Bliss More Book Summary in Hindi
मेडिटेशन आसान होना चाहिए।
अगर आप थोड़ा बहुत भी ऑथर की तरह हैं तो शायद आपको मेडिटेशन बिल्कुल पसन्द न हो। लेकिन बहुत सारी स्प्रिचुअल बुक्स और योग टीचर्स से मार्गदर्शन मिलने के बाद ऑथर ने मेडिटेशन की ओर सफर शुरू किया। लेकिन रूल्स को फॉलो करने से उनको कभी बैक पेन होता था या फिर कोई और समस्या ।
तब उन्हें एहसास हुआ कि वो गलत तरीके से कर रहे थे। वाटकिन्स को एहसास हुआ कि मेडिटेशन के लिए उन्होंने हार्ड तरीके का चुनाव किया था। बहुत सारे टीचर्स का मानना है कि मेडिटेशन करने के लिए कोई भी तरीका जरूरी नहीं होता। आप जैसे कम्फर्टेबल हो वैसे परफॉर्म करें।
इस समरी में हम कुछ सिंपल स्ट्रैटेजी के बारे में जानेंगे जोकि ऑथर ने अपनाई थी और उनको अच्छे रिजल्ट्स भी देखने को मिले। चाहे आप पहले से मेडिटेशन कर रहे हों या अभी शुरू करा हो इस बुक में बताई गई टेक्निक से आपकी हेल्प जरूर होगी। इस समरी में हम जानेंगेअपने मंकी माइंड की शांत कराने का सीक्रेट | किस तरह से सेटलिंग साउंड का यूज़ करना है। और रिलैक्सेशन रिस्पॉन्स असल में होता क्या है?
क्या कभी आपने मेडिटेशन ट्राई किया है? अगर आपने किया होगा तो शायद आप जमीन पर चटाई बिछा कर और अपनी पीठ सीधी करके बैठे होंगे और थोडी ही देर में शायद आपकी पीठ आपको परेशान करने लगी होगी।
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अगर मेडिटेशन करने से लोगों को तकलीफ होती है तो वो आखिर क्यों करते हैं? वेस्टर्न सोसाइटी में मेडिटेशन को साधु के साथ जोड़ कर देखा जाता है। मेडिटेशन के दौरान हम जिस पोज़ में बैठते हैं उसको भी साधु से एसोसिएट किया जाता है । लेकिन बात करें भारत कि तो यहां पर भी लोग मेडिटेशन काफी करते हैं लेकिन हम लोग मेडिटेशन करने वाले हर इंसान को साधु नहीं मानते। बहुत से नार्मल लोग स्ट्रेस से राहत पाने के लिए मेडिटेशन का सहारा लेते हैं। एक बात हम आपको क्लियर कर देना चाहते हैं कि किसी साधु की तरह बर्ताव करने से मेडिटेशन करना इजी नहीं होता। लोगों को लगता है कि साधु लोग मेडिटेशन काफी आसानी से कर लेते हैं। अब टाइम आ गया है मेडिटेशन की उस पेनफुल पोजीशन को को गुड बाय कहने का। अगर आपको सही तरह से मेडिटेशन करना है तो आपको एक ऐसी पोजीशन का चुनाव करना है जिसमें आप कम्फर्टेबल हों। शुरू में आप जिस पोजीशन में टीवी देखते हैं उस तरह से बैठ कर मेडिटेशन करने की कोशिश करिये। सिंपल सी बात ये है कि आपको ऐसी पोजीशन में बैठ कर मेडिटेशन करना है कि आपके दिमाग में सिटिंग पोजीशन को लेकर कोई सवाल न उठे। कभी कभी होता है कि लोग मेडिटेशन करने में इतना ज्यादा सीरियस हो जाते हैं कि अगर उन्हें शरीर में कहीं खुजली भी होती है तो उसको कंट्रोल करते हैं। आपको ऐसा नहीं करना है।
इसके अलावा मेडिटेशन करते टाइम जो चीज लोगों को परेशान करती है वो है मेडिटेशन करने की जगह । टीवी या फिर मूवीज में दिखाया जाता है कि मेडिटेशन करने के लिए लोग पहाड़ों पर चले जाते हैं। आपको ऐसा नहीं करना है। आजकल इंसान अपनी लाइफ में इतने व्यस्त हैं कि उनके पास कहीं जाने का टाइम ही नहीं है। इसलिए आप का जहां मन करें वहां मेडिटेशन करें। एक और सबसे जरूरी चीज ये कि दिन में सिर्फ एक से दो बार मेडिटेशन करें। और ज्यादा से ज्यादा 10 से 20 मिनट तक ही मेडिटेशन करना है।
मेडिटेशन करते टाइम आप अपने सामने एक घड़ी रख सकते हैं। हां लेकिन आपको अलार्म का इस्तेमाल नहीं करना है। जिस तरह से किसी भी फील्ड में सफल होने के लिए प्रैक्टिस चाहिए होती है उसी तरह से मेडिटेशन में माहिर होने के लिए भी काफी प्रैक्टिस चाहिए होती है। और सही तरह से प्रैक्टिस तभी होगी जब आप शांत वातावरण में और चिल होके मेडिटेशन करेंगे।
दिमाग को शांत करने के लिए उसको शांत करने की कोशिश छोड़ दीजिए।
रूसी लेखक Fyodor Dostoevsky ने कहा था कि अगर आप ये सोचेंगे कि मुझे पोलर बीयर के बारे में नहीं सोचना है तो आप सारा टाइम उसी के बारे में सोचते रहेंगे। 1980 के दशक में हार्वर्ड के साइकोलॉजिस्ट ने इसी चीज पर एक एक्सपेरिमेंट भी किया था। उन्होंने कुछ लोगों को पहले कहा कि पोलर बीयर के बारे में सोचें और फिर थोड़ी देर बाद उन्हीं लोगों से कहा कि पोलर बीयर के बारे में न सोचें। दोनों ही सिचुएशन में लोगों को से कहा गया कि जैसे ही उनके दिमाग में पोलर बीयर की इमेज आये वो एक घण्टी बज दें। और रिजल्ट ये हुआ कि जब भी लोगों को कहा गया कि बीयर के बारे में न सोचें तभी लोगों ने घण्टी बजानी शुरू कर दी। इस एक्सपेरिमेंट से ये तो समझ आ गया कि आप जब भी किसी चीज को अवॉइड करना चाहेंगे वो चीज आपके दिमाग में आती ही रहेगी। तो अगर आप ऐसा कोई मेडिटेशन कर रहे हैं जिसमें की आपको फोकस की नीड होती है तो उस तरह के मेडिटेशन को परफॉर्म करने के लिए आपको बहुत काम करना पड़ेगा। जरा एक बार के लिए सोचिये कि आज आपने फैसला लिया कि कल से सुबह आप दौड़ने के लिए जाएंगे। जरूरी तो नहीं कि पहले ही दिन आप 5 किलोमीटर दौड़ लगाएं। और ऐसा भी नहीं है कि अगर 5 किलोमीटर आप नहीं दौड़ पाए तो अगले दिन से आप जाना बंद कर देंगे। लेकिन मेडिटेशन के साथ लोग ऐसा ही करते हैं। कुछ दिन करने के बाद जब उनको एहसास होता है कि वो अपने माइंड को फोकस नहीं कर पा रहे हैं तो वो गिव अप कर देते हैं। मेडिटेशन कोई कॉम्पिटीशन नहीं है। ये एक ऐसा वर्कआउट है जिसकी हेल्प से आपके माइंड को शेप मिलती है। इसलिए अपने हर थॉट को मेडिटेशन एक्सरसाइज का पार्ट बना लीजिए। अगर आपके पास मेडिटेशन करते टाइम कोई ऐसी चीज होगी ही नहीं जिससे आप डिस्ट्रैक्ट हो सकें या फिर आपके माइंड में कोई ऐसा थॉट नहीं होगा जो आपको डाइवर्ट कर सके तब जाके आप मेडिटेशन के प्रोसेस में सही तरीके से सेटल हो पाएंगे। अगर मेडिटेशन के टाइम आपको अलग अलग तरह के थॉट आते हैं जो आपको डिस्ट्रैक्ट करते हैं तो आप इजी टेक्निक का यूज़ कर सकते हैं। अंग्रेजी वाला EASYI E का मतलब इम्ब्रेस, A का मतलब एक्सेप्ट, स का मतलब सरेंडर और Y का मतलब यील्ड। इम्ब्रेस का मतलब अपने सभी थॉट को अपने अंदर समाहित कर लेना और फिर इस बात को एक्सेप्ट करना कि मेडिटेशन के टाइम आपके साथ जो भी हो रहा है वो न तो गलत है और न ही सही है। आपको नींद आये या खुजली हो सब कुछ एक्सेप्ट करें। मेडिटेशन को लेकर आपके दिमाग में जो भी एक्सपेक्टेशन हैं उन को सरेंडर कर दें।टाइम के साथ धीरे धीरे आप अपने थॉट्स के बीच से निकलना सीख जाएंगे। बिल्कुल उसी तरह जिस तरह से एक स्विमर पानी के बीच से तैरता हुआ निकल जाता है।
अपने दिमाग को शांत रखने के लिए किसी सेटलिंग साउंड का यूज़ करें।
आपके माइंड में ये ख्याल जरूर आता होगा कि दिमाग को शांत कर पाना बहुत ज्यादा मुश्किल है। लेकिन हमारे पास आपके लिए एक अच्छी खबर है। आपने पहले ही शांत दिमाग को कभी न कभी एक्सपीरिएंस कर लिया है। क्या कभी आपने दोपहर में नींद ली है? या फिर क्या कभी ऐसा हुआ है कि थक हार कर आप अपने बेड पर हों और आपकी आंखें अपने आप बंद होने लग रही हों? इन्हीं सिचुएशन में हमारा माइंड एक दम शांत होता है या कहें सेटल होता है। अगर मेडिटेशन के दौरान आपको वही स्टेज चाहिए तो उसके लिए आपको मंत्र की नीड होगी। मंत्र भी अलग अलग तरीके के होते हैं। एक गाना भी मंत्र की तरह काम कर सकता है या फिर वातावरण में मौजूद ध्वनि आपके लिए मंत्र का काम कर सकती है। मेडिटेशन में यूज़ होने वाले साउंड्स को ऑथर ने सेटलिंग साउंड नाम दिया है। टाइम के साथ साथ यही साउंड्स आपके माइंड को शांत रहने के लिए ट्रेन करेंगे। अब आप कहीं ये तो सोचने नही लग गए कि ये सेटलिंग साउंड आप कहाँ से लेकर आएंगे। बहुत आसान है। Ahhhhh Hummmmm एक बहुत ही परफेक्ट साउंड है जोकि मेडिटेशन के दौरान यूज़ किया जा सकता है।
तेजी से अपने सेटलिंग साउंड को बोलकर आप प्रैक्टिस भी कर सकते हैं। बस ध्यान रखिये की आपको चिल्लाना नहीं है और न ही बहुत तेजी से उसे बोलना है। धीरे बोलिये और जितना ज्यादा लम्बा आप उसको कर सकते हैं करिये। आपको इतना धीमा बोलना है कि सामने वाले को आपके होंठ हिलते हुए दिखाई दें लेकिन कुछ सुनाई न पड़े। अगर सेटलिंग साउंड आपकी सांसों के साथ मेल खा जाता है तो समझिए बात बन गयी ।
Ahh Humm का संस्कृत में मतलब होता है आई एम। इसका मतलब जानना जरूरी नहीं है। ये साउंड इसलिए इम्पोर्टेन्ट है क्योंकि इसमें बहुत अच्छी वाइब्रेशन प्रॉपर्टी है। और इसी वजह से आपके दिमाग को शांत अवस्था में ले जाता है। जैसे ही आपके शरीर से humm का साउंड बाहर आये आपको ऐसा फील होना चाहिए कि आपका माइंड उसी आवाज के साथ बहता जा रहा है और आप एक रेस्ट की स्टेट में जा रहे हैं।
अगर आपके रैंडम थॉट की वजह से आप अपने साउंड से भटक जाते हैं तो कोई बात नहीं है ये नार्मल है। जब भी आपको लगे कि आप भटक गए हैं दोबारा से कनेक्शन बैठाइए और शुरू करिये। सबसे लास्ट में जरूरी है कि आप अपनी सांसों को कंट्रोल करें। अपनी सांसों को नोटिस करना काफी फोकस वाला काम होता है और ये आपको शांति तक पहुंचने से रोक भी सकता है। याद रखिये आपको ज्यादा जबरदस्ती नहीं करनी है।
अगर आप चाहते हैं कि मेडिटेशन से आपकी कुछ हेल्प हो तो उसके लिए कमिटमेंट बहुत जरूरी है।
लाइट वाटकिन्स जब आपने स्प्रिचुअल टीचर से मिले तो सबसे पहले उनसे कुछ अमाउंट डोनेट करने को कहा गया। जो शिक्षा वो लेने जा रहे थे उसकी वैल्यू के एकॉर्डिंग उनको अमाउंट जमा करना था। उस समय उनके एकाउंट में 900 डॉलर थे और उसमें से उन्होंने 400 डॉलर अपने टीचर को दे दिए। आखिर ऐसा क्यों हुआ? हमारे भारत देश में इस तरह की प्रथा काफी समय से चली आ रही है। इसको हम गुरु दक्षिणा के नाम से भी जानते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि इस एक्सचेंज की वजह से शिक्षा के प्रति आपकी कमिटमेंट कन्फर्म हो जाती है। रियल कमिटमेंट जब आप करते हैं तो फिर आप बहुत बेहतरीन कनसिसटेन्सी शो करते हैं और स्ट्रांग टेक्निक भी। साफ शब्दों में कहें आप मेडिटेशन के प्रति जितना ज्यादा कमिटेड रहेंगे उतनी ज्यादा सफलता आपको मिलेगी । लाइट वाटकिन्स की बात अभी हमने शुरू में आपसे की। उन्होंने भी ये नोटिस किया था कि जो स्टूडेंट्स एक्सचेंज के रूप में कुछ अमाउंट जमा करते थे वो लोग टेक्निक को ज्यादा सीरियस होके लर्न करते थे। ऐसा इसलिए क्योंकि एक्सचेंज के लिए इंटीग्रिटी और विलिंगनेस की नीड होती है। तो अब जो आपके मन में सवाल आ रहा होगा कि एक्सचेंज में आप क्या देंगे? आपको कुछ ऐसा देना होगा जो सामने वाले के लिए बेनिफिट हो सके। सबसे आसान है किसी अच्छे काम के लिए पैसे देना। अगर आप वो अफोर्ड नहीं कर सकते तो फिर आप अपना कुछ टाइम अच्छे कामों में इन्वेस्ट कर सकते हैं जैसे कि अनाथ बच्चों के के लिए खाना प्रीपेयर करना, गरीब बच्चों को पढ़ाना या फिर किसी ऐसे व्यक्ति के साथ टाइम स्पेंट करना जोकि अकेला हो। ऑथर के नेफ्यू ने इसी प्रोसेस के लिए 50 डॉलर के सैंडविच तैयार किये और उसको उन लोगों को डोनेट के किया जिन्हें खाने की नीड थी। एक्सचेंज करने के बाद आप उस काम को करने के लिए तैयार रहते हैं जो आपके लिए फायदेमंद होता है क्योंकि लोग कभी कभी अच्छे कामों को करने के लिए कोई एक्सचेंज नहीं करते और फिर उनके पास उस काम को करने के लिए कोई मोटिवेशन नहीं रहता । जब आप पूरी तरह कमिटेड होते हैं तो आप अच्छे काम के लिए छोटे छोटे एक्सक्यूज़ को अवॉइड कर देते हैं।
आपको ये बात जान लेनी चाहिये कि अगर आपको अपनी लाइफ में मेडिटेशन का असर देखना है तो फिर 90 दिन आपको हार्डवर्क करना होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि शुरुआत में आप पहले मेडिटेशन की हैबिट डेवलप कर रहे होते हैं और मेडिटेशन न करने की हैबिट को खुद से दूर कर रहे होते हैं।
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मेडिटेशन आपको रिलैक्स फील कराता है।
अगर आपने हाल फिलहाल में कोई मैगजीन पढ़ी होगी तो आपने उसमें मेडिटेशन के बारे में जरूर पढा होगा। कुछ साल पहले साइकोलॉजी टुडे मैगजीन में हेडलाइन थी कि किस तरह से मेडिटेशन ने सिहौक की हेल्प की थी सुपर बाउल जीतने में। क्या आपको भी लगता है मेडिटेशन किसी को कोई ऐसा कॉम्पिटिशन जितवा सकता है? शायद आपका जवाब हो नहीं। लेकिन इसके बावजूद बहुत सी मैगजीन मेडिटेशन के फायदे को लेकर हेडलाइन तैयार करती रहती हैं। तो अब आपके माइंड में सवाल होगा कि मेडिटेशन हमारी किस तरह से हेल्प कर सकता है? आइये हम आज आपको इसका जवाब देते हैं। मेडिटेशन की हेल्प से खराब हो रहे रिश्तों में सुधार नहीं लाया सकता है, इसके अलावा अगर कोई व्यक्ति ये सोचता है कि मेडिटेशन करने से वो स्मोकिंग करना कम कर देगा तो शायद वो भी गलत है। मेडिटेशन इंसान को रिलैक्सेशन प्रोवाइड करता है। मेडिटेशन इंसान को शांत बनाता है। अगर आप डेली मेडिटेशन करते हैं तो आप कठिन से कठिन सिचुएशन में भी शांत रह सकते हैं और उसे अच्छे से डील कर सकते हैं। सोशल लाइफ में मेडिटेशन की हेल्प से आप चीजों को इग्नोर करना सीख सकते हैं। मेडिटेशन आपकी स्लीप साईकल को सुधारता है और अगले दिन के लिए आपको एनरजेटिक बनाता है। 1960 के दशक में ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन काफी फेमस हुआ था। इसको टी एम के नाम भी जाना जाता था। लेकिन इसके बावजूद लोग इसके बारे में पढ़ना पसन्द नहीं कर रहे थे क्योंकि वेस्टर्न मेडिसिन मेडिटेशन को लेजिटिमेट टेक्निक नहीं मानती थी। हालांकि हार्वर्ड के एक प्रोफेसर थे जोकि इस बात को प्रूव करना चाहते थे कि हमारा माइंड हमारी बॉडी को इन्फ्लुएंस कर सकता है। उनका मानना था कि टी एम की यूनिफार्म टीचिंग अप्रोच स्टडी के लिए एकदम परफेक्ट है। उन प्रोफेसर का नाम था हर्बर्ट बेन्सन।
बेन्सन ने टी एम पर काफी रिसर्च की। उनको बहुत शानदार रिजल्ट्स देखने को मिले। उन्होंने टी एम मेडिटेशन टेक्निक को परफॉर्म करने वाले लोगों की बायोलॉजिकल मेट्रिक को मेजर किया और उन्हें पता लगा कि इस तरह का मेडिटेशन करने से लोगों का हार्ट रेट, आंखों का मूवमेंट, ब्लड प्रेशर और ऑक्सीजन लेवल जैसी चीजें काफी बेहतर हुई हैं। उनके एकॉर्डिंग अगर बॉडी को स्ट्रेस के सामने एक अच्छा रिस्पांस देना है तो उसके लिए मेडिटेशन काफी जरूरी है। बाद में की गई और स्टडीज में बेन्सन को पता चला कि सिर्फ टी एम ही एक ऐसा मेडिटेशन टेक्निक नहीं है जो इस तरह से लोगों को फायदा देता है बल्कि किसी भी तरह का मेडिटेशन करने से लोगों को ये लाभ हो सकता है। तो अगर आप मेडिटेशन कर रहे हैं चाहे आपने अभी शुरू किया हो या फिर आप पिछले 5 साल से कर रहे हों ये नोटिस करिये कि आपके अंदर क्या बदलाव हुए हैं। आप पहले क्या थे और अब क्या हैं? तब कहीं जाके आपको मेडिटेशन करने का फायदा नजर आएगा।
टेंशन लेने की जरूरत नहीं है मेडिटेशन की हेल्प से आप अपनी स्ट्रेस को कम रहे हैं।
वाटकिन्स की एक स्टूडेंट मोना ने मेडिटेशन के टाइम सिगरेट की स्मेल महसूस की। उन्होंने चेक कि शायद हो सकता है कि धुआं उनकी खिड़की से आ रहा हो लेकिन ऐसा नहीं था। ये उनके माइंड ने उनके अंदर भृम पैदा कर दिया था। उसके बाद मोना ने इस बारे में वाटकिन्स से बात की। मोना को याद आया कि कुछ टाइम पहले जब वो छोटी थी तब उन्होंने स्मोकिंग की थी। उस टाइम वो न्यूयॉर्क में रहा करती थीं। 21 साल की उम्र में उनको काफी टेंशन और स्ट्रेस था जिससे निकलने के लिए उस टाइम उन्होंने सिगरेट पीना शुरू कर दिया था। और अब जब वो मेडिटेशन की हेल्प से स्ट्रेस से छुटकारा पाने की कोशिश कर रही थीं तो उनके अंदर जितना भी स्ट्रेस था वो धीरे धीरे बाहर आ रहा था। डी स्ट्रेसिंग यानी कि स्ट्रेस को माइंड से अलग करना मेडिटेशन का ही एक जरुरी पार्ट होता है। और मेडिटेशन करते टाइम ये आपको कभी न कभी फील जरूर होगा। क्लियर शब्दों में कहें तो डी स्ट्रेसिंग का मतलब होता है आपके माइंड में मौजूद उन इमोशनल ट्रामा को आपके अंदर से बाहर निकालना जोकि काफी टाइम से आपको परेशान कर रहे हैं। और जब ऐसा होता है तो शायद आपको मेडिटेशन थोड़ा अनकम्फर्टेबल लगे। लेकिन आपको परेशान होने की नीड नहीं है। जब आपको मेडिटेशन के टाइम कुछ अलग अनुभव हो जैसे कि मोना को हुआ था तो समझिए कि मेडिटेशन ने अपना काम शुरू कर दिया है। ऐसा सोचिये की अब आपकी बॉडी और आपके माइंड का रिफ्रेश होना स्टार्ट हो गया है।
इंसानों के अंदर फाइट या फ्लाइट रिस्पांस पहले से ही डेवलप है। मतलब हम किसी सिचुएशन से या तो लड़ने की कोशिश करते थे या फिर उससे निकलने का प्रयास करते हैं। हर इंसान खतरनाक और स्ट्रेसफुल सिचुएशन को सेम तरह से ट्रीट करता है । और जब कभी हम वही स्ट्रेसफुल इमोशन को दोबारा से फील करते हैं तो हमारी बॉडी में स्ट्रेस फिर से आ जाता है और फिर से वही सब एक्सपीरिएंस करते हैं जो हमने पहले किया था। एग्जाम्पल के लिए आपने नोटिस किया होगा कि कोई गाना सुनते सुनते आपको अपने ब्रेकअप या किसी अपने करीबी की याद आ जाती है। बिल्कुल ऐसा ही मेडिटेशन में होता है। मेडिटेशन के दौरान कुछ पेनफुल इमोशन्स का वापस आना लाज़मी है। हो सकता है आपको कोई ऐसी घटना याद आ जाये जोकि बहुत ज्यादा पुरानी या फिर कुछ ऐसा जोकि पिछले कुछ दिनों में आपके साथ हुआ हो। जब भी ऐसा हो, पॉजिटिव रहने की कोशिश करिये और खुद को याद दिलाते रहिए की आप स्ट्रेस को खुद से दूर करने की कोशिश कर रहे हैं।
हमेशा अपने माइंड में इस बात को रखिये की हो सकता है मेडिटेशन के दौरान आप कभी खराब इमोशन्स फील करें लेकिन मेडिटेशन इसी तरह से काम करता है। अगर आप ऐसा कर पाते हैं तो आने वाले टाइम में आपको स्ट्रेस से दूर होने से कोई नहीं रोक सकता।
सही माइंड फुलनेस मेडिटेशन का ही एक प्रोडक्ट होता है।
माइंड फुलनेस का मतलब होता है कि इंसान किसी चीज को लेकर कितना ज्यादा अवेयर है। साल 2004 में सुनामी की वजह से 12 देशों के लगभग 1 लाख 50 हजार लोगों ने अपनी जान गंवा दी थी। लेकिन उसी सुनामी में जानवरों के मरने की जो संख्या थी वो बहुत ही कम थी। रिपोर्ट्स के एकॉर्डिंग सुनामी से पहले हांथी ऊँची जगह पर शिफ्ट होने लगे थे, चिड़ियों ने अपना घोंसला छोड़ दिया था और कुत्ते बाहर कम ही निकल रहे थे। बहुत से लोगों का मानना था कि जानवरों ने बहुत पहले से ही उस अनहोनी का अंदाजा लगा लिया था। हालांकि इंसानों के अंदर भी ऐसे फील कभी कभी आ जाता है लेकिन वो इन सब चीजों को अलग तरह से ही देखते हैं। जो लोग मेडिटेशन की प्रैक्टिस करते हैं उन लोगों को इस तरह का आभास होना थोड़ा लाज़मी होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसा आभास लगाना मेडिटेशन का ही एक बाई प्रोडक्ट होता है। इसे कहते हैं टू माइंड फुलनेस।
माइंड फुलनेस और मेडिटेशन जैसे शब्द कभी कभी एक दूसरे की जगह यूज़ कर लिए जाते हैं। लेकिन ये दोनों एक दूसरे से अलग है। मेडिटेशन एक ऐसी प्रैक्टिस है जिसकी हेल्प से आप माइंड फुलनेस अचीव कर सकते हैं। जब आप माइंड फुलनेस को एक टेक्निक कंसीडर करने लगते हैं तो फिर आप चीजों को सही तरह से देखते नहीं हैं और बस उनके बारे में इधर उधर से जानने का प्रयास करने लगते हैं। जैसे कि मान लीजिए आप किसी व्यक्ति के साथ बात कर रहे हैं। अगर आप उनके शब्दों के पीछे की डीप मीनिंग जानने का प्रयास करने लगेंगे तो हो सकता है आप उस सामने वाले इंसान के द्वारा कही जाने वाली बात का मेन पॉइंट मिस कर दें। ऐसा इसलिए क्योंकि कन्वर्सेशन में आई कांटेक्ट, बॉडी लैंग्वेज जैसी चीजें भी जरूरी होती हैं। ट्रू माइंड फुलनेस की बहुत सारी लेयर होती हैं। जब आप एक समय पर एक ही चीज पर फोकस करते हैं तब आप कुछ चीजों का एक्सपीरिएंस मिस कर देते हैं। लेकिन जब आप माइंड फुलनेस की सभी लेयर को साथ लेकर चलते हैं तब आपका ध्यान सबसे ज्यादा इम्पोर्टेन्ट चीजों पर शिफ्ट हो जाता है।
साफ शब्दों में कहें तो टू माइंड फुलनेस का मतलब है कि आप इस बात को महसूस कर सकें कि आपके आस पास जो हो रहा है वो आपके लिए ठीक है या फिर नहीं। इससे आप को राइट डायरेक्शन दिखने लगती है। कभी कभी आपके साथ ऐसा जरूर हुआ होगा कि आप अपने किसी दोस्त को कॉल करें और वो आपसे बोले अरे मैं अभी बस आपके बारे में ही सोच रहा था। ये कोई कोइन्सिडेन्स नहीं है बल्कि ये आपको अंदर से आभास हुआ है।
टू माइंड फुलनेस तभी किसी इंसान के अंदर डेवलप होती है जब वो अपनी स्ट्रेस से पूरी तरह मुक्त हो जाता है। बिना स्ट्रेस के आप फ्री फील करने लगते हैं और आपका माइंड सही तरह से काम करने लगता है। आपके अंदर का डर कम हो जाता है और आप अपने पास्ट में हुई चीजों को नजरअंदाज करना सीखते हैं। कभी कभी तो आप किसी मोमेंट में इतना खो जाते हैं कि अपने वर्तमान को भी भूल जाते हैं। और यही होता है टू माइंड फुलनेस ।
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कुल मिलाकर
हर इंसान की लाइफ में प्रॉबलम्स हर मोड़ पर मोजूद हैं। लेकिन जब आप खुद को डेवलप करते हैं तो आप अपनी प्रॉबलम्स से लड़ना सीखते हैं और उनको एक चैलेंज की तरह देखते हैं। सवाल यही है कि आखिर किस तरह से आप खुद को डेवलप कर सकते हैं? मेडिटेशन प्रैक्टिस इसका सिंपल से जवाब है। मेडिटेशन की हेल्प से आप खुद को सही डायरेक्शन दे सकते हैं, अपने माइंड को डेवलप कर सकते हैं और अपने परसेप्शन को चेंज कर सकते हैं।
क्या करें
इंटेंशन सेट करना और और किसी चीज के बारे में डिसीजन लेना दोनों ही एक तरह की पॉवरफुल टेक्निक होती है। मेडिटेशन करते टाइम ये आपके रास्ते में आ सकती है। इसलिए जरूरी है कि मेडिटेशन खत्म करने के बाद आप 2 मिनट का टाइम निकालकर इन चीजों के ऊपर भी फोकस करें। मेडिटेशन के बाद इन दोनों को परफॉर्म करने से आपको बेहतर रिजल्ट्स मिल सकते हैं।