैक्टिकल तरीके सिखा देता है, जिनकी मदद से आप जिंदगी और इसकी फिक्र का सामना कर लेते हैं.मेडिटेशन की मदद से लोग अपने फोकस को शिफ्ट करके, दिमाग को शांत कर लेते हैं.
इसे एक कहानी के ज़रिए अच्छी तरीके से समझाया गया है. यह कहानी स्पिरिचुअलिटी की तलाश कर रहे एक नाम के एक शख्स के बारे में है, जो पांचवी सेंचुरी के चीनी स्प्रिचुअल टीचर, बोधिधर्मा के पास पहुँचा. ह्यक में जब बोधिधर्मा से मदद मांगी तो उन्होंने उसके जवाब में उसके परेशान मन को देखने की गुज़ारिश कर दी.
हाक ने जवाब दिया “मैंने अपने मन को समझने की कोशिश की, लेकिन उस पर पकड़ नहीं हासिल कर सका”. जिसके जवाब में टीचर ने कहा “अब तुम्हारा मन शांत हो गया है”.
इससे यह पता चलता है कि हमारा एनालिटिकल और फिक्रमंद मन हमारी कॉन्शियस(चेतना) से अलग होता है, इसी तरीके से हम इस दुनिया का एक्सपीरियंस करते हैं. इसलिए अपने अटेंशन को उलझे हुए मन से हटा कर, कॉन्शियस पर फोकस करने से हम शांति पा सकते हैं.मन से हटाकर कॉन्शियसनेस पर ध्यान देने का यह शिफ्ट, ऑब्सेसिव थॉट्स से निपटने में हमारी मदद करता है.
अपने साइकोथैरेपिस्ट के काम के दौरान, एपस्टीन के क्लाइंट्स में एक बुजुर्ग आदमी भी था जो औरतों को लेकर अपने मन में आ रहे ऑब्सेसिव थॉट्स को ज़ाहिर करने में शर्मिंदगी महसुस कर रहा था, खासतौर पर सेक्स से जुड़ी ख़्वाहिशों को लेकर.
एपस्टीन को एहसास हुआ की दिक्कत की एक बड़ी वजह यह भी है कि वह औरतों से बातचीत नहीं करता था, नतीजतन, औरतों के साथ उसके एक्सपीरियंस, बस ख्याली ही थे. इसलिए एपस्टीन ने इन थॉट्स को दबाने या कहीं और ध्यान देने की सलाह नहीं दी. उन्होंने अपने क्लाइंट को औरतों को नजरअंदाज ना करने की सलाह दी, और अपना ध्यान दिमाग से कॉन्शियसनेस पर शिफ्ट करने को कहा, उन्होंने अपने क्लाइंट को समझाया की औरतें जीती जागती इंसान होती है और वह कोई इमैजिनरी कैरेक्टर नहीं है.
एक बार जब उसने इस बात को दिल में बसा लिया तो उसके अॅॉब्सेसिव थॉट्स में कमी आ गई.
मेडिटेशन आपको एक शांत माहौल देता है, ताकि आप यह समझ सके हैं कि रिश्तो में झगड़े की असल वजह क्या है। अगर आपकी कभी अपनों से बहस हुई है, तो आप समझ सकते हैं कि यह झगड़ा बीच में जिंदगी और मौत का सवाल लगने लगता है. लेकिन अगर आप बाद में बैठकर इस बारे में सोचें, तो आपको एहसास होता है कि बहुत सारी बातें जबरदस्ती ही कह दी गई थी, इन ओवर रिएक्शंस की कोई वजह नहीं होती.एपस्टीन की दूसरी क्लाइंट केट का एग्जांपल ले लीजिए, जो एक आर्किटेक्चर फर्म में काम करती थी और एक रिटायर्ड इंसान के साथ रिलेशनशिप में थी.
केट के रिश्ते में मुश्किलें आ रही थी और इसकी वजह उनके घर में फैली गंदगी थी. कैट मानती थी शॉपिंग और कुकिंग सहित घर के ज़्यादातर काम उसका पार्टनर करता है लेकिन वह गंदगी भी बहुत फैलाता है कभी-कभी जब वह ऑफिस से घर लौटती है तो घर में यहां वहां चाय के कप, कपड़े और कागज फैले हुए पाती. यह कोई बड़ी बात ना लगे लेकिन इसकी वजह से उनके बीच में बहुत झगड़े होते थे.
यह जिंदगी का एक और पहलू है जिसमें मेडिटेशन आपकी मदद कर सकता है. इस मामले में मकसद गुस्से के पीछे की असल वजह जानना है जिसकी वजह से आप अपनों से झगड़ते हैं और उन चीजों को एक्सेप्ट करना है जो आप बदल नहीं सकते.जैसा कि केट ने जाना, मेडिटेशन आपको एक शांत माहौल देता है ताकि आप अपने बिहेवियर की असल वजह जान सकें और अपने थॉट्स, फीलिंग और मोटिवेशन को अच्छे से ऑब्जर्व कर सकें.केट को एहसास हुआ कि उसे उसके गुस्से की वजह घर की गंदगी नहीं बल्कि उसके पार्टनर का उसकी जरूरत को ना समझना है.
हालांकि, घर को साफ सुथरा देखने की उसकी ख्वाहिश बेतुकी नहीं थी, वह समझ गई थी कि उसके गुस्से की वजह उसके पार्टनर का कम ध्यान देना है. हकीकत यह थी, कि उसका पार्टनर उससे थोड़ा सा ज़्यादा गंदगी फैलाता है, और यह एक आम सी बात है.
मेडिटेशन की वजह से केट चीजों को अच्छे से समझ सकती थी और अब उसकी जिंदगी में कम झगड़े है. अब अपने पार्टनर की कोशिशों की तारीफ करने लगी थी और घर को अपने हिसाब से सेट करने के लिए कुछ वक्त जी निकाल लेती थी.
मेडिटेशन की वजह से आप लंबे वक्त से चली आ रही गलतफेहमियों को दूर कर सकते हैं
अपनों पर गुस्सा निकालने के साथ एक और चीज जो अक्सर होती है वह यह कि हम अपने आप सोच लेते हैं कि सामने वाला हमसे गुस्सा है जबकि वह हमारे बारे में बिल्कुल सोच भी नहीं रहा होता या फिर बस खराब मूड में होता है. दुख की बात भी है कि यह गलतफहमियां सालों तक भी बरकरार रहते हैं.यह मामला भी मेडिटेशन के ज़रिए ठीक किया जा सकता है, मेडिटेशन की मदद से
आप अपने दिमाग में चल रही उस खुराफात को समझ सकते हैं जिसका हकीकत से कोई लेना देना नहीं है- जैसे कि कभी-कभी बिना कुछ किए ही पछतावे का एहसास होना. चूंकि मेडिटेशन करने
की वजह से आपको अपने दिमाग को अच्छे से समझने का मौका मिलता है, खास करके तब जब चीजें बहुत उलझाऊ नज़र आने लगती हैं. डेली मेडिटेशन करने का यह एक और फायदा है, क्योंकि बार-बार सोचने से हम उन नेगेटिव थॉट्स की सच्चाई पर सवाल करने लगते हैं जो हमारे दिमाग में लंबे वक्त से घर किए हुए हैं.
एपस्टीन कीमएक पेशेंट मार्था के साथ ऐसा ही हुआ, जो बहुत खुशदिल और खुले मजाक की थी लेकिन सेक्स के बारे में बात करने में उसे शर्मिंदगी होती थी.सेक्स को लेकर उसके एंबेरेसमेंट की वजह पुरानी थी. जब वह 11 साल की थी तो उसके घर पर उसका एक कज़िन भी रहता था, जो कई बार रात में उसके कमरे में आ जाता था.एक बार मार्था के फादर ने उन्हें देख लिया जिसके बाद मार्था के अपने परिवार वालों से खासकर अपने फादर से रिश्ते खराब हो गए. जिसकी वजह से मार्था को लगने लगा कि उसने कोई गलत काम किया है.
हालांकि, मेडिटेशन की मदद से मार्था धीरे-धीरे अपने पास्ट की इस गलतफहमी से बाहर निकल गई. और वो दूसरा सिनैरियो समझ गई थी कि उसके कैथोलिक फादर उससे दूर इस वजह से हुए थे क्योंकि वह अपनी जवान होती बेटी को लेकर थोड़ा सा अनकंफरटेबल हो गए थे, ना कि मार्था के अपने कजिन के साथ रिश्ते को लेकर.
अपने पास्ट के बारे में यह जानकर उसके कंधे से एक बड़ा बोझ उतर गया था, जिसकी वजह से सेक्सुअलिटी को लेकर उसके मन में जो शर्मिंदगी थी वह खत्म हो गई. वह इस दुख से आजाद हो गई थी कि वक्त से पहले सेक्सुअल एक्सपीरियंस की वजह से उसने अपने फादर का प्यार खो दिया है.
मेडिटेशन करने के बहुत सारे तरीके हैं और हर तरीके के अपने फायदे हैं लेकिन एक चीज जो याद रखने वाली है वह यह कि मेडिटेशन आपको लाइफ की प्रॉब्लम नजर अंदाज करने के लिए इंकरेज नहीं करता. बल्कि मेडिटेशन आपको अपने इमोशन और थॉट्स को अच्छी तरह से समझने के तरीके और शांत माहौल प्रोवाइड करता है, ताकि आप अपनी फीलिंग और थॉट्स की असल वजह जान सकें. इस नज़रिये के साथ आप अपनी जिंदगी की प्रॉब्लम्स को आसानी से हल कर सकेंगे.
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कुल मिलाकर
मेडिटेशन प्रैक्टिस को साइकोलॉजी की तरह समझने की जरूरत है. लगातार मेडिटेशन करने की वजह से लोग थेरेपी से होने वाले मेंटल हेल्थ के फायदे हासिल कर सकते हैं. इसके साथ ही आप अपने थॉट्स, इमोशन और बिहेवियर को गहराई से समझ सकते हैं. अॉथर मेडिटेशन और साइकोथैरेपी दोनों का एक्सपीरियंस रखते हैं और इस बिनाह पर वह दावा करते हैं कि मेडिटेशन ने बहुत सारे लोगों को अपना रिश्ता ठीक करने, सेल्फ स्टीम और ऑब्सेसिव थिंकिंग की वजह से होने वाली मुश्किलों में मदद की है.
बहुत ज्यादा मेहनत करने या खुद पल सख्त होने की जरूरत नहीं है.
जब बात मेडिटेशन की हो, तो ज्यादा मेहनत करना कारगर नहीं होता. मिसाल के तौर पर अगर आप ब्रीथिंग मेडिटेशन कर रहे हैं, जिसमें लंग्स से बाहर आती और अंदर जाती सांस पर फोकस करना होता है, आप ब्रीथिंग को कंट्रोल कर के उसे लंबा करना चाहते हैं तो इसका असर उलट हो जाएगा. आपकी बॉडी जैसी भी है वैसे ही ऑब्जर्व करना होगा, अगर आपकी ब्रीथिंग रेगुलर है तो बस इसे नोट कीजिए मेडिटेशन के ज़रिए इसे ठीक करने की कोशिश मत कीजिए. भटकते हुए मन के साथ भी ऐसा ही है, अगर आपको लगता है कि आपका फोकस काम से हट रहा है तो जबरदस्ती इसे काम पर मत लाइए बल्कि कोशिश कीजिए कि कितने हल्के और प्यार से आप अपना फोकस दोबारा अपने काम पर ला सकते हैं.