इंट्रोडक्शन (INTRODUCTION)
ग्रिट क्या है? दुनिया के जितने भी बेस्ट एथलीट्स, डॉक्टर्स, आर्टिस्ट, एंटप्रेन्योर्स और लायर्स है, इन सबका सीक्रेट है ग्रिट. वर्ल्ड क्लास स्किल्स और ग्रेट परफोर्मेसेस के पीछे भी यही सीक्रेट है. आप अगर एक पैदाईशी टेलेंटेड पर्सन नहीं है तो कोई बात नहीं. आप चाहे जो भी हो, जैसे भी हो, फिर भी आपके पास ग्रिट हो सकती है. इस बुक में आपको हम बताएंगे कि ग्रिट होती क्या है.
आप इस बुक में पढेंगे कि सक्सेस में टेलेंट का कितना हाथ है कितना पार्ट होता है. और आपको क्लियर गोल्स की इम्पोर्टेस भी पता चलेगी और ये भी पता चलेगा कि लाइफ में गिव अप ना करना यानी हार ना मानना कितना जरूरी है. अगर आप भी अपनी फील्ड में बेस्ट बनने का सपना देखते हो और अपनी टू कालिंग का वेट कर रहे हो और एक वर्ल्ड क्लास पर्सन बनना चाहते हो तो ये बुक एक बार जरूर पढ़ के देखो.
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शोइंग अप (SHOWING UP)
सिर्फ 10% एप्लिकेंट्स को ही यूनाइटेड स्टेट्स मिलिट्री एकेडमी में एडमिशन मिल पाता है. और इनमे से ज्यादातर एथलीट्स और हाई स्कूल के टीम कैप्टेन्स होते है. लेकिन इनमे से भी कई सिर्फ दो महीने की ट्रेनिंग के बाद ही एकेडमी छोड़ कर चले जाते है. नए कैडेट्स बीस्ट बैरक्स प्रोग्राम से ट्रेनिंग की शुरुवात करते है. उन्हें रोज़ सुबह 5 बजे उठना होता है. फिर पूरा दिन फिजिकल एक्सरसाइज़, वीपन्स ट्रेनिंग और क्लासरूम लेक्चर्स का सिलसिला चलता है. दिन भर में इन्हें बस तीन ब्रेक्स मिलते है, ब्रेकफ़ास्ट, लंच और डिनर. रात ठीक 10 बजे ये सोने चले जाते है.
ये इनका डेली रूटीन है. दिन-रात सेम चीज़ करना. इनके लिए कोई वीकेंड्स कोई छुट्टी नहीं होती. और खाने के अलावा कोई और ब्रेक भी इन्हें नहीं मिलता है. इन न्यू कैडेट्स को बाहरी लोगो के साथ मिलने की परमिशन नही होती. बीस्ट बैरक्स की ट्रेनिंग कैडेट्स को फिजिकली ही नहीं बल्कि मेंटली और इमोशनली भी ट्रेन करती है. इन्हें स्ट्रोंग बना देती है. और यही मिलिट्री ट्रेनिंग का मतलब होता है, सोल्जेर्स को इतना स्ट्रोंग बना देना कि वो फ्यूचर में आने वाले चेलेंजेस का सामना कर सके. दरअसल इस ट्रेनिंग के जरिये यू.एस. आर्मी ये श्योर कर लेती है कि कौन गिव अप करेगा और कौन ट्रेनिंग पूरी करके ग्रेजुएट बनेगा.
कई साइकोलोजिस्ट की हेल्प से कैडेट्स के लिए टेस्ट क्रिएट किये जाते है जिससे ये पता चल सके कि किसके अंदर क्या क्वालिटी है और इनमे से कौन ट्रेनिंग में टिक पायेगा. लेकिन कोई भी साइकोलोजिस्ट ऐसा कोई परफेक्ट टेस्ट क्रिएट नही कर पाए है. कई बार तो मोस्ट इंटेलिजेंट और एथलेटिक टाइप के कैडेट्स भी ट्रेनिंग के बीच से ही चले जाते है. इतनी हार्ड और इंटेंस टेनिंग पूरी करना सबके बस की बात नहीं है, यहाँ तक कि बेस्ट अचीवर्स भी हार मान जाते है. तो उन कैडेट्स में ऐसी कौन सी क्वालिटी होती है जो ये चार साल का ट्रेनिंग प्रोग्राम कम्प्लीट कर लेते है?
अगर ये उनका इंटेलिजेंस या टेलेंट नहीं है तो फिर क्या सीक्रेट है? मिलिट्री एकेडमी के ट्रेनर्स में से एक माइक मैथ्यूज (Mike Matthews) भी है. और उन्होंने यही से ग्रेजुएशन की है. उनका कहना है कि जैसे ही एडमिशन होता है, न्यू कैडेट्स से ऐसी चीज़े करवाई जाती है जो उन्होंने पहले कभी नहीं की होती. माइक को याद है कि जब वो भी एक कैडेट थे. बैरक्स ट्रेनिंग के सिर्फ दो हफ्तों के अंदर वो भी बाकि क्लासमेट्स की तरह फ्रस्ट्रेटेड और टायर्ड फील करने लगे थे. उनमे से कुछ तो पहले ही ट्रेनिंग छोडकर जा चुके थे लेकिन माइक ने ऐसा नहीं किया. माइक बताते है कि उनके क्लासमेट्स कमजोर नहीं थे बल्कि वो काफी स्ट्रोंग, स्मार्ट और एक्टिव लोग थे. लेकिन मिलिट्री एकेडमी में इसके अलावा भी एक चीज़ मैटर करती है, और वो है कभी गिव अप ना करना.
ऑथर एंजेला डकवर्थ ने मेडिसीन, बिजनेस, लॉ, आर्ट और स्पोर्ट्स की फील्ड के मोस्ट सक्सेसफुल लोगो का इंटरव्यू लिया है. उन्होंने उनसे पुछा कि वो कौन सी क्वालिटीज है जो हमे सक्सेसफुल बनाती है? ऐसा क्या है जो एक्स्ट्राओर्डीनेरी लोगो को बाकियों से अलग बनाता है? एंजेला ने देखा कि ऐसे कई सारे टेलेंटेड लोग है जो अपने करियर में बेस्ट बनने से पहले फेल हो चुके थे. एंजेला ने ये भी ओब्ज़ेर्व किया कि ज्यादातर सक्सेसफुल लोगो की दो कॉमन क्वालिटीज़ होती है. पहली तो ये कि वो फेल होने के बाद भी गिव अप नहीं करते यानी आसानी से हार नही मानते.
ये लोग अपनी स्किल्स इम्प्रूव करते रहते है. जैसे कि एक राइटर जो स्टार्टिंग में कुछ ख़ास नही लिखता था. उसकी स्टोरीज़ मेलोड्रामेटिक और बोरिंग लगती थी. मगर उसने लिखना नही छोड़ा और अपने काम में इम्प्रूवमेंट करता चला गया. बाद में उस राईटर ने एक काफी प्रेस्टीजियस अवार्ड भी जीता. सक्सेसफुल लोगो की दूसरी कॉमन क्वालिटी है कि वो कभी सेटिसफाई नहीं होते. वो अपने काम में इम्प्रूवमेंट करते रहते है. तब तक करते है जब तक कि वो उसके मास्टर ना बन जाये. एक तरह से बोले तो उन्हें अपना काम से प्यार होता है.
टास्क चाहे कितना भी फ्रस्ट्रेटिंग हो,बोरिंग या पेनफुल हो, ये उसे पूरा किये बिना छोड़ते नही. ये लोग अपने सबसे बड़े क्रिटिक्स होते है. इन्हें अपने काम में कोई ना कोई कमी दिख ही जाती है. और नतीजा ये होता है कि ये बेहतर से बेहतर करते चले जाते है. अपने गोल्स को लेकर ये एकदम क्लियर होते है. तो अगर हम इन दो क्वालिटीज़ के नाम रखे तो ये है, प्रीज़ेर्वेस और दूसरी, पैशन. प्रीज़ेर्वेस है हार्ड वर्क और गिरके फिर से उठना. और पैशन है, पक्का इरादा और डायरेक्शन. और इन सब क्वालिटीज़ को हम एक नाम दे सकते है और वो है ग्रिट. यानी पैशन और प्रीज़ेर्वेस.
डिसट्रेक्टेड बाई टेलेंट (DISTRACTED BY TALENT)
सक्सेसफुल होने के लिए सिर्फ टेलेंट से काम नहीं चलेगा. ऐसे कई टेलेंटेड लोग है जो एक लिमिट के बाद सेटिसफाई हो जाते है. ये ना तो प्रेक्टिस करते है और ना ही कोई ट्रेनिंग. इनके अंडर परफॉर्म होने की यही मेन वजह है. दूसरी तरफ ऐसे भी लोग है जो बिलकुल भी स्पेशल नहीं लगते. उनकी स्टार्टिंग एकदम एवरेज लेवल पर होती है. लेकिन वक्त के साथ ये लोग अपनी ग्रिट की वजह से अपने फील्ड के मास्टर बन जाते है. बेशक इनमे टेलेंट हो ना हो मगर अपने पैशन और पर्जेस की वजह से इन्हें सक्सेस मिलती है.
यहाँ हम डेविड लुओंग (David Luong) की स्टोरी लेंगे जो एंजेला के स्टूडेंट हुआ करता था. एंजेला पहले सैन फ्रांसिसको के एक पब्लिक स्कूल में मैथ पढ़ाती थी. उसने नोटिस किया कि जिन बच्चो का मैथ अच्छा था, उन्हें क्लास में एवरेज मार्क्स मिलते थे. लेकिन जो स्टडेंट काफी मेहनत और प्रेक्टिस करते थे, वो टेस्ट और क्विज में काफी अच्छा परफॉर्म करते थे. डेविड इन्ही हार्डवर्किंग स्टूडेंट्स में से एक था. हालाँकि वो मैथ में एवरेज था. डेविड थोडा शर्मिला टाइप था और चुपचाप रहता था. वो बैक बेंचर था.
उसने ना तो क्लास में कभी कुछ पढकर सुनाया था और ना ही बोर्ड पर कोई प्रोब्लम सोल्व करके दिखाई थी. इसके बावजूद वो हमेशा अच्छे मार्क्स लाता था. एंजेला ने नोटिस किया कि डेविड बाकि बच्चो से ज्यादा फोकस्ड और इरादे का पक्का था. अलजेब्रा क्लास के बाद डेविड उससे बडी रिस्केट के साथ बोलता” मैडम, मुझे और एक्सरसाइज़ करने को दीजिये”. एंजेला जो डेविड में पोटेंशियल दिखा. उसने डेविड को एडवांस मैथ प्रोग्राम ज्वाइन करने को बोला. एक साल बाद एंजेला ने उससे उसकी परफोर्मेंस के बारे में पुछा. तो डेविड ने बताया कि मैथ उसके लिए डिफिकल्ट है.
उसे मुश्किल से ए ग्रेड मिलता है, जब उससे कोई प्रोब्लम सोल्व नहीं हो पाती तो वो अपनी टीचर की हेल्प लेता है. फिर वो उन सवालों को दुबारा सोल्व करने की कोशिश करता है. डेविड जब ग्रेजुएट हुआ तो उसे एडवांस्ड कैलकुलस क्लास में नंबर वन पोजीशन मिली थी. एंजेला को पता चला कि डेविड ने कॉलेज में इकोनोमिक्स और इंजीनियरिंग ली है. फिर डेविड ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में पीएचडी की डिग्री ली. और आज डेविड एरोस्पेस कारपोरेशन के लिए काम करता है.
एंजेला अपने इस स्टूडेंट पर काफी प्राउड फील करती है. डेविड एक शर्मीला लड़का था जिसे मैथ में कम नंबर मिलते थे. लेकिन उसके प्रीज़ेस और पैशन ने उसे हाई पोजीशन तक पहुँचा दिया था. कौन सोच सकता था कि डेविड एक दिन राकेट साइंटिस्ट बन जायेगा? उसके पास नैचुरल टेलेंट नहीं था मगर उसके अंदर ग्रिट ज़रूर थी.
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एफर्ट्स काउंट्स ट्वाईस (EFFORTS COUNTS TWICE)
लोग स्पोर्टस में जब किसी अचीवर के बारे में सुनते है, तो उन्हें लगता है कि उसमे जरूर कोई नैचुरल टेलेंट होगा. वो तुंरत सोच लेते है कि वो ज़रूर एक्स्ट्राओर्डीनेरी होगा. लोग अक्सर एथलीट्स को सुपरह्यूमन समझ लेते है. लेकिन ये बस कहने की बात है. स्पोर्ट्समेन के पास कोई जादू की छड़ी नहीं होती फिर भी हमे लगता है कि उनके पास कोई सीक्रेट है. लेकिन उनका सीक्रेट सिर्फ एक है, ग्रिट. इनकी सक्सेस कर राज है कई घंटो की लगातार प्रेक्टिस जो ये हर रोज़ करते है और हारने के बावजूद भी हार नही मानते.
लोग बस ओलंपिक्स में इनकी पोर्मंस देखते है, किसी को उस परफोर्मेंस के पीछे की मेहनत नहीं दिखती. हम इनकी रोज़ की टेनिंग नहीं देखते और ये नही देखते कि ये अपनी लिमिट से बाहर जाकर प्रेक्टिस करते है. क्या आपने ऐसे इन्सान के बारे में सुना है जो डिस्लेक्सिक (dyslexic) होने के बावजूद एक ग्रेट राईटर बना? जी हाँ, हम जॉन इरविंग की बात कर रहे है. वो एक बेस्ट सेलिंग ऑथर और अवार्ड विनिंग स्क्रीन राईटर है. जॉन पढ़ाई में काफी कमज़ोर थे. इंग्लिश में तो उसे हमेशा सी माइनस मिलता था. ग्रेजुएट होने से पहले उसे हाई स्कूल पास करने में दो साल लगे.
दरअसल जॉन डिस्लेक्सिया की सिरियस प्रोब्लम थी. उसे अपना हिस्ट्री असाइनमेंट करने में तीन घंटे लगते थे. उसे ठीक से वर्ड्स लिखने नहीं आते थे. कुछ वर्ड्स तो ऐसे थे जिनकी स्पेलिंग वो हमेशा गलत लिखता था. वो पढता भी बहुत धीरे-धीरे था. अपनी फिंगर को वर्ड्स के उपर रखकर उन्हें पढता था. उसकी इस कंडीशन की वजह से जॉन को पढने-लिखने में ज्यादा टाइम लगता था. वो सेम टेक्स्ट को बार-बार पढता था. उसे इस तरह पढने की आदत पड़ गयी थी. पर जॉन ने डिस्लेक्सिया को एडवांटेज की तरह यूज़ किया. जब वो नॉवेल लिखने बैठता था तो पेजेस को बार-बार पढता था.
उसमे पेशंस और प्रीज़ेर्वेस दोनों थे. जॉन कहते है कि रीराइटिंग एक राईटर का एसेट है. वो फर्स्ट ड्राफ्ट लिखने के बाद उसे दुबारा लिखता था. यही उसकी हैबिट बन गयी थी. जॉन ने 20 से भी ज्यादा नॉवेल्स लिखे है, जिनमे से 5 नॉवेल्स पर मूवी भी बन चुकी है. फेमस एक्टर विल स्मिथ का नैचुरल टेलेंट पर कुछ ये मानना है” मैने कभी भी खुद को टेलेंटेड नहीं समझा बल्कि मै काफी स्ट्रिक्ट वर्क एथिक में बिलीव करता हूँ”. विल स्मिथ ये भी कहते हैं” बाकि एक्टर्स मुझसे बैटर या ज्यादा स्मार्ट और सेक्सी हो सकते है लेकिन वो मुझसे आगे नहीं निकल सकते क्योंकि मै कभी हार नहीं मानता”.
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हाउ ग्रीटी आर यूं (HOW GRITTY ARE YOU)
एक दिन एंजेला डकवर्थ ने व्हार्टन स्कूल में एक लेक्चर दिया. लेक्चर के बाद एक यंग एंटप्रेन्योर उनके पास आया. वो ग्रिट के बारे में और जानना चाहता था. उस आदमी ने बताया कि उसने एक स्टार्ट-अप कंपनी खोली है. और इस बिजनेस से उसने कई थाउजेंड डॉलर कमाए है. वो अपने गोल्स अचीव करने के लिए दिन-रात मेहनत करता है. कई बार तो वो सोता भी नहीं है. उसकी बात सुनकर एंजेला काफी इम्प्रेस हुई. उसने बिजनेसमेन से कहा” ग्रिट का मतलब इंटेंसिटी से कहीं ज्यादा स्टेमिना के बारे में है”. और अगर तुम दो साल बाद भी इसी प्रोजेक्ट पर रहोगे तो मुझे मेल कर सकते हो”.
उस आदमी ने कहा’ मै शायद अगले दो साल कोई और स्टार्ट-अप नही करूँगा”. एंजेला ने उसे बोला कि अगर तुम अपने एटीट्यूड में ग्रिट लाना चाहते हो तो जो चीज़ तुम कर रहे हो, उसे कंटीन्यू करते रहो. चाहे तुम कंपनी चेंज कर लो लेकिन अपना पैशन और डायरेक्शन सेम रखो. यानि एक ही इंडस्ट्री या करियर पाथ में बने रहो. एक चीज़ छोडकर दूसरी चीज़ में हाथ डालना ग्रिट नहीं है. क्योंकि बेस्ट बनने का कोई शोर्टकट नहीं है. जिस चीज़ में आपको एक्सपर्ट या एक्स्ट्राओर्डीनेरी बनना है और सक्सेस अचीव करनी है, उसी चीज़ की आपको लंबे टाइम तक प्रेक्टिस करनी पड़ेगी.
जिसके पास ग्रिट होती है, वो अपने काम से इतना प्यार करता है कि चाहे कुछ भी हो जाए वो कभी गिव अप नहीं करता. ग्रिट का मतलब नहीं है कि आप किसी एक करियर से प्यार करो बल्कि आपको जो काम पसंद है, उस काम से हमेशा प्यार करते रहो. लेकिन आपकी लाइफ का पैशन क्या है, ये आपको कैसे पता चलेगा? वारेन बफे (Warren Buffet,) बिजनेस मैनेग्नेट इसका एक सिंपल तरीका बताते है जिसमे तीन स्टेप्स है. सबसे पहले, एक पेपर में अपने करियर गोल्स लिखो. 25 के करीब गोल्स बुलेट पॉइंट्स में लिखो. सेकंड स्टेप, जो लिखा है उस पर फोकस करो. ऐसे पांच गोल्स चूज़ करो जो आपके लिए मोस्ट इम्पोर्टेट है. इन पांचो गोल्स को सर्कल कर लो. थर्ड स्टेप, जो 20 गोल्स आपने सेलेक्ट नही किये, उन्हे इग्नोर कर दो. क्योंकि ये आपकी एनेर्जी और टाइम दोनों वेस्ट करेंगे. ये आपको आपके इम्पोर्टेट गोल्स से भटका सकते है.
एंजेला डकवर्थ ने ये खुद ट्राई किया है. उसे रिएलाइज हुआ कि उसके 5 मेन गोल्स से 4 का अब कोई मतलब नहीं है इसलिए उन्हें इग्नोर करना चाहिए. एंजेला का अल्टीमेट पैशन था कि वो बच्चो को उनकी ग्रोथ और डेवलपमेंट में हेल्प कर सके. आपके करियर पाथ में । आपका सिर्फ एक पैशन होना चाहिए. नाकि 25 या 5. क्योंकि हमे अपनी लिमिटेड एनेर्जी और टाइम बेकार की चीजों में वेस्ट नही करना है. जो चीज़ आपका फोकस है उसे अपना 100% दो. अपनी स्किल्स इम्प्रूव करते रहो, फिर चाहे जो भी चेलेंज आये, उसे फेस करो. इंटरेस्ट (Interest) ” फोलो योर पैशन” ये एडवाइस बहुत से सक्सेसफुल लोगो ने दी है. यही सेम चीज़ हमेशा ग्रेजुएशन स्पीच में भी बोली जाती है. “वही करो जो आपको पंसद हो” या अपने पैशन को अपना प्रोफेसन बनाओ”
यही बात साइंटिस्ट भी मानते है. स्टडीज से पता चला है कि जब लोग अपनी पसंद का काम करते है तो उन्हें काम करने में ज्यादा मज़ा आता है. करीब 100 डिफरेंट रिसर्च स्टडीज से ये बात भी प्रूव हो चुकी है. जैसे कि अगर कोई बहुत सोशल टाइप पर्सन है तो उसे ऐसी जॉब बिलकुल भी पसंद नहीं आयेगी जहाँ उसे सारा दिन कंप्यूटर के सामने बैठना पड़े. ऐसे लोगो को सेल्स एजेंट या टीचर का काम सूट करेगा. इन 100 स्टडीज से एक कॉमन बात पता चली कि जिन लोगो को अपने काम से प्यार होता है, उनकी पर्सनल लाइफ भी ज्यादा अच्छी होती है.
इसके अलावा ये लोग अपने काम में एक्सपर्ट होते है. इन्हें अपना काम पसंद होता है इसीलिए ये बैटर परफॉर्म कर पाते है. ये लोग अपने साथियों के साथ ज्यादा को-ऑपरेटिव भी होते है. अपनी जॉब में काफी लम्बे टाइम तक टिक कर काम करते है. बेशक इनके सामने भी कई चेलेन्जेस आते है लेकिन ना तो ये काम छोड कर जाते है और ना ही करियर चेंज करते है. ये लोग अपनी हर प्रोब्लम को अच्छे से हैंडल कर लेते है. हालाँकि स्टडीज से ये बात भी सामने आई है कि दुनिया में सिर्फ 13% लोग ही अपना पैशन फोलो करते है.
इसका मतलब सिर्फ 13% लोग ही अपने काम से प्यार करते है. तो बाकियों का क्या हुआ? शायद ये हमारी सोसाईटी की प्रोब्लम है कि यहाँ बच्चो को उनका पैशन । फोलो करने रोका जाता है जैसे कि सिंगिंग, डांसिंग, पेंटिंग राईटिंग या एक्टिंग. क्योंकि ये सब अच्छे प्रोफेशन नहीं समझे जाते. पेरेंट्स को लगता है कि अगर बच्चे अपना पैशन फोलो करेंगे तो उनका कोई करियर नहीं बनेगा और वो सडको में भीख मांगेंगे. लेकिन ऐसा नहीं है. कई लोगो ने अपना पैशन पूरा किया और सक्सेसफुल सिंगर, डांसर, पेटर, राइटर और आर्टिस्ट बनके नाम कमाया है.
उन्हें जो पसंद था, उन्होंने वही फोलो किया. उन्होंने अपनी स्किल्स इम्प्रूव की और अपने लिए एक स्टेबल सोर्स ऑफ़ इनकम क्रिएट की. हमे अपने बच्चो को उनके शौक पूरे करने से रोकना नहीं चाहिए. वो जो बनना चाहे उन्हें बनने दे, एस्ट्रोनोमर, प्रोग्रामर या फिलोसफ़र. जो काम हमे पसंद है उसकी ज्यादा से ज्यादा प्रेक्टिस हमे उस काम का एक्सपर्ट बना देती है. और ऐसा नही है कि हॉबी को प्रोफेशन या पैसे कमाने का जरिया नहीं बनाया जा सकता, बिलकुल बनाया जा सकता है. जिस काम में आप एक्सपर्ट हो, उस काम के आपको उतने ही अच्छे पैसे मिलते है. लेकिन आपको अब तक अपना पैशन नहीं मिला तो कोई बात नहीं. टेंशन मत लो. हर किसी को अपना यूरेका मोमेंट मिलने में थोडा टाइम तो लगता ही है.
एक्जाम्पल के लिये, स्विमिंग के ओलिंपिक गोल्ड मेडेलिस्ट राऊडी गैंस (Rowdy Gaines) बताते है कि उन्हें बचपन में हर टाइप का स्पोर्ट पसंद था. हाई स्कूल में उन्होंने एक के बाद एक टेनिस, गोल्फ, बास्केटबॉल, और फुटबाल टीम ज्वाइन की. उन्होंने सोचा कि सारे स्पोर्ट्स ट्राई करने के बाद उन्हें अपनी चॉइस का स्पोर्ट पता चल जाएगा. राऊडी (Rowdy ) ने अपनी स्विमिंग टीम भी ट्राई की. ऐसा नही था कि पहली बार में ही स्विमिंग से उन्हें प्यार हो गया था. उन्होंने कई बार ट्राई किया और प्रेक्टिस करते रहे. राऊडी ने लाइब्रेरी में स्वीमिंग के ट्रेक और फील्ड के बारे में बुक्स पढ़ी. और उसके बाद उन्होंने ट्रेक और फील्ड ट्राई किया.
अवार्ड विनिंग शेफ मार्क वेत्री (Marc Vetri) की भी सेम स्टोरी है. कॉलेज के बाद उन्होंने म्यूजिक स्कूल ज्वाइन कर लिया और रात को एक रेस्ट्रोरेन्ट में वेटर की जॉब करने लगे. म्यूजिक का शौक उन्हें काफी पहले से था. एक टाइम था जब वो एक बैंड में प्ले करते थे. इसलिए अपने म्यूजिक को सपोर्ट करने के लिए वो दिन में कुक का काम करते थे. फिर उन्होंने देखा कि वो रेस्ट्रोरेन्ट की जॉब से ज्यादा कमा रहे है और उन्हें कुकिंग भी पसंद आने लगी. फिर क्या था, अपने इसी नए पैशन को आगे बढ़ाने के लिए वो इटली चले गए और अपना ड्रीम पूरा किया.
प्रेक्टिस (PRACTICE)
आपको 10 साल के लिए कम से कम 10,000 घंटे की प्रेक्टिस करनी होगी तब जाकर आप किसी फील्ड के मास्टर बन सकते हो. ये बात कई लोगो के साथ एकदम सच पूव हुई है जैसे कि बैलेरीनाज़, वायोलिन बजाने वाले आर्टिस्ट, बास्केटबाल प्लयेर या फिर किसी भी फील्ड के लोग. लेकिन अगर आप लंबे टाइम तक सेम चीज़ करोगे तो सक्सेस नहीं मिलेगी. आपकी स्किल में इम्प्रूवमेंट । आना जरूरी है. जब एक ख़ास गोल हासिल हो जाए तो दुसरा गोल सेट कर लो. और फिर एक और नया गोल. सक्सेसफुल लोगो को अपने वीक पॉइंट्स पता होते है और वो उन्हें दूर करने की कोशिश करते है. लेकिन वो हार नहीं मानते. और ना कभी सेटिसफाई होते है. ये लोग अपनी परफोर्मेंस में कोई ना कोई इम्प्रूवमेंट करते रहते है.
अगर आप इसका ग्राफ बनाये तो पता चलेगा कि जो लोग अपने करियर की स्टार्टिंग में ही गिव अप कर लेते है, वो अपनी स्किल्स में पीछे रह जाते है. हर रोज़ सेम चीज़ रीपीट करने वाले भी इम्प्रव नही करते. मगर वर्ल्ड क्लास एक्सपर्ट अपनी स्किल्स में लगातार इम्प्रूवमेंट लाते रहते है. यही सक्सेस का आईडिया पाथ है. प्रोफेसर एंडर्स एरिकस्सन (Professor Anders Ericsson) एक साइकोलोजिस्ट है जिन्होंने वर्ल्ड क्लास अचीवर्स को काफी करीब से स्टडी किया है. एक दिन एक लेडी ने उनसे एडवाइस मांगी “सर, मै रोज़ सुबह एक घंटे जोगिंग करती हूँ लेकिन मेरी परफोर्मेंस इम्प्रूव नहीं हो रही. मेरा सपना है कि मै ओलंपिक्स में जाऊं”. प्रोफ़ेसर एरिकस्सन (Professor Ericsson) ने उससे पुछा” क्या जोगिंग करते वक्त तुम्हारा कोई खास टारगेट होता है?’
उसने कहा” फिट और हेल्दी रहने के लिए?; तो प्रोफेसर ने कहा” जब तुम रनिंग करती हो तो एक फिनिश टाइम या डिस्टेंस का टारगेट रखो. तुम्हारे अंदर कोई स्पेशिफिक क्वालिटी होनी चाहिए जिसे तुम इम्प्रूव कर सको”. फिर उन्होंने उस लेडी से पुछा कि वो रनिंग करते वक्त क्या सोचती है. तो उसने कहा” कभी-कभी मै अपने दिन भर के कामो के बारे में सोचती हूँ या फिर डिनर के लिए क्या बनाऊ ये सोचती हूँ”. प्रोफसर ने कहा” तुम्हे अपनी प्रोग्रेस का ट्रेक रखना होगा. अपने डेली के डिस्टेंस, पेस, हार्ट रेट और इंटरवल्स का रिकॉर्ड रखना स्टार्ट कर दो. अगर तुम रोज़ सेम तरीके से रनिंग करोगी तो कभी इम्प्रूवमेंट नही कर पाओगी”…
ओलिंपिक स्विमर राऊडी गैंस (Rowdy Gaines ) हर रोज़ अपना खुद का रिकोर्ड तोड़ने की प्रेक्टिस करते थे. जैसे अगर आज उन्होंने 1.15 मिनट में 100 मीटर्स के 10 लेप्स किये तो अगले दिन वो 1.14 मिनट में 10 लेप्स करने की कोशिश करते थे. एनबीए (NBA )सुपरस्टार केविन दुरंत (Kevin Durant)को अकेले प्रेक्टिस करना पसंद था ताकि वो अपने वीक पॉइंट्स पर फोकस कर सके. दुरंत कहते है कि हर प्रेक्टिस में वो अपनी परफोर्मेंस का हर हिस्सा परफेक्ट बनाने की कोशिश करते है.
अतुल गावंडे जोकि एक एक्सपर्ट सर्जन है, वो कहते है कि लोग सोचते है कि एक सक्सेसफुल सर्जन होने के लिए आपको अच्छे हाथो की जरूरत है. लेकिन सच तो ये है कि एक अच्छा सर्जन बनने के लिए हर रोज़ एक डिफिकल्ट प्रोसीज़र से गुजरना पड़ता है. फेमस मैजिशियन डेविड ब्लेने(David Blaine,)ने पानी के अंदर 17 मिनट तक साँस रोक कर वर्ल्ड रिकॉर्ड तोडा था. अपने टेड टॉक में उन्होंने बताया कि जो चीज़ हमे इम्पॉसिबल लगती है, उसे करने के लिए घंटो की प्रेक्टिस और ट्रेनिंग की ज़रूरत पड़ती है. जिसका मतलब है कि हर बार हमे अपनी लिमिट पुश करनी होती है. यानी अपनी लिमिट को हर बार बढ़ाना है. और डेविड ब्लेने के लिए तो मैजिक का असली मतलब यही है.
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पर्पज (PURPOSE)
दुनिया में जितने भी सक्सेसफुल लोग है उनके पास एक पर्पज होता है जो उनकी खुद की लाइफ से बड़ा होता है. पर्पज वो डिजायर है जो दूसरो की वेल बीइंग को इम्प्रूव करे. कोई भी सक्सेस जर्नी एक इंटरेस्ट के साथ स्टार्ट होती है. यानी एक ऐसा काम ढूंढना जो आप एन्जॉय करो. अगली स्टेज है प्रेक्टिस और सेल्फ डिस्प्लीन. अपना करियर कभी मत छोड़ो चाहे कितनी भी मुश्किलें आये.
और फाइनल स्टेज है पर्पज़. आप जो भी करते हो, उसका एक ग्रेट पर्पज तो होना ही चाहिए. आपको ये भी देखना है कि आपके पर्पज से दूसरो का कितना भला हो रहा है. आप इसे ब्रिकलेयर्स यानी ईंट बिछाने वालो की स्टोरी से समझ सकते है. एक दिन, तीन ब्रिकलेयर्स धूप में काम कर रहे थे. तभी एक अजनबी आया और उनसे पुछा” तुम लोग क्या कर रहे हो?’ पहले ब्रिकलेयर ने जवाब दिया” मै ईंटे बिछा रहा हूँ”. दुसरे ने कहा” मै एक चर्च बना रहा हूँ”. तीसरे ने बोला” मै भगवान का घर बना रहा हूँ”.
तो बात ये है कि पहले ब्रिक लेयर के लिए ये सिर्फ एक जॉब है. ईंटे बिछाना उसका काम है और वो इस काम को इसी तरह देखता है. दुसरे के लिए ये एक करियर है. मगर तीसरे वाले के लिए एक पैशन. वो इस काम को अपना हाई पर्पज मानकर करता है. इसलिए जो लोग अपने काम में कोई पर्पज ढूंढ लेते है वो औरो के मुकाबले ज्यादा सक्सेसफुल होते है. यही लोग अपने काम से हमेशा खुश रहते है. सिर्फ काम में ही नहीं बल्कि लाइफ के हर फील्ड में ये खुश रहते है. ये लोग इस दुनिया को एक बैटर प्लेस बनाने की कोशिश करते है. अपने लिए भी और दूसरो के लिए भी. तो आपके पास क्या है?
आपका काम आपका सिर्फ जॉब है, या करियर है या पैशन? क्या आप सिर्फ पैसे कमाने लिए काम करते है? क्या आप प्रोमोशन के लिए काम करते है? या आप औरो की लाइफ बैटर बनाने के लिए काम करते हो? इस बात को आप इस स्टोरी से समझोगे. जेन गोल्डन फिलाडेलफीया की एक म्यूरल आर्टिस्ट है. वो जब 29 की थी तो उसे पता चला कि उसे लुपस कैंसर है. डॉक्टर ने उसे बोल दिया था कि उसके पास अब ज्यादा टाइम नही है.
जेन इस खबर से बुरी तरह हिल गयी थी. लेकिन उसने डिसाइड किया कि कैंसर की वजह से वो जीना नही छोड़ेगी. वो अपने होम टाउन चली गयी और वहां एक लोकल एंटी ग्रेफिटी प्रोग्राम में हिस्सा ले लिया. और अगले 30 सालो में जेन ने इस प्रोग्राम को वहां से सबसे बड़े पब्लिक आर्ट इनिशिएटिव में बदल दिया था. जेन अब 60 साल की हो चुकी है और काफी जिंदादिल है. वो पूरे हफ्ते दिन-रात काम करती है, उसे अपने काम से प्यार है.
जेन अपनी कम्यूनिटी के लोगो को म्यूरल पेंटिंग सिखाती है. हालाँकि लुपस अटैक उसे अभी भी आते है, उसे काफी पेन होता है. लेकिन जेन दुखी रहकर जीने में यकीन नहीं रखती. वो पूरे जोश के साथ अपना काम करती है
और दूसरो को भी मोटिवेट करती है. जेन लोगो को आर्ट सिखाकर एक तरह से उनकी हेल्प करती है. क्योंकि जेन को लगता है” आर्ट सेव्स लाइव्स” यानी आर्ट जिंदगी बचाता है.
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कनक्ल्यूजन (CONCLUSION)
ग्रिट है पैशन और प्रीज़र्वनेस (Grit is passion plus perseverance) यानी वो करना जो आपको दुनिया में सबसे ज्यादा पसंद हो, और उसके बारे में जानना. ग्रिट का मतलब है अपनी लिमिट्स को पुश करना, आप हमेशा खुद को लिमिट में बाँध लेते है और अपने सपनो तक कभी नहीं पहुंच पाते. लेकिन अपनी कमजोरियों को अपने रास्ते की रुकावट मत बनने दो. खुद को ही चेलेंज दो.
याद रखो जो इन्सान खुद की कमियों को जानता है वही उन्हें दूर कर सकता है. अब, जबकि आप जान चुके है कि वर्ल्ड क्लास बनने के लिए सिर्फ टेलेंट की नहीं बल्कि प्रेक्टिस की भी जरूरत पड़ती है. और आपको 10,000 घंटे की प्रेक्टिस की जरूरत है. जिससे आपके अंदर लगातार इम्प्रूवमेंट होती रहेगी. और इसके लिए आपके पास कोई हाई पर्पज़ होना चाहिए. एक कहावत है कि जब जागो तब सवेरा इसलिए अभी भी कोई देर नहीं हई है. अपना गोल्स और प्रीज़ेर्वर ढूंढो और चाहे जो कुछ हो, अपनी ग्रिट कभी मत छोड़ो.