A Beautiful Mind by Sylvia Nasar Book Summary in Hindi

A Beautiful Mind

A Beautiful Mind Book Summary in Hindi

बचपन से ही जॉन का झुकाव गणित की तरफ था।

फिलॉसफर और वैज्ञानिकों के बारे में एक आम धारणा होती है कि वे सनकी होते हैं और लोगों से घुलना-मिलना पसंद नहीं करते। न्यूटन से लेकर आइंस्टीन तक सबके बारे में इस तरह के किस्से पढ़ने-सुनने को मिलते हैं। जॉन नैश भी दुनिया से बेखबर रहते हुए मैथ्स में पागलपन की हद तक डूबे हुए थे। इसी स्वभाव ने आगे चलकर उनको schizophrenia जैसी परेशानी भी दी और फिर नोबेल जैसा सम्मान भी दिलाया। इस किताब के आधार पर जॉन की लाइफ पर फिल्म बनी है जिसका नाम भी A Beautiful Mind रखा गया। रियल लाइफ में नोबेल जीतने वाले हीरो पर बनाई गई फिल्म ने भी ऑस्कर जीता। हममें में ज्यादातर लोग उनको इस फिल्म के जितना ही जानते हैं। लेकिन जॉन को एक फिल्म में नहीं समेटा जा सकता। इस किताब से उनके बारे में और जानिए। इस समरी में आप जानेंगे कि जॉन ने कौन सी पॉपुलर बोर्ड गेम बनाई? अपने स्टूडेंट्स से किस तरह का बर्ताव नहीं करना चाहिए? और अगर किसी रिलेशनशिप को आगे बढ़ाना मुश्किल है तो उसे रोकने का सही तरीका क्या है?

तो चलिए शुरू करते हैं!

जॉन का जन्म 13 जून 1928 को ब्लूफील्ड, वेस्ट वर्जीनिया में हुआ था। उनके पिता इलेक्ट्रिकल इंजीनियर थे। माँ एक स्कूल में पढ़ाती थीं। यह कहा जा सकता है कि वे एक खुशहाल और आरामदायक जिंदगी जी रहे थे।

लेकिन वे बाकी बच्चों के विपरीत किताबों की दुनिया में रहते थे। किसी से ज्यादा बातचीत भी नहीं करते थे। इसलिए सबसे अलग नजर आते थे। माता-पिता को उनकी बहुत चिंता रहती थी। इसके लिए उन्होंने अपनी तरफ से कोशिश भी की। उनको प्रेयर करने वाले ग्रुप और स्काउट में भर्ती करा दिया गया। लेकिन इसका कुछ खास फायदा नहीं हुआ। तेरह-चौदह साल की उम्र में जॉन का झुकाव पूरी तरह मैथ्स की तरफ हो गया था। इसमें E. T. Bell की किताब Men of Mathematics का बहुत बड़ा हाथ था। जिसमें उन्होंने बड़े-बड़े गणितज्ञों के बारे में लिखा था।

लेकिन अगर पढ़ाई की बात की जाए तो जॉन को मैथ्स में एवरेज ग्रेड ही मिलते थे। क्योंकि वो सवाल अपनी कॉपियों में नहीं दिमाग में हल करते थे। और वो भी नए-नए तरीकों से। पहले जॉन ने अपने पिता की तरह इंजीनियर करने का सोचा था। इसके लिए उनको कार्नेगी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी से फुल स्कॉलरशिप भी मिली थी। आज हम इसे कार्नेगी मेलन के नाम से जानते हैं। लेकिन जल्द ही उनका मन इसके सिलेबस से उचट गया। उनको तो गणित और ढेर सारे नंबर्स ही अच्छे लगते थे।

अब उन्होंने यह तय कर लिया था कि उनको गणित ही पढ़ना है। जॉन की मैथामेटिकल एबिलिटी बेहतरीन थी। वे मुश्किल से मुश्किल सवालों को अपने तरीकों से आसानी से हल कर देते थे। इस वजह से वे अपने प्रोफेसरों को कन्विंस करने में सफल हुए कि उनकी स्ट्रीम चेंज कर दी जाए। अब दुनिया को एक महान गणितज्ञ मिलने वाला था।

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जॉन के मैथ्स टैलेंट को लोग पहचानने लगे।

जॉन को प्रिंसटन, हार्वर्ड, शिकागो और मिशीगन जैसी नामी यूनिवर्सिटीज से एडमिशन का ऑफर आया। हार्वर्ड उनकी पहली पसंद थी पर उन्होंने प्रिंसटन यूनिवर्सिटी को चुना क्योंकि यहां उनको बेहतर स्कॉलरशिप मिल रही थी। प्रिंसटन बाकी यूनिवर्सिटीज से अलग थी। यहां स्टूडेंट्स पर किसी तरह का दबाव नहीं था कि वो पुराने घिसे-पिटे तरीकों से ही पढ़ते रहें। उनको नए-नए तरीकों से पढ़ाया जाता था। ताकि उनका पूरा विकास हो। जॉन के लिए यह सबसे अच्छी बात थी क्योंकि उनको ट्रेडिशनल तरीकों से पढ़ना कभी पसंद नहीं था। द्वितीय विश्वयुद्ध में जहां एक तरफ देश तबाह हो रहे थे, प्रिंसटन की तरक्की जारी थी। आइंस्टीन जैसे जीनियस इससे जुड़े थे।

स्टूडेंट्स के लिए ग्रेड सिस्टम और अटेंडेंस जैसे नियम नहीं थे। प्रोफेसर और स्टूडेंट्स रोज चाय पर मिलते थे और आपस में नॉलेज शेयर करते थे। जॉन ने इस छूट का बहुत फायदा उठाया और अपनी पढ़ाई के दौरान एक भी क्लास अटेंड नहीं की। वे प्रेक्टिकल नॉलेज गेन करने में लगे रहे। कभी कॉरीडोर में घूमते हुए तो कभी दिमाग में ही गणित के सवाल हल करते रहे और नोट्स बनाते रहे। इस दौरान वे कभी सीटियां बजाते तो कभी गुनगुनाते रहते। इस आदत की वजह से उनके साथी उनसे बहुत चिढ़ते थे।

इन अजीब हरकतों की वजह से उनको कोई पसंद नहीं करता था। प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में अलग-अलग बैकग्राउंड से स्टूडेंट्स आते थे। लेकिन जल्द ही वे प्रोफेसरों के साथ घुल-मिल जाते थे और उनके अपने-अपने ग्रुप बन जाते थे। ग्रुप के लोग आपस में उठते-बैठते, घूमते और शराब पीते थे। जॉन सबसे दूर रहते थे। उन्होंने किसी प्रोफेसर के साथ अच्छे रिलेशन बनाने के लिए कभी ग्रुप में जुड़ने की कोशिश नहीं की। उनको लगता था प्रोफेस उन पर अपनी सोच लाद देंगे और इससे उनके आइडियाज प्रभावित हो जाएंगे। लोग उनको अजीब नजरों से देखते थे। शायद ही कोई उनसे बात करना पसंद करता था। लेकिन लोगों को अपनी राय बदलनी पड़ी। इसकी वजह थी एक बोर्ड गेम जिसे जॉन नैश ने डेवलप किया। यह इतनी पॉपुलर हुई कि इसका नाम ही नैश रख दिया गया।

इस गेम के लिए जॉन ने दिन-रात मेहनत की थी। बाद में इसे Hex नाम दिया गया। मैथ्स की गेम थ्योरी ब्रांच में उनको बहुत रुचि थी। यही इस गेम को डेवलप करने की वजह बनी।

गेम थ्योरी पर लिखे गए रिसर्च पेपर की वजह से जॉन नैश मैथ्स की दुनिया में एक बड़ा नाम बनकर उभरे।

जॉन नैश, यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर John Von Neumann की गाइडेंस में पढ़ाई कर रहे थे। प्रोफेसर Neumann को माडर्न गेम थ्योरी का फादर कहा जाता था। गेम थ्योरी व्यवहार गणित यानि Applied mathematics की एक ब्रांच है। इसमें अलग-अलग परिस्थितियों में लोगों की डिसीजन मेकिंग और रेशनल बिहेवियर को स्टडी किया जाता है। इसमें खास तौर पर पोकर या चेस जैसी उन गेम्स को आधार बनाया जाता है जहां आपस में सहयोग या कॉम्पिटिशन की संभावना रहती है। इसे आसान शब्दों में इस तरह समझा जा सकता है। दो लोग कोई गेम खेलते हैं। वे एक दूसरे से कॉम्पिटिशन करते हैं। वहां उनका परफार्मेंस अपनी जीत को लेकर होता है। जब वही दो लोग किसी टीम की तरफ से खेलते हैं तो उनको एक दूसरे का सहयोग करना पड़ता है। यानि इन दोनों कंडीशन में एक ही इंसान अलग बर्ताव करता है। प्रोफेसर Newmann की रिसर्च ने इसके बारे में बहुत जानकारी दी। लेकिन यह पूरी तरह से एप्लिकेशन एप्रोच पर बेस्ड थी। जॉन ने उनके काम को आगे बढ़ाया। इसमें सबसे बड़ी कमी यह थी कि Newmann की स्टडी टू प्लेयर और जीरो सम गेम्स पर आधारित थी। जीरो सम गेम्स का मतलब ऐसी गेम्स जहां एक प्लेयर उतनी रकम जीतता है जो दूसरा हार जाता है। इसलिए इन गेम्स में सहयोग जैसी चीज का कोई मतलब ही नहीं रहता। यहां आप सिर्फ प्रतियोगिता कर सकते हैं। पोकर इसका अच्छा उदाहरण है।

Newmann उन गेम्स पर कुछ काम नहीं कर पाए जो इस क्राइटेरिया से बाहर होती हैं। जहां दो से ज्यादा लोग खेलते हैं। जॉन नैश ने इसे एक अच्छा मौका समझकर यहीं से अपना काम शुरु किया। अपने 27 पेज के रिसर्च पेपर में उन्होंने नॉन जीरो सम गेम्स पर फोकस किया और अपनी थ्योरी दी। इस कदम ने गेम थ्योरी का महत्व और बढ़ा दिया। अब इसे दुनिया की उन फील्ड्स में भी अप्लाई किया जा सकता था जो आपसी सहयोग पर आधारित हों। जैसे इकोनॉमिक्स। जहां आपसी सहयोग दो लोगों के फायदे की वजह बनता है। Newmann की मेहनत को कम नहीं कहा जा सकता। लेकिन जब यूटिलिटी की बात आती है तो जॉन का काम बहुत आगे निकल जाता है। क्योंकि दुनिया में ज्यादातर क्षेत्र और मौके ऐसे हैं जहां आपसी सहयोग ही काम आता है। इसमें युद्ध जैसी घटना भी शामिल है।

जॉन की स्टडी ने आपसी सहयोग या फायदे वाली परिस्थिति में मनुष्यों के रिस्पांस को कैलकुलेट कर पाना आसान कर दिया। इसे Nash Equilibrium के नाम से जाना गया। जॉन अपने कदम नोबेल पुरस्कार की तरफ बढ़ा रहे थे।

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जॉन अब MIT से जुड़ गए।

जॉन को बड़ी पहचान मिल गई थी। लेकिन प्रिंसटन यूनिवर्सिटी ने उनको जॉब ऑफर नहीं की। जॉन टैलेंटेड थे और अब तो फेमस भी हो गए थे पर उनका स्वभाव एक प्रोफेसर के लिए जरूरी टीचिंग एप्टीट्यूड पर सवाल उठाता था। जॉन को फाइनली MIT यानि मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में जॉब मिल गई। और 1951 में वो बोस्टन रवाना हुए। इस तरह उनके प्रोफेशनल करियर की शुरुआत हुई। लेकिन एक बार फिर उनका सनकी बर्ताव उनको लोगों से दूर करने लगा। उनके साथ काम करने वाले उनको पसंद नहीं करते थे। उनका पढ़ाने का तरीका भी बिल्कुल अजीब था। जो स्टूडेंट्स को समझ ही नहीं आता था। वे बहत टफ पेपर सेट करते थे

और नंबर भी स्ट्रिक्ट तरीके से देते थे। उनके स्टूडेंट्स इतना परेशान हो गए कि एक दिन उन्होंने “जॉन नैश हेट डे” मनाने का फैसला कर लिया। इन सबके बावजूद जॉन थोड़ा सोशल होने की कोशिश करने लगे। वो लोगों से चाय, कॉफी और ड्रिंक्स पर मिलने लगे। हावर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़े हुए गणितज्ञ डोनाल्ड न्यूमैन उनके दोस्त थे। हालांकि इस दोस्ती की वजह यह थी कि जॉन उनको अपने जितना इंटेलीजेंट समझते थे।

यहां उनकी जिंदगी में प्यार ने दस्तक दी।

जॉन एक माइनर सर्जरी के लिए हॉस्पिटल में भर्ती हुए थे। जहां उनकी मुलाकात नर्स Eleanor Stier से हुई। उनकी नजदीकियां बढ़ने लगीं। Stier ने उनके बच्चे को जन्म भी दिया। पर जॉन ने अपने स्वभाव के अनुसार Stier से शादी करने के बारे में कोई परवाह नहीं की। उनको लगा कि Stier उनसे कम दिमाग वाली हैं और उनकी जोड़ी नहीं जमेगी।

Stier की आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी। फिर भी जॉन ने कभी उनकी मदद नहीं की। इस वजह से उनका बच्चा John David Stier शुरुआत के कुछ साल अनाथालय में पला। जॉन कभी-कभार Stier और बच्चे से मिलने जाते थे। इस वजह से Stier को उम्मीद बनी रही कि एक न एक दिन वो सब एक परिवार की तरह साथ रहेंगे।

जॉन की हरकतों की वजह से उनका करियर तबाह होते-होते बचा। जॉन ने Stier और बच्चे से मिलना-जुलना जारी रखा। पर वो किसी कमिटमेंट के लिए तैयार नहीं थे। इस दौरान MIT की एक स्टूडेंट के साथ भी उनका नाम जोड़ा जाने लगा। MIT के फिजिक्स विभाग में तब बहुत कम फीमेल स्टूडेंट्स थीं। और जॉन जैसे जीनियस के प्रति उनका आकर्षित हो जाना स्वाभाविक बात थी। Alicia Larde भी उनमें से एक थीं। जॉन ने भी ये बात समझ ली थी। 1955 में उनका रिलेशनशिप शुरु हुआ। जॉन के लिए Stier की तुलना में Alicia एक बेटर चॉइस थीं। इसकी एक वजह थी उनका रिच बैकग्राउंड और दूसरी यह कि वो जॉन को अपनी तरह इंटेलीजेंट लगती थीं।

जॉन ने Stier से यह बात छिपा रखी थी। 1956 में एक दिन Stier अचानक उनसे मिलने उनके घर पंहुची और दोनों को एक ही बिस्तर पर पकड़ लिया। Stier का सब्र खत्म हो गया। उन्होंने ठान लिया कि अब वो चुप नहीं रहेंगी। उन्होंने न सिर्फ जॉन के माता-पिता को सब कुछ बता दिया बल्कि बच्चे के भरण-पोषण के लिए केस भी कर दिया। इतना ही नहीं उन्होंने जॉन को धमकी भी दी कि वो ये सब MIT में बता देंगी। अगर ऐसा होता तो जॉन का करियर तबाह हो जाता।

जॉन मनमर्जी की जिंदगी बिता रहे थे। पर अब इस पर रोक लग गई थी। न चाहते हुए भी उनको बच्चे को सपोर्ट करना पड़ा। हालांकि शादी के लिए वो फिर भी राजी नहीं हुए। इस बीच वो छुट्टी लेकर न्यूयॉर्क गए। Alicia भी काम की तलाश में उनके साथ चल दीं। अक्टूबर 1956 में उन्होंने सगाई की और फरवरी 1957 में शादी। अब वो मैनहटन में रहने लगे।

30 साल की उम्र तक पंहुचते हुए जॉन बहुत परेशान रहने लगे। न तो उनका प्रमोशन हुआ था और न ही वो मैथ्स में कोई नई खोज या कामयाबी हासिल कर पाए थे जो उनको Nash Equilibrium की तरह सफलता दिलाए। अब उन्होंने ने Riemann hypothesis पर काम शुरु किया। ये प्राइम नंबर पर आधारित एक बहुत मुश्किल और अनसुलझी पहेली थी। जॉन पूरी तरह से काम में डूब चुके थे कि एक दिन उनको अपनी वाइफ की प्रेग्नेंसी के बारे में पता चला। इससे वे

और परेशान हो गए। अब लोग भी जॉन में आ रहे बदलाव महसूस करने लगे। लोग ये मानते थे कि फाइनेंशियल मामलों में जॉन किसी एक्सपर्ट की तरह सोचते हैं। लेकिन अब जॉन स्टॉक मार्केट में । जरूरत से ज्यादा दिलचस्पी लेने लगे। यहां तक कि उन्होंने अपनी माँ की सारी सेविंग्स भी स्टॉक मार्केट में लगा दी थी। एक दिन जॉन ने । यह तक कह दिया कि उनके कलीग उन पर नजर रखते हैं और उनके डस्टबिन को भी चेक करते हैं। ताकि उनको यह पता लग जाए कि जॉन Riemann hypothesis को कितना सुलझा चुके हैं।

जनवरी 1959 में एक दिन MIT के कॉमन रूम में जॉन ने बताया कि वो एलियंस से बातचीत कर सकते हैं। ये सब किसी सामान्य इंसान के लक्षण नहीं थे। चीजें और बिगड़ती गईं। फरवरी में उन्होंने अपने एक दोस्त को चार अलग रंग की स्याही इस्तेमाल करके एक चिट्ठी लिखी और यह कहा कि एलियंस उनके करियर को खराब कर रहे हैं। पहले तो सबको यही लगा कि जॉन पब्लिसिटी पाने के लिए ये सब कर रहे हैं। पर जल्दी ही सबको समझ आ गया कि उनकी दिमागी हालत खराब हो चुकी है।

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जॉन अपने करियर को नई ऊंचाई देते इससे पहले ही उनका schizophrenia सामने गया।

इससे ज्यादा बुरा क्या हो सकता था कि Riemann hypothesis पर काम करके जॉन को अपार सफलता मिल जाती पर लेकिन ठीक उसी समय उनकी दिमागी बीमारी सामने आ गई। MIT में उनका प्रमोशन भी होने वाला था और शिकागो यूनिवर्सिटी की तरफ से उनके पास प्रोफेसर की जॉब का ऑफर भी था। शिकागो यूनिवर्सिटी का ऑफर उन्होंने यह कहकर ठुकरा दिया कि उनको अंटार्कटिका का राजा बना दिया गया है। एक रात वे अचानक उठकर वॉशिंगटन डीसी चल दिए। ताकि वो अम्बेसी जाकर खुद सबको ये बता सकें कि जल्द ही वो दुनिया पर राज करने वाले हैं। यह Alicia के लिए अलार्मिंग घटना थी। वो उनको एक मनोचिकित्सक के पास जांच के लिए ले गईं। तीन हफ्तों तक ऑब्जर्वेशन में रखने के बाद April 1959 में डॉक्टर इस नतीजे पर पंहुचे कि उनको पैरानॉइड सिजोफ्रेनिया है। इस बीमारी को दिमाग का कैंसर भी कहा जाता है। इसमें लोगों को तरह-तरह के वहम होते हैं, आवाजें सुनाई देती हैं। सोचने-समझने की ताकत और इमोशन खत्म हो जाते हैं। जॉन अब एलियंस की बातें करते रहते थे। अपने आस-पास हर इंसान को शक की नजर से देखते थे और अब उनको किसी से लगाव नहीं रह गया था। उनको अस्पताल में भर्ती किया गया और उनका इलाज शुरु हुआ। उनमें बहुत जल्दी सुधार नजर आने लगा। 50 दिनों के अंदर ही वो ठीक हो गए और उनको घर भेज दिया गया। लेकिन ये जॉन की चाल थी। उन्होंने ठीक होने का नाटक किया था ताकि उनको इस जेल जैसी जगह से आजादी मिल जाए।

जॉन ने यूरोप जाने का मन बना लिया था। Alicia को उनकी हालत पर शक था। इसलिए वो भी बच्चे को लेकर जॉन के साथ यूरोप चली आईं ताकि उन पर नजर रख सकें। उनका शक सही साबित हुआ। यूरोप आकर जॉन अमेरिकन अम्बेसी के चक्कर काटने लगे। ताकि उनका अमेरिकन पासपोर्ट कैंसल हो जाए और वो उस दुनिया का पासपोर्ट बनवा सकें जहां वो राज करने वाले थे।

जॉन लगभग एक साल तक पासपोर्ट कैंसल कराने के लिए भटकते रहे। फाइनली उनको अमेरिका डिपोर्ट कर दिया गया। जॉन की हालत में कोई सुधार नहीं आया। 1960s में तो ये जैसे एक रूटीन बन गया था। वो बीमार पड़ते, अस्पताल में भर्ती होते, उनका इलाज होता, वो ठीक हो जाते और फिर यूरोप चले जाते। Alicia हार मान चुकी थीं। उन्होंने तलाक का केस फाइल किया और मई 1963 में दोनों कानूनन अलग हो गए। वे एक-दूसरे से मिलते रहे। कभी-कभी ऐसा लगता था कि ये रिश्ता फिर से जुड़ जाएगा। लेकिन Alicia को जैसे ही पुराने दिन याद आते उनका गुस्सा बढ़ जाता। जॉन भी ये मानकर बैठे थे कि उनको डिपोर्ट कराने में Alicia का हाथ था।

Alicia के जाने के बाद जॉन के पास पैसों का कोई जरिया नहीं रह गया था। वो अपने दोस्तों और फैमिली पर डिपेंडेंट हो चुके थे। फिर वो अपने पेरेंट्स के पास रहने चले गए। लेकिन जॉन की दिमागी हालत उनकी बहन से बर्दाश्त नहीं हुई और जॉन को वापस हॉस्पिटल भिजवा दिया। 1970 में जॉन को छोड़ दिया गया। अब उनके पास बस एक ही जगह बची थी जहां उनको सुकून मिल सकता था। वह जगह थी प्रिंसटन यूनिवर्सिटी। 70 और 80s का ज्यादातर वक्त उन्होंने वहीं घूमते और भटकते हुए बिताया। लेकिन उनकी अजीब हरकतें अब भी जारी थीं। वे ब्लैकबोर्ड पर ऊटपटांग बातें लिख दिया करते थे। जब स्टूडेंट्स को यह समझ आने लगा कि इसके पीछे कौन है तो उन्होंने जॉन का नाम रख दिया “Phantom of Fine Hall.”

अब जॉन पागलपन की मिसाल बन गए थे। उनका नाम लेकर ये कहा जाता था “देखो अगर जरूरत से ज्यादा दिमाग चलाओगे तो एक दिन इनकी तरह बन जाओगे। सूरज छूने वाले के हाथ तो जलते ही हैं।”

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जॉन की रिकवरी हैरान करने वाली घटना थी। उसके बाद उन्होंने इतिहास रच दिया।

ऐसा लगता था कि अब जॉन खत्म हो चुके हैं। लेकिन तभी किसी चमत्कार की तरह उनकी हालत सुधरने लगी। ये सब एकदम से नहीं हुआ। उनमें धीरे-धीरे सुधार आया। लोगों को भी यह बात महसूस करने में सालों लग गए। 80s में प्रिंसटन के दूसरे गणितज्ञों ने यह नोटिस किया कि अब जॉन वाकई मैथ्स के उन टॉपिक पर रिसर्च के नजरिए से ध्यान दे रहे हैं जिनको पढ़ा या समझा जा सकता है। न कि ऐसे टॉपिक जो जॉन के अलावा किसी और की समझ से बाहर हों। 1992 में उनके एक कॉलेज फ्रेंड ने भी नोटिस किया कि जॉन अब एक नॉर्मल इंसान की तरह बर्ताव कर रहे हैं। जॉन ने खुद यह स्वीकार किया कि उनकी बीमारी घट रही है। उन्होंने यह भी माना कि अब भी ऊलजलूल विचार उनके दिमाग में आते रहते हैं पर वो उन पर हावी नहीं होते।

सफलता जॉन की तरफ दुबारा बढ़ रही थी। उनके पुराने कामों को याद किया जाने लगा। बड़े-बड़े सेमिनारों और जर्नल्स में बताया जाता था कि गेम थ्योरी पर उन्होंने कितना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यहां तक कि ये भी कहा जाने लगा कि वो नोबेल के हकदार हैं।

और 1994 में वह पल भी आ गया। जब उनको नोबेल मिला। जॉन के करियर की दुबारा शुरुआत हुई। लगभग 30 साल के बाद अब उनको प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर की जॉब मिली। और वो अपना वक्त फैमिली और फ्रेंड्स के साथ बिताने लगे। जिनसे वो सालों दूर रहे थे। अभी भी एक अच्छी खबर बाकी थी। लगभग 40 साल बाद 2001 में जॉन और Alicia ने दुबारा शादी की। अपने जीवन के आखिरी वक्त तक दोनों साथ रहे।

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कुल मिलाकर

जॉन नैश की जिंदगी उतार-चढ़ाव की कहानी है। एक तरफ तो उन्होंने अपनी पढ़ाई के दौरान गेम थ्योरी में एक्सेप्शनल काम करके इतना नाम कमाया और वहीं उनके असामाजिक बर्ताव और सिजोफ्रेनिया की बीमारी ने उनको अंधेरों में धकेल दिया। उनका करियर और पारिवारिक जीवन तबाह कर दिया। और तीस साल बाद वक्त ने फिर करवट ली। अब जॉन ने पूरी तरह ठीक हो कर इतनी बेहतरीन वापसी की कि सीधा नोबेल तक पंहच गए। अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में उनको अपना करियर तो वापस मिला ही परिवार और समाज का सहयोग भी मिला। उनके जीवन से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।

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One thought on “A Beautiful Mind by Sylvia Nasar Book Summary in Hindi

  1. You could definitely see your expertise within the work you write. The world hopes for more passionate writers such as you who are not afraid to mention how they believe. Always go after your heart.

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