Communicate in a Crisis Book Summary in Hindi

Communicate in a Crisis

अथेंटिक और ट्रांसपैरेंट ब्रांड्स के साथ कंज्यूमर का रिश्ता मज़बूत रहता है

Communicate in a Crisis Book Summary in Hindi- इस कहानी की शुरुआत अनहैप्पी कस्टमर से करते हैं. फ्लोरिडा में एक लड़की काम करती थी. जिसका नाम ऐश्ले था और वो एनवायर्नमेंटल कैम्पेनर के तौर पर काम किया करती थी. कुछ साल पहले उसे एक कार खरीदनी थी. लेकिन वो कोई भी आम कार नहीं हो सकती थी. उस कार में कुछ ख़ास होना ही चाहिए था. अपनी ख़ास ख्वाइश के लिए ऐश्ले ने Volkswagen जैसी नामी कंपनी के ऊपर भरोसा दिखाया और इसी कंपनी की कार को खरीदा. कुछ समय तक सब कुछ सही था. ऐश्ले को अपनी कार से कोई दिक्कत नहीं थी. लेकिन फिर एक दिन एक खबर ब्रेक होती है. वो खबर स्कैंडल के बारे में थी. ये स्कैंडल उसी कंपनी ने किया था जिसकी कार ऐश्ले ने खरीदी थी. कंपनी ने गलत दावा किया था कि उसकी कार वातावरण के लिए सही है. कंपनी ने नहीं बताया था कि उसकी कार से इतना कार्बनडाय ऑक्साइड निकलता है. जिससे वातावरण को काफी ज्यादा नुकसान होता है. अब आपको ऐश्ले के बारे में भी जान लेना चाहिए. ऐश्ले को एनवायर्नमेंटल फ्रेंडली कार खरीदनी थी.

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ये खबर सुनते ही ऐश्ले को झटका सा लगा था. उसे ऐसा लगा था कि कंपनी ने उसके साथ ठगी की है. कंपनी ने उसके ट्रस्ट को तोड़ा है. अपने गुस्से का इज़हार ऐश्ले ने सोशल मीडिया पर किया था. उसने कंपनी को लेकर एक लंबा-चौड़ा आर्टिकल पोस्ट किया था. आप को समझ लेना चाहिए कि आज के दौर में कस्टमर ब्रांड से बहुत ज्यादा कनेक्ट हो जाते हैं. कई लोग तो इमोशनल लेवल पर भी ब्रांड्स से कनेक्ट रहते हैं. उन्हें वही वफादारी रिटर्न में भी चाहिए होती है. इसी थ्योरी को पैशन ब्रांड्स भी कहा जाता है. इसी पैशन के साथ कस्टमर ब्रांड्स के साथ लाइफ टाइम जुड़े रहते हैं. ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि ब्रांड्स हमारी सोशल आइडेंटिटी का हिस्सा बन चुके हैं. वो हमें स्मार्ट और फैशनेबल बनाते हैं. कई लोग तो ब्रांड्स की ही मदद से सोसाइटी में अपना रुतबा भी दिखाते हैं. क्या कभी आपने सोचा है कि आप अपने फेवरेट ब्रांड का ही जूता क्यों खरीदते हैं?

नहीं सोचा है, तो अभी इस बारे में सोचियेगा.

लेकिन दिक्कत वहां शुरू होती है. जहाँ ब्रांड्स हमें दुखी करने लगते हैं. हम जिस ब्रांड को इतना प्यार करते हैं. उसकी सर्विस और प्रोडक्ट की क्वालिटी गिर जाती है. तब ग्राहक दुखी और नाराज़ हो जाता है.

ऐसा ही कुछ फेसबुक ने भी किया था. इस प्लेटफ़ॉर्म को लोग अपना दूसरा घर समझते थे. अपनी मेमोरीस सेव करके रखा करते थे. लेकिन साल 2018 में इस कंपनी ने लोगों के डेटा को कैंब्रिज एनालिटिका को बिना परमिशन के बेच दिया था. तब इस कंपनी ने कंज्यूमर के ट्रस्ट को तोड़ा था. जिसके बाद फेसबुक को लोगों के गुस्से का भी सामना करना पड़ा था. तब एक सर्वे में पता चला था कि यूके में 5 में से 1 लोग ने फेसबुक को अपने मोबाइल से अन इनस्टॉल कर दिया था.

इसके बाद कंपनी को एहसास हो गया था कि वो लोगों से बड़ी नहीं है.

ये भी सच है कि हर ब्रांड को कभी ना कभी क्राइसिस का सामना करना पड़ता ही है. इसलिए उस दौर का सामना कैसे करना है? ये आपको पता ही होना चाहिए.

ब्रांड कई तरह से उपभोक्ता की नाराजगी को ट्रिगर कर सकते हैं

Communicate in a Crisis Book Summary in Hindi- साल 2015 में अमेरिकन नॉवेलिस्ट हार्पर ली ने एक सीक्वल को पब्लिश्ड की थी. उन्होंने ‘To Kill a Mockingbird’ किताब के सीक्वल को ‘Go Set a Watchman’ नाम दिया था. शुरूआती दौर में इस किताब का लोग काफी बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे. लेकिन पढ़ने के बाद लोगों को सीक्वल में कई अंतर पढ़ने को मिले थे. हार्पर ली ने मुख्य हीरो एटिकस फिंच के पेशे को ही बदल दिया था. नॉवेल के हीरो, एटिकस फिंच को आम नागरिक अधिकारों के वकील से एक नस्लवादी में बदल दिया गया था. हार्पर ली के फैन्स काफी निराश हुए थे. एटीकस फिंच की इमेज हमेशा से लोगों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले की थी. उसकी इमेज के बदले जाने से पाठक काफी ज्यादा निराश हो चुके थे. कई लोगों को तो ऐसा भी लगने लगा था कि हार्पर ने उन्हें ठग लिया है. पाठकों के अंदर निराशा के साथ-साथ हार्पर के लिए गुस्सा भी था. कई लोगों ने तो हार्पर के मेंटल हेल्थ को लेकर ही सवाल खड़े कर दिए थे.

इस एग्जमप्ल से आपको समझ में आ रहा होगा कि लोगों का अपने ब्रांड्स के साथ कैसा कनेक्शन हो जाता है?

स्वीडन यूनिवर्सिटी की रिसर्च के अनुसार ब्रांड वैल्यू लोगों के दिमाग पर असर करती है. स्वीडन यूनिवर्सिटी की रिसर्च के अनुसार ब्रांड वैल्यू लोगों के दिमाग पर असर करती है. ब्रांड्स से लोग पर्सनल कनेक्शन बना लेते हैं. जब कंपनी उस हिसाब से सर्विस नहीं देती है. तो फिर कंज्यूमर को काफी बुरा लगता है.

कई बार उसी गुस्से का सामना भी कम्पनियों को करना पड़ता है. ऐसा ही कुछ ऊपर बताई गई नॉवेल के साथ भी हुआ था. जब फैन्स को पता चला कि उनके हीरो के साथ खिलवाड़ किया गया है. तो फिर उन्हें गुस्सा आ गया और इसका खामियाज़ा लेखक को भुगतना पड़ा था. इसलिए बिजनेस ऑनर होने के नाते आपको समझना चाहिए कि लोग ब्रांड्स के साथ इमोशनल तौर पर कनेक्ट हो जाते हैं. एक तौर तरीके से ब्रांड्स लोगों के गुस्से को ट्रिगर कर सकते हैं. कई बार बहुत ज्यादा यूज़ किए जाने वाले प्रोडक्ट्स के साथ वो काफी खिलवाड़ भी करने लगते हैं. ज्यादा छेड़खानी से भी चीज़ें खराब हो जाती हैं. यूके में साल 2018 की बात है, कई रेल कम्पनियां टाइम टेबल को बार-बार बदलने लगीं थीं. इसकी वजह से सर्विस में देरी होने लगी थी.

इसकी काफी ज्यादा नाराज़गी लोगों के अंदर देखने को मिली थी. लोगों ने अपने गुस्से को सोशल मीडिया की मदद से भी बाहर निकाला था. गुस्सा इतना ज्यादा था कि एक हफ्ते के अंदर ही ये खबर नेशनल हेड लाइन बन चुकी थी.

सोशल मीडिया ने कंज्यूमर को एक प्लेटफॉर्म दे दिया है, जिसकी मदद से वो ब्रांड्स की ब्रांड वैल्यू भी कम कर सकते हैं

कुछ साल पहले की बात है, लेखक को भी बुरे ऑनलाइन अनुभव से गुज़रना पड़ा था.

क्रिसमस का समय था, उन्होंने एक ब्रांड के लिए ऑनलाइन एड पोस्ट लिखा था. उस एड फीचर में एक डॉग था. जिसे बर्फ बारी के बीच में दिखाया गया था.

इस एड के ऊपर एक एनिमल कैम्पेंनर को गुस्सा आ गया. उसने रिटेलर को एनिमल को कम समझने के लिए लताड़ लगानी शुरू कर दी थी. उन लोगों में से कई लोगों ने पोस्ट को कई सोशल मीडिया पर भी शेयर कर दिया था. उन लोगों ने उस कैम्पेन को काफी बड़ा बना दिया था. लोगों का गुस्सा काफी तेजी से पोस्ट पर फूट रहा था.

उस गुस्से की वजह से रिटेलर को उस एड को फिर से शूट करना पड़ गया था. लेकिन कैम्पेन करने वाले लोग वहीँ शांत नहीं हुए थे. उसके बाद वो हर किसी को अटैक करते थे. जो भी उस एड को सपोर्ट करता था. इसी में ऑथर भी फंस गईं थीं. ऑथर को बुरी तरह से ट्रोल किया गया था.

ऑनलाइन उन्हें काफी गंदी भाषा का सामना करना पड़ा था. उन लोगों ने उनका पर्सनल नंबर और आईडी अलग-अलग ग्रुप में डाल दिए थे. जिसके बाद से ऑथर के पास काफी गलत गलत मैसेज भी आया करते थे.

ऑथर समझाना चाहती हैं कि डिजिटल एज में सब कुछ बदल चुका है. आज के समय में लोगों के पास पॉवर है कि वो मोबाइल के दम पर ब्रांड की वैल्यू को घटा सकते हैं. कई लोग तो इसे एक मिशन के तौर पर भी ले लेते हैं.

इसलिए अगर आप बिजनेस में उतर रहे हैं तो समझदारी ही वो पहनावा है. जिसे आपको पहनकर रखना चाहिए.

सोशल मीडिया ने कंज्यूमर के लिए आसान बना दिया है कि वो अपना गुस्सा आसानी से निकाल सकते हैं. आज के समय में लोग ब्रांड्स के ऊपर अपना फर्स्टटेशन भी निकालते हैं. वो अपने गुस्से को सोशल मीडिया की मदद से बाहर निकालते हैं. इसलिए ब्रांड होने के नाते ये आपकी ज़िम्मेदारी बनती है कि आप अपने कस्टमर का ख्याल रखें.

ब्रांड्स की छोटी सी गलती उन्हें काफी भारी पड़ सकती है. किसी एक की नाराज़गी भी उन्हें पब्लिक के सामने खड़ा कर सकती है. इसलिए लेखिका कहती हैं कि आपको काफी सावधानी के साथ अपने कस्टमर के साथ डील करना चाहिए.

आपकी छोटी से छोटी गलती, आपके इमेज को हमेशा के लिए खत्म कर सकती है. लेखिका कहती हैं कि आज के दौर में ब्रांड्स के हर एक मूव के लिए उन्हें जज किया जाता है. भले ही आपको अच्छे के लिए या फिर बुरे के लिए, लेकिन आपको ब्रांड होने के नात जज ज़रूर किया जाता है. आपको इस किताब की शुरुआत में बताए गए ऐश्ले के बिहेवियर को नहीं भूलना चाहिए. इसलिए कस्टमर को को बनाए रखना भी आपका ही काम है.

कोई भी बिजनेस परफेक्ट नहीं होता है. कठिन दौर और खराब समय कभी भी किसी भी बिजनेस में आ सकता है. लेकिन उस समय के लिए आपको तैयार रहना ज़रूरी है.

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क्राइसिस कम्युनिकेशन का पहला स्टेप क्या होता है ? प्लानिंग के खेल को समझिए

सबसे पहले आप ये सोचिए कि आप ‘क्राइसिस’ को लेकर क्या सोचते हैं? आपके लिए क्राइसिस के क्या मायने हैं?

ये एक ऐसा सवाल है इसे हर आर्गेनाईजेशन को खुद से पूछना ही चाहिए. ये सिम्पल है लेकिन क्राइसिस प्लान बनाने से पहले आपको क्राइसिस के बारे में पता होना बहुत ज़रूरी है.

Jonathan Hemus के अनुसार जिस सिचुएशन में कोर बिजनेस ना चल पाए उसी को बिजनेस के लिए क्राइसिस कहा जाता है.

साल 2018 में यूके में के. ऍफ़.सी की सेल इतनी बढ़ गई थी कि उनके पास सप्लाई के लिए चिकन ही नहीं बचा था. कई लोगों को लगेगा कि ये क्राइसिस नहीं है. लेकिन ये क्राइसिस ही है. जब आपके कस्टमर बिना प्रोडक्ट के वापस लौट जाएँ तो वो बिजनेस के लिए क्राइसिस ही है.

अब दूसरा सवाल आता है कि अगर आपकी कंपनी क्राइसिस में है. तो फिर आप उससे उभरने का काम कैसे करेंगे?

इसके लिए आपको समझना होगा कि हर कंपनी के लिए क्राइसिस का अलग-अलग मतलब होता है. इसलिए इसके समाधान के लिए भी सबको अलग-अलग रणनीति बनानी होगी.

अब से अगली बार जब भी आपको ऐसा लगे कि आप किसी दिक्कत में हैं. तो सबसे पहले 10 मिनट अकेले बैठकर सोचियेगा. तब आपको पता चलेगा कि ये क्राइसिस कितनी खतरनाक है? या फिर ये नार्मल सिचुएशन ही है.

क्राइसिस के समय सर्वाइवल के लिए आपके पास अच्छा प्लान होना ज़रूरी है। अगर आज के समय को डिजिटल युग कहा जाए तो गलत नहीं होगा. यही वजह है कि आज के दौर में कम्पनियां डिजिटल

खतरे को नज़र अंदाज़ नहीं कर सकती हैं. 2017 में यूके के नेशनल हेल्थ सर्विस को इस दिक्कत से दो-दो हाँथ करने पड़े थे. उनके सर्वर जिसे देश के बड़े-बड़े अस्पताल यूज करते थे. उसे हैकर्स ने हैक कर लिया था.

इसके बाद उसे रीस्टोर करने के लिए बड़े पैसों की डिमांड की गई थी. इससे आर्गेनाईजेशन को काफी नुकसान हुआ था.

नेशनल ऑडिट की रिपोर्ट के अनुसार अगर आर्गेनाईजेशन के पास पहले से पुख्ता प्लान होता, तो इस समस्या को पहले ही खत्म किया जा सकता था.

रिपोर्ट में बताया गया था कि इनके पास साइबर अटैक से सामना करने के लिए सही सॉफ्टवेयर भी नहीं थे.

ये एक प्राइम एग्जाम्पल है कि हम क्राइसिस का सामना करने के लिए कभी तैयार ही नहीं रहते हैं.

ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल होता है कि कब और कहाँ क्राइसिस आएगी? लेकिन हमें दिमागी तौर पर हर खराब सिचुएशन के लिए तैयार रहना चाहिए.

क्राइसिस का सामना करने के लिए पहला स्टेप है कि आपके पास क्राइसिस टीम होनी चाहिए. ये टीम आपको अपने बिजनेस के डिपार्टमेंट से ही बनानी है. इस टीम में हर एक डिपार्टमेंट के लोग शामिल होने चाहिए. उन्हें पता होना चाहिए कि किसी भी तरह की दिक्कत आने में कैसे रियेक्ट करना है?

दूसरा स्टेप है कि अपनी टीम के साथ हर सिनेरियो के ऊपर डिस्कशन करिए. टीम को पता होना चाहिए कि बुरे से बुरे दौर में क्या-क्या किया जा सकता है?

इसी के साथ ही साथ कोशिश करिए कि आपकी टीम की मेंटल हेल्थ दुरुस्त होनी चाहिए. खराब सिचुएशन आने पर इसी मेंटल हेल्थ की सबसे ज्यादा ज़रूरत लगती है.

किसी भी सिचुएशन को देखने के लिए खुद के अंदर एक नज़रिए को पैदा करने की कोशिश करिए. आपको पता होना चाहिए कि क्राइसिस के समय आपको एक लीडर की तरह उभर कर आना है. इसलिए टीम के साथ प्रॉपर कम्युनिकेशन बनाकर रखिए.

आपकी टीम ही आपकी कंपनी को क्राइसिस के टाइम से बाहर लेकर आएगी.

संकट की स्थिति में, ब्रांडों को जल्दी और सटीक प्रतिक्रिया देने की आवश्यकता होती है

Communicate in a Crisis Book Summary in Hindi- मई का महीना था और साल था 2017, यही वो समय था जब ब्रिटिश एयरवेज़ को क्राइसिस का सामना करना पड़ा था. कई हज़ार परिवार हॉलिडे मनाने के लिए सफ़र करने वाले थे. तभी उनका कंप्यूटर सिस्टम क्रैश हो गया था. इसका रिज़ल्ट क्या हुआ था? हज़ारों फ्लाइट कैंसल हो गईं थीं. बहुत परिवारों का प्लान भी बर्बाद हो चुका था. कई पैसेंजर ने लिखित जवाब भी माँगा था. जिसके जवाब में एयरलाइन ने खेद जताते हुए कहा था कि “यूके डेटा सेंटर में लॉस ऑफ़ पॉवर के कारण ये दिक्कत आई थी. कंपनी इसकी इन्वेस्टीगेशन करेगी.”

इसके जवाब में एनर्जी कंपनी ने भी कह दिया था कि उनकी तरफ से कोई दिक्कत नहीं हुई है. फिर सवाल उठ रहा था कि आखिर दिक्कत कहाँ हुई थी? इस संकट में ब्रिटिश एयरवेज ने दो बड़ी गलतियां कीं थीं. शुरुआत में जल्दबाजी की और एयरलाइन ने सच्चाई से समझौता किया: वे बस घबरा गए और स्थानीय शक्ति को बलि का बकरा बना दिया था.

दूसरी गलती उन्होंने ये कि उन्होंने ग्राहक के साथ कम्यूनिकेट नहीं किया. उन्होंने ग्राहक को सच्चाई से रूबरू नहीं करवाया था. इसका रिजल्ट ये हुआ कि लोगों का गुस्सा मीडिया तक पहुँच चुका था. जिसके पास एयरलाइन की काफी आलोचना भी हो रही थी. शुरू के चैप्टर्स में आप पढ़ चुके हैं कि लोग अपना गुस्सा सोशल मीडिया तक लेकर जाते हैं. जिससे ब्रांड वैल्यू में नेगेटिव असर पड़ता है. यही एयरलाइन के साथ भी हो रहा था.

इसलिए क्राइसिस मैनेजमेंट के लिए बहुत ज़रूरी हो जाता है कि आप कस्टमर से कम्यूनिकेट करते रहें. उन्हें रेगुलर अपडेट देते रहें, कभी भी कस्टमर को आपके पास अपडेट लेने के लिए आना ना पड़े. आपकी कोशिश रहनी चाहिए कि कस्टमर की सोच से दो कदम आगे चल सकें. इसी को सर्विस कहा जाता है.

इसी सर्विस के दम पर आप ब्रांड बनते हैं. लेकिन ज़रूरी है कि उस ब्रांड को मेंटेन करते हुए चल सकें.

फैक्ट्स के साथ कम्युनिकेशन करने से ट्रस्ट बिल्ड होता है

Communicate in a Crisis Book Summary in Hindi- साल 2018 में ऑथर ने कम्युनिकेशन डायरेक्टर्स की मीटिंग अटेंड की थी. जहाँ उन्हें वरिष्ठ जर्नलिस्ट और ऑथर Kate Adie को सुनने का मौका मिला था. उस मीटिंगे में जर्नलिस्ट ने बताया कि कैसे न्यूज़ का माहौल भी पूरी तरह से बदल चुका है. सोशल मीडिया के आने के बाद से फेक न्यूज़ में भी इज़ाफा हो चुका है. आज के दौर में सोशल मीडिया से डील करना बहुत ज़रूरी हो चुका है. आपको फैक्ट्स के साथ कम्यूनिकेट करना आना ही चाहिए. जिस तरह एक जर्नलिस्ट फैक्ट्स के ऊपर काम करता है. उसी तरह हर कम्यूनिकेटर को भी फैक्ट्स के साथ चलना चाहिए. बिजनेस ऑनर होने के नाते कस्टमर के साथ फैक्ट्स के साथ कम्यूनिकेट करिए. इससे आपकी ब्रांड वैल्यू में इज़ाफा होगा. यही क्वालिटी आपको क्राइसिस मैनेजमेंट के समय भी काम में आएगी.

उन्होंने कहा था कि ब्रांड्स के लिए जर्नलिस्म के 4 प्रिंसिपल को समझना भी बहुत ज़रूरी है. वो प्रिंसिपल ये हैं कि “फाइंड द फैक्ट्स, वेरीफाई द फैक्ट्स, रिपोर्ट द फैक्ट्स, इसके बाद कम्यूनिकेट इन फैक्ट्स. ”

जिन ब्रांड्स ने इन प्रिंसिपल को समझ लिया, वो आज के दौर में बहुत ज्यादा तरक्की करने वाले हैं. आने वाला दौर और भी तेज होगा, इसलिए आपको बस सच्चाई के साथ अपने बिजनेस को करनी की ज़रूरत है. इसी के साथ बहुत ज़रूरी है कि आपको सोशल मीडिया का ज्ञान होना ही चाहिए. इस बात में भी कोई बुराई नहीं है कि आप अपने बिजनेस को सोशल मीडिया पर ही बढ़ावा दें. याद रखिएगा कि बिजनेस को बेहतर करने के लिए कस्टमर के अंदर ब्रांड के प्रति ट्रस्ट होना बहुत ज़रूरी है. ये ट्रस्ट तभी आएगा जब आप उन्हें पूरी ईमानदारी के साथ अपडेट रखेंगे.

किसी भी क्राइसिस का सामना लीडर्स की तरह करिए, खुद के अंदर लीडरशिप क्वालिटी को पैदा करिए। जब Winston Churchill 1940 में ग्रेट ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने थे. तो फिर उन्होंने हाउस ऑफ़ कॉमन में एक भाषण दिया था. उस भाषण में उन्होंने बताया था कि कैसे लोग एक साथ आकर वर्ल्ड वॉर सेकंड को जीत सकते हैं.

उस भाषण में उन्होंने साथ आने के इंटेंशन पर जोड़ दिया था.

प्रधानमंत्री होने के नाते उन्होंने जनता के सामने अपने लक्ष्य को साफ़ तौर पर रखा था. उन्होंने बताया था कि उनकी राष्ट्र से क्या उम्मीदें हैं? इसी के साथ ही साथ उन्होंने रोड मैप भी प्रोवाइड किया था कि हम अपने लक्ष्य तक कैसे पहुँच सकते हैं? इसी को क्राइसिस एक्सपर्ट सेटिंग द क्राइसिस मैनेजमेंट कहते हैं.

ये एक ऐसी चीज़ है जिसे सभी बिजनेस लीडर्स को सीखना बहुत ज़रूरी है.

एक बिजनेस लीडर स्ट्रेटजी कैसे बना सकता है? इसके लिए सबसे ज़रूरी है कि उसे आने वाले 6 महीनों की पिक्चर नज़र आनी चाहिए. उसके दिमाग में क्लियर होना चाहिए कि आने वाले समय में उसे क्या करना है? उसकी टीम से क्या उम्मीदें हैं ये भी उसे पता होनी चाहिए?

उसका विजन क्लियर होना चाहिए, क्लियर विज़न के साथ ही आप क्राइसिस में स्टेबल रह सकते हैं.

बिजनेस लीडर होने के नाते अपना गोल सेट करिए, उस पर फोकस करने के लिए उसे सिम्पल सेंटेंस में लिखकर रखिए. इससे आपको पता चलता रहेगा कि आपको किस गोल के पीछे भागना है?

क्लियर गोल ही आपको क्राइसिस में भी मदद करेगा.

उदाहरण के लिए आप एक रेस्तरां ऑनर हैं. आपके इलाके में फ्लड की दिक्कत है. ये आपके लिए एक क्राइसिस ही है. अब आपके पास रोड मैप होना चाहिए कि अगली बार ऐसी दिक्कत आने से पहले आपको क्या करना है?

इसी के साथ आपको ये भी पता होना चाहिए कि आपकी टारगेट ऑडियंस कौन हैं? आपके हर फैसले का असर आपके कस्टमर को पड़ने वाला है. जिसका असर आपके बिजनेस पर भी देखने को मिलेगा. इसलिए बहुत ज़रूरी हो जाता है कि आपके पास क्लियर गोल होना चाहिए.

किसी भी डाउट के साथ कभी भी बिजनेस नहीं किया जा सकता है. इसलिए खुद को एक लीडर की तरह बनाने की कोशिश करिए.

आपको पता होना चाहिए की “लीडर बस पैदा नहीं होते हैं, उन्हें बनाया भी जा सकता है”. इसलिए उन क्वालिटी को खुद के अंदर लाने की कोशिश करिए.

लीडर्स के विज़न और गोल के साथ एक क्वालिटी और भी आपके अंदर होनी ही चाहिए. वो है सहानुभूति की, आपके अंदर दया भाव भी होना चाहिए. आपको पता होना चाहिए कि कर्मचारी और कस्टमर के साथ कैसे बिहेव किया जाता है?

कई बार ऐसा देखा गया है कि किसी को ब्रांड बस उसका व्यवहार ही बना देता है. इसलिए ब्रांड बनना है तो अपनी पर्सनालिटी में दया भाव को एड ऑन करने की कोशिश करिए. इससे आपका आगे का सफर आसान हो जाएगा.

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कुल मिलाकर

हर क्राइसिस के बारे में पहले से पता होना मुश्किल है. लेकिन आप पहले से हर तरह की क्राइसिस के लिए तैयार ज़रूर हो सकते हैं. इसलिए अपने दिमाग को तैयार करने की कोशिश करिए. आपको पता होना चाहिए कि बुरे समय में कैसे बर्ताव करना है?

क्या करें?

सोचिए, समझिए और तैयारी करिए, फिर उस दिशा में काम करने के लिए आगे बढ़ने की शुरुआत कर दीजिए. क्राइसिस मैनेजमेंट के बारे में ज्यादा से ज्यादा पढ़ने और समझने की कोशिश करिए. एक बेहतरीन टीम बनाइए, इससे आपके बिजनेस को ही मदद मिलेगी.

 

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