एलिजाबेथ होम्स के पास एक मशीन का बेहतरीन आईडिया था जो इलाज में रिवॉल्यूशन ला सकता थी।
Bad Blood Book Summary in Hindi- सिलीकान वैली स्टार्टअप अपने प्रोडक्ट की खूबियों की सॉफ्ट पेडलिंग के लिए नहीं जाने जाते। झूठ बोलने वालों का यह कैलिफ़ोर्नियन मेक्का झूठे दावे, सफेद झूठ और फेक-इट-टिल-यूमेक-इट कल्चर पर चलता है। इन चढ़ते सितारों को दो में से एक ही रास्ते में कामयाबी हासिल होती है- चाहे गूगल, अमेजॉन जैसे कंपनी कुछ बड़ा करके, दुनिया बदल देते हैं, या फिर इस बेरहम मार्केट में नाकाम होने के बाद बिखर जाते है। लेकिन कभी-कभी हालात बहुत अजीब मोड़ ले लेते हैं।
एलिजाबेथ होम्स, करिश्माई, टर्टलनेक पहनने वाली वडेरकिंड के बारे में जानिए, जिनके मेडिकल रिवॉल्यूशन के वादे ने इनके आइडिया- ‘थेरानोस’, में पैसा लगाने के लिए इन्वेस्टर्स की लाइन लगा दी।
अगर कोई चीज इतनी ज़्यादा अच्छी लगती है कि वह सच नहीं हो सकती, तो ऐसा ही है। ‘थेरानोस’ के बारे में भी यह एक्सेप्शन नहीं था। एक छोटी सी, पोर्टेबल, किफायती और 200 कॉमन कंडीशन की स्क्रीनिंग करने में कैपेबल, ब्लड टेस्टिंग डिवाइस, जिसे “मिरेकलमशीन” कहा गया।
सिर्फ एक प्रॉब्लम थी, यह कामयाब नहीं हुई, और यहां से झूठ, धोखे और ट्रिक की यह कहानी अजीब मोड़ लेने लगती है। इस समरी में । आप जानेंगे कि उस कंपनी की कीमत 9 बिलीयन डॉलर क्यों हुई जो ना काम करने वाली डिवाइस बेच रही थी? कैसे ‘थेरानोस’ ने। रेगुलेटर्स, इन्वेस्टर्स और कस्टमर्स को गुमराह करने के लिए आंकड़ों का इस्तेमाल किया? और कैसे अंदरूनी विरोध को रोकना एक ट्रेजडी बन गया?
बहुत सारे लोगों की तरह एलिजाबेथ होम्स को भी सुई से डर लगता था। इस वजह से एलिजाबेथ को एक आइडिया आया- एक पहनने लायक पैच जो माइक्रोनीडल्स के ज़रिये दिन भर के दौरान पेशेंट्स का ब्लड टेस्ट कर सके। उन्हें लगा, मशीन के बन जाने के बाद, ना सिर्फ आप सूइयों की जरूरत से बच जाएंगे बल्कि यह डिवाइज़ खून की रियल टाइम इंफॉर्मेशन प्रोवाइड कर मौजूद बीमारी का भी पता लगा सकेगा।
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2004 तक, उन्होंने अपने आइडिया पर काम करना शुरू कर दिया और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के अपने एक साथी, शौनक रॉय की मदद से’ थेरानोस’ नाम की कम्पनी बना ली। लेकिन एक दिक्कत थी, दोनों को एहसास हुआ कि माइक्रोनीडल जरूरत भर खून नहीं निकाल पाएगा। और यहीं से ओरिजिनल आईडिया ने नया शेप लेना शुरू कर दिया।
उनका दूसरा आईडिया क्रेडिट कार्ड के साइज की ब्लड टेस्टिंग मशीन का था जो पिनप्रिक के ज़रिए खून की कुछ बूंदे निकाल सके। इसके बाद इस डिवाइस को दूसरे थोड़े से बड़े डिवाइस के अंदर डाल दिया जाएगा, जो डायग्नोस्टिक टेस्ट शुरू कर देगा।
टोस्टर के साइज की दूसरी मशीन केमिकल और कंडक्टिविटी टेस्ट करके 240 कॉमन बीमारियों का पता लगाएगी। इन बीमारियों में विटामिन डी की कमी से लेकर दाद और एचआईवी तक शामिल थीं। यह वह मशीन थी जिसके दम पर मेडिकल रिवॉल्यूशन का दावा किया गया था- अगर यह बनाई जा सकती तो अचानक से मेडिकल डायग्नोस्टिक टूल लाखों लोगों के हाथ में होता। इन दोनों ने इमेजिन करना शुरू कर दिया था कि दुनिया के हर घर में ‘थेरानोस’ डिवाइस होगा। शुरुआती जांच की वजह से हजारों जिंदगियां बचाई जा सकती थीं।
मशीन हारमोंस लेवल चेक कर सकती थी और इसकी इनफॉरमेशन हर घंटे या हर रोज हेल्थ केयर प्रोफेशनल्स को दी जा सकती थी। तब डॉक्टर्स पेशेंट्स को ज्यादा दवाइयां लेने या एंबुलेंस बुलाने की सलाह दे सकते थे। किफायती हेल्थ केयर गरीब लोगों के पहुंच में हो सकती थी। और वह डिवाइस डॉक्टरों और नसों का खर्चा बचा सकता था।
यह इतना आसान हो जाता कि कोई भी शॉपिंग करने के दौरान भी $10 या $20 के अंदर अपना ब्लड टेस्ट करवा सकता था।
सोचिए, अगर आप उस मशीन को जंग के दौरान या डिजास्टर के दौरान मुहैया करा देते, तो क्या कुछ हो सकता था? यहां तक की एक डिवाइस आर्मी जीप में भी रखा जा सकता था।
बस एक दिक्कत थी, उस मशीन को बना पाना लगभग इंपॉसिबल था।
उस मशीन को बनाने का काम थेरानोस को मिला, उन्होंने एक सैंपल तैयार किया। लेकिन जल्द ही दिक्कतें सामने आने लगीं।सिंगल पिनप्रिक के इस्तेमाल का आईडिया कारगर नहीं रहा। यह एक बड़ी दिक्कत थी- क्योंकि मशीन का मेन सेलिंग प्वाइंट यही था। लेकिन एक छोटे से ब्लड सैंपल का इस्तेमाल करके 240 बीमारियों का पता लगा पाना इंपॉसिबल साबित हुआ।
कंपनी के इंजीनियर्स ने स्पेशल माइक्रोचैंबर्स डिजाइन करने में बेहद मेहनत की, जो खून को चारों ओर घुमा सके। लेकिन वह चाहे जितने सॉल्यूशंस निकाल रहे थे, मशीन 80 कॉमन बीमारियों से ज्यादा नहीं चेक कर पा रही थी। उसके बाद एक्यूरेसी का सवाल उठा। जिस ब्लड का टेस्ट किया जाता वह प्रोसेस के दौरान डाइल्यूटेड हो जाता, जो रिजल्ट पर डाउट पैदा करने लगा। यह एकलौती टेक्निकल प्रॉब्लम नहीं थी।
यह मशीन टेंपरेचर सेंसिटिव भी थी। यह तरह-तरह के मौसम वाली दूसरी जगहों पर कैसे काम करती? उसी दौरान मशीन की नलिकाएं बंद हो जा रही थीं। 1 महीने के अंदर वह बेकार हो गयीं। इसका मतलब उन्हें साफ करने के लिए एक इंजीनियर को भेजना पड़ सकता था। मशीन सोडियम और पोटैशियम लेवल का अच्छे से पता नहीं लगा पा रही थी। जब उन्हें पिनप्रिक से बाहर निकाला जाता तो रेड ब्लड सेल अलग हो जाते, यह रिजल्ट को बहुत डाउटफूल बना रहा था।
थेरानोस के लैब डायरेक्टर, एलन बीम्स, को शक होना शुरू हो गया। उन्होंने कंपनी के मैनेजमेंट को एचआईवी टेस्ट का प्लान बनाने के लिए राज़ी कर लिया। ऐसे इंपॉर्टेट टेस्ट के लिए किसी खराब मशीन पर डिपेंडेंट होने का नतीजा सोचा नहीं गया। प्रॉब्लम बढ़ती गई, लेकिन थेरानोस जरूरत भर रिसोर्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट को मुहैया नहीं करा रही थी। नजर रखने वाले एक्सपर्टस का मशीन को लेकर शक बढ़ने लगा। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के सैन फ्रांसिस्को बेस्ड डिपार्टमेंट ऑफ लेबोरेटरी मेडिसिन के वाइस चांसलर, टिमोथी हैमिल, खासतौर पर डाउट में थे।
उन्होंने डॉक्यूमेंट देखकर कहा कि अगर आप हजार सालों तक भी काम करते रहे तो भी खून की एक बूंद के ज़रिए 240 अलग-अलग बीमारियों का पता लगा पाना नामुमकिन है। चैरिटी बहुत ज्यादा बड़ी तो नहीं लेकिन कम ज्यादा करके थेरानोस के रिसर्च एंड डेवलपमेंट डिपार्टमेंट को जितनी जरूरत थी, मुहैय्या किया जाता रहा, जब तक कि उन्होंने अपने डिवाइस को मार्केट में लॉन्च नहीं कर दिया।
होम्स कायम रहीं, उन्होंने अपनी स्कीम को आगे बढ़ाने के लिए अपने चार्म का इस्तेमाल किया।
Bad Blood Book Summary in Hindi- एलिजाबेथ होम्स ना उम्मीद नहीं हुई थीं। असल में, वह थेरानोस के आसपास रयूमर्स को दबाने और करिश्माई बॉस के तौर पर इतना बिजी थीं कि टेक्निकल प्रॉब्लम पर ध्यान देने का उनके पास वक्त ही नहीं था। वह जल्दी फीमेल स्टीव जॉब्स के तौर पर अपनी रेपुटेशन बना सकती थीं- अपने ब्लैक टर्टलनेक स्वेटर और बोलते वक्त अपनी गहरी आवाज़ से कुछ ऐसा ही इंप्रेशन बनाती थीं। वह सिलीकान । वैली की एक ऐसी महिला थीं जिन्हें बहुत कम उम्र में कामयाबी मिल गई थी। उनकी कंपनी में पैसा आना शुरू हो गया था। थेरानोस को रिप्रेजेंट करने के लिए होम्स ने TBWA/Chiat/Day एड एजेंसी को चुना। यह चॉइस भी जॉब्स को ट्रिब्यूट थी, इस कंपनी ने इससे पहले एप्पल के लिए काम किया था।
एजेंसी के सीईओ और एग्जीक्यूटिव क्रिएटिव डायरेक्टर, कैरिसा बिएन्ची और पैट्रिक ओ’नील, एलिजाबेथ के साथ थे। उन्हें भी यकीन था की थेरानोस का फ्यूचर ब्राइट है। जब उन्होंने एलिजाबेथ को देखा तो उन्हें फ्यूचर का आइकॉन नजर आया- पहली सेल्फ मेड बिलेनियर बिजनेसवुमन, जिसने लोगों की जान बचाने वाली एक मशीन बनाकर, कामयाबी हासिल की।
बहुत ज़्यादा एडवर्टाइजमेंट हुआ। 2014 तक थेरानोस की कीमत 9 बिलियन डॉलर हो गई और ‘हैवीवेट्स सेफ्वे’ और ‘वॉलग्रीन’ जैसी ग्लोबल डिस्ट्रीब्यूशन को मशीन सप्लाई करने का एग्रीमेंट भी हुआ। दोनों ही मल्टीनेशनल्स अपने मेडिकल और वेलनेस प्रोडक्ट की रेंज बढ़ाने का सोच रहे थे और उन्होंने ब्लड डायग्नोसिस को अपने बिजनेस मॉडल के लिए ग्रोथ की गारंटी माना।
ऑन-साइट क्लीनिक में थेरानोस की मशीन रखने के लिए सेफवे ने अपने स्टोर्स की मरम्मत के लिए $350 मिलियन इन्वेस्ट भी कर दिए। वॉलग्रीन में अपने 8,134 ब्रांचों में से हर ब्रांच में एक बॉक्स रखने का फैसला किया।
सिलिकॉन वैली में सोच और हकीकत बहुत कम ही मिलते हैं, अपनी कंपनी के बारे बढ़ा चढ़ाकर दावे करना इन्वेस्टर्स को अट्रैक्ट करने का बहुत आसान तरीका था। सॉफ्टवेयर स्टार्टअप के बारे में यह सब ठीक है, लेकिन जब आप ब्लड टेस्टिंग जैसे इंपॉट चीज़ के बारे में बात कर रहे होते हैं तो हालात थोड़ा से अलग हो जाते हैं।
लेकिन थेरानोस आगे बढ़ती रही। इसने, मिलियन डॉलर फर्म ‘ओरेकल’ के पीछे का दिमाग, लैरी एलिसन को एडवाइजर के तौर पर हायर कर लिया और उनका मॉडल अप्लाई किया। मतलब खराब सॉफ्टवेयर भेजना और बाद में बेटा-टेस्टिंग के दौरान इसे परफेक्ट करने के लिए काम करना।
अगर थेरानोस ने रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर ज्यादा खर्च किया होता तो क्या हो सकता था- क्या कंपनी ने हेल्थ केयर रिवॉल्यूशनराइज्ड कर दिया होता जैसा कि इसके फाउंडर ने दावा किया था? यह हम कभी नहीं जान पाएंगे, थेरानोस अपना प्रोडक्ट मार्केट में लाने के लिए बहुत जल्दी में थी।
मशीन का एडिशन मार्केट में लाने का प्रेशर बहुत ज्यादा था। उसने कहा कि बॉक्सेस खून की एक बूंद का इस्तेमाल करके लगभग 800 टेस्ट कर सकेंगे। रिजल्ट 30 मिनट के अंदर तैयार होगा, और यह सारी चीजें पूरी तरीके से एफडीए अप्रूव्ड हैं।
यह एक झूठ का भंडार था। मशीन ज्यादातर टेस्ट कर ही नहीं सकती थी।
इसलिए इम्यूनोऐसे (immunoassay), एक ऐसा टेस्ट जो एंटीबॉडीज़ का इस्तेमाल करके प्रोटीन का पता लगाता है, के दौरान मशीन ब्लड प्लेटलेट्स और वाइट ब्लड सेल काउंट पता करने के लिए हेमटोलॉजी (hematology) परफॉर्म नहीं कर सकती थी। जनरल केमेस्ट्री टेस्ट तो मशीन के लिए बहुत दूर की बात थी।
क्लीनिक पर आने वाले कस्टमर इम्यूनोऐसे (immunoassay) कराना चाहते तो वह सिर्फ पिनप्रिक टेस्ट ही करा सकते थे। हेमेटोलॉजी (hematology) और केमिस्ट्री टेस्ट नसों से खून निकालने वाले ट्रेडिशनल तरीके से ही किए जाते रहे।
कस्टमर के खून से भरी शीशी को पालो ऑल्टो की एक लैब में ले जाया जाता, जहां दूसरी कंपनी की बनाई मशीनों का इस्तेमाल करके इस टेस्ट को किया जाता, खासतौर पर सीमेंस का इस्तेमाल।
थेरानोस अपना वादा पूरा कर रही थी लेकिन यह पूरा ही ऑपशन बहुत ना उम्मीद करने वाला था, क्योंकि उनका यूनीक सेलिंग प्वाइंट ‘मैजिकल’ मशीन थी। लेकिन उन्होंने लगभग हर किसी को बेवकूफ बनाया, जिसमें थेरानोस को अप्रूवल देने वाले रेगुलेटर्स भी शामिल थे।
वह किसी लैब के ब्लड टेस्टिंग स्टैंडर्ड को डिटरमाइन करने के लिए डिजाइन किए गए प्रोफिशिएंसी टेस्ट कराते थे, जिसमें थायराइड, विटामिन डी और पीएसए टेस्ट शामिल थे।
तो थेरानोस ने क्या किया था? उन्होंने छुपके टेस्ट करने के लिए किसी और मशीन इस्तेमाल किया, यह जानते हुए कि रेगुलेटर्स यही सोचेंगे की नई रिवॉल्यूशनरी मशीन का इस्तेमाल हो रहा है।
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अपने फ्रॉड को बरकरार रखने के लिए कंपनी लगातार झूठे आंकड़े दिखाती रही।
थेरानोस सिर्फ इन्वेस्टर्स और कस्टमर्स से झूठ नहीं बोल रही थी। कंपनी पूरी मेडिकल फील्ड और प्रेस को भी धोखा दे रही थी। इस वक्त तक, थेरानोस टीम अपनी इमेज को अच्छा करने के लिए हेरफेर करने और झूठे डेटा दिखाने में मास्टर हो गई थी।
मतलब सिर्फ सक्सेसफुल टेस्टस के ही रिज़ल्ट्स- अक्सर यह टेस्ट किसी तीसरी पार्टी की मशीन से लैब में किए जाते, और इंटरेस्टेड पार्टी को फॉरवर्ड कर दिए जाते। थेरानोस ने यह झूठ भी फैलाया कि उसकी मशीन की एफिशिएंसी को एक्सपर्ट्स ने भी वेरीफाई किया है। जो एक झूठा दावा निकला।
इस डिवाइस को लेकर एकलौता एक्सपर्ट्स का आर्टिकल हेमटोलोजी रिपोर्टस नाम के अप्रसिद्ध पे-टु-पब्लिश इटालियन जनरल में निकला था। आर्टिकल में दिया गया डेटा मुश्किल से 6 पेशेंट्स का था।
कंपनी लगातार यह दावा करती रही कि यह कन्वेंशनल ब्लड टेस्टस से ज्यादा एक्यूरेट है।
जब डेटा से साबित करने के लिए ज़ोर डाला गया, तो थेरानोस ने कहा कि ब्लड टेस्ट में हुई 93 परसेंट गलतियां ह्यमन इरर हैं। जिससे लगा कि इसके बॉक्सेस ज्यादा एक्यूरेट होंगे। लेकिन कंपनी ने एक छोटी सी डिटेल नहीं दी, वह यह कि इसके प्रोडक्ट की एक्यूरेसी कंपिटीटर प्रोडक्ट से बहुत कम थी।
जब रेगुलेटर्स ने डिवाइस को टेस्ट किया तो उन्हें पता चला कि वह 65% केसे में एवरेज एक्यूरेट थी। टेस्टोस्टेरोन जैसे टेस्ट 87 परसेंट बार फेल हो गए। लेकिन थेरानोस ने दावा किया कि ज्यादातर गलतियां ह्यूमन एरर हैं और मशीन में कोई टेक्निकल प्रॉब्लम नहीं है। तो, प्रोडक्ट की परफॉर्मेंस इतनी खराब होने के बाद भी कंपनी इन्वेस्टर्स को कैसे अट्रैक्ट कर पा रही थी?
उन्होंने कुछ और झूठ बोले। इन्वेस्टर्स को दिखाया गया डिमॉन्स्ट्रेशन झूठा था।
जिस तरह की धोखेबाजी यहां हो रही थी उसने सारी हदें पार कर दी थीं। मशीन प्रोडक्शन के शुरुआती दिनों में थेरानोस उन डिवाइसेज का मज़ाक बनाती थी, जो एक्यूरेट ब्लड टेस्ट परफॉर्म नहीं कर सकती थीं। स्क्रीन पर झूठे आंकड़े आने से पहले मशीन से खून टपकता हुआ दिखाई देने लगता था।
इन्वेस्टर्स को अंधेरे में रखा गया। जब वीआइपीज़ पालो ऑल्टो आते तो दिखाने के लिए उनके ब्लड की कुछ बूंदे डिवाइस में रखी दी। जातीं और जैसे ही वह बाहर निकलते, वो खून सीमंस की मशीन के ज़रिए टेस्ट करने के लिए लैब भेज दिया जाता।
थेरानोस ने एफडीए इंस्पेक्शन को धोखा देने के लिए सारी हदें पार कर दी, लेकिन एफडीए कैंपेनर होने का ढोंग भी करती रही।
अब तक, आप सोचने लगे होंगे की इतने ध्यान से रेगुलेट की जा रही मार्केट में थेरानोस ऐसा स्कैम करने में कामयाब कैसे हुई।
जवाब सिंपल है, एफडीए इंस्पेक्शन को धोखा देने के लिए इसने सारी हदें पार कर दी। थेरानोस की असल चाल यह दिखाना था कि मशीन कोई मेडिकल डिवाइस नहीं है।
चूंकि रिजल्ट अनालाइज़ करने के लिए पालो ऑल्टो के पास भेजा गया, इस ने दावा किया कि मशीन का काम सिर्फ इनफॉरमेशन भेजना करना है। इसका मतलब इसका एफडीए रेगुलेशन से कोई लेना-देना नहीं था।
जब यूएस आर्मी के कर्नल, डॉ शोमेकर, ने बॉक्स को मिलिट्री हॉस्पिटल में लगाने से पहले एफडीए से अप्रूव करा लेने पर जोर दिया तो थेरानोस अपनी बात से पलट गयी। कंपनी ने भरोसा दिलाया कि मशीन एफडीए अप्रूव्ड है, लेकिन डॉक्टर शोमेकर के रिटायरमेंट की वजह से यह प्रोजेक्ट ठप हो गया था और उसके बाद जल्द ही खत्म कर दिया गया था। इस वक्त तक, अनऑफिशियली एक नई पॉलिसी जारी कर दी गई थी- टेस्ट की चेरी पिकिंग, जो एफडीए स्टैंडर्डस पर खरी थी।
फॉर एग्जांपल, मशीन HSV-1 और दाद का टेस्ट एक्युरेटली परफॉर्म कर रही थी, तो थेरानोस ने उनके बिनाह पर एफडीए अप्रूवल हासिल कर लिया। कंपनी यही नहीं रुकी, इसने बड़ी ढिठाई से एक गाना और डांस तैयार किया जिसमें दावा किया कि एफडीए ने इस मशीन की वकालत की है।
यकीनन एजेंसी ने इसे कुछ ही टेस्ट के लिए अप्रूव किया था, लेकिन एक अच्छी कहानी के बीच सच को क्यों आने दिया जाए। और सच में यह एक अच्छी कहानी थी, थेरानोस की फ्री में खूब पब्लिसिटी हो रही थी।
कंपनी ने विरोध को दबाकर और ड्रोन्स हायर करके अपने राज़ छुपाए रखे। थेरानोस में मौजूद हर शख्स उसके इस मिस इंफॉर्मेशन कैंपेन से राजी नहीं था।
एंपलॉयज़ में खूब नाराजगी थी, कंपनी का बहुत बड़ा स्टॉफ टर्नओवर था। जब एंपलॉयज़ को अपने मालिकों की धोखाधड़ी का एहसास हुआ तो बहुत सारे एंपलॉयज़ ने रिजाइन कर दिया।
हालांकि वह तब भी नहीं बोल सकते थे, प्रेस को इंफॉर्मेशन न लीक हो जाए, इसलिए थेरानोस ने एंप्लॉयज़ से एक कॉन्फिडेंशियल एग्रीमेंट साइन करवा लिया।
लेकिन इससे रेजिग्नेशन का सिलसिला नहीं रुका, पूरी की पूरी एग्जीक्यूटिव टीम और बहुत सारे वर्कर्स जॉब छोड़कर चले गए।
थेरानोस ने दूसरी स्ट्रेटजी का इस्तेमाल किया, इसने इंडियन एंप्लॉयज़ को हायर करना शुरू कर दिया जो सिर्फ थेरानोस के वर्क वीजा पर यूनाइटेड स्टेट में रह सकते थे। इंडिया से स्टाफ हायर करना काफी आसान था। एलिजाबेथ का बॉयफ्रेंड और इस प्रोजेक्ट में दूसरे नंबर की हैसियत रखने वाला सनी बलवानी इंडियन था और इंडियन टेक इंडस्ट्री में उसके काफी कनेक्शन्स थे।
जल्द ही, बलवानी ने खाली हुई पोजीशंस इंडियन वर्कर्स से भर दीं। यह एक शातिर स्ट्रेटजी थी। क्योंकि वह वर्कर अपनी जॉब खोने और डिपोर्ट कर दिए जाने को लेकर डर गये थे। वह कंपनी के फ्राड पर चुप रहे।
क्योंकि यह वर्कर्स स्ट्रिक्ट और हाइरैरकिकल ऑर्गेनाइजेशंस में काम करने के आदी थे, इसलिए ऐसे वर्कर्स, थेरानोस को राइट ट्रैक पर दिखाने के लिए आइडियल थे। लेकिन जल्द ही यह पॉलिसी ट्रेजडी में बदल गई।
सालों से थेरानोस के इम्यूनोऐसे (immunoassay) टेस्ट पर काम करने वाले ब्रिटिश बायोकेमिस्ट, इआन गिबन्स ने 2013 में सुसाइड कर ली।
इससे पहले, मशीन को लेकर कंपनी के फ्रॉड पर सवाल करने की वजह से उन्हें डिमोट कर दिया गया था। उनके ऑब्जेक्शन की वजह से उन्हें एक कम काबिलियत रखने वाले जूनियर साइंटिस्ट से रिप्लेस कर दिया गया था। जिसमें सिर्फ एक खासियत थी कि वह चुप रहने को तैयार था।
थेरानोस अपने टॉप साइंटिस्ट्स को जाने नहीं देना चाहता थी इसलिए उन्हें जूनियर पोजीशंस पर डिमोट कर दिया गया। गिबन्स, इस उम्मीद में कंपनी में बने रहे कि 1 दिन वह मशीन को परफेक्ट कर देंगे।
डिमोशन का बुरा नतीजा हुआ, जल्द ही गिबन्स अल्कोहलिक हो गए। थेरानोस के फैसले के 2 महीने बाद, उन्होंने एल्कोहल के साथ ऐसिटामिनोफिन लेकर अपनी जान दे दी।
कोई नहीं जानता कि थेरानोस के इस पागलपन की वजह से कितने मरीजों ने अपनी जान गंवा दी। हम इतना ही जानते हैं कि वॉलग्रीन के कंपनी से कोलैबोरेशन तोड़ने तक सिर्फ एरिजोना में ही इसके बॉक्सेस 10 लाख बार इस्तेमाल हो चुके थे।
थेरानोस को $4.65 बिलियन वापस करने के लिए कहा गया जो इसने स्टेट में ब्लड टेस्ट कंडक्ट करा कर कमाए थे।
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कुल मिलाकर
एलिजाबेथ सिलिकॉन वैली में बड़ा नाम बनने वाली थीं। उसे फ्यूचर की फीमेल स्टीव जॉब्स समझा गया। इस करिश्माई, ब्लैक-टर्टलनेक पहले वाली वुडरकिंड ने दुनिया से, एक किफायती, पोर्टेबल, क्विक ब्लड टेस्टिंग चिप, के ज़रिए मेडिकल रिवोल्यूशन का वादा किया, जो कि लगभग 200 मर्ज़ का पता लगा सकती थी। लेकिन थेरानोस नाम की जो कंपनी उसने दावों के बिनाह पर बनाई थी वह पत्तों की तरह खोखली निकली। जब थेरानोस के मैनेजमेंट को अहसास हुआ कि उनकी मैजिकल मशीन काम नहीं कर रही है, तो उन्होंने इन्वेस्टर्स कस्टमर्स और रेगुलेटरी अथॉरिटीज़ से झूठ बोलना शुरू कर दिया।