Rewire Book Summary in Hindi –
Introduction
क्या आपको खुद पर गुस्सा आता है जब आप डाइटिंग पर होने के बाद भी चॉकलेट खा लेते हैं? क्या आपने कभी खुद को प्रॉमिस किया है कि आप वो सब करना बंद कर देंगे जो आपके लिए अच्छा नहीं है, आप अपनी जिंदगी को बदलने की कोशिश करते हैं, लेकिन कुछ ही दिनों बाद आप कोशिश करना बंद कर देते हैं।
इस बुक में, आप जानेंगे की हम वो चीजें क्यों करते हैं जो हमारे लिए सही नहीं है। आप दिमाग के उन दो हिस्सों के बारे में जानेंगे जो हमारे अंदर आपस में लड़ रहे हैं। हमारी बुरी आदतों के लिए यही जिम्मेदार हैं। जब बात आती है बुरी आदतों के बनने की, आप सीखेंगे कि कैसे हमारा बचपन इसमें एक अहम रोल निभाता है। आप सीखेंगे कि कैसे पावर और सेल्फ कंट्रोल की मदद से हम अपने सेल्फ डिस्ट्रक्टिव बिहेवियर पर काबू पा सकते हैं। अंत में, आप उस 12-स्टेप प्रोग्राम के बारे में जानेंगे जो लोगों को उनकी बुरी आदतों पर जीत पाने में मद है।
क्या आप अपने ब्रेन को री-वायर करने के लिए तैयार हैं?
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दो दिमाग, जो साथ में काम नहीं करते (TWO BRAINS, NOT WORKING TOGETHER)
जैसे ही आप एक और चिप्स का पैकेट खोलते हैं या एक और सिगरेट पीते हैं. आपका दिमाग आपको यह करने के लिए मना करता है। आप जानते हैं कि खुद को नुकसान पहुंचाने वाली चीजें आपको नहीं करनी है, लेकिन फिर भी आप खुद को रोक नहीं पाते। आप नहीं जानते कि आप वो सब क्यों कर रहे हैं जो आपको नुकसान पहुंचा सकता है, और आप कोशिश करते हैं कि आप ऐसा ना करें। लेकिन आप हमेशा इसमें नाकामयाब हो जाते हैं। जो चीजें हमारे लिए बुरी हैं उन्हें करना सेल्फ डिस्ट्रक्टिव बिहेवियर कहा जाता है और यह हमारे दो दिमागों से आती हैं जो आपस में ठीक से कम्युनिकेट नहीं कर रहे। हमारा एक दिमाग हमें कुछ करने को बोलता है और दूसरा कुछ और दरअसल, हमारे पास एक कॉन्शियस सेल्फ है और एक ऑटोमेटिक सेल्फ। हालांकि इन दोनों की अपनी अपनी प्रॉब्लम हैं, ऑटोमेटिक सेल्फ वह है जहाँ से हमारा सेल्फ डिस्ट्रक्टिव बिहेवियर आता है, जहाँ हमारे biases और assumptions होते हैं यानि कि वो बातें जिन्हें हमने पहले से ही मान लिया है या उनके लिए एक राय बना ली है। यहाँ आपको अपनी पुरानी बुरी आदतें भी मिल जाएंगी और साथ ही साथ वह फिलिंग्स भी जिन्हें आप बाहर नहीं लाना चाहते।
दूसरी तरफ, कॉन्शियस सेल्फ, चीजों के बारे में सावधानी से सोचने के लिए ज़िम्मेदार होता है, जैसे डिसीजन लेना। कॉन्शियस सेल्फ इस बात का ध्यान रखता है कि वह जो भी डिसाइड करे, उससे हमें किसी तरह का नुकसान ना हो। क्योंकि इसे बहुत ध्यान से काम करना होता है.
इसलिए यह एक वक्त में एक ही चीज पर फोकस कर सकता है। जब हमारा कॉन्शियस सेल्फ बिज़ी होता है, ऑटोमेटिक सेल्फ तब तक खुद से बहुत सारे बुरे डिसीजन ले चुका होता है। जब आपका कॉन्शियस सेल्फ इस बात को लेकर परेशान हो रहा होता है कि किस टॉपिक पर प्रोजेक्ट बनाएँ,आपका ऑटोमेटिक सेल्फ आपको स्टडी टेबल पर रखी चॉकलेट खाने को कहता है। इस तरह दो अलग-अलग बातें कर रहे इन हिस्सों से डील करने का सबसे अच्छा तरीका है कि हम अपने ऑटोमेटिक सेल्फ को अच्छे डिसीजन लेने के लिए ट्रेन करें।
सेल्फ डिस्ट्रक्टिव बिहेवियर को रोकना उतना मुश्किल नहीं है जितना कि लगता है। बहुत सारी स्टडीज हमें बताती हैं कि एक इंसान अपने ब्रेन का स्ट्रक्चर बदल सकता है। इसे प्लास्टिसिटी ऑफ द ब्रेन कहा जाता है। जब आप अपने self-destructive बिहेवियर को बदलने के तरीके सीखते हैं, आपके ब्रेन में सेल्स के बीच नए कनेक्शन बनते हैं। फिर ये कनेक्शन आपके उन पुराने कनेक्शन को बदल देते है जो आपको ज्यादा खाने, सिगरेट या शराब पीने को कहते हैं। लेकिन इन नए कनेक्शन के बनने के लिए आपको अपनी नई अच्छी आदतों के साथ कंसिस्टेंट रहना होगा, जितना ज्यादा आप अपनी अच्छी आदतों की प्रैक्टिस करेंगे, इन्हें ऑटोमेटिकली करना उतना ही आसान होगा। आप इस बुक को पूरा पढ़ सकते हैं और उन तरीकों के बारे में जान सकते हैं जिनसे आपको अपने सेल्फ डिस्ट्रक्टिव बिहेवियर को बदलने में मदद मिलेगी। लेकिन अगर आप अपनी अच्छी आदतों को रोज और लंबे समय तक प्रैक्टिस नहीं करेंगे, तो आप अपनी बुरी आदतों को बिल्कुल भी नहीं बदल पाएंगे।
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द ऑटोडिस्ट्रक्ट मेकैनिज्म (THE AUTODESTRUCT MECHANISM)
जैसा कि पहले बताया है, ऑटोमेटिक सेल्फ अपना काम बिना सोचे समझे अनकॉन्शियसली करता है। यानी कि यह बिना हमारी जानकारी के ही हमारे लिए डिसीजन ले लेता है। इसका मकसद हमें खुश, कंफर्टेबल और कॉन्फिडेंट रखना है। हालांकि इसके इरादे अच्छे हैं, लेकिन ऑटोमेटिक सेल्फ हमसे वह काम करवाता है जो उस वक्त तो हमें खुशी देता है, पर बाद में वह हमारे लिए नुक़सानदेह साबित हो सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ऑटोमेटिक सेल्फ हमारे bias, assumption और कुछ चीजों के बारे में नॉलेज की कमी से प्रभावित होकर काम करता है। कैसे हमारा ऑटोमेटिक सेल्फ हमारे साथ गड़बड़ करता है, इस बेसिक एग्जांपल से जानते हैं:
जब आप उन कपड़ों को पहनते हैं जिन्हें आप बिल्कुल पसंद नहीं करते, क्योंकि अंदर कहीं ना कहीं, अनकॉन्शियस लेवल पर आप चाहते हैं कि आप भी स्कूल में बाकी बच्चों की तरह दिखें और उनके बीच फिट हो सकें। शुरू शुरू में आपको खुशी होती है क्योंकि आपको लगता है कि आप उन्हीं में से एक हैं। लेकिन बाद में आपको नफरत होने लगती है क्योंकि आप कोई और होने का दिखावा कर रहे हैं।
यह समझने के लिए कि ऑटोमेटिक सेल्फ की पकड़ डिस्ट्रक्टिव बिहेवियर पर इतनी स्ट्रांग क्यों होती है, उससे पहले हम अपने सोचने के तरीके के बारे में बात करते हैं। जैसे जैसे हम अपनी जिंदगी जीते जाते हैं, हम चाहते हैं कि हर चीज का कोई मतलब हो। हम पैटर्न बनाने लगते हैं ताकि जिंदगी प्रिडिक्टेबल हो सके। अगर आप अच्छे काम करेंगे तो आपको उसका अच्छा फल मिलेगा।
जैसे-जैसे हम ज्यादा पैटर्न्स बनाते हैं, हम उन्हें मैनेज करने के लिए एक स्ट्रक्चर बनाते हैं जिसे हम पैराडाइम भी कहते है। रियलिटी और दुनिया के बारे में हमारे सोचने का तरीका ही पैराडाइम है। जब हम बड़े हो रहे होते हैं, इसी सोच को अपनी जिंदगी में लागू करते रहते हैं।, जल्द ही यह परमानेंट और ना बदली जा सकने वाली सोच बन जाती है। हम उन लोगों से अपनी नजदीकियां बढ़ाने लगते हैं जो हमारे सोचने के तरीके को सपोर्ट करते हैं। हम उन लोगों से दूर रहने लगते हैं जो हमारी सोच को चैलेंज करते हैं या उसके खिलाफ जाते हैं।
अगर कोई आदमी इस बात से सहमत नहीं है कि हर वीकेंड ड्रिंक करने में बड़ा मज़ा है, हम उससे दूर रहते हैं।
वीकेंड ड्रिंक करने में बड़ा मज़ा है, हम उससे दूर रहते हैं। बार में जाने वाले लोग हमारे दोस्त बन जाते हैं क्योंकि । हमें लगता है वे कूल हैं। हमारे परिवार वाले और दोस्त हमें बताते हैं कि वह हमारी हरकतों की वजह से चिंतित हैं, हम उनकी हाँ में हाँ मिला देते हैं लेकिन उनकी बात सुनते नहीं है। क्योंकि हम अपनी सोच के बारे में कॉन्शियस नहीं हैं , हमारे कॉन्शियस सेल्फ को हमारी प्रॉब्लमैटिक सोच को ठीक करने का मौका ही नहीं मिलता। हम हर उस चीज को ब्लॉक कर देते हैं जो हमारे खुद को और दुनिया को देखने के नज़रिए को चैलेंज करती हैं। जब हमें अपने self-destructive बिहेवियर के बारे में बात करनी पड़ती है, हम अपने आप को बचाने लगते हैं। हम इसे नकारने लगते हैं, बहस करते हैं या फिर टॉपिक ही बदल देते हैं। हम अपने पैराडाइम को बचाने के लिए कुछ भी करते हैं।
अगर आप चाहते हैं कि आप अपने गलत पैराडाइम के बारे में अवेयर रहे,तो एक डायरी रखना अच्छी शुरुआत हो सकती है। अक्सर हम उन फैक्ट्स और इवेंट्स को नकार देते हैं जो हमारी उम्मीद के मुताबिक नहीं होती। इसका मतलब है कि हम खुद को सही मानते हैं और बाकी दुनिया को गलत। इसलिए, जब आप अगली बार किसी बात को लेकर निराश हों, तो इसे अपनी डायरी में नोट कर लें।
सबसे पहले, उस बात को लिखें जिसके होने की आपको उम्मीद थी। फिर जो असल में हुआ उसे लिखे। फिर इस बारे में जो भी आपके गलत beliefs यानि सोच रहे हो, उन्हें नोट करें। फिर, अपने गलत सोच से निकाले गए नतीजों को लिखें। अंत में, यह जानने की कोशिश करें कि आप क्या अलग कर सकते थे। example के लिए आपको अपने स्कूल रिपोर्ट में अच्छा करने की उम्मीद थी।
आपको उम्मीद थी। फिर जो असल में हुआ उसे लिखे। फिर इस बारे में जो भी आपके गलत beliefs यानि सोच रहे हो, उन्हें नोट करें। फिर, अपने गलत सोच से निकाले गए नतीजों को लिखें। अंत में, यह जानने की कोशिश करें कि आप क्या अलग कर सकते थे। example के लिए आपको अपने स्कूल रिपोर्ट में अच्छा करने की उम्मीद थी। लेकिन असल में हुआ क्या कि आप इसे टालते रहे, और जिसका परिणाम, आपका काम बहुत average रहा। आपके बायस पैराडाइम ने सोचा कि आप अपनी रिपोर्ट बहुत जल्दी बना सकते हो। फिर, आप ठान लेते हो की अगली बार जब आपको रिपोर्ट बनानी होगी, आप उसे टालेंगे नहीं और उस पर समय रहते काम करना शुरू कर देंगे।
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वेविंग द रैड फ्लैग (WAVING THE RED FLAG)
बच्चे अक्सर रो कर या नखरे दिखा कर अपनी ओर ध्यान खींचते हैं। वे अपने माता-पिता की अटेंशन चाहते हैं और रोना इसे पाने का सबसे असरदार तरीका है। नखरे करना भी एक अच्छा तरीका है अपनी मनपसंद चीज पाने का। एडल्ट जिनमें सेल्फ डिस्ट्रक्टिव बिहेवियर होता है, वे अक्सर अटेंशन पाने के लिए नखरे दिखाते हैं। जरूरी नहीं कि वह मॉल के बीच में रोने या पैर पटकने लगें, लेकिन वे अटेंशन चाहते हैं। जैसे बुलफाइट में प्लेयर रेड फ्लैग दिखाकर बुल का ध्यान अपनी ओर खींचता है, वैसे ही एडल्ट लोग भी रेड फ्लैग दिखाते हैं और ऐसी चीजें करते हैं जिससे दूसरे लोगों का ध्यान उन पर जाता है। जाहिर है, यह सब अनकॉन्शियसली होता है।
लेकिन कहीं ना कहीं, जाने अनजाने ये लोग चाहते हैं कि कोई उन्हें नोटिस करे और उन्हें रोके। आमतौर पर, ये लोग जो सेल्फ डिस्ट्रक्टिव बिहेवियर के जरिए अटेंशन पाना चाहते हैं, इनका बचपन सही परवरिश से नहीं गुजरा होता है। उनके माता-पिता ने उन्हें self-control के बारे में नहीं सिखाया होता है। इसलिए, वे ऐसी हरकत करते हैं. शायद उनके माता पिता ने उन्हें कभी सही राह नहीं दिखाई होगी और उनके इस बिहेवियर को बढ़ावा दिया होगा। दूसरा कारण हो सकता है कि उन्हें लगता हो कि उनके माता-पिता ने उन्हें छोड दिया है।
क्योंकि उनके बचपन में प्यार, गाइडेंस और रिस्पेक्ट की कमी रही, इसलिए उन्हें लग सकता है कि वे दूसरों से कमतर हैं। वे दूसरे लोगों से प्यार पाने की कोशिश करते हैं लेकिन उन्हें वो प्यार नहीं मिल पाता। यही निराशा, सेल्फ डिस्ट्रक्टिव बिहेवियर के रूप में बाहर आती है। फिर वह खुद को नुकसान पहुंचाने वाला कोई काम करता है, इस उम्मीद में कि कोई उसे यह करने से मना करेगा। यही एक अच्छे माता-पिता करते हैं, राइट? लेकिन अगर कोई उन्हें रोकने की कोशिश करता भी है, वे अक्सर उनकी बात नहीं मानते। सेल्फ डिस्ट्रक्टिव बिहेवियर होने के अलावा, इन लोगों की रिलेशनशिप भी अच्छी नहीं रहती हैं।
आत्महत्या करना, खुद को चोट पहुंचाना, शराब या ड्रग्स की लत यह कुछ बिहेवियर हैं जो अटेंशन पाने वाले लोगों में हो सकते हैं। ये “रेड फ्लैग वेवर्स” अटेंशन पाने की कोशिश करते हैं, लेकिन वे डरते हैं कि शायद उन्हें नकार दिया जायेगा। उन्हें पहले भी रिजेक्ट किया गया था जब वे बच्चे थे, अब ऐसा क्या अलग हो जाएगा? इसलिए, वे खुद को या दूसरों को नुकसान पहुंचा कर लोगों की अटेंशन को मैनिपुलेट करते हैं। लेकिन इन”रेड फ्लैग वेवर्स” को कभी संतोष नहीं मिलता क्योंकि वे जानते हैं कि यह अटेंशन उन्होंने गलत तरीके से पायी है।
इन लोगों को चाहिए कि वह अपने आप को अच्छे से कंट्रोल करें और अपने अंदर विल पावर लाएं। असल में, कोई भी जिसे एक बुरी आदत है उसे इन दो जरूरी बातों को सीखना चाहिए। जैसे एक्सरसाइज करने से आपकी मसल उभर कर आती हैं, वैसे ही विल पावर और सेल्फ कंट्रोल को भी मजबूत किया जा सकता है.ये वो एबिलिटीज हैं जो आपको बुरी आदतों के वापस हावी होने से बचाती हैं।
वो कौन सी बुरी आदत है जो आप छोड़ना चाहते हैं? यह कुछ काम की टिप्स हैं। इससे पहले कि आप खुद को एक प्रॉमिस करो, यह पक्का कर लें कि आप इसे 100% लगन के साथ करेंगे। फिर, अपने लिए वापस पुरानी हालत में जाना नामुमकिन बना दें। अपनी प्रोग्रेस के बारे में लोगों को बताते रहें।
अगर आप उन्हें इसके बारे में बताना बंद करेंगे तो वे खुद आपके बारे में जानने आएंगे। दूसरा तरीका है ऑनलाइन जाकर एक चैरिटी ढूढ़ना। आप अपना क्रेडिट कार्ड उस चैरिटी से लिंक कर दें और जब भी आप अपनी पुरानी आदत पर वापस जाएंगे, तब एक ऑटोमेटिक ट्रांजैक्शन से आपके कार्ड में से पैसे कट जायेंगे। अपने गोल तक पहुँचने को और इंस्पायरिंग बनाने के लिए, आप वह डोनेशन किसी पॉलीटिशियन या ऐसी जगह दे सकते हैं जहां पैसा खर्च करने से आपको सख्त नफरत है।
अपनी विल पावर को मजबूत बनाने का दूसरा तरीका है, उन चीजों को अवॉइड करना जो आपको ट्रिगर करती हैं। ये छोटी-छोटी चीजें हो सकती है, जैसे अगर आपको ड्रिंकिंग की प्रॉब्लम है तो घर जाते वक्त रास्ते में पड़ने वाले बार को अवॉयड करना। एक और तरीका है, बुरी संगत से दूर रहना। बियर पीने के लिए हाँ बोलना बहुत आसान है, वह भी तब जब आपके साथ रेगुलर ड्रिंक करने वाले दोस्त हों। उन्हें बताएं कि आप ड्रिंक करना छोड़ रहे हैं और अगर वह आपके इस फैसले की कद्र नहीं करते तो धीरे-धीरे उनसे दूर हो जाईये।
जब भी आप स्मोकिंग या ड्रिंकिंग के लालच के आगे हार मानने लगे, तो याद करें कि आपने कितनी प्रोग्रेस कर ली है. उस उम्मीद पर कायम रहें कि पुरानी आदतें छोड़ना वक्त के साथ आसान हो जाता है। मानसिक और शारीरिक रूप से अपने आपको तैयार करें कि इसमें महीनों का वक्त लगने वाला है। लेकिन इस बात से अपना मनोबल गिरने मत दीजिए। हर दिन जो आप अपने गोल को पाने में लगा देते हैं, वह आपको एक बुरी आदत छोड़ने के और करीब ले आता है।
यू आर हुक्ड: एडिक्शन (YOU’RE HOOKED: ADDICTIONS)
जब आपको किसी चीज की आदत लग जाती है तो आपके पास कोई सेल्फ कंट्रोल नहीं होता। या तो आप किसी चीज के आदी हो जाते हैं या फिर एक खास तरीके से बिहेव करने के। बहत ज्यादा खाना या बहत कम खाना, बिना सोचे समझे खरीदारी कर लेना और अनसेफ सेक्स करना बुरी आदतों में शामिल है। आप अडिक्टेड हैं , यह आपको तब पता चलता है जब आपको वह चीज किसी दिन नहीं मिलती। अगर आप उसे करना बंद कर देते हैं तो आपको नींद न आना, गुस्सा और बेचैनी जैसे लक्षण महसूस होते हैं. आपको लगता है आप जब मर्जी अपनी बुरी आदत को छोड़ सकते हैं, लेकिन आप कभी छोड़ते नहीं. इस तरह आप खुद को बेवकूफ बना रहे होते हैं की कंट्रोल आपके हाथ में है।
सबसे पहली बात, लोगों को किसी चीज़ या बिहेवियर की आदत पड़ती ही क्यों हैं? शराब जैसी चीजों की आदत पड़ने को आसानी से समझा जा सकता है। शराब आपको अच्छा फील कराती है। इसके कारण आप खुल जाते हैं और जब आप नशे में होते हैं तो आपका टाइम अच्छा बीतता है. जब शराब आपके बॉडी से निकल जाती है, आप चिड़चिड़े और बोर होने लगते हैं. इसलिए, आप अच्छा फील करने के लिए ड्रिंक करते रहते हैं। दूसरी तरफ ड्रग्स आपके दिमाग में जोरदार तलब पैदा करती है।
ड्रग्स जैसे कि कोकेन और तंबाकू जैसी दूसरी चीजें, दिमाग के उस हिस्से को एक्टिवेट करते हैं जो हमें मजा और खुशी देता है। जब यह एक्टिवेट होता है, तो डोपामिन नाम का एक न्यूरोट्रांसमीटर रिलीज होता है। ये न्यूरोट्रांसमीटर उस इंसान को अच्छा फील कराता है। आप समझ सकते हैं क्यों एक ड्रग एडिक्ट ड्रग्स से चिपक जाता है, उसे छोड़ नहीं पाता। जितने लंबे समय तक एक इंसान ड्रग्स यूज करता है,उसके दिमाग के प्लेजर सेंटर को उतना ही नुकसान होता है।
अगर यह डैमेज हो जाता है तो इसका मतलब है, आपको अच्छा फील करने के लिए और ज्यादा ड्रग्स चाहिए होगा। उसी दौरान आपकी बॉडी के दूसरे पार्ट्स जैसे आपका लीवर भी ड्रग्स के कारण खराब होना शुरू हो जाता है। आपके अपने परिवार और दोस्तों के साथ रिश्ते भी बिगड़ने लगते हैं। अपनी नशे की जरुरत के सिवा अब आप किसी और चीज की परवाह नहीं करते।
तो, आप एडिक्शन से कैसे छुटकारा पा सकते है? ऑथर कहते हैं कि सबसे पहले आपको अपने साथ ऑनेस्ट होने की जरुरत हैं। आपको यह स्वीकार करना होगा की आप एडिक्टेड हैं और आप खुद पर कंट्रोल नहीं कर पा रहे। उन लोगों के ग्रुप को ज्वाइन करना एक बड़ी हेल्प हो सकती है जो खुद इससे लड़ रहे हैं। यह याद रखें कि आप अपनी जिंदगी फिर से बना रहे हैं। ऑथर को 72 स्टेप प्रोग्राम की inspiration, अल्कोहलिक एनोनिमस नाम की ऑर्गेनाइजेशन से मिली। आपको इस प्रोग्राम के रूल्स को फॉलो करना चाहिए ताकि आप अपनी जिंदगी बदल सकें। यह आसान नहीं हैं, कुछ दिन ऐसे भी होंगे जब आप हार मानने लगेंगे, लेकिन ये 12 स्टेप प्रोग्राम आपको हर तरह से मदद करेगा।
इन स्टेप्स को फॉलो करने से पहले, यह पक्का कर ले कि आपके पास एक सपोर्ट ग्रुप हो। अगर नहीं है तो, कोई ऐसा इंसान ढूढें, जैसे कि एक थैरेपिस्ट या एक दोस्त जो आपकी मदद कर सके। सिर्फ अपनी खुराक पाने के लिए एडिक्शन आपसे वह सब कराएगी जो आप नहीं करना चाहते। झूठ बोलना, धोखा देना यहाँ तक की आप चोरी भी करने लगेंगे। एडिक्शन से जंग जीतना बहुत मुश्किल और तकलीफदेह होगा लेकिन यह जान लें कि अगर आपने इसे पार कर लिया तो आपकी जिंदगी बदल जाएगी।
- जैसे पहले भी बताया गया है कि आप को स्वीकार करना है कि आप एडिक्टेड हैं. इस भ्रम को तोड़ दें कि आप कंट्रोल में हैं और कभी भी इसे छोड़ सकते हैं। अगर आप बार-बार खुद को यही यकीन दिलाएंगे तो आप कभी भी असल में उसे छोड़ नहीं पाएंगे।
- इसे एक-एक दिन के हिसाब से करें , दोहरायें और अपने मकसद पर भरोसा करें। खुद को कहें “आज कोई सेल्फ डिस्ट्रक्टिव काम नहीं करना है”। यह कोई बहुत बड़ा गोल नहीं है, कोई भी इसे कर सकता है।
- यह मान लें कि आगे मुश्किल दिन भी आएँगे। उस वक्त के लिए खुद को तैयार करें, जब आप कोई सेल्फ डिस्ट्रक्टिव काम किए बिना रह नहीं पाएंगे। चाहे कितना ही लुभावना क्यों ना लगे, इस विचार के साथ खुद को रोक कर रखें कि ये वक़्त बीत जाएगा। इस बारे में सोचते रहे। की अगर आप अपने पुराने तौर-तरीकों पर वापस ना जाएं तो कितना अच्छा होगा।
- अपने मॉरल्स पर वापस जाएं। स्वीकार करें कि आपके सेल्फ डिस्ट्रक्टिव बिहेवियर ने आपसे बहुत बुरे काम करवाए हैं। हाँ, यह आपके एडिक्शन के कारण हुआ है, लेकिन इसे एक बहाना ना बनाएँ। ठान ले कि अब से आप ऑनेस्ट रहेंगे।
- उन लोगों से माफी मांगें जिन्हें आपने किसी भी तरीके से नुकसान पहुंचाया हो।ये फोर्थ स्टेप से रिलेटेड है और यह आपको एक बेहतर इंसान बनने में मदद करेगा।
- बदले में उनके साथ अपना टाइम शेयर करें। एक दिन के लिए किसी बूढ़े इंसान का साथी बने या लोकल बीच (beach) की सफाई करें। अच्छे काम करने से आपको अच्छा फील होगा। इससे दुनिया में पॉजिटिविटी भी बढेगी।
- माइंडफुल एक्टिविटीज की प्रैक्टिस करें। माइंडफुलनेस का मतलब है अपने रिएक्शन और बिहेवियर को लेकर कॉन्शियस रहना। जब आप खुद के बारे में माइंडफुल होते हैं, तो आप देख सकते हैं कि आप क्या गलत कर रहे हैं। यहाँ से आप अपनी ग़लतियाँ सुधार सकते हैं।
- बार-बार उस सोच को दोहराए कि “यू कैन फेक इट अंटिल यू मेक इट”। एल्कोहोलिक एनोनिमस जैसे बड़े और फेमस ग्रुप भी इस सोच को अपनाते हैं। अगर आपने अभी-अभी शरूआत की है तो आप मीटिंग्स अटेंड करते रहिये, मोटिवेशनल लाइन्स को दोहराते रहिये और अपने इस फ्लो को बनाये रखें. जैसे जैसे आप इसे बार बार करते रहेंगे यह आपके डेली रूटीन का हिस्सा बन जायेगा. एक दिन आख़िरकार आप कह पाएंगे कि आप पहले अडिक्टेड थे लेकिन अब आपने इससे छुटकारा पा लिया है. इन स्टेप्स को फॉलो करते रहें भले ही कभी-कभी आपको इन पर भरोसा ना हो.
- अगर आपके पास कोई सपोर्ट ग्रुप नहीं है, तो एक स्पांसर तलाशें। स्पांसर वह होता है जिसे आप अपनी रिकवरी के दौरान सब कुछ बताएँगे। वे आपको बिना किसी जजमेंट के सुनेंगे, लेकिन वे आपको सच भी बताएँगे चाहे वो कितना ही कड़वा क्यों ना हो।
- अगर आपके पास कोई स्पांसर ना हो तो अपने पास एक डायरी रखें। इसमें हर दिन के अपने ecperience को लिखें या फिर अपना वीडियो बनायें। अपनी फीलिंग्स को एक्सप्रेस करें, बताएं कि आपको ये अच्छे दिन कैसे लग रहे हैं या क्रेविंग कितनी ज्यादा हो सकती है.
- अपने शार्ट-टर्म गोल पर ध्यान दें लेकिन अपने लॉन्ग-टर्म गोल को भी याद रखें। हालांकि रोज थोड़ा थोड़ा करने से यह आपको बहुत मुश्किल नहीं लगेगा, लेकिन अपने लॉन्ग-टर्म गोल पर नज़र रखना भी जरूरी है. हर वो दिन जब आप खुद को सेल्फ-डिस्ट्रक्टिव रास्ते पर वापस जाने से रोकते हैं, यह आपके ब्रेन के लिए एक मौका होता है खुद को रीवायर (rewire) करने का।धीरे धीरे आपका ब्रेन खद को इस तरह ढाल लेगा की वह किसी नशीली चीज या बुरे बिहेवियर पर डिपेंडेंट नहीं होगा। जैसे जैसे आप आगे बढ़ते जाओगे, अपनी एडिक्शन से दूर होना उतना आसान हो जायेगा.
- अंत में, प्रैक्टिस करते रहें। बार-बार दोहराना ही सबसे जरूरी है। बुरी आदतों ने आपके दिमाग में कनेक्शन बना लिए हैं. हर रोज अच्छी आदतों की प्रैक्टिस करें और उन्हें बार-बार दोहराएं ताकि नए कनेक्शन जल्दी और मजबूत बन सकें.
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CONCLUSION
आपने सीखा कि क्यों आप वो चीजें करते हैं जो आपके लिए अच्छी नहीं है, और इसके लिए कैसे आपके दो माइंड जिम्मेदार हैं जो आपस में लड़ रहे हैं।
कॉन्शियस सेल्फ वह माइंड है जो आपके लिए सावधानी से फैसले लेता है। इसे आपके बहुत सारे डिसीज़न पर काम करना होता है इसलिए यह धीरे-धीरे लेकिन ध्यान से काम करता है। दूसरी ओर, ऑटोमेटिक सेल्फ बिना सोचे समझे डिसीजन ले लेता है। यह तुरंत रिएक्ट करता है और इसकी परवाह नहीं करता की आपके लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा।
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तो, आप उन चीजों को करने से खुद को कैसे रोक सकते हैं जो आपके लिए सही नहीं है? आपको अपने ऑटोमेटिक सेल्फ को अच्छी चीजें चुनने के लिए ट्रेन करना होगा। ये पॉसिबल है क्योंकि हमारा ब्रेन फ्लैक्सिबल होता है। इसका मतलब है ब्रेन अपना स्ट्रक्चर, आप कैसे सोचते हैं और आप क्या करते हैं, उसके अनुसार बदल लेता है। आप असल में अपने ब्रेन को री-वायर (rewire) कर सकते हैं।
आपने सीखा की ऑटोमेटिक सेल्फ बिना सोचे काम करता है क्योंकि इसका एक ही मकसद है: आपको खुश, कॉन्फिडेंट और कंफर्टेबल रखना। इसे फर्क नहीं पड़ता कि आप को खुश करने के ये तरीके, गलत और self-destructive है।
आपने सीखा की अपने अंदर विल पावर और सेल्फ कंट्रोल डेवलप करने से बुरी आदतों से लड़ने में मदद मिलती है। यह बहुत मुश्किल हो सकता है क्योंकि बुरी आदतें बचपन से ही शुरू हो जाती हैं। लेकिन खुद से प्रॉमिस करें की आप बदलेंगे। 12-स्टेप प्रोग्राम की मदद से आप छोटे छोटे स्टेप लेकर, अपनी इच्छा और तलब को रोक सकते हैं.
खुद को सुधारने के लिए आपको बहुत मेहनत करनी होगी। बुरी आदतों की जड़ें आपके दिमाग में बहुत गहरी बैठी हुई हैं। लेकिन आपको बेहतर बनना ही होगा। अच्छी आदतों की रोज प्रैक्टिस कर के आप अपने ब्रेन को रीवायर कर सकते हैं और अपनी बेहतरी के लिए बदल सकते हैं।
आप अपने अंदर के राक्षस को हरा सकते हैं और दूसरे लोगों को भी इसके लिए इंस्पायर कर सकते हैं। जितना आप सोचते हैं, आप उससे बहुत ज्यादा स्ट्रांग हैं। एक-एक दिन करके आगे बढ़े। अंत में, बुरी आदतें, डिस्ट्रक्टिव बिहेवियर और एडिक्शन आपके अतीत का हिस्सा बनकर पीछे छूट जाएंगे।