An Audience of One Book Summary in Hindi

An Audience of One

अगर आप एक सैटिसफायिंग क्रिएटिव लाइफ चाहते हैं तो अपने अन्दर की आवाज़ को सुनें दूसरों के वेलिडेशन का इंतज़ार ना करें.

ना जाने कबसे आपके मन में एक किताब लिखने की ख्वाइश थी, या आप अपनी इमेजिनेशन को कैनवास पर उतारना चाहते थे या शयद आप सिंगर बनना चाहते थे या आपका मन गिटार सीखने का था. पर ऐसा क्या है, आपके अन्दर जो अभी तक आपको रोकता आया है?

शायद वो आवाज़ जो आपको कहती रहती है कि इन सबमें कुछ नही रखा इनसे घर नहीं चलता, पैसे नहीं आते. हो सकता है आपके दोस्त भी आपका मज़ाक उड़ा कर आपकी क्रिएटिव इमेजिनेशन को वेस्ट ऑफ़ टाइम कहते हों. और कहे भी क्यूँ न आखिरकार इससे करियर जो नहीं बनाया जा सकता.

लेकिन बेस्टसेलर लेखक और पॉडकास्ट गुरु श्रीनिवास राव का कहना है कि आपका दोस्त या कोई और क्या कहता है आपको उसकी परवाह करने की कोई जरुरत नहीं. अगर आप क्रिएटिव हैं तो वो अपने आप में एक रिवॉर्ड है. किसी और रिवॉर्ड की चाह रखकर काम ना करें.

इस किताब के जरिये लेखक एक बहुत ही मजेदार ट्विस्ट लेकर आये हैं कि जैसे ही आप दूसरों को खुश करने के लिए नहीं बल्कि खुद के सैटिसफैक्शन लिए क्रिएटिविटी करते हैं तो कुछ ऐसा निकल कर आता है जो आपको कामयाबी तक ले जाता है. यानी जब आप खुद अपने ऑडियंस बनेंगे यानी ‘ऑडियंस ऑफ़ वन’ पर फोकस करेंगे तो आपको ‘ऑडियंस ऑफ़ मेनी’ खुद-ब-खुद मिल जाएगी.

क्या जब भी आप कुछ क्रिएटिव बनाने चाहते है, तो आप डबल माइंडेड हो जाते हैं? क्या आपके लिए ये तय कर पाना मुश्किल है कि अपने इनर क्रिएटिव वौइस् की सुनें या फिर कुछ ऐसा बनाएं जो ट्रेंड में है और सबको पसंद आए?

जैसे ही आप अपने आने वाले प्रोजेक्ट जैसे आपकी नयी किताब या पेंटिंग के बारे में किसी से बात करते हैं तो वो आपको अपनी क्रिएशन को ऑडियंस फ्रेंडली बनाने की सलाह देने लगता है.

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इस बात पर लेखक का कहना है कि अगर आप दूसरों को खुश करने के हिसाब से कुछ क्रिएट करेंगे तो इस बात के पुरे चांसेस हैं कि आपके हाथ दुःख और निराशा लगे.

अगर आप फाइनेंसियल रिवार्ड्स, ऑडियंस की तालियाँ या क्रिएटिव रिवार्ड्स पाने के लिए काम करते हैं तो आपकी हालत ख़राब होने वाली है क्यूंकि ये सभी एक्सट्रिन्सिक मोटिवेटर है. यानी वो बाहरी फैक्टर्स जिनपर आपका कोई कंट्रोल नहीं है. अगर आपके काम का रिजल्ट आपके ऊपर डिपेंड ना करके इस बात पर डिपेंड करता है कि कितने लोग इसे मास्टरपीस समझते हैं और कितने नहीं तो आप खुद को एक मुसीबत में डाल रहे हैं जहाँ आपको केवल डिसअपॉइंटमेंट ही हाथ लगेगी.

अगर आप अपने ट्र विज़न से कोम्प्रोमाईज़ कर के दूसरों की एडवाइस पर अपने काम को ऑडियंस अपीलिंग बनाने की कोशिश करेंगे तो आपको पछतावा हो सकता है खासतौर पर जब उसका रिजल्ट वैसा न मिले जैसा आपने एक्स्पेक्ट किया था.

एक विज़न रखना और उसे रियलिटी में बदलने की कोशिश करना ही अपने आप में क्रिएटिविटी का सबसे बड़ा रिवॉर्ड है. अगर आप अपने विज़न को हकीकत का रूप देने में कामयाब हो गए तो ये पूरी प्रोसेस ही आपको काफी सैटिसफैशन और ख़ुशी देगी. और इसकी सबसे अच्छी बात ये है कि ये प्रोसेस पूरी तरह केवल आपके कंट्रोल में है.

डेविड बॉवी हमेशा से कहते आये हैं कि कभी भी दूसरों को ध्यान में रख कर काम नहीं करना चाहिए बल्कि ये सोच कर करना चाहिए कि, हम क्यूँ कुछ क्रिएट करना चाहते है और हमारा विज़न क्या है. उन्होंने कभी भी फेमस होने के लिए काम नहीं किया बल्कि इसलिए किया ताकि वो खुद को बेहतर ढंग से समझ सकें और कुछ ऐसा कर सकें जो क्रिएटिविटी को बनाये रखने के लिए जरुरी है.

आप जरा डाफट पंक के बारे में सोचिये. इस डांसिंग जोड़ी को फेमस होने में बिलकुल इंटरेस्ट नहीं था इसलिए वो अक्सर अपनी पहचान कौस्ट्युम के पीछे छुपा लिया करते थे. उनके लिए पैसा भी कुछ खास मायने नहीं रखता था. शायद इसलिए दोनों में 2006 में मिले अपने चेक को शो के लिए ही खर्च कर दिया ताकि वो अब तक का सबसे अच्छा शो बन सके.

असल में, एक रियल रिवॉर्ड यही है कि आप कुछ ऐसा क्रिएट करें जो आपको आगे भी क्रिएट करने के लिए मोटीवेट करता रहे.

इस ग़लतफहमी को मिटा दें कि आपको किसी को कुछ कर के दिखाना है, जो क्रिएट करें वो अपने लिए करें.

अगर आप कुछ क्रिएटिव करना चाहते है तो आपको अपनी क्रिएटिविटी को पैसे में बदलने का प्रेशर भी झेलना पड़ेगा. सच तो ये है कि अगर आप पैसों को ध्यान में रखकर कुछ बनाते है तो ना केवल आपको डिससैटिसफैशन मिलती है बल्कि आपके फेलियर के चांसेस भी बढ़ जाते हैं क्यूंकि आपको अपना पर्सनल विज़न दिखना बंद हो जाता है जो कि आपकी क्रिएटिविटी के लिए बिलकुल भी अच्छा नहीं है. वहीं दूसरी ओर अगर आप ऑडियंस ऑफ़ वन यानी अपने आप को ध्यान में रख कर कुछ बनायेंगे तो ना केवल आप सैटिसफाइड महसूस करेंगे बल्कि धीरे-धीरे आपसे काफी सारे लोग जुड़ते जायेंगे.

अब आप सोच रहे होंगे कि ये दोनों बातें तो एक दुसरे से बिलकुल अलग है, हाँ है, लेकिन ये बात जितनी पैराडॉक्स है उतनी ही सच भी सबसे पहले आपका ये समझना बहुत जरुरी है कि ‘आपने कर दिखाया’ ये एक मिथ है. अगर आप ये सोच रहे है कि एक बार कामयाबी पाकर आप आराम कर सकते हैं तो ये आपकी ग़लतफहमी है. आजकल नेम और फेम बस कुछ ही दिनों का होता है, आज कुछ ट्रेंड कर रहा है तो कल कुछ और करेगा. इसलिए ‘आपने कर दिखाया’ ये जरुरी नहीं, आप कुछ न कुछ करते रहें ये जरुरी है.

याद रखिये कि असली रिवॉर्ड प्रोसेस में ही छुपा है, और केवल एक ही ऑडियंस है जिसके बारे में आपको सोचना है वो है आप खुद.

जब आप ऑडियंस ऑफ़ वन के लिए काम करते हैं तो आपको उसके कई फायेदे मिल सकते है. सबसे पहला कि आप अपने अन्दर की क्रिएटिव वौइस् को सुन सकते हैं, और ज्यादा से ज्यादा पावरफुल बना सकते है और ऐसा करने से खुद ब खुद आपके काम को पसंद करने वालों का नंबर बढ़ता चला जायेगा.

अपने अन्दर की आवाज़ को सुन कर, समझ कर उसे रियलिटी में बदलने में थोडा टाइम तो लगता है. इसके लिए आपको काफी एक्सपेरीमेंटेशन भी करना पड़ता है कुछ ट्रायल एंड एरर प्रोसेस से भी गुज़ारना पड़ता है. आपको सीखना है और बढ़ना है और इस सफ़र में आपको ये भी देखते हुए चलना है कि कहाँ-कहाँ कमी रह गयी है जहाँ इम्प्रूवमेंट की गुंजाइश है.

हो सकता है आज आप उतनी अच्छी पेंटिंग नहीं बना पाते हैं लेकिन आपके अन्दर पेंटिंग करने की चाह है. ऐसे में अगर आप चाहेंगे कि आपकी पहली ही पेंटिंग बड़ी ऑडियंस के सामने आ जाये तो आपको भारी क्रिटिसिज्म झेलना पड़ सकता है. ऐसा ना हो कि इस क्रिटिसिज्म से निराश होकर आप अपने ब्रशों और रंगों को ही फेंक दें. इसलिए धीरे-धीरे कोशिश करते रहें. अगर अपने अन्दर की आवाज़ को सुनते रहेंगे तो वक्त के साथ आप एक बेहतरीन पेंटर जरुर बनेंगे.

खुद के लिए क्रिएट करना शुरू करें, तो क्या हुआ अगर आप फेल हो गए. तब तक फेल होते रहे जब तक आपके अन्दर की क्रिएटिव वौइस् इतनी स्ट्रोंग ना बन जाये कि उसे रियलिटी का रूप देने में आपको कोई परेशानी ना हो. ये एक बहुत ही अच्छी और फ्रीडम से भरी फीलिंग है जहाँ आपको ऑडियंस का प्रेशर नहीं झेलना पड़ता.

आगे आने वाले अध्यायों में हम जानेंगे कि कैसे हम अपने अन्दर की वौइस् को पहचान कर उसे मजबूत बना सकते है.

अगर सच में आप चाहते हैं कि आप कुछ बेहतरीन कर सकें तो खुद पर भरोसा रखें, प्रेजेंट मोमेंट में जीना सीखें और सोलीट्युड की प्रैक्टिस करें. अपने क्रिएटिव साइड को पहचान कर उसे मजबूत करने के तीन तरीके है. पहला है अपने अन्दर की आवाज़ को सुनना, दूसरा है नेचर और एनवायरनमेंट की आवाज़ को सुनना और फिर कहीं जाके तीसरे नंबर पर लोगों को सुनना.

अपने अन्दर चल रही आवाजों को सुनने और समझने के बहुत से तरीके हैं लेकिन सबसे पहले जरुरी है कि आप खुद पर और उस आवाज़ पर विश्वास करें. यानी आप जो हैं, जैसे हैं आपको अपनी वैल्यूज क्लियर होनी चाहिए और उसके लिए स्टैंड लेना आना चाहिए ऐसा ना हो कि आप अपनी ही बातों पर डगमगाते रहे. अगर आपके मन आपनी वैल्यूज को लेकर कोई डाउट है तो खुद से कुछ सवाल कर लें. आपको किस बात पर गुस्सा आता है? आपको किस बात से ख़ुशी मिलती है? आप क्या चाहते हैं कि जो लोग आपसे जुडें वो कैसा महसूस करें? आप चाहें तो इन सवालों के जवाब लिख कर अपना एक मैनिफेस्टो भी तैयार कर सकते हैं.

हर मोमेंट में पूरी तरह प्रेजेंट रहना भी अपनी वौइस् को सुनने और उसे डेवलप करने का अच्छा तरीका है. अगर आप मोमेंट में प्रेजेंट नहीं रहेंगे तो अपने अन्दर के क्रिएटिव इनफार्मेशन को मिस कर देंगे. हो सकता है जब आप कही और खोये हों तो आपके दिमाग में कुछ बेहतरीन क्रिएटिव बात आते-आते रह जाए और आप अपने अन्दर कि आवाज़ को नोटिस ही ना कर पाएं. कई लोगों की आदत होती है फ्यूचर के बारे में प्लान करते रहने की जबकि असली ख़ुशी तो आज और अभी है. इसलिए ये सोच आर जीयें कि जो है आज है अभी है अगर आप ऐसा कर पाते हैं तो आप अपने प्रेजेंट रिसोर्सेज से भी बहुत कुछ कर पाएंगे.

क्रिएटिव होने के लिए अपने दिमाग को जजमेंट फ्री रखना भी बहुत जरुरी है और साथ ही आपको सोलीट्युड का आनंद लेना भी आना चाहिए. दूसरों को ही नहीं अपने आप को भी बार-बार जज करना

और क्रिटीसाइज़ करना छोडें क्यूंकि आप क्रिटिसिज्म और क्रिएशन एक साथ नहीं कर सकते. इसलिए बार-बार जजमेंट करना छोडें और अपना फोकस अपने विज़न को रियलिटी में बदलने के प्रोसेस पर । रखें. अगर आप सच में अपने अन्दर की आवाज़ को सुनना चाहते हैं तो सोलीट्यूड को गले लगायें. इस दौरा आप केवल ‘थिंकिंग विथाउट जजमेंट’ की प्रोसेस अपनाएं यानी आपको बिना जज किए बस सोचना है. हालाँकि, जस्ट थिंकिंग इतनी आसान भी नहीं है और वो भी तब जब आपके आस-पास डिस्ट्रैक्शन की कोई कमी नहीं है. इसलिए शायद सोलीट्युड को बनाएं रखने के लिए आपको थोड़ी मेहनत करनी पड़े जैसे मैडिटेशन. लेखक अपने इनर क्रिएटिव वौइस् को सुनने के लिए नॉइज़-कैंसिलिंग हैडफ़ोन का इस्तेमाल करते थे.

अपने अन्दर के क्रिएटिव वौइस् को सुनने के लिए अपने शरीर का ध्यान रखना भी बहुत जरुरी है.

आपने सुना ही होगा कि एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ दिमाग रहता है इसलिए अपने अन्दर क्रिएटिविटी को बनाये रखने के लिए समयसमय पर अपने शरीर की आवाज़ सुनना भी बहुत जरुरी होता है. यानी अगर आप अपनी प्रोडक्टिविटी बढ़ाना चाहते हैं तो आपको अपनी ओवरआल हेल्थ और वेल बीइंग का ख्याल भी रखना होगा.

अपनी हेल्थ और प्रोडक्टिविटी को बढाने का एक जरुरी पहलु है अच्छी नींद लेना. अच्छी नींद में अच्छे सपनें आयेंगे और कई लोगों के लिए ये सपने बहुत काम के होते है. इन्हीं सपनों के धागे सुलझाते हुए उन्हें अपने मास्टरपीस का सिरा मिला जाता है. अगर आपको अपने सपनों को समझने में थोड़ी परेशानी हो रही है तो आप उसे लिख भी सकते हैं धीरे-धीरे आपको अपने सपने साफ़-साफ़ समझ आने लगेंगे.

एक और पॉपुलर ट्रिक जो बहुत से क्रिएटिव लोग अपनाते हैं वो है जब भी आप किसी सवाल पर अटक जायें तो सोने से पहले मन में वो सवाल दोहराएं. आप देखेंगे कि कई बार आपको सपनों के जरिये उन सवालों के जवाब मिल गए. अगर आपको सुबह अपने सपने याद ना भी रहे तो भी कुछ देर अकेले बैठ कर अपने थॉट्स को लिखना शुरू करें और उस सवाल का जवाब आपको मिल जायेगा.

क्रिएटिव होने के लिए आपके माइंड में कोगनिटिव पॉवर का होना जरुरी है और ये साइंटिफिकली साबित हो चुका है कि फ़ास्ट फूड और ट्रांस फट से भरी चीज़ों को खाने से कोगनिटिव पॉवर कम होती है. जबकि हेल्थी फूड्स खासकर ओमेगा-3 फैटी एसिड्स और विटामिन बी से भरी चीज़ों से ये पॉवर बढती है.

इसका ये मतलब बिलकुल नहीं कि हर किसी के लिए एक पर्टिकुलर डाइट प्लान काम करेगा. इसलिए किसी और की सुनने से अच्छा है आप अपनी बॉडी की सुनें. एक-दो हफ्ते तक रोज़ अपना डाइट और अपनी प्रोडक्टिविटी के नोट्स बनाएं. फिर आखरी में देखें जिस दिन आपको सब आसानी से क्लिक हो रहा था उस दिन आपने क्या खाया था उसी के हिसाब से अपना डाइट प्लान करें.

और लास्ट बट नॉट लीस्ट एक्सरसाइज. साइंस ये बात साबित कर चुका है कि एक्सरसाइज करने से हमारे बॉडी सेल में माईटोकॉनड्रीया बढ़ते हैं और यही माईटोकॉनड्रीया हमारे माशपेशियों और दिमाग को एनर्जी देते हैं. जितना ज्यादा माईटोकॉनड्रीया उतनी एनर्जी. साथ ही ब्रेन सेल का नंबर बढाने के लिए हार्ट रेट को बढाने से बेहतर कोई तरीका नहीं इसलिए आलस छोडिये और जरा एक्सरसाइज कर के हार्ट रेट बढाइये ताकि आपकी बॉडी भी क्रिएटिविटी को सपोर्ट करे. साथ ही साथ एक्सरसाइज सोलीट्युड भीक्रिएट करता है जिसमें आप कुछ डीप और मीनिंगफुल सोच सकते हैं.

अपने काम को बेहतर तरीके से करने के लिए आपके एनवायरनमेंट का भी वर्क फ्रेंडली होना जरुरी है. अपने आप की सुनने के बाद अब बारी है अपने एनवायरनमेंट की सुनने की. आपका वर्क प्लेस ऐसा होना चाहिए जो आपको इंस्पायर करता रहे. इसका केवल ये मतलब नहीं है कि आप अपनी दीवालों पर इंस्पायरिंग कोट्स के बड़े-बड़े पोस्टर लगा लें. बल्कि आपके काम करने की जगह पर जहाँ तक आपकी नज़रें जाएँ वहाँ तक सुकून होना चाहिए. वहाँ की स्मेल और अरोमा भी सूथिंग होना चाहिए.

तो आईये आपके वर्क प्लेस को आपके क्रिएटिव हब में बदलना शुरू करते हैं.

शायद आपने मैरी कोंडो द्वारा लिखी ‘लाइफ़-चेंजिंग मैजिक ऑफ़ टाइडिंग अप’ को पढ़ा होगा. अगर ना भी पढ़ा हो तो इसका टाइटल ही अपने आप में सेल्फ-एक्सप्लेनेटरी है. अपने आस-पास के एनवायरनमेंट में चीज़ों को डीक्लटर कर के आप एक साफ़ सुथरे घर के साथ-साथ एक सॉर्टेड माइंड भी पा सकते हैं.

लेकिन आप डीक्लटर कैसे कर सकते हैं? आसान है बस खुद से कुछ सवाल पूछे कि क्या मुझे ये चीज़ पसंद है? क्या ये किसी भी तरह से मेरे काम आती है? अगर कोई चीज़ आपको पसंद नहीं ना ही आपके काम आती है तो ज्यादा विचार किये बिना उसे फेंक दें. कोई भी चीज़ अगर आपको फील गुड फैक्टर नहीं देती तो वो आपकी । क्रिएटिविटी को कम कर सकती है इसलिए उससे छुटकारा पाना ही बेहतर है.

एक कलाकार के लिए नेचुरल स्पेस से बेहतर कुछ नहीं है. जैसे अगर आप कुछ देर नेचर की गोद में सैर कर आयेंगे तो ना केवल आप सोलीट्युड का आनंद ले पाएंगे बल्कि आप अपनी डीप थिंकिंग को भी जगा सकते हैं. बहत सी स्टडीज ने ये साबित किया है कि मदर नेचर के साथ समय बिताने से स्ट्रेस हॉर्मोन कोर्टिसोल (cortisol) का लेवल 12 % तक कम हो जाता है. साथ ही साथ इस प्रोडक्टिविटी किल्लिंग मॉडर्न टेक्नोलॉजी से खुद को दूर करने के लिए भी हम नेचर का सहारा ले सकते हैं.

लेकिन अगर किसी पब्लिक प्लेस पर काम करना आपकी मजबूरी हो तो नॉइज़ कैंसिलिंग हेडफ़ोन आपका सहारा कर बन सकते हैं. कभी कभी हमें आवाज़ों से दूर रहना पड़ता है लेकिन कभी कुछ सूथिंग आवाजें हमारे ब्रेन की प्रोडक्टिविटी को बढ़ा सकती हैं. कुछ खास तरह के साउंड्स और म्यूजिक इस काम के लिए बने है. अगर आप लिख रहे है या पढ़ रहे हैं तब तो आपको किसी भी तरह के लिरिकल कम्पोजीशन से दूर रहना चाहिए लेकिन अगर आप पेंटिंग या स्कल्पचर जैसे काम कर रहे हैं तो लिरिकल सूथिंग म्यूजिक सच में आपके काम करने के एक्सपीरियंस को बढ़ा सकते हैं. जैसे लेखक कि एक सिरेमिक पॉटरी एक्सपर्ट फ्रेंड जब भी अपना काम करती थी वो फिल्लिप ग्लास का वहीँ सेम कम्पोजीशन सुना करती थीं.

मॉडर्न टेक्नोलॉजी के इस युग में इतनी सोशल मीडिया साइट्स हैं, फेसबुक से लेकर इंस्टाग्राम , यू ट्यूब सब हमारा ध्यान अपनी ओर खींचती हैं और हमारी प्रोडक्टिविटी को काफी हद तक नुक्सान पहुँचाती है. यही नहीं बार-बार ईमेल चेक करना भी अपने आप में एक डिस्ट्रैक्शन है. अगर आपका फ़ोन आपके साथ होता है तो आपका हाथ खुद ब खुद हर 5 मिनट में ईमेल चेक करने के लिए फ़ोन पर जाता है और आप फ्लो की स्टेज में नहीं पहुँच पाते. वो स्टेज जहाँ से काम करना अपने आप में एंजोयमेंट और सुकून से भरा लगने लगता है. आप इतना गहरे डूब जाते हैं कि कब आपने अपना मास्टर पीस तैयार कर लिया आपको एहसास भी नहीं होता. इसलिए किसी भी टाइप के डिस्ट्रैक्शन से खुद को दूर रखना बहुत जरुरी है. आईये अगले अध्याय में देखते हैं कि आप इन डिस्ट्रैक्शनों को कैसे एलिमिनेट कर सकते हैं.

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डिस्ट्रैक्शन और टॉक्सिक एलेमेंट्स को अपनी डेली लाइफ से दूर रखने के लिए एक्शन लेना बहुत जरुरी है.

हम सब अक्सर पढ़ते रहते हैं कि मॉडर्न टेक्नोलॉजी ने लाइफ में कितने डिस्ट्रैक्शन क्रिएट किये हैं, लेकिन हम में से कितने ही लोग हैं जो असल में अपने फ़ोन को फेंकने वाले है? आज के ज़माने में फ़ोन को बिलकुल छोड़ देना प्रैक्टिकली पॉसिबल नहीं है. अब ऐसे में हम क्या कर सकते हैं?

याद रखिये कि आप आपने डिवाइस को कंट्रोल करते हैं ना कि आपका डिवाइस आपको. इसलिए, आप अगर अपने फ़ोन को फेंक नहीं सकते तो उससे होने वाली डिस्ट्रैक्शन को 80% तक कम कर सकते हैं. सेटिंग में जाएँ और गैरजरूरी ऐप्स के नोटिफिकेशन को बंद कर दें जो बार-बार पॉप होकर आपका फ्लो बिगाड़ते हैं. उन पॉडकास्ट, ब्लोग और वेबसाइटों से खुद को अनसब्सक्राइब कर लें जो आपकी लाइफ में कोई बदलाव नहीं ला रहे ताकि आपका मेल बार बार टिंग-टिंग ना करे. आप चाहें तो इस काम के लिए Unroll.me जैसी वेबसाइट की मदद ले सकते हैं.

ये भी कमाल का आईडिया है कि जब भी आप कुछ सीरियस काम करना चाहते हैं जिसमें आपको अपना 100% देना है तो आप अपने फ़ोन को कुछ देर के लिए स्विच ऑफ कर सकते हैं या उसे साइलेंट कर के किसी और रूम में रख सकते हैं. आप अपनी डेली रूटीन में फ़ोन अनप्लग टाइम फिक्स कर सकते हैं जिस दौरान आप खुद को फ़ोन से दूर रख कर क्रिएटिविटी पर फोकस करें. आप चाहें तो ऐप्स फ़ोकस, रेस्क्यूटाइम और यहां तक कि फ़ेसबुक न्यूज़ फीड एराडीकेटर जैसे प्लग-इन का इस्तेमाल कर के अपना स्क्रीन टाइम कम कर सकते हैं.

लेकिन हमारी लाइफ में केवल टेक्नोलॉजी ही डिस्ट्रैक्शन का कारण नहीं है, बल्कि कई ऐसे रिश्ते और कई ऐसे लोग हैं जो हमारी लाइफ में रहकर नेगेटिविटी को बढ़ाते हैं. उनसे पीछा छुड़ाना या उसने दूर जाना इतना आसान तो नहीं पर जहाँ तक हो सके हमें उन लगों से दूर ही रहना चाहिए जो हमारी लाइफ की पाजिटिविटी को कम करते हैं.

अपने आस-पास के लोगों को, उनकी बातों को, इवेंट्स को ऐसे ट्रीट करें जैसे आप बॉडी के लिए खाने को ट्रीट करते हैं. बेकार के जंक को खुद से दूर ही रखें क्यूंकि ये आपको नेगेटिव और इनसिक्योर महसूस करवाते हैं.

डिस्ट्रैक्शन को खुद से दूर रखने के साथ-साथ आप अपने वर्क एनवायरनमेंट में कौन-कौन से टूल का इस्तेमाल करते हैं उसका भी ध्यान रखें.

आजकल बहुत से ऐसे टूल्स आ गए जो ना केवल आपका काम आसान बनाते हैं बल्कि आपका समय भी बचाते हैं. इन टूल्स का इस्तेमाल करते समय इस बात का ध्यान रखें कि आप केवल उनका ही इस्तेमाल करें जो आपके काम में मदद करें ना कि आपकी क्रिएटिविटी को कम कर दे. जैसे, अगर आप एक फोटोग्राफर हैं तो आप ऐसी एप्स का इस्तेमाल कर सकते हैं जो आपको अपनी फोटो को मनचाहा रूप देनीं में मदद करें उनका नहीं जिनमें प्री-सेट इमेजेज हों. हर चीज़ को आटोमेटिकली करने की कोशिश ना करें अपनी क्रिएटिविटी के घोड़ों को भी दौडाएं.

कुछ अच्छी आदतों को अपनी लाइफ का हिस्सा बनाकर आपनी क्रिएटिविटी को बढाएं. जैसे आपको बुरी आदतों को छोड़ना है वैसे ही अच्छी को अपनाना भी है जो आपकी प्रोडक्टिविटी को बढ़ा सके.

ऐसी ही एक आदत है ‘सर्टेनिटी एंकर’ (certainity anchor) यानी वो रोज़मर्रा की आदतें जिससे आपके ब्रेन को सिग्नल मिले कि काम का वक़्त हो गया और आप फोकस कर सकें. जैसे भले ही घर में कितना भी शोर हो अगर आपकी आदत है कि पहले आप अपनी कॉफ़ी बनाते हैं फिर कॉफ़ी मग और इयरफ़ोन के साथ काम शुरू करते हैं तो जैसे ही आप इयरफ़ोन लगाकर कॉफ़ी का सिप लेंगे वैसे ही आपके दिमाग को सिग्नल जायेगा कि लेट’स वर्क.

दूसरी अच्छी आदत है कि आप रोज़ मर्रा की लाइफ में डिसिशन मेकिंग की थकान को कम कर सकते हैं. एक स्टडी में पाया गया कि हम डेली लाइफ में लगभग 300 डिसिशन रोज़ लेते हैं. आप सोच सकते हैं कि इन डिसिशन को लेने में हमारी कितनी कोगनिटिव एनर्जी खर्च होती होगी. वो एनर्जी जिसे हम अपने क्रिएटिव वर्क के लिए बचा सकते हैं. इसलिए कल से आप एक आदत डालें कि सुबह उठते ही एक लिस्ट बनाएं उन डिसिशन की जो आपको दिन भर में लगभग रोज़ लेने होते है जैसे क्या खाना बनेगा, क्या पेहेनना है, कहाँ-कहाँ जाना है, घर में क्या-क्या काम है. इन सभी की लिस्ट बनाकर रोज़ इनके जवाब उठते ही लिख कर रख लें ताकि दिनभर डिसिशन मेकिंग में खुद को एग्जॉस्ट करने की जरुरत ना पड़े.

बहुत से क्रिएटिव लोग किसी यूनिफार्म की तरह रोज़ के लिए अपनी ड्रेस तय कर के रखते हैं ताकि डेली उनके सर कम से कम एक नॉनक्रिएटिव डिसिशन का बोझ तो कम हो. यहाँ यूनिफार्म का मतलब ये नहीं कि आपको अपनी अलमारी में एक ही तरह के 6-7 कपडे रखने हैं इसका मतलब बस इतना है कि जैसे स्कूल में डे वाइज ड्रेस डिसाइड होती है वैसे ही आपको अपनी डिसाइड ड्रेस रूटीन को रिलीजियसली फॉलो करना है. क्रिएटिव लीडर स्टीव जॉब्स भी यही किया करते थे. वो हर वीकेंड अपनी अलमारी में अगले एक हफ्ते के हिसाब से कपडे जमा दिया करते थे.

यही काम आप खाने के साथ और अपनी अपॉइंटमेंट्स के साथ भी कर सकते हैं.

अच्छी आदतों को लाइफ का हिस्सा बनाते समय ये याद रखना भी जरुरी है कि ये एक ग्रेजुअल प्रोसेस है आपको इसका आदि होने में टाइम लगेगा. खुद के लिए अनरीयलिस्टिक गोल्स ना सेट करें. जैसे आपका गोल अगर डेली 1000 वर्ड्स लिखने का है तो ये ना सोचें कि पहले ही दिन आप इसमें कामयाब हो जायेंगे. खुद को रूटीन में सेटल होने का समय दें वरना, आप निराशा से भर जायेंगे और अपना पेन और पेपर फेंक कर खुद को कोसने लगेंगे.

बेहतर है आप अपने प्रोग्रेस को एक सीरीज की तरह देखें. जैसे, पहले दिन कम से कम एक सेंटेंस लिखें, दुसरे दिन एक पैराग्राफ तीसरे दिन एक पेज और धीरे-धीरे आगे बढ़ते जायें जब आप आप 1000 वर्ड्स डेली के अपने टारगेट को हिट ना कर लें.

इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि फ्लो बनाने में कम से कम एक घंटे का समय तो लगता है. इसलिए अपने वर्किंग ऑवर को इस हिसाब से एडजस्ट करें कि आप फ्लो के स्टेट में ज्यादा से ज्यदा देर तक बनें रहे. ऐसा न हो कि जैसे ही आप फ्लो में आये वैसे ही आपके काम का समय ख़तम जाए और आप कुछ बेहतरीन क्रिएट करते-करते रह गए.

सबसे बेस्ट क्रिएटिव वौइस् वो ही जो दूसरों की तो सुने पर अपने आप के साथ भी इमानदार रहे.

जब आप अपने आपकी और अपने आस पास के एनवायरनमेंट की सुनना शुरू कर दें तब बारी आती है दूसरों को सुनने की. जैसा कि इस किताब में पहले कहा गया कि आपको ऑडियंस ऑफ़ वन के हिसाब से काम करना है यानी खुद के लिए काम करना है इसका ये मतलब नहीं कि हम दूसरों को बिलकुल इगनोर कर दें.

जैसा कि लेखक ने पिछले अध्याय में बताया कि आपको अपने लाइफ से टॉक्सिक लोगों को दूर रखना है लेकिन साथ ही साथ अच्छे और पॉजिटिव कनेक्शनों को बढ़ाना भी है. वो कनेक्शन जो आपके सपनों को उड़ने के लिए पंख दें ना कि आपके पैरों में बेड़ियाँ बांध दें.

लाइक माइंडेड लोगों की कम्युनिटी का हिस्सा बनना अपने आसपास पाजिटिविटी क्रिएट करने का एक अच्छा तरीका. आपकी ही तरह सोच रखने वाले लोग ना केवल आपको इन्स्पीरेशन और एडवाइस देते है बल्कि आपके लिए एक सेफ्टी नेट की तरह भी काम करते हैं जिसके अन्दर आप खुद को कम्फ़र्टेबल और वैल्युएबल महसूस करते हैं. आप वीकेंड या मंथली डिनर या लंच प्लान कर सकते हैं अपने लाइक माइंडेड क्लब के साथ. इस गेटटूगेदर से आप खुद को तारोंताज़ा महसूस करेंगे.

इसके अलावा अगर आपके दिमाग में कोई बहुत बड़ा प्लान चल रहा है, तो आपको किसी अपने जैसे को अपने साथ जरुर ले लेना चाहिए. कोई भी बड़ा क्रिएटिव काम हो उसमें किसी अकेले की एफर्ट नहीं होती वहाँ एक पूरी की पूरी टीम काम करती है. चाहे फिर वो फिल्म के पीछे का कास्ट एंड क्रू हो या फिर एक सक्सेसफुल नॉवेल के पीछे का राइटर और एडिटर. ‘लोन क्रिएटर (Lone creator)’ केवल एक मिथ है, हाँ आईडिया किसी एक का हो सकता है लेकिन उसे रियलिटी में बदलने के लिए टीम एफर्ट की जरुरत पड़ती है.

इसलिए लोन क्रिएटर बनने के चक्कर में खुद को अकेला ना कर लें अपनी एक टीम बनाएं. लेकिन टीम बनाते समय इस बात का ध्यान रखें कि उसमें केवल पॉजिटिव और इन्स्पीरेशनल लोगों को जगह दें.

इसके साथ-साथ आपको इस बात का भी ध्यान रखने की जरुरत है कि आप यहाँ-वहाँ से क्या इनफार्मेशन अपने दिमाग में भरते हैं. जैसे अगर आप एक ऑस्कर विनिंग फिल्म बनाना चाहते हैं या एक बेस्ट सेल्लिंग किताब लिखना चाहते हैं तो उसके पहले यू ट्यूब पर फालतू का कंटेंट देख कर टाइम वेस्ट करने की बजाये कुछ ऐसा देखें जो आपके स्किल में कुछ ऐड करे. याद रखें आपका दिमाग एक डब्बे की तरह है उसमें कचरा भरना है या मोती ये आपके ऊपर है.

अगर आप कुछ नया और यूनिक बनाना चाहते हैं तो जो आप बनाना चाहते हैं उससे कुछ अलग इनफार्मेशन भी सीखें. जैसे अगर आप एक ब्लॉग बनाना चाहते हैं तो दूसरें के ब्लॉग को देख कर सीखने कि जगह आप अपने पसंदीदा पोएट या लेखक के काम को देखें और उस से इन्स्पीरेशन लें, हो सकता है इससे आपको अपना ओरिजिनल एंगल मिल जाए.

संभावनायें तो बहुत है अब ये आपके ऊपर है कि आप क्या चुनते है, जो भी चुनें खुद के प्रति पूरी ईमानदारी बरतें.

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कुल मिलाकर

अपने दिमाग में बैठे ऑडियंस के डर और उनकी अप्रूवल के लिए कुछ बनाने की कोशिश ना करें. खुद की ख़ुशी और सैटिसफैक्शन के लिए बनाएं और क्रिएटिव प्रोसेस के सुकून को महसूस करने के लिए बनाएं. अपने अन्दर के यूनिक और ओरिजिनल क्रिएटिव वौइस् को सुनने के लिए अपनी बॉडी और माइंड की आवाज़ सुनें और उसकी जरूरतों पर ध्यान दें और उसे पूरा करें ताकि आप अच्छा महसूस कर सकें और अच्छे से सोच सकें. टॉक्सिक और डिस्ट्रैक्टिंग चीज़ों को अपने एनवायरनमेंट से दूर रखें. आख़िरकार, एक सपोर्टिव कम्युनिटी का हिस्सा होना आपकी क्रिएटिविटी को बढाता है. साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि आप अपने दिमाग में किस प्रकार की चीजें भर रहे हैं.

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