फिलोसोफी का मतलब होता है समझदारी से प्यार।
इससे पहले हम फिलोसोफी पढ़ें, हम ये जानने की कोशिश करते हैं कि फिलोसोफी यानि दर्शनशास्त्र क्या है। फिलोसोफी शब्द का जन्म ग्रीक शब्द फिलॉसफिया से हुआ है जिसका मतलब है समझदारी से प्यार करना।
इसके नाम से ही साफ है कि हम अपनी रोज़ की जिन्दगी में जो भी काम समझदारी से करते हैं वो फिलोसोफी है। अब चाहे ये समझदारी हम बाजार में मोल भाव करते समय दिखाएँ या फिर कोई बड़ा काम करते वक्त।
समझदारी और चालाकी में बहुत अंतर होता है। अगर आप किसी से बहस करके उसे बहस में हरा देते हैं तो आप चालाक हैं लेकिन अगर आप उससे बहस करते ही नहीं है तो आप समझदार हैं। फिलोसोफी हमें समझदारी सिखाती है चालाकी नहीं।
फिलोसोफी का मतलब ये भी होता है कि आप अपनी जिन्दगी से जुड़ी चीजों के बारे में छोटे बड़े सवाल करें। इन सवालों में से कुछ सवाल इस तरह के हो सकते हैं-:
मुझे अपनी सेहत बनाए रखने के लिए कितना खाना चाहिए?
फिलोसोफी सिर्फ छोटे छोटे सवालों के बारे में ही नहीं है बल्कि इसका नाता बड़े बड़े सवालों से भी है। बड़े बड़े सवाल कुछ इस तरह के हो सकते हैं-:
इस दुनिया को किसने और क्यों बनाया?
अगर इस दुनिया को भगवान ने बनाया है तो फिर भगवान को किसने बनाया?
तो इन सभी बातों से एक बात साफ़ है कि फिलोसोफी का मतलब है अपनी जिन्दगी से जुड़े छोटे बड़े सवाल पूछना। इन सवालों से आप अपनी जिन्दगी के फैसलों को अच्छे से ले सकते हैं। इसे ही समझदारी कहते हैं और समझदारी ही फिलोसोफी है।
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आपका कुछ भी सोचना आपने होने का सबूत है।
क्या कभी कभी आपको ऐसा लगता है कि आपके आस पास की चीजें सिर्फ एक भ्रम है? क्या आप सच और सपने में अंतर जानना चाहते हैं।इस सबक में हम देस्कार्त (Descartes) की बातों को समझने की कोशिश करेंगे। देस्कार्त के एक फ़्रांसिसी फिलॉसफर थे जिन्होंने इस सवाल का जवाब दिया -:
क्या हमारा कोई अस्तित्व है या फिर हमें सिर्फ लगता है कि हम हैं? हम कैसे जान पाएंगे कि हम सपना देख रहे हैं या फिर जाग रहे हैं?
देस्कार्त ने इस बात को समझने के लिए अपने आस पास की सभी चीजों पर शक करना शुरू कर दिया। देस्कार्त को सिर्फ एक ही चीज पर पूरा विश्वास था कि वो शक कर रहे थे। अपने शक करने पर शक ना करके उन्होंने हर चीज पर शक किया।देस्कार्त ने बताया कि अगर वे शक कर रहे हैं तो वे सोच रहे हैं। अगर वे सोच रहे हैं मतलब उनका अस्तित्व है। उनके हिसाब से आपका सोचना ही आपके होने का सबूत है।
देस्कार्त ने एक प्रसिद्ध पंक्ति दी- कोगितो इर्गो सम (Cogito, ergo sum)। इसका मतलब है – मैं सोचता हूँ इसलिए मैं हूँ।इसका मतलब है कि अगर आप सोचते हैं कि आप मर चुके हैं या फिर सपना देख रहे हैं या अगर आप सोचते हैं कि आपके आस पास की चीजें सिर्फ एक वहम है तो भी आपका अस्तित्व है क्योंकि आप सोच रहे हैं।
अपने व्यवहार को अच्छे से समझने के लिए हमें ईगो और सुपरईगो के बारे में जानना होगा।
क्या आप कभी कभी कुछ ऐसे काम करते हैं जिन्हें करने का आपका मन नहीं करता? हम सभी ने ऐसे काम जरूर किए हैं। लेकिन मन ना करने पर भी हम ऐसे काम क्यों करते हैं? इसका जवाब है सुपरईगो की ईगो पर जीत की वजह से।
20वीं शताब्दी में सिग्मंड फ्रीउड (Sigmund Freud) नाम के एक न्युरोलॉजिस्ट ने दिमाग को समझने की कोशिश की। उन्होंने बताया कि हमारे अंदर ईगो और सुपरईगो नाम की दो चीजें पाई जाती हैं। आइए इसे समझने की कोशिश करें।
ईगो हमेशा हमें आराम की तरफ लेकर जाता है। इसे ज्यादा तनाव में रहना नहीं पसंद है और ये बिल्कुल नहीं चाहता कि ये अपने बिस्तर को छोड़कर उठे और काम पर जाए।
दूसरी तरफ सुपरईगो हमारे अंदर की वो भावना है जो हमें वो काम करने पर मजबूर करती है जो जरूरी या सही है। घर की सफाई करना भले ही आपको ना पसंद हो लेकिन आप फिर भी घर साफ करेंगे क्योंकि वो काम जरूरी है।
ईगो हमें हमारी जरूरतों के बारे में बताता है जबकि सुपरईगो दुनिया की ज़रूरतों के बारे में।
जिसका सुपरईगो उसके ईगो पर हावी होता है वो एक अच्छा इंसान कहा जाता है। जैसे कि अगर कोई आपको उस गलती के लिए डाँट रहा है जो आपने नहीं की तो अगर आपका सुपरईगो हावी है तो आप उससे विनम्रता से बात करके उसे समझाने की कोशिश करेंगे।
रोज सुबह उठकर काम पर जाना किसी को भी नहीं पसंद है लेकिन फिर भी वे काम पर जाते हैं क्योंकि उनका सुपरईगो उनके ईगो से जीत जाता है।
आप भीड़ के साथ रहकर अपनी किस्मत पर जीत हासिल नहीं कर सकते।
नीटज़सचे (Nietzsche) अपने सुपरमैन के कॉन्सेप्ट की वजह से जाने जाते हैं। सुपरमैन वे होते हैं जो सपनों की दुनिया को छोड़कर अपनी हकीकत को अपनाते हैं।आज ज्यादातर लोग एक ही तरह का काम कर रहे हैं। वे रोज़ अपने घर से काम पर भागते हैं और तनाव में जीते हैं। अगर आप भीड़ में रहेंगे तो आप भी समय के साथ ऐसे ही हो जाएंगे।
हम सभी लोग अक्सर ही तनाव से परेशान हो कर अपने खयालों में उन चीज़ों के बाते में सोचते हैं जिनका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं होता। उदाहरण के लिए उस आदमी को ले लीजिए जिसे पैसों की ज़रूरत है। वो अपनी आँखों के सामने रखी हुई चीज के बारे में ना सोचकर ये सोच रहा है कि जिस दिन वो करोड़पति बनेगा उस दिन दुनिया घूमेगा।
भीड़ में रहने वाले लोग अक्सर ही ऐसे ख्वाब देखते हैं। अगर आप सुपरमैन बनना चाहते हैं तो आपको अपने असली हालातों को अपनाना होगा भले ही वे आपको अच्छे ना लगते हों।
खयालों में रहने वाले लोग कमजोर होते हैं। वे अपने असली हालातों को गले नहीं लगा पाते इसलिए वे एक ऐसी दुनिया में खोए रहते हैं जो कि है ही नहीं।
सुपरमैन वर्तमान में रहकर हर एक पल का आनंद लेते हैं और इसी तरह से वे अपनी किस्मत के मालिक बन जाते हैं।
पैसों की गुलामी की जंजीरों को तोड़ दीजिए।
आप अपनी नौकरी को किस नज़र से देखते हैं। क्या आप सारा दिन काम करने के बाद भी गरीबी में जी रहे हैं? लोगों को लगता है कि वो नौकरी से आराम कमा सकते हैं । इसलिए वे हर रोज़ अपने आराम को छोड़ कर काम करने जाते हैं। उन्हें खुद नहीं पता कि वे जीने के लिए काम कर रहे हैं या काम करने के लिए जी रहे हैं। तो फिर नौकरी का मतलब क्या होता है? नौकरी का सीधा सा मतलब होता है अपने काम के बदले में पैसे लेना।
19 वीं शताब्दी में कार्ल मार्क्स ने नौकरी को एक अलग नज़र से देखने की कोशिश की। उनकी माने तो एक मजदूर हमेशा गरीब इसलिए रहता है क्योंकि वो पैसों की गुलामी करता है और एक गुलाम का गरीब होना आम बात है।
दूसरी तरफ एक एम्लायर ऐसे गुलामों का मालिक होता है और मालिक का अमीर होना भी एक आम बात है।
गरीब मजदूर हमेशा अमीरों के बनाए हुए ढाँचे में काम कर के उनको अमीर बनाते रहते हैं और क्योंकि अमीरों का काम पहले से ही कोई और कर रहा है इसलिए वे कम काम कर कर भी अच्छे पैसे कमाते हैं।
कार्ल मार्क्स ने दुनिया भर के मजदूरों को ये बातें समझाने की कोशिश की और उन्हें अपनी गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए उकसाया। आप अगर इन सभी बातों को अपने आप से जोड़ें तो आप पाएंगे की आपके पास खोने के लिए सिर्फ आपकी बेड़ियाँ हैं।
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अमीर बनने के लिए आपको ज्यादा मेहनत और कम आराम करना होगा।
कार्ल मार्क्स ऐसे अकेले व्यक्ति नहीं थे जिन्होंने लोगों को अमीरी या गरीबी के बारे में बताया। उनके बाद मैक्स वेबर नाम के एक समाजवादी ने लोगों को अमीर बनने का एक दूसरा रास्ता बताया। वेबर की मानें तो ज्यादा मेहनत और कम खर्च करना अच्छी आदत है जो हमें भगवान के करीबले आती है। भगवान के करीब आ जाने की वजह से सम्पत्ति भी हमारे पास आ जाती हैं।
दूसरी तरफ ज्यादा पैसे खर्च करना अच्छी आदत नहीं है क्योंकि वो हमें भगवान से दूर ले जाता है जिससे सम्पत्ति भी हमसे दूर चली जाती है।
वेबर के हिसाब से अगर आपको अमीर बनना है तो आपको ज्यादा से ज्यादा मेहनत करनी होगी और कम से कम आराम करना होगा। अपनी जरूरतों को कुर्बान कर के आप अमीर बन सकते हैं।
एक सरल और सीधी जिन्दगी ही हमें अमीर बनने के रास्ते पर लेकर जाएगी। दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं जो गरीब थे लेकिन उन्होंने ऊपर तक का रास्ता तय किया। वे ऐसा सिर्फ इसलिए कर पाए क्योंकि उन्होंने एक सरल जिन्दगी को अपनाया।
महिलाओं और पुरुषों के बीच के अंतर को खत्म कर के हम समाज में शांति ला सकते हैं।
हमारे समाज की ये भावना शुरूआत से रही है कि वो महिलाओं और पुरुषों को अलग नज़र से देखता है। ऐसा माना जाता रहा है कि पुरुष ताकतवर होते हैं और उनमें भावनाएं बहुत कम या नहीं होती। दूसरी तरफ ये माना जाता रहा है कि महिलाएं कमजोर होती हैं और उनमें बहुत सारी भावनाएं होती हैं।समाज की यही आदत आज एक समस्या बन गई है। अक्सर ही आपने लोगों को यह कहते हुए सुना होगा कि –
लड़कियों को ज्यादा नहीं बोलना चाहिये।
या फिर आपने सुना होगा कि
लड़के रोते नहीं है।
फ्रान्स की महिलाओं ने इस समस्या से निपटने के लिए लोगों को सलाह दी कि वे इस भेद भाव को खत्म करें। लड़के और लड़कियां एक जैसे ही होते हैं। उनके शरीर में अंतर हो सकता है लेकिन अंदर से उनमें कोई अंतर नहीं होता।
अपने समाज को एक नया रूप देने के लिए आप भूल जाइए कि लड़के और लड़कियां या महिला और पुरुष नाम के कोई शब्द होते हैं। आप सिर्फ लोगों को इंसान के नाम से जानिए और ये सोचिए कि सब एक ही भगवान के बनाए हुए हैं । भेद भाव करना हमारी फितरत में है भगवान की नहीं।
अपने दुख से आजादी पाने के लिए आप ध्यान का सहारा लीजिए।
ध्यान का मतलब होता है अपने मन को इधर उधर की बातों में ना उलझा कर उस चीज़ पर फोकस करना जो इस समय आपके सामने है। ध्यान का मतलब है हमेशा प्रेजेन्ट में रहना और बीती बातों को छोड़कर आगे बढ़ना।
बुद्ध धर्म के हिसाब से ध्यान की मदद से आप अपने दिमाग की क्षमता के बढ़ा कत उसे हमेशा होश में और काबू में रख सकते हैं। कुछ लोग खुशी पाने के लिए उन चीज़ों के बारे में सोचते हैं जो उनके पास नहीं है लेकिन बुद्ध धर्म में हम सिर्फ़ उस चीज़ पर ध्यान लगाते हैं जो हमारे पास है।
हमारा सोचना ही हमारे दुखी होने का कारण है। हम अपने मन को उन चीज़ों या लोगों पर लगते हैं जो हमें प्यारे हैं पर हमारे पास नहीं है। यही ख्वाहिशें हमारे लिए दुख लेकर आती हैं और हमें उन चीज़ों पर ध्यान नहीं लगाने देती जो इस समय हमें खुशी दे सकती हैं।
आप अपने आप को इसपर में पूरी तरह से डुबो लीजिए। हर एक साँस के साथ अपनी धड़कन को महसूस कीजिए। अपने सामने रखी हुई चीजों को देखिए और उसके रंग ढंग में खो जाइए। ऐसा करने पर आप अपने मन को भटकने से रोक कर सुकून पा सकते हैं।
हम सभी इस दुनिया की यादों का एक हिस्सा हैं।
क्या आपने कभी सोचा है कि सपने क्यों और कहाँ से आते हैं? क्या आपने कभी सोचा है कि सो जाने के बाद आपके साथ क्या होता है? एक आम आदमी एक दिन में 6 घंटे सोता है। इस हिसाब से हम अपनी जिन्दगी का एक चौथाई भाग सोने में ही बिता देते हैं।
कार्ल जंग (Carl Jung) नाम के एक साइकोएनालिस्ट ने सपनों पर स्टडी की। वे सिग्मण्ड फ्रीउड के राइवल थे।
आइए देखें कि उनका का नींद और सपनों के बारे में क्या कहना है।
कार्ल जंग के हिसाब से जब हम सोते हैं तो हमारे साथ साथ सारी दुनिया सोती है।
उनकामानना था कि हम नींद में होश में नहीं होते और हमारे साथ ही ये दुनिया भी बेहोश होती है।। जब हम सपना देखते हैं तो हम सभी इस बेहोश दुनिया का एक हिस्सा होते हैं और एक दूसरे से जुड़े हुए होते हैं।
हमारे सपने देखने पर ये सारी दुनिया सपने देखती है और इस समय हम सभी एक दूसरे से जुड़े हुए होते हैं। इस हिसाब से जब हम सोते हैं तो हम एक बहुत बड़े नेटवर्क का हिस्सा होते हैं और दुनिया की यादों और सपनों से जुड़े हुए होते हैं। इस प्रकार सपने हमें इस दुनिया से जोड़ने का काम करती है।
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कुल मिला कर
फिलोसोफी की मदद से हम अपनी जिन्दगी के फैसलों को सोच समझ कर लेते हैं। इसमें हम अपने आप से छोटे बड़े सवाल पूछते हैं
और उनका जवाब पाने की कोशिश करते हैं। दुनिया भर के फिलॉसफर्स ने हमें अपने आस पास की चीज़ों को समझने और उन पर सवाल करने के नए नए तरीके बताए जिनकी मदद से हम अपनी जिन्दगी से जुड़ी सभी चीजों के बारे में अच्छी जानकारी हासिल कर सकें।