यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए
प्यार होना कितना अच्छा लगता है। बहुत से लोगों को यह लगता होगा कि प्यार के इतने खास एहसास के पीछे जरूर कोई जादूई चीज़ होती होगी। यहाँ तक कि कुछ शायर प्यार को जादू ही कहकर बुलाते हैं। लेकिन क्या आप ने कभी सोचा है कि साइंस की नजर में प्यार क्या चीज़ है और यह क्यों होता है?
यह किताब बताती है कि प्यार में हमारे दिमाग में किस तरह की हरकतें होती है। यह किताब हमें बताती है कि साइंस की नजर से देखने पर प्यार कैसा दिखाई देता है। इसकी मदद से हम जानेंगे कि हमें प्यार क्यों होता है और क्यों इससे निकलना इतना मुश्किल होता
-हमारे दिमाग में भावनाओं का विकास किस तरह से होता है।
-दिमाग के कौन से केमिकल्स प्यार की भावना पैदा करने के लिए जिम्मेदार हैं।
-दिल टूटने पर कुछ लोग खुद को नुकसान क्यों पहुंचाने लगते हैं।
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हमारे दिमाग का विकास हमारे वातावरण के हिसाब से हुआ था।
450 BC के दौरान एक हिपोक्रात नाम के शख्स ने दिमाग के बारे में बताना शुरू किया। उन्होंने कहा कि प्यार और दूसरी भावनाएं हमारे दिमाग की उपज हैं और हम जो भी सोचते हैं वो अपने दिमाग की मदद से सोचते हैं। उनके यह बताने के 2000 साल के बाद, आज हम मशीनों की कुछ स्टडीज़ की मदद से दिमाग के काम करने के तरीके समझ पा रहे हैं।
पिछले कुछ दशकों में हमने दिमाग के बारे में बहुत सी बातें जान ली हैं। हमें यह पता लगा कि हमारे दिमाग का विकास किस तरह से । हुआ था। एक थियोरी के हिसाब से हमारे दिमाग का विकास हमारे वातावरण के हिसाब से हुआ था। हमारे दिमाग का विकास कुछ इस तरह से हुआ था कि हम खुद को नए माहौल में जिन्दा रख सकें।
बहुत पहले, मौसम में बदलाव की वजह से हमारे पूर्वजों को जंगलों से निकल कर सूखी जगहों पर आना पड़ा। इस तरह के माहौल में जिन्दा रहने के लिए हमें खुद को शिकारियों से सुरक्षित रखना था
और खाने का इंतजाम करना था। इन जरूरतों को पूरा करने के लिए हमारे दिमाग का विकास हुआ।
लेकिन इसे साबित करने के लिए हमारे पास क्या सबूत है? हमारे दिमाग का स्ट्रक्चर ही इस थियोरी को साबित करता है। हमारा दिमाग तीन भागों में बँटा हुआ है रेप्टीलियन ब्रेन, लिम्बिक ब्रेन और नीयोकार्टेक्स।
रेप्टीलियन ब्रेन हमारे दिमाग का सबसे पुराना हिस्सा है जो कि हमारे शरीर के जरूरी प्रासेसेस को काबू करता है, जैसे भूख लगना, खतरे से बचना और बच्चे पैदा करने की चाहत पैदा करना।
इसके बाद हमारा लिम्बिक ब्रेन आता है जिसमें हमारी भावनाएं बसती हैं। जब हमारे दिमाग का यह हिस्सा विकसित हुआ, तब इस धरती पर मैमल्स का जन्म हुआ। मैमल्स अपने बच्चों से लगाव रखते हैं और झुंड बना कर रहते हैं। वे अपने करीबी लोगों को बचाने की कोशिश करते हैं। यह खूबियां रेप्टाइल्स में नहीं पाई जाती।
इसके बाद हमारे दिमाग का सबसे ऊपरी और सबसे नया हिस्सा है नीयोकार्टेक्स, जिसे ह्यमन ब्रेन भी कहा जाता है। इस हिस्से की मदद से हम सोच समझ सकते हैं, प्लानिंग कर सकते हैं और बेहतर फैसले ले सकते हैं।
प्यार की भावना हमारे दिमाग के कुछ केमिकल्स का नतीजा है।
प्यार होने का एहसास कितना भी अच्छा क्यों न लगता हो, इसके पीछे की वजह हमारे दिमाग के कुछ केमिकल्स हैं। इन केमिकल्स को हम न्यूरोट्रांस्मिटर्स कहते हैं। 3 न्यूरोट्रांस्मिटर्स इसके लिए जिम्मेदार होते हैं सेरोटोनिन, आक्सिटोसिन और ओपिएट्स।
सेरोटोनिन के निकलने की वजह से हमारा तनाव कम होता है और हम खुद को डिप्रेशन से बाहर निकाल पाते हैं। इसकी मदद से हम खुद को सदमे से बाहर निकाल सकते हैं। अगर आपका दिल टूट गया है या आपके किसी करीबी व्यक्ति की मौत हो गई है, तो सेरोटोनिन की मदद से आप उस दुख को कम कर सकते हैं।
कभी कभी हम किसी के साथ रहने पर खुश नहीं होते लेकिन हम उन्हें छोड़ भी नहीं पाते क्योंकि हमें लगता है कि उनसे बिछड़ने के बाद हम दुखी हो जाएंगे। ऐसे हालात में भी हमारा तनाव बढ़ जाता है
और हम सही फैसले नहीं ले पाते। प्रोज़ैक नाम की दवाइयां हमारे अंदर सेरोटोनिन को बढ़ाती हैं जिससे हमें राहत मिलती है और हम सही फैसले ले पाते हैं।
इसके बाद आता है आक्सिटोसिन, जो कि हमारे जन्म के वक्त हमारे अंदर बहुत ज्यादा मात्रा में पाया जाता है। इस केमिकल की मदद से एक बच्चा अपनी माँ के साथ जुड़ पाता है और जब हमें प्यार का एहसास होता है, तो उसके पीछे इसी केमिकल का हाथ होता है।
स्टडीज़ में यह पाया गया है कि जिन लोगों में आक्सिटोसिन ज्यादा मात्रा में पैदा होता है, वो लोग दूसरों पर आसानी से भरोसा कर लेते हैं और आसानी से प्यार में पड़ जाते हैं।
ओपिएट्स की मदद से हम अपने शारीरिक और अपने मानसिक दर्द से राहत पा सकते हैं।
जब हम कोई ऐसा काम करते हैं जिससे हमारे शरीर को नुकसान हो रहा हो, तो हमें दर्द महसूस होता है। इस तरह से हमारा दिमाग हमें फिर से वो काम करने से रोकता है, ताकि हम सुरक्षित और जिन्दा रह सकें। दर्द का होना हमारे जिन्दा रहने के लिए जरूरी है, क्योंकि अगर हम एक ऐसा काम कर रहे हैं जिससे हमारे शरीर को तकलीफ हो रही है और उससे हमें दर्द ना हो, तो हम वो काम करते रहेंगे जिससे हमारी मौत हो जाएगी।
लेकिन जब हमें दर्द होना शुरू होता है, तो कुछ देर के बाद वो दर्द कम भी हो जाता है। दर्द कम करने के लिए हमारा दिमाग ओपिएट्स नाम के न्यूरोट्रांस्मिटर को पैदा करता है। हमारा दिमाग शारीरिक और मानसिक दर्द होने पर एक जैसा बर्ताव करता है। जब हमें दुख होता है, तो हमारे दिमाग के वही हिस्से काम कर रहे होते हैं जो चोट लगने पर काम करते हैं। इस वजह से जब ओपिएट्स निकलते हैं, तो वो शरीर के दर्द को कम करने के साथ साथ मन के दर्द को भी कम कर देते हैं।
जब मैमल्स के लिम्बिक ब्रेन का विकास हो रहा था, तो उन्हें अपने करीबी लोगों के मर जाने पर बहुत तकलीफ महसूस होती थी। क्योंकि हमारे दिमाग को ओपिएट्स का इस्तेमाल कर के शरीर के दर्द को कम करने की तकनीक पहले से पता थी, उसने यही तरीका दुख से होने वाली तकलीफ को कम करने के लिए भी अपना लिया।
लेकिन ओपिएट्स तब ज्यादा मात्रा में निकलते हैं जब हमारे शरीर को चोट लगती है। इस वजह से जब बहुत से लोगों का दिल टूटता है तो वो अपने शरीर को नुकसान पहुंचाने लगते हैं, जैसे कि वे अपना सिर पीटने लगते हैं या अपनी नसें काट लेते हैं। इस वजह से उनके शरीर को तकलीफ होती है और उनका दिमाग ओपिएट्स पैदा करता है, जिससे उनके शरीर के दर्द के साथ साथ उनके दिल के दर्द को भी राहत मिलती है। इससे उन्हें अच्छा महसूस होता है।
अट्रैक्टर्स की वजह से हम प्यार में एक खास व्यक्ति के प्रति एक खास तरह की भावना को पैदा कर पाते हैं।
अक्सर आपने देखा होगा कि हम कुछ स्पेलिंग मिस्टेक्स को अनदेखा कर देते हैं। एक्ज़ाम्पल के लिए हम taht को that पढ़ते हैं। कभी कभी हम इन छोटी छोटी बातों को अनदेखा कर देते हैं।
ऐसा अट्रैक्टर्स की वजह से होता है।
अट्रैक्टर्स हमारी मेमोरी के वो हिस्से होते हैं जो हमारे नजरिए को बनाते हैं। उनकी मदद से हम एक चीज़ को एक तरह से देखना सीख पाते हैं। यही वजह है कि कभी कभी हम खराब से खराब हैंडराइटिंग भी पढ़ लेते हैं, क्योंकि हमें शब्दों को पढ़ना शुरुआत से ही सिखाया गया है और समय के साथ हमारे दिमाग में उन शब्दों का एक आकार बन जाता है। फिर हम उस आकार को देखकर शब्दों की पहचान करते हैं,ना कि शब्दों के अक्षरों को देखकर।
यही वजह है कि खराब हैंडराइटिंग में लिखी गई चीज़ भी हम पढ़ लेते हैं क्योंकि उन शब्दों का आकार हमारे दिमाग को पता है। that और that में एक ही अक्षर आते हैं जिस वजह से हमारा दिमाग उसमें अंतर नहीं कर पाता और उसे अनदेखा कर देता है।
लेकिन इसका प्यार से क्या लेना-देना है? जैसा कि हमने कहा, अट्रैक्टर्स हमारी मेमोरी के हिस्से होते हैं जो हमारे अनुभव से बने होते हैं और हमारे नजरिए को बनाते हैं। हमारी जिन्दगी के शुरुआती अनुभवों की मदद से हमारे अट्रैक्टर्स हमारे नजरिए को बनाते हैं जिससे हम दुनिया को एक खास तरह से देख पाते हैं।
इस वजह से हम प्यार भी एक खास तरह के व्यक्ति से कर पाते हैं। इस वजह से हमारे अंदर भावनाएं सिर्फ कुछ खास तरह के लोगों के लिए पैदा होती हैं।
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लोगों के साथ लगाव रखना हमारी भावनाओं के विकास के लिए जरूरी है।
जब हम पैदा होते हैं, तो हमें यह नहीं पता होता कि हमें किस तरह से बर्ताव करना है। हमें यह नहीं पता होता कि कब हमें किस तरह से रिएक्ट करना है। हमें यह सब अपनी माँ से सीखना होता है। हमारी माँ हमारे भावनाओं को आकार देती हैं और यह बताती हैं कि हमें कब किस तरह की भावनाओं को दिखाना है।
एक्ज़ाम्पल के लिए मान लीजिए एक छोटा बच्चा खेल रहा है और अचानक से वो गिर जाता है। गिरते ही वो अपनी माँ को देखता है। अब अगर उसकी माँ उसे देखकर हँसती हैं, तो वो भी हँसने लगता है। लेकिन जब उसकी माँ परेशान हो जाती हैं तो वो रोने लगता है। इस तरह से एक बच्चा सीखता है कि उसे किस हालात में किस तरह से रहना है।
लेकिन हमारी भावनाओं का विकास सिर्फ तभी नहीं होता जब हम छोटे होते हैं। हमारी भावनाओं का विकास सारी उम्र चलता रहता है। इस वजह से हम यह जान पाते हैं कि हमें किस उम्र में किस तरह से बर्ताव करना चाहिए।
बहुत से लोगों का मानना है कि बड़े होने पर समाज या लोगों पर निर्भर होना कमजोरी की निशानी है। लेकिन जब हम लोगों के साथ अच्छे रिश्ते बनाकर उनके साथ घुलते-मिलते हैं, तो हम अपनी भावनाओं को और ज्यादा विकसित कर पाते हैं। इससे हमारे अट्रैक्टर्स का विकास होता है और हमारा नजरिया मजबूत होता है। अगर ऐसा ना हो, तो हम बड़े होने पर भी एक बच्चे की तरह ही बर्ताव करेंगे।
इसलिए हमें उन लोगों की जरूरत होती है जिनके साथ हम भरोसेमंद रिश्ते बना सकें और जिनके साथ अपनी भावनाओं को बाँट सकें। इस तरह से हमारी भावनाओं का विकास होता रहता है।
हम थेरापी के जरिए अपने दिमाग को बदल कर अपनी भावनाओं का इस्तेमाल करना अच्छे से सीख सकते हैं।
हमने अब तक देखा कि किस तरह से बचपन से हमारी भावनाओं का विकास होता है। अब हम देखेंगे कि अगर किसी को बचपन के एक माँ का प्यार ना मिला हो, तो वो किस तरह से समाज के साथ अच्छे रिश्ते बना सकता है।
अगर किसी व्यक्ति के माता-पिता की भावनाएं खुद विकसित ना हों, तो उनके बच्चे भी अपनी भावनाओं को काबू करना नहीं सीख पाते। इसके अलावा अगर किसी व्यक्ति को बचपन में सही परवरिश ना मिली हो, तो भी उसकी भावनाएं अच्छे से विकसित नहीं हो पाती।
अगर आपकी भावनाओं का विकास अच्छे से नहीं हो पाया है, तो आप कैसे उसे ठीक करेंगे? इस सवाल का जवाब है साइकोथेरापी।
इसे समझने के लिए हम अट्रैक्टर्स का एक्ज़ाम्पल लेते हैं। जैसा कि हमने देखा, अट्रैक्टर्स हमारे अनुभव से बनते हैं और आगे चलकर हमारे नजरिए को बनाते हैं जिससे हम दुनिया को एक तरह से देख पाते हैं। हमारे नजरिए की वजह से हमें कुछ चीजें पसंद होती हैं और कुछ नापसंद। इसी नजरिए की वजह से हमें कुछ खास किस्म के लोग पसंद आते हैं। यह बिल्कुल ऐसा है कि आप अपनी आँखों पर एक हरे रंग का चश्मा लगा कर घूमें जिससे आपको सब कुछ हरे रंग का दिखाई देने लगे।
अब मान लीजिए कि आपके बचपन का अनुभव कुछ ऐसा रहा जिससे आपके अट्रैक्टर्स का विकास अच्छे से नहीं हो पाया जिससे
आप हर चीज़ में बुरा ही देखते हैं। मान लीजिए आपके अट्रैक्टर्स का विकास कुछ इस तरह से हुआ है कि आप लोगों पर भरोसा नहीं कर पाते या उनसे अपने अंदर की बात नहीं कर पाते।
इस तरह की मेंटल वाइरिंग को ठीक करने के लिए ही हम साइकोथेरापी का इस्तेमाल करते हैं। इसकी मदद से हम अपने अट्रैक्टर्स के नेटवर्क को ठीक कर पाते हैं और दुनिया को इस नजरिए ।
इस तरह की मेंटल वाइरिंग को ठीक करने के लिए ही हम साइकोथेरापी का इस्तेमाल करते हैं। इसकी मदद से हम अपने अट्रैक्टर्स के नेटवर्क को ठीक कर पाते हैं और दुनिया को इस नजरिए से देखना शुरू करते हैं जिससे हमारे रिश्ते बन सकें। रिश्ते बना कर हम अपनी भावनाओं का विकास कर पाते हैं।
साइकोथेरापी करने के बहुत से तरीके हैं और अलग अलग साइकोलाजिस्ट अलग अलग तरीकों को सबसे अच्छा मानते हैं। लेकिन उन सभी तरीकों का मकसद एक ही होता है – आपको इस काबिल बनाना कि आप लोगों से बेहतर रिश्ते बना सकें।
फिल्में हमारे दिमाग में प्यार की गलत परिभाषा को डाल रहे हैं।
प्यार अंधा होता है या नहीं, यह तो हमें नहीं पता, लेकिन प्यार हमें अंधा जरूर बना देता है। प्यार में होने पर हमारे अंदर यह तीन भावनाएं पैदा होती हैं
सबसे पहले हमें यह लगता है कि हमारा पार्टनर बिल्कुल पर्फेक्ट है
और अब हमें उसके अलावा किसी से प्यार नहीं होगा। जबकि हमें पूरी जिन्दगी में सिर्फ एक व्यक्ति ही पसंद आए, यह जरूरी नहीं है।
इसके बाद हमें जिससे प्यार होता है, उसी के साथ रहने का मन करता है। लेकिन समय के साथ यह भावना गायब होने लगती है और तब हम यह सोचते हैं कि कहीं हमारा प्यार खत्म तो नहीं हो रहा।
अंत में, हम हर उस चीज़ को अनदेखा करने लगते हैं जिसका हमारे प्यार से कुछ लेना-देना नहीं होता। हम हर वक्त सिर्फ अपने प्यार के बारे में सोचत हैं। इस तरह से प्यार हमें अंधा बना देता है।
प्यार में होना और प्यार करना, दो अलग अलग बातें हैं। जब हम प्यार में होते हैं, तो हम किसी व्यक्ति के करीब आ जाते हैं और जब हम प्यार करते हैं, तो हम उसके साथ लम्बे समय का एक रिश्ता बनाने की कोशिश करते हैं।
प्यार में होने पर हमें यह लगने लगता है कि हमारा वो प्यार हमेशा जिन्दा रहेगा। इस वजह से जब हमारा रिश्ता टूटता है, तो हमें बहुत तकलीफ होती है। इसके अलावा फिल्में हमारे दिमाग में प्यार की एक बहुत आइडियल इमेज डालती जा रही हैं, जिससे हम प्यार को गलत तरह से देख रहे हैं।
फिल्मों में दो लोग, जो एक दूसरे के बारे में बहुत कम जानते हैं, एक दूसरे के करीब आते हैं, बहुत कम समय में एक दूसरे को पसंद करने लगते हैं और फिर कुछ समस्याओं को झेलने के बाद, हमेशा के लिए एक दूसरे के बनकर रह जाते हैं।
उनका कान्सेप्ट यह होता है कि प्यार वही सच्चा है जिसमें झगड़े कभी ना हो और जो जन्मों जन्मों तक चलता रहे। इस वजह से जब भी हमारे रिश्ते में कुछ बात बिगड़ती है, हमें यह लगने लगता है कि हमें कभी सच्चा प्यार हुआ ही नहीं था।
दो प्यार करने वालों के लिम्बिक ब्रेन कुछ इस तरह से बदलने लगते हैं कि वो दोनों लोग दुनिया को एक ही तरह से देखने लगते हैं।
अगर जन्मों का नाता होना सच्चे प्यार की परिभाषा नहीं है, तो फिर प्यार क्या है? प्यार में होना और प्यार करना दो अलग बातें हैं। प्यार में होने के लिए आपको सिर्फ एक व्यक्ति को देखना होगा या उसके साथ कुछ समय बिताना होगा। लेकिन प्यार करने के लिए आपको उसे पूरी तरह से समझना होगा।
प्यार एक तरफा हो सकता है, लेकिन इससे दोनों लोग एक दूसरे को नहीं समझ पाते जिस वजह से वो एक कनेक्शन नहीं बना पाते। प्यार करने का मतलब भावनाओं का कनेक्शन बनाने से है, जिसमें आप दोनों एक दूसरे को गहराई से जानते और समझते हैं। इसमें समय लगता है और इस तरह के प्यार को पैदा करने के लिए आपको सामने वाले के साथ बहुत गहरे नाते जोड़ने पड़ते हैं।
इसके अलावा जब दो लोग प्यार में होते हैं, तो उनके लिम्बिक ब्रेन एक दूसरे से मिलने लगते हैं। उनके अट्रैक्टर्स एक दूसरे से मिलने लगते हैं जिससे उनका नजरिया एक जैसा हो जाता है और वो दुनिया को एक ही तरह से देखने लगते हैं। यहाँ से वो वक्त शुरू होता है जब दोनों की पसंद-नापसंद एक दूसरे से मिलने लगती है।
इस तरह से एक सच्चे प्यार का जन्म होता है, जिसमें दो लोग एक दूसरे की भावनाओं के साथ जुड़ जाते हैं।
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कुल मिलाकर
हमारा लिम्बक ब्रेन हमारी भावनाओं के लिए जिम्मेदार होता है। उसके अंदर बच्चे पैदा करने की और अपने करीबी लोगों से जुड़े रहने की ख्वाहिश होती है ताकि वो झुंड बना सकें और खुद को सुरक्षित रख सकें। इस वजह से उनके दिमाग में तीन केमिकल्स पैदा होते हैं – सेरोटोनिन, आक्सिटोसिन और ओपिएट्स, जिनकी वजह से वो प्यार को अनुभव कर पाता है। किसी से लगाव लगा कर हम अपनी भावनाओं का विकास कर पाते हैं।
प्यार में होने और प्यार करने के बीच के अंतर को समझिए।
अगर आपको भी यह लगता है कि सच्चा प्यार कभी खत्म नहीं होता, तो आपको अपने रिश्ते के टूटना पर बहुत झटका लग सकता है और बहुत तकलीफ हो सकती है। टीवी, गाने, फिल्में और कहानियाँ हमें । वही दिखाती हैं जो हम देखना चाहते हैं और जो हमें अच्छा लगता।
रिश्ते कमजोर हो जाते हैं। इसलिए आपको प्यार में होने की बातों को अनदेखा कर के एक व्यक्ति को गहराई से समझने की कोशिश करनी चाहिए।