Mark Zuckerberg of Facebook- Life Journey in Hindi

Mark Zuckerberg of Facebook

Mark Zuckerberg, Facebook Founder Life Journey

 

मार्क जकरबर्ग की जिंदगी पर एक नजर

क्या आपने कभी सोचा है कि वर्ल्ड-फेमस टेक एंट्रेप्रेन्योर मार्क जकरबर्ग के पास Facebook का बिलियन डॉलर आईडिया कैसे आया होगा? सिर्फ 2020 में, Facebook का रेवेन्यू लगभग 86 बिलियन डॉलर था. मार्केट में बहुत सारे नए सोशल मीडिया ऐप आने के बाद भी, Facebook ने अब भी लगातार सबसे पॉपुलर सोशल मीडिया वेबसाइट का ताज बरकरार रखा है.

 

Facebook हमारी ऑनलाइन पहचान बन गई है. इमेजिन कीजिए कि आपका बचपन का सपना हार्वर्ड जैसे नामी-गिरामी यूनिवर्सिटी में पढ़ने का था और, आपका सपना सच हो जाता है. आप दुनिया के सबसे फेमस यूनिवर्सिटी में एक ऐसे सब्जेक्ट को पढ़ने के लिए जाते हैं जो हमेशा से आपका पैशन रहा है. फिर एक दिन ऐसी बात होती हैं जिससे आपको अपने ड्रीम यूनिवर्सिटी को छोड़ना पड़ता हैं. मार्क ज़करबर्ग के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था और तभी मार्क ने Facebook बनाने का सफर शुरू किया. आज हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ड्रॉपआउट, मार्क जकरबर्ग. Facebook के CEO और फाउंडर हैं और उनका नेट वर्थ 114 बिलियन डॉलर है. एक यूनिवर्सिटी ड्रॉपआउट से एक टेक मैग्नेट बनने तक की उनकी मज़ेदार सफर के बारे में जानने के लिए आगे पढ़िए.

 

शुरुवाती ज़िंदगी 14 मई 1984 को व्हाइटप्लेन्स,न्यूयॉर्क में मार्क जकरबर्ग का जन्म हुआ था. उनकी फैमिली पढ़ी-लिखी थी. उनके पिताजी एडवर्ड ज़करबर्ग एक डेंटिस्ट थे और उनकी माँ, केरन, एक साइकिएट्रिस्ट थीं. मार्क और उनकी तीन बहनें रैंडी, डोना और एरियल, न्यूयॉर्क के डाउनटाउन में डॉब्स फेरी नाम के एक छोटे से गाँव में पले-बढ़े थे.

 

ज़करबर्ग के पिता के शब्दों में, मार्क बचपन से ही स्ट्रांग विल पावर वाले और मज़बूत शख्स थे. वो कहते हैं, “कुछ बच्चों के लिए, उनके सवालों का जवाब सिर्फ हां या ना में दिया जा सकता है, लेकिन, अगर मार्क ने कुछ मांगा, तो ‘हाँ’ कहना तो काफी था, लेकिन ‘ना’ का मतलब बहुत कुछ होता था. अगर आप उसे ‘ना’ कहना चाहते है, तो बेहतर होगा कि आप अपने ‘ना’ कहने की वजह, उसके पीछे का सच, मतलब, और लॉजिक को अपने साथ तैयार रखिए. हमें लगता था कि एक दिन वो वकील बनेगा और जूरी को 100% सक्सेस रेट से अपनी बातों को मनवाएगा.”

 

ज़करबर्ग छोटी उम्र से ही कंप्यूटर में इंट्रेस्टेड थे. 12 साल की उम्र में, उन्होंने अटारी बेसिक के इस्तेमाल से ज़कनेट नाम का एक मैसेजिंग प्रोग्राम बनाया. उन्होंने इस मैसेजिंग ऐप को अपने पिताजी के डेंटल क्लिनिक के लिए बनाया ताकि वहाँ की रिसेप्शनिस्ट उनके पिताजी को नए पेशेंट्स के बारे में आसानी से बता सकें. जल्द ही मार्क के फैमिली मेंबर्स ने भी एक दूसरे से बात करने के लिए ज़कनेट का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. ये बात इंटरेस्टिंग है कि जहां कुछ बच्चे कंप्यूटर गेम खेलते हैं, वहीं ज़करबर्ग ने कम्प्यूटर गेम बनाया. अपने दोस्तों के साथ कंप्यूटर गेम बनाना उनका हॉबी था.

 

ज़करबर्ग के शुरुआती सालों से आप क्या सीख सकते हैं?

अपना जुनून, अपना पैशन ढूंढिए और उसमें इन्वेस्ट कीजिए.

दुनिया के सबसे कामयाब लोगों की ही तरह, ज़करबर्ग ने अपने जुनून के दम पर एक बड़ा एम्पायर खड़ी की. जिन हॉबीस में आपका इंटरेस्ट हैं, उसे आगे ले जाने की ज़रूरत हैं, और उसी पर काम करना चाहिए. अगर आपने अपनी जिंदगी के शुरुवात में एक जुनून पा ली हैं, तो आपको उस पर काम करना चाहिए और एक एक्सपर्ट बनने तक इसका प्रैक्टिस करना चाहिए. ज़करबर्ग एक ऐसे फैमिली में पले-बड़े जो उनका सपोर्ट करते थे. उनके पेरेंट्स ने कंप्यूटर के लिए उनके जुनून को पहचाना और छोटी उम्र से ही उनकी इस लर्निंग में इन्वेस्ट किया.

 

ज़्यादातर पैरेंटस ग्रेड के पीछे भागते हैं और शायद नहीं चाहते कि उनके बच्चे इतनी कम उम्र में एक्स्ट्रा-कर्रिकुलर एक्टिविटीज़ में बहुत ज़्यादा पार्टिसिपेट करें. पर, ज़करबर्ग के पेरेंट्स ने उन्हें कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में आगे बढ़ने के लिए एनकरेज किया हालांकि कई लोग सोचते कि वो किसी भी सॉफ्टवेयर प्रोग्राम बनाने के लिए बहुत छोटे हैं.

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मार्क जकरबर्ग की एजुकेशन

ज़करबर्ग के पेरेंट्स ने कंप्यूटर में उनके इंटरेस्ट को देखकर एक प्राइवेट कंप्यूटर ट्यूटर के तौर पर एक सॉफ्टवेयर डेवलॅपर डेविड न्यूमैन, को काम पर रखा. डेविड, मार्क को मेंटर करने और गाइड करने के लिए हफ्ते में एक बार उनके घर जाते थे. मार्क ने मर्सी कॉलेज में ग्रेजुएट लेवल के प्रोग्रामिंग कोर्स में एनरोलमेंट लिया था जबकि तब वो सिर्फ हाई स्कूल के स्टूडेंट ही थे.

 

बाद में, न्यू हैम्पशायर के एक जाने-माने सेकंडरी स्कूल, फिलिप्स एक्सेटर एकेडमी ज्वाइन कर ली. स्कूल में उन्होंने तलवारबाजी का टैलेंट दिखाया और अपने स्कूल की । टीम के कैप्टन बने. उन्होंने लिटरेचर की पढ़ाई की जिसमें उन्होंने एक्सीलेंट परफॉरमेंस दिखाया और क्लासिक्स में डिप्लोमा किया. लेकिन, मार्क का कंप्यूटर में इंटरेस्ट बना रहा और नए प्रोग्राम बनाने पर जोर देते रहें.

 

हाई स्कूल के दौरान, उन्होंने अपने दोस्त एडम डी’एंजेलो (Adam D’Angelo) के साथ सिनैप्स (Synapse) नाम का एक MP3 प्लेयर डेवलप किया. ये यूनिक सॉफ़्टवेयर, मशीन लर्निंग के कांसेप्ट का यूज़ करके किसी भी यूज़र्स द्वारा कंप्यूटर पर चलाए गए सभी गानों का ट्रैक रखता था. इससे ये पता कर सकते हैं कि यूज़र को कैसा गाना पसंद आया ताकि यूज़र के पर्सनल प्रेफरन्स या चॉइस पर प्लेलिस्ट बनाया जा सकें. AOL और Microsoft जैसे टेक कम्पनीज़ ने सिनैप्स को खरीदने में इंटरेस्ट दिखाया. उन्होंने टीनएजर मार्क को हायर करने की कोशिश भी की, लेकिन मार्क ने इस ऑफर को ठुकरा दिया क्योंकि वे आगे पढ़ना चाहते थे.

 

स्ट्रांग सेंस ऑफ़ सेल्फ एंड माइंडफुलनेस

इमेजिन कीजिए, एक यंग हाई स्कल के स्टडेंट के । बनाए गए सॉफ़्टवेयर के राइट्स को खरीदने के लिए Microsoft जैसी टेक कम्पनीज़ से खूब सारा पैसा और जॉब ऑफर का आना. कोई भी ऐसे मौके को नहीं गवांता लेकिन ज़करबर्ग ने इन ऑफर्स को ठुकरा दिया क्योंकि उन्होंने आगे पढ़ाई करने का सोच रखा था. जॉब ऑफर को लेने का मतलब होता कि वो कॉन्ट्रैक्ट से बंध जाते और अपने सॉफ़्टवेयर के कॉपीराइट भी खो देते.

 

उन्होंने इसके फायदे और नुकसान के बारे में सोचकर ही कॉलेज जाने का फैसला किया ताकि वे एक इंसान के तौर पर आगे बढ़ सकें और प्रोग्रामिंग को भी आगे बढ़ा सकें. ये दिखाता है कि वो खुद को अच्छी तरह से जानते थे. उन्हें अपनी काबिलियत के बारे में पता था और जानते थे कि अपने लाइफ में जो भी हासिल करना हैं, वो किसी और के लिए काम करने से ज़्यादा बेहतर हैं. इस लेवल के सेल्फ-अवेयरनेस को सिर्फ माइंडफुलनेस से ही हासिल किया जा सकता है जिसे आज के युथ शायद ही कभी प्रैक्टिस करते हैं.

 

 

हार्वर्ड के दिन

ज़करबर्ग ने 2002 में एक्सेटर से ग्रेजुएशन किया और फेमस हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया. इस वक्त तक उन्होंने एक जाने माने प्रोग्रामिंग एक्सपर्ट की रेपुटेशन हासिल कर ली थी. हार्वर्ड में उन्होंने साइकोलॉजी और कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई की. अपने सेकंड इयर में, सेमेस्टर की शुरुआत में स्टूडेंट्स को कोर्स चुनने में हेल्प करने के लिए कोर्समैच नाम का एक सॉफ्टवेयर बनाया. कोर्समैच से ये पता लगाया जा सकता था कि किसी कोर्स में एनरोल करने वाले कितने स्टूडेंट्स हैं. इससे ये मालूम होता था कि आपके क्लासमेट्स कौन से कोर्स पढ़ रहे हैं. इस इनफार्मेशन से स्टूडेंट्स को ये तय करने में हेल्प मिलती थी कि कौन सा कोर्स लेना है और स्टडी ग्रुप कैसे बनाना है.

 

हार्वर्ड में पढ़ाई के दौरान ज़करबर्ग की बनाई गई एक दूसरी वेबसाइट Facemash बहुत पॉपुलर हुई थी. ये वेबसाइट कॉन्ट्रोवर्शियल थी जिसकी वजह से ही Facebook की शुरुआत हुई थी. Facemash एक ऐसी वेबसाइट थी जिसमें यूज़र्स को हार्वर्ड के मेल या फीमेल स्टूडेंट्स की दो फ़ोटो दिखाई जाती जिसमें से यूजर्स को वोट देना होता था कि उन दोनों में से कौन ज़्यादा अट्रैक्टिव है. यूज़र वोटिंग पर वेबसाइट ने सबसे हॉट स्टूडेंट्स की लिस्ट पोस्ट की. इसके लॉन्च होने के एक हफ्ते बाद ये वेबसाइट कैंपस में तेजी से वायरल हो गई. इस वेबसाइट पर भारी ट्रैफिक की वजह से हार्वर्ड का नेटवर्क क्रैश हो गया.

 

जल्दी ही यूनिवर्सिटी ने इस साइट को ब्लॉक कर दिया क्योंकि स्टूडेंट्स ने शिकायत की थी कि उनकी प्राइवेसी कोम्प्रोमाईज़ हुई थी और उनके फ़ोटोज़ को उनके परसमीशन के बिना ही Facemash पर डिस्प्ले किया गया. यूनिवर्सिटी के एडमिन्सट्रेटिव बोर्ड ने ज़करबर्ग को स्टडेंटस प्राइवेसी वायोलेशन और कंप्यटर सिक्योरिटी ब्रीचिंग का आरोप लगाया. उन्हें पब्लिक्ली माफी मांगनी पड़ी थी और उन्हें सख्त निगरानी में रखा गया. स्टूडेंट पेपर ने उनके वेबसाइट को गलत और औरतों के खिलाफ बताया.

 

उनकी पिछले कामों की वजह से, यूनिवर्सिटी के तीन साथी दिव्य नरेंद्र और जुड़वाँ कैमरन और टायलर विंकलेवोस को उनके साथ हार्वर्ड कनेक्शन नाम के एक सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट पर काम करने के लिए कांटेक्ट किया गया. इस वेबसाइट का एइम हार्वर्ड के स्टूडेंट्स के लिए एक डेटिंग साइट बनाना था जहां वे दूसरे स्टूडेंट्स के फ़ोटो और प्रोफाइल देख सकें. ज़करबर्ग ने शुरू में उनके प्रोजेक्ट में उनकी हेल्प की, लेकिन जल्द ही Facebook के अपने आईडिया पर काम करने के लिए इस ग्रुप को छोड़ दिया.

 

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कामयाबी रातोंरात नहीं मिलती

हालांकि, ऐसा लग सकता है कि ज़करबर्ग लकी थे कि उनकी कैजुअल प्रोजेक्ट एक अरब डॉलर की कंपनी में बदल गई. लेकिन ऐसा नहीं है. सच तो ये है कि ज़करबर्ग बहुत छोटी उम्र से ही इस दिन की तैयारी कर रहे थे. उन्होंने प्रोग्रामिंग प्रोजेक्ट्स पर काफी फोकस और मज़बूती से काम करना जारी रखा. अपनी टीनएज के दिनों में जब कई लोग पार्टी जाते, तो ज़करबर्ग ने प्रोग्रामिंग में ही अपना फोकस बनाया. उन्होंने साइकोलॉजी जैसे दूसरे सब्जेक्ट्स को भी पढ़ा, लेकिन वे कोडिंग, गेम और साइनैप्स, कोर्समैच और Facemash जैसे सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग का प्रैक्टिस करते रहे.

 

 

FACEBOOK का जन्म

19 साल की उम्र में, ज़करबर्ग ने अपने दोस्तों डस्टिन मॉस्कोविट्ज़, क्रिस ह्यूस और एडुअर्डो सेवरिन के साथ “द Facebook ” नाम का एक कामयाब वेबसाइट बनाया. इस वेबसाइट पर, यूज़र्स ने अपने प्रोफ़ाइल बनाए, फ़ोटो अपलोड की और दूसरे यूज़र्स के साथ चैट किया. उन दिनों, Facebook सिर्फ हार्वर्ड के स्टूडेंट्स के लिए अवेलेबल था. ज़करबर्ग और उनके दोस्तों ने जून 2004 तक हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में अपने डॉर्मिटरी से Facebook पर काम किया. ज़करबर्ग ने Facebook के वायरल असर को तब पहचाना जब हार्वर्ड में आधे अंडरग्रेजुएट्स ने इसके लॉन्च के पहले महीने के अंदर वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन किया.

 

जल्द ही ज़करबर्ग ने अपने शानदार आईडिया पर फुलटाइम काम करने के लिए कॉलेज छोड़ दिया और कैलिफोर्निया के पालो ऑल्टो में अपनी कंपनी का हेडक्वार्टर बनाया. Facebook यूजर्स तेजी से बढ़े और 2004 के आखिर तक Facebook पर 10 लाख यूजर्स रजिस्टर हो चुके थे. ज़करबर्ग ने दूसरे आइवी लीग स्टूडेंट्स के लिए रजिस्ट्रेशन खोला और अगले ही साल, एक वेंचर कैपिटल फर्म-एक्सेल पार्टनर्स ने इस बढ़ते नेटवर्क में 12.7 मिलियन डॉलर का इन्वेस्टमेंट किया, जिससे Facebook को बहुत बढ़ावा मिला.

 

शुरुवात में, हार्वर्ड के स्टूडेंट्स के लिए खासकर बनाया गया Facebook, जल्दी ही कैंपस से बाहर फ़ैल गया. कुछ ही टाइम में दूसरे कॉलेजों, हाई स्कूल और इंटरनेशनल स्कूलों के स्टूडेंट्स को Facebook पर रजिस्ट्रेशन करने का परमिशन दिया गया. 2005 के May के आखिर तक रजिस्टर्ड यूज़र्स के नंबर को 5.5 मिलियन तक बढ़ा दिया गया. बहुत से कंपनियों ने इस पॉपुलर वेबसाइट में अपने ads दिखाने में इंटरेस्ट दिखाया. याहू जैसी बड़ी कम्पनीज़ और एमटीवी नेटवर्क्स ने ज़करबर्ग को बहुत सारा पैसा ऑफर किया. लेकिन, वो इसे बेचना नहीं चाहते थे और वेबसाइट को एक्सपैंड पर फोकस करना चाहते थे इसलिए मार्क ने सब के ऑफर ठुकरा दिए. उन्होंने अपनी कंपनी को डेवलपर्स के लिए खोल दिया जिन्होंने साइट की फीचर्स को बढ़ाने का काम किया. Facebook इतने जल्दी आगे बढ़ा जो बहुत ही हैरान कर देती थी. 2006 के आखिर तक इसके 12 मिलियन यूज़र्स थे और 2009 के आखिर तक आतेआते तक Facebook यूज़र्स की पॉपुलेशन 350 मिलियन हो गई थी.

 

Facebook को 18 मई 2012 को पब्लिक किया गया. पब्लिक होने का मतलब है कि एक प्राइवेट कंपनी इनिशियल पब्लिक ऑफर (IPO) देकर पब्लिक में ट्रेड करने और ओनरशिप वाला बिज़नस बनना. पब्लिक होने के पीछे बिज़नस को बढ़ाने के लिए कैपिटल जुटाना था. Facebook के IPO ने 16 बिलियन डॉलर का एक बहुत बड़ा अमाउंट जुटाया, जो कि टेक इंडस्ट्री के हिस्ट्री में सबसे बड़ा IPO था. इसकी वजह से ज़करबर्ग ने रातोंरात दुनिया के 29वें सबसे अमीर शख्स का दर्जा हासिल कर लिया.

 

अगले ही दिन, ज़करबर्ग और उनकी यूनिवर्सिटी से उनकी गर्ल फ्रेंड रही प्रिसिला चैन ने अचानक शादी कर ली. इन्होंने मेहमानों को बताया कि वे सिर्फ प्रिसिला के मेडिकल स्कूल से ग्रेजुएशन होने का सेलिब्रेशन करेंगे, लेकिन उन्होंने सबको हैरान कर दिया जब उन्होंने उस छोटे से फंक्शन में अपने दोस्तों और फैमिली के सामने शादी कर ली.

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बड़े सपने देखिए और लॉन्गटर्म गोल्स बनाइए

मार्क जकरबर्ग को Facebook बेचने के लिए बहुत पैसों का ऑफर दिया गया लेकिन वो खुद के बनाई इस कंपनी के साथ खड़े रहे और इसे बेचने से इनकार कर दिया. उन्हें रातों-रात जल्दी पैसा कमाने में कोई इंटरेस्ट नहीं था, और उनके दिमाग में बड़े गोल्स थे जो उन्हें लॉन्ग-टर्म फायदा देती. उन्होंने अपनी कंपनी को एक्सपैंड करने और इसे बड़ा, बेहतर बनाने पर फोकस रखने का फैसला किया. और, उन्होंने यही किया जिससे हर गुज़रते साल के साथ Facebook का रेवेन्यू सिर्फ बढ़ता ही गया.

 

 

FACEBOOK को उसके कॉम्पिटिटर्स से कौन सी बात अलग करती हैं?

इस वेबसाइट की खास बात ये थी कि इसमें यूज़र्स को अपनी असली पहचान और ऑथेंटिक ईमेल देना ज़रूरी था ताकि ये पक्का हो सके कि किसी ने नकली आईडी नहीं बनाई है. ज़करबर्ग बस यही चाहते थे कि लोग अपने असलियत के साथ अपनी लाइफ को बाकी दुनिया के साथ शेयर करें. Facebook के कॉम्पिटिटर्स जैसे फ्रेंडस्टर और माइस्पेस दूसरे सोशल नेटवर्क ने अपने यूज़र्स प्रोफाइल सही हैं या नहीं, उस पर ध्यान नहीं दिया. यूज़र्स की आइडेंटिटी क्रिएटिव और मज़ेदार हो सकती है, लेकिन Facebook इस मायने में अलग था कि यूज़र्स को अपनी असली पहचान और बैकग्राउंड शेयर करना ज़रूरी था. ज़करबर्ग ने कहा, “हम दुनिया में मौजूद सभी चीज़ों का मैप करने की कोशिश कर रहे हैं.” और, कहते हैं “दुनिया में, भरोसा जिंदा है. मुझे लगता है कि इंसान के तौर पर हम अपनी दुनिया को, आस-पास के लोगों और रिश्तों के दम पर बांटकर देखने की कोशिश करते हैं. इसलिए, हम सभी लोगों की मैपिंग कर रहे हैं जो रिश्तों में भरोसा करते हैं, जिसे आप बोलचाल की भाषा में, अक्सर, दोस्ती का नाम देते हैं.” इस तरह, ये एक अलग ही तरह का एक नेटवर्क था जिसने असली कनेक्शन को मैप किया और यूज़र्स के बीच रियल फ्रेंडशिप और भरोसा बनाने के लिए जगह दी.

 

जिस वक्त Facebook लॉन्च किया गया था, उन दिनों इंटरनेट पर सबसे ज़्यादा कॉम्पिटिटिव मार्केट था Flickr, Photobucket और Picasa जैसी फोटो शेयरिंग वेबसाइटों का, जो यूजर्स को हाई-क्वालिटी फ़ोटो शेयर करने का प्लेटफार्म देता था. उसी टाइम Facebook ने ऐसी फोटो-शेयरिंग सर्विस शुरू की जो बाकी सब से अलग इसलिए थी क्योंकि आप उन फ़ोटो में अपने दोस्तों को टैग कर सकते थे. इस सिंपल से फीचर ने यूज़र्स को अट्रैक्ट किया और जल्दी ही Facebook फोटो शेयरिंग इवेंट्स के लिए मैन प्लेटफार्म बन गया, हालांकि अपलोड होने वाले फ़ोटो की क्वालिटी बहुत ही खराब थी. 5 सालों में Facebook के पास अपने यूज़र्स के 15 बिलियन से ज़्यादा फ़ोटोज़ हो गए थे. यूज़र्स ने रोज़ 100 मिलियन फ़ोटो अपलोड की थीं.

 

ये ज़करबर्ग और उनके डेवलपर्स के ग्रुप का काम करने का तरीका है जो एक नए मार्केट में एंट्री करने के बाद, उसमें एक सोशल पहलू जोड़कर बाकी सबसे आगे बढ़ जाते हैं. एक पॉइंट पर Facebook गेम्स भी मार्केट में आ गए थे. Zynga नाम की एक कंपनी ने Facebook के लिए सिंपल गेम्स बनाए, जो मार्केट के दूसरे कंपनिज़ के गेम्स से बहुत ही बेसिक थे. फ़ार्मविल और माफिया वार्स जैसे फ़ेसबुक गेम्स की ख़ास बात ये थी कि वे सोशल थे. आप दोस्तों के साथ इन गेम्स को खेल सकते हैं और स्कोर को कम्पेयर कर सकते हैं. इससे यूज़र्स के लिए ये और ज़्यादा अट्रैक्टिव बन गया था. 2010 में, माफिया वार्स में 19 मिलियन प्लेयर बने और फार्मविल के 54 मिलियन प्लेयर थे. इन्वेस्टर्स ने मार्केट में मिलने वाले एक्सपर्ट गेम इनोवेटर्स के कम्पेरिज़न में Facebook गेम को ज़्यादा इम्पोर्टेस दी हालांकि ये इनोवेटर्स हाई क्वालिटी गेम्स बना रहे थे.

 

 

स्कैंडल और लीगल मुद्दे

अपनी कामयाबी के ऊंचाई पर, 2006 में, मार्क को कानूनी प्रॉब्लम का सामना करना पड़ा था. हार्वर्ड कनेक्शन के लोगों ने ज़करबर्ग पर उनके आइडिया को चुराने का आरोप लगाया और लॉस का भरपाई के लिए उन पर मुकदमा चलाया. ज़करबर्ग ने कहा कि दोनों वेबसाइट कई सारे मायनों में अलग हैं. मुकदमे के दौरान कुछ कॉन्ट्रोवर्शियल मैसेज सामने आए थे जो ये साबित करता था कि ज़करबर्ग ने दोनों साइटों के बीच एक जैसी कॉमन बातें देखी होगी और इसलिए हार्वर्ड कनेक्शन के डेवलपमेंट में जानबूझकर देरी की ताकि पहले खुद के प्रोडक्ट को लॉन्च कर सकें.

 

द न्यू यॉर्कर के साथ अपने एक इंटरव्यू में, ज़करबर्ग ने लीक हुए मैसेज पर अफ़सोस जताया और कहा कि वो इस घटना के बाद से एक इंसान के तौर पर काफी मच्योर हुए हैं. ओरिजनली, इसमें 65 मिलियन का सेटलमेंट तय किया गया, लेकिन ये कानूनी लड़ाई कई सालों तक चलती रहा.

 

उनके साथ कैम्ब्रिज एनालिटिका स्कैंडल भी हुआ. ये तब हुआ जब लाखों Facebook यूज़र्स के पर्सनल डेटा को कैंब्रिज एनालिटिका नाम के कंसल्टेंसी फर्म ने बिना यूज़र्स के परमिशन के इस्तेमाल किया. इस फर्म ने पॉलिटिकल एडवर्टाइजिंग के लिए डेटा का इस्तेमाल किया था. उन्होंने एक ऐप को यूज़ करके, यूज़र्स से सर्वे करवाया और डेटा कलेक्ट किया. ये सर्वे साइकोलॉजिकल प्रोफाइल तैयार करने के लिए था और यूज़र्स से Facebook के ओपन ग्राफ प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करके पर्सनल इनफार्मेशन कलेक्ट करवाया गया था. कैंब्रिज एनालिटिका ने लगभग 87 मिलियन Facebook प्रोफाइल का डेटा जमा किया. डेटा का यूज़ डोनाल्ड ट्रम्प और टेड क्रूज़ के 2016 के प्रेसिडेंट इलेक्शन कैंपेन में हेल्प के लिए किया गया था. इस स्कैंडल ने Facebook पर इन्वेस्टर्स के भरोसे को हिला दिया था जिससे न्यूज़ वायरल होने के बाद Facebook के शेयर 15 परसेंट निचे गिर गई.

 

कुछ दिनों की चुप्पी के बाद, ज़करबर्ग ने अलग-अलग प्लेटफार्म पर माफी मांगी और बताया कि उनकी कंपनी किसी भी थर्ड पार्टी डेवलपर को यूज़र्स के इनफार्मेशन का लिमिटेड एक्सेस ही देगी. अमेरिका की सीनेट जुडिशियरी कमिटी ने डेटा ब्रीच और जनरल डेटा प्राइवेसी पर विटनेस बुलाए. इस दौरान, कैम्ब्रिज एनालिटिका में Facebook के रोल और सोशल मीडिया पर प्राइवेसी ब्रीच पर भी एक हियरिंग रखी गई. ज़करबर्ग ने कमिटी के सामने पेश होकर अपनी गलती मानी और कहा कि Facebook को गलत एक्टीवीटी के लिए यूज़ होने से बचाने के लिए वे और ज़्यादा काम कर सकते थे. “ये फेक न्यूज़, इलेक्शन में किसी भी तरह का फॉरेन इंटरफेरेंस और गलत भाषा के लिए भी अप्लाई होना चाहिए.” पर्सनल डेटा के गलत इस्तेमाल के लिए ज़करबर्ग ने पब्लिक्ली माफी मांगी: “ये मेरी गलती थी और मुझे इसका अफ़सोस है. मैंने Facebook शुरू किया, मैं ही इसे चलाता हूं और इसमें जो भी होता है उसके लिए मैं ही जिम्मेदार हूं’.

 

Facebook की कामयाबी के बावजूद, ज़करबर्ग को पब्लिक स्कैंडल और खास तौर से यूज़र्स इनफार्मेशन की प्राइवेसी के मुद्दे पर मुश्किलों का सामना करना पड़ा है. उन्हें कई सारे कानूनी लड़ाइयों का भी सामना करना पड़ा है. तो जिस तरह मार्क ने इनका सामना किया, उससे हम क्या सीखते हैं?

 

 

अपनी गलतियों से सीखिए और अपने काम की जिम्मेदारी लीजिए

ज़करबर्ग क्रिटिक्स का जवाब बखूबी देते हैं और वेबसाइट की एक क्लीन इमेज बनाए रखने के लिए Facebook को बेहतर बनाने पर काम करते हैं. आज Facebook कहता है ‘ हमारा बिज़नस भरोसे पर ही टिका हैं और काफी रिसोर्सेज का इस्तेमाल यूज़र के भरोसे को बरकरार रखने के लिए किया जाता हैं. इसके लिए ऐसे प्रोगाम्स डिज़ाइन किए जिससे यूज़र की प्राइवेसी को बचाया जा सकें और यूज़र डेटा को सिक्योर किया जा सकें. 2018 की शुरुआत में, ज़करबर्ग ने अनाउंस किया कि इस साल का उनका पर्सनल गोल हैं Facebook यूज़र्स की सेफ्टी और उनके डेटा का किसी भी तरह का गलत इस्तेमाल और किसी भी देश या स्टेट का इंटरफेरेंस रोकना.

 

उन्होंने अपने Facebook पेज पर लिखा, “हम सभी गलतियों या मिसयूज़ को नहीं रोकेंगे, लेकिन अभी पॉलिसीस को इम्प्लीमेंट करने और अपने टूल्स के गलत इस्तेमाल को रोकने में बहत ज्यादा गलतियाँ करते हैं.” उन्होंने एक्सप्लेन किया, “अगर हम इस साल कामयाब रहे तो हम 2018 को एक बेहतर ढंग से पार कर सकेंगे.”

 

 

FACEBOOK ने अपनी कॉम्पीटीशन को कैसे हराया

FACEBOOK एम्पायर का एक्सपैंशन -Friendster और MySpace जैसी कुछ सोशल नेटवर्किंग साइट्स थीं जो Facebook के आने से पहले पॉपुलर थीं और हर कोई सोचता था कि क्या Facebook की पॉपुलैरिटी भी उनके ही तरह खत्म हो जाएगी. Facebook से पहले, किसी भी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट ने इस तरह लम्बे वक्त तक पॉपुलर रहने का पावर नहीं दिखाया था. कुछ वेबसाइट कुछ टाइम के लिए तब तक चलते जब तक कि कोई दूसरा नया वेबसाइट इसके बदले मार्केट में नहीं आ जाती. जब ट्विटर और इंस्टाग्राम जैसे नए प्लेयर्स आए तो Facebook ने खुद को कैसे बचाया? Facebook अभी भी यहां नहीं होता अगर उसका ट्रैक रिकॉर्ड नहीं दिखता कि वो लेटेस्ट ट्रेंड्स के हिसाब से अपटूडेट रहता हैं और यूज़र के डिमांड को पूरा करने के लिए नए-नए इनोवेशन करता हैं. दूसरे कई फैक्टर्स में, सबसे ज़रूरी बात जिसने Facebook को इस गेम में सबसे ऊपर रखा, वो था कंपनी का एक्सपैंशन.

 

खली जानकारी के हिसाब से, Facebook ने अपने शुरुवात के बाद से 22,651,000,000 डॉलर का acquisition किया है यानि, ज़करबर्ग ने उन कंपनियों को अपने साथ मिलाना शुरू किया जो Facebook के बढ़ते इंफ्रास्ट्रक्चर में काम आ सकती थी और वेबसाइट को बेहतर बनाने और उसके फीचर्स को बढ़ाने में हेल्प कर सकती थी. एग्जाम्पल के लिए, अपने शुरुआती सालों में, Facebook ने फ्रेंडफीड को अपने साथ मिलाया. फ्रेंडफीड बहुत पॉपुलर ऐप नहीं था, लेकिन ये वो ऐप था जिससे ज़करबर्ग को लाइक बटन और न्यूज फीड की टेक्निक मिली थी जो आज तक Facebook का इम्पोर्टेन्ट फीचर हैं.

 

इसके अलावा, उन्होंने Google के पुराने एम्पलॉईस की एक बहुत ही एक्सपर्ट टीम का एक्वीजीशन किया, जिन्होंने Adsense और Gmail के पुराने वर्ज़न को बनाया था. इसी तरह, 2010 में, Facebook ने एक टैलेंटेड IT टीम को सिर्फ अपने साथ मिलाने के लिए चायलैब्स नाम के एक और छोटी कंपनी खरीदी, जिसमें गोकुल राजाराम शामिल थे, जिन्हें गूगल एडसेंस के गॉडफादर के तौर पर जाना जाता था. इसने Facebook के एडवर्टाइजिंग रेवेन्यू स्ट्रक्चर को स्पीड दी जिससे कंपनी को हर साल अरबों डॉलर मिलते हैं. Facebook ने अकेले 2020 में एडवर्टाइजिंग से 86 बिलियन अमेरिकी डॉलर कमाए.

 

2012 में Facebook ने अपने सबसे बड़े कॉम्पिटिटर इंस्टाग्राम को 1 अरब डॉलर में खरीदकर उसे पछाड़ा. कभी Facebook का मैन कॉम्पिटिटर रहा इंस्टाग्राम अब Facebook की ही सबसे बड़ी एसेट्स में से एक है. उसके बाद, उन्होंने फेस डॉट कॉम को अपने साथ मिलाया. इससे जब भी एक यूज़र फोटो टैग करता जो फेशियल रेकगनिशन पर बनाया गया था, तब । Facebook यूज़र के फ्रेंड्स का अंदाज़ा लगा लेता था. ये सोशल मीडिया नेटवर्क के लिए एक बड़ी बात थी यहाँ सीखने के लिए ज़रूरी मैसेज है:

 

 

इनोवेशन और एक्सपैंशन

Facebook ने बेस्ट सोशल नेटवर्किंग साइट का स्टेटस बरकरार रखा क्योंकि ज़करबर्ग ने टैलेंट और ग्रोथ पर अपनी पकड़ बनाकर रखी. ज़करबर्ग अपनी वेबसाइट को बेहतर बनाने की कोशिश करते रहते हैं और यूज़र्स के प्रेफेरेन्स पर अपनी वेबसाइट्स में लेटेस्ट टेक्निक और फीचर्स देते रहते हैं. उन्होंने ऐसी वेबसाइट्स और टेक्निक खरीदी जो Facebook को टक्कर दे सकती थीं और Facebook को और भी बेहतर बनाया.

 

Facebook की कामयाबी के पीछे की ख़ास वजह हैं ज़करबर्ग की लगातार कोशिश जिससे वेबसाइट पर नए इनोवेशन और इम्प्रूवमेंट होते रहे, साथ ही ये सिंपल और ईज़ी तो यूज़ भी हैं.

 

 

FACEBOOK की एडवर्टाइजिंग

एक बार जब उन्होंने यूज़र एक्सपीरियंस को ऑप्टिमाइज़ कर लिया, तो फिर ज़करबर्ग ने रेवेन्यू बढ़ाने के लिए एडवर्टाइजिंग मॉडल को बढ़ाना शुरू कर दिया. एटलस एडवरटाइजर सुईट, जो माइक्रोसॉफ्ट कंपनी में डेवलप किया गया एक प्रोग्राम है, अब Facebook एडवर्टाइज़र्स को उनके ROI को समझने में हेल्प करता हैं.

 

Facebook ने एटलस एडवरटाइजर सुईट को 100 मिलियन डॉलर में खरीदा. इसने Facebook मार्केटिंग को एडवांस बनाया. एडवर्टाइज़र्स अब अपने ROI को कैलकुलेट कर सकते थे.

 

इसी तरह, एक मोबाइल एनालिटिक्स सॉफ्टवेयर कंपनी ‘ओनावो’ को भी ज़करबर्ग ने खरीदा, जिससे एडवर्टाइज़र्स को अपने इन्वेस्टमेंट का एनालिसिस समरी मिलता हैं और वे Facebook पर चल रहे उनके एड कैंपेन के परफॉरमेंस को देख पाते हैं.

 

Facebook गूगल ads के अलटरनेट के तौर पर एक ब्रिलियंट ऑप्शन देता है जिसमें ये ads को सोशल कॉन्टेक्स्ट से जोड़ता है. Facebook अपने प्लेटफार्म पर एडवर्टाइज़र्स को दिए जाने वाले इंसेंटिव के बारे में कहता हैं –

 

“मार्केटर्स हर महीने एक बिलियन से ज़्यादा एक्टिव यूज़र्स के साथ Facebook पर या यूज़र के सबसेट से जुड़ सकते हैं, जिसका बेस वो इनफार्मेशन हैं जिसे लोगों ने हमारे साथ शेयर करने के लिए चुना हैं जैसे कि उनका age, gender, location, या interest . हम मार्केटर्स को रीच, रेलेवंस, सोशल कॉन्टेक्स्ट और इंगेजमेंट का एक यूनिक कॉम्बिनेशन देते हैं जिससे वो अपने ads के वैल्यू को बड़ा सकें.”

 

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कन्क्लूज़न

ज़करबर्ग की क्रिएशन Facebook, जो हार्वर्ड के एक डारमेट्री से शुरू हुई, आज वो दुनिया की सबसे इन्फ्लूएंशल सोशल मीडिया वेबसाइट और टेक कंपनी है. Facebook की कामयाबी के पीछे इसके CEO हैं जिनका फ्यूचर को लेकर क्रन्तिकारी नज़रिया हैं. एक इनोवेटिव और डेरिंग CEO किसी कंपनी के लिए सबसे बड़ा एसेट हैं. ज़करबर्ग, एक ऐसे डायनामिक लीडर हैं जो पूरी दुनिया को एकसाथ जोड़ने की इच्छा रखते हैं, जो लेटेस्ट टेक्नोलॉजी और अपने साथ काम करने वालों को अपना बेस्ट पेरोर्मन्स देने के लिए मोटीवेट कर, अपनी कंपनी को एक्सपैंड और इम्प्रूव करते रहते हैं|

 

Facebook कभी भी एक जगह पर नहीं रहा, ये आगे बढ़ा, और इसने टेक और सोशल मीडिया इंडस्ट्री की सभी लेटेस्ट फीचर को अपनाया. ज़करबर्ग की कैलक्युलेटेड रिस्क लेने की काबिलियत, सीखने की भूख, और एडवांस टेक्नोलॉजी की वजह से Facebook एम्पायर आगे बढ़ता ही रहेगा.जब तक कि ये दुनिया के हर हिस्से तक नहीं पहुंच जाता.

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