Why I Am An Atheist by Bhagat Singh Book Summary in Hindi

Why I Am An Atheist

Why I Am An Atheist Book Summary in Hindi

इंट्रोडक्शन (INTRODUCTION)

1930 में भगत सिंह जब लाहौर सेंट्रल जेल में बंद थे तब उन्होंने एक एस्से लिखा था. वो खुद को एक एथीईस्ट (नास्तिक), मतलब जो भगवान् में विश्वास नहीं करते, मानते थे. इस वजह से उनके दोस्त उन्हें घमंडी समझने लगे. वो कहते कि भगत सिंह खुद को नास्तिक इसलिए कहते हैं क्योंकि उन्हें बहुत अहंकार और घमंड है.

मगर भगत सिंह इस बात से बिलकुल सहमत नहीं थे. इस एस्से में उन्होंने समझाया है कि उनके नास्तिक होने का कारण घमंड नहीं है. इस बक में आप उनके आज़ाद सोच और प्रिंसिपल्स के बारे में सीखेंगे.उन्होंने दुनिया में बहुत अन्याय और नाइंसाफी देखी तो सवाल किया कि अगर सच में भगवान् है तो वो अपने लोगों को इतने दुःख और तकलीफ क्यों देता है?

इस बक में भगत सिंह ने हिन्द, मस्लिम और क्रिस्चियन के अपने भगवान् में विश्वास को चैलेंज किया. ये दुनिया कैसे बनी, कैसे इतनी आगे बढ़ी और अगले जन्म की सोच जैसी कई बातों पर सवाल उठाए.क्योंकि वो पूरा जीवन नास्तिक रहे, उन्हें स्वर्ग और अगले जन्म के कांसेप्ट में बिलकुल भरोसा नहीं था.

भगत सिंह ने मौत का सामना हिम्मत से किया, वो उससे घबराए नहीं. वो खुश थे कि उन्होंने अपना पूरा जीवन इंडिया की आज़ादी और लोगों को आज़ाद करने में लगा दिया. 1937 में उन्हें फांसी दे दी गयी. वो सिर्फ 23 साल के थे.

हाँ, वो एक महान और ग्रेट इंडियन हीरो हैं. वो बहुत टैलेंटेड राइटर थे, आज़ाद ख्यालों वाले और एक बहुत स्ट्रोंग लीडर भी थे. भगत सिंह ने अपने मिशन, इंडिया की आजादी के लिए अपनी जान तक ग़वा दी. चाहे वो नास्तिक हों या नहीं, वो एक महान इंसान ज़रूर थे जिनकी जितनी भी तारीफ की जाए वो कम ही होगी.

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व्हाई आई ऍमऍनएथीईस्ट (WHY I AM AN ATHEIST)

क्या मेरे नास्तिक होने का कारण मेरा घमंड है? अगर मैं भगवान् में विश्वास नहीं करता तो क्या इसका कारण मेरा घमंड है? यही सवाल मेरे दोस्त मुझसे पूछते हैं. मुझे एहसास ही नहीं हुआ कि मेरे व्यवहार से उन्हें ऐसा लग रहा है. कुछ लोगों ने जो थोडा बहुत समय मेरे साथ बिताया था उन्होंने ऐसा ही समझ लिया, ऐसा ही अनुमान लगा लिया.

अब मैं जवाब देने के लिए मजबूर हूँ. मैं एक साधारण आदमी हूँ, इससे ज्यादा मैं खुद को कुछ नहीं समझता. हाँ मैं स्वीकार करता हूँ कि कभी कभी मुझ में घमंड और अहंकार होता है मगर वो मेरे नास्तिक होने का कारण बिलकुल नहीं है.

मेरे कुछ दोस्त मुझे तानाशाह और हुकुम चलाने वाला कहते हैं. कुछ कहते हैं कि मैं हर काम अपनी मर्जी से करता हूँ. उन्हें शिकायत है कि मैं अपनी बात दूसरों पर थोपता हूँ और तब तक बहस करता हूँ जब तक वो मेरी बात मान नहीं लेते. हाँ, इस बात से मैं मना नहीं कर सकता.

मैं इस बात से भी मना नहीं कर सकता कि मुझमें बहुत ईगो है. हमारे समाज में इसे “अहंकार” या खुद पर बहुत गर्व होना कहते हैं. तो अगर ये बात सच है कि मैं अपने घमंड के कारण नास्तिक हूँ तो इसकी वजह ये दो कारण हो सकते हैं : पहला,मझे खद पर इतना गर्व है कि मैं भगवान को अपना दुश्मन समझता हूँ. दूसरा, मुझे इतना अहंकार है कि मैं खुद को ही भगवान् समझता हूँ.चाहे दोनों में से कोई भी सिचुएशन हो फिर भी मैं ही हारूंगा.

अगर पहला स्टेटमेंट सच है तो मैं खुद को भगवान् का दुश्मन समझूगा, तो सही मायने में मैं नास्तिक तो हुआ ही नहीं, ऐसा इसलिए क्योंकि खुद को उनका दुश्मन कहने के लिए मुझे पहले इस बात को मानना होगा कि भगवान् सच में हैं. और अगर दूसरा स्टेटमेंट सच है तब मुझे भगवान् के होने की बात पर विश्वास करना होगा कि ऊपर कोई भगवान् है जो पूरे यूनिवर्स को देख रहे हैं.

तो ये कहना कि मैं भगवान् का दुश्मन हूँ या मैं खुद भगवान् का अवतार हूँ का मतलब हुआ कि मैं भगवान् के होने पर विश्वास करता हूँ? ये बात बिलकुल झूठ है, मैं बिलकुल नहीं मानता कि कोई भगवान् होते हैं. इसलिए मैं अहंकारी नहीं हूँ. मैं खुद को भगवान् नहीं समझता. मुझे भगवान् या किसी डिवाइन एनर्जी के होने पर कोई विश्वास नहीं है. तो मैं साफ़ साफ़ बता देना चाहता हूँ कि भगवान् नहीं होते हैं.

मेरे दोस्तों ने मेरे बारे में ऐसा कैसे सोचा? उन्हें क्यों लगा कि मैं घमंडी हूँ इसलिए नास्तिक बन गया हूँ? मैं कोर्ट में चल रहे ट्रायल की वजह से पोपुलर हुआ. दिल्ली में हुए बोम्ब ब्लास्ट और लाहौर कांस्पीरेसी केस की वजह से लोग मेरा नाम जानने लगे. मेरे दोस्तों को लगा कि ये पॉपुलैरिटी मेरे सर पर चढ़ गई है.

तो चलिए, मैं आपको सच बताता हूँ. मैं नास्तिक अचानक या अभी अभी नहीं बना हूँ. मैं जब कॉलेज में था तब से नास्तिक हूँ. मैं उन दोस्तों से नहीं मिला हूँ जो मुझ पर घमंडी होने का इलज़ाम लगाते हैं. मैं अच्छा स्टूडेंट नहीं था तो खुद पर गर्व करने का तो सवाल ही नहीं उठता.

मैं पढ़ाकू या होशियार नहीं था, ना ही मैं मेहनती था. मैं बहुत शर्मीला लड़का था जो अपने फ्यूचर को लेकर हमेशा नेगेटिव ही सोचता था. हाँ मैं ये कह सकता हूँ कि मैं शुरू से नास्तिक नहीं था.

मेरे दादा आर्य समाज से हैं. मैं उसी समाज की सोच और विश्वास के बीच पला बड़ा हूँ. मेरी परवरिश आर्य समाज की सोच के हिसाब से हुई है.

मेरी प्राइवेट एजुकेशन के बाद मैंने लाहौर के DAV स्कूल में एडमिशन लिया. स्कूल के पहले साल मैं स्कूल के बोर्डिंग हाउस में रहा. उस समय मैं भगवान् से सुबह शाम प्रार्थना किया करता था. मैं घंटों तक गायत्री मंत्र पढ़ा करता था.

मैं भगवान् का पक्का भक्त था. उसके बाद मैं अपने फादर के साथ रहने लगा. वो बहुत खुले विचार के थे, हमेशा आगे की सोचते और दूसरों की भलाई सोचते थे. मुझे उनसे ही आज़ादी के लिए लड़ने की इंस्पिरेशन मिली. हालांकि वो मुझे रोज़ प्रार्थना करने के लिए कहते थे..

जब नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट तेज़ी से बढ़ रहा था, मैंने नेशनल कॉलेज में एडमिशन लिया. वहाँ मैं और भी ज्यादा खुले विचारों का हो गया था. मैं बहुत गहराई से सोचने लगा.लम्बे समय से चली आ रही सोच और पूरे सिस्टम पर मैं सवाल उठाने लगा. मैं भगवान् से जुडी बातों पर सवाल उठाने लगा.

मैंने अपने बाल बढ़ा कर लम्बे कर लिए थे. मैं हर बात का विरोध करने लगा था. मैं पुरानी कथाओं और रिलिजन से जुडी बातों की बुराई करने लगा था, उनमें दोष निकालने लगा था. मगर मैं तब भी भगवान् के होने में विश्वास करता था.

बाद में, मैं रेवोल्यूशनरी पार्टी का मेम्बर बन गया. जो मेरे पहले लीडर थे, उन्हें भगवान् के होने में डाउट था लेकिन उन्होंने कभी ये नहीं कहा कि भगवान् नहीं हैं. जब मैं उनसे पूछता था तो वो कहते कि “अगरप्रार्थना करना चाहते हो तो करो”. मुझे लगता है कि इस तरह की सोच में दम नहीं है.

जो मेरे दूसरे लीडर थे वो भगवान् में बहुत विश्वास करते थे. उनका नाम सचिन्द्र नाथ सन्याल था. उन्हें कराची कांस्पीरेसी के लिए सज़ा सुनाई गई थी. उन्होंने एक बुक लिखी जिसका नाम “बंदी जीवन” था, उसमें उन्होंने भगवान् के बारे में बहुत अच्छी बातें लिखी हैं, उन्होंने भगवान् में गहरा विश्वास दिखाया है. वेद में भगवान् के बारे में जिस तरह लिखा गया है उसका प्रभाव उनपर हुआ और वो भी भगवान् में बहुत विश्वास करने लगे.

मैं ये बताने की कोशिश कर रहा हूँ कि रेवोल्यूशनरी पार्टी में सब की सोच नास्तिक जैसी नहीं थी, सब अलग अलग विचारों वाले थे. यहाँ तक की काकोरी काण्ड में जिन चार लोगों को गिरफ्तार किया गया था उन शहीदों ने अपने आखरी पलों में प्रार्थना की थी. राम प्रसाद बिस्मिल भी आर्य समाज के थे. राजेन लाहिरी ने अपनी मौत से पहले गीता और उपनिषद् में लिखे श्लोक (shlok) और भजन गाये थे.

उनमें से सिर्फ एक ही था जिसने कभी प्रार्थना नहीं की. उनका कहना था कि हम इंसानियत को ठीक से समझ ही नहीं पाए हैं और अलग अलग रिलिजन हमारी ना समझी और कमियों की वजह से बना है. मगर उन्होंने कभी नहीं कहा कि भगवान् है ही नहीं.

जब मैंने पहली बार पार्टी ज्वाइन की थी, तब मैं एक मस्त मौला खुले विचारों वाला लड़का था. मेरे लीडर्स जो मुझे सिखाते थे मैं बस उसे फॉलो करता था. मगर उनसब के जाने के बाद ये रेस्पोंसिबिलिटी हमारे ऊपर आ गई थी, नए जेनरेशन पर.

कुछ ऐसे लोग थे जो हमारा मज़ाक उड़ाया करते थे. ऐसे भी लोग थे जिन्हें हमारे मकसद और हमारी पोलिटिकल पार्टी की ताकत पर भरोसा नहीं था. बस यहीं से मुझे एक नया मोड़ मिला, मेरी सोच बदल गई. मेरा नया स्लोगन “पढ़ो” बन गया. अगर आप पढ़े लिखे हों तो ये आपको सामने वाली की बात का सही जवाब देने का ज्ञान और समझ मिल जाती है. अगर आप पढ़े लिखे होंगे तो आप रेवोल्यूशनरी पार्टी के विचारों और सोच को ख़तम होने से बचा सकेंगे.

और मैंने बिलकुल ऐसा ही किया. हमारे पुराने लीडर्स ने सिर्फ ताकत का इस्तेमाल किया था. मगर मुझे ये समझ में आया कि विचार ज्यादा ताकतवर होते हैं. पढाई लिखाई करने से हमें नॉलेज मिलती है, हम कही सुनी बातों पर ऐसे ही विश्वास नहीं कर लेते. इस तरह आप अन्धविश्वास से बच सकते हैं. मैंने अपने साथियों को रियलिटी को अपनाने के लिए कहा, कही सुनी बातों को नहीं.

जब मैं लीडर बना, मैंने अपने मेम्बेर्स से कहा कि जब और कोई तरीका ना हो अपनी बात आगे रखने का बस तब वो ताकत का इस्तेमाल कर सकते हैं क्योंकि ये ज्यादा ज़रूरी है कि वो इस स्ट्रगल का असली मतलब समझें. उन्हें पहले हमारे स्ट्रगल के पीछे का कारण और प्रिंसिपल्स को समझने की ज़रुरत है.

मैंने अनार्की और कम्युनिज्म के बारे में पढ़ा. मैंने लेनिन, मार्क्स और ट्रोट्स्की के बारे में भी पढ़ा. मैंने उन लोगों के बारे में पढ़ा जो अपने देश में बहुत बड़ा बदलाव लाने में सफल हुए थे, वो सब नास्तिक थे. 1926 तक मुझे क्लियर हो गया था कि भगवान् के होने की बातों और सोच में कोई भी लॉजिक नहीं है.

अगर रियलिटी के प्रिन्सिप्ल के नज़रिए से देखें तो ऐसा सोचना भी इम्पॉसिबल लगता है कि कोई भगवान् हैं जिन्होंने पूरी यूनिवर्स और इस दुनिया को बनाया और वो इसे देख रहे हैं. अगली जो घटनाएं मेरे साथ हुई, मैंने उन सब का सामना एक नास्तिक की तरह ही किया.

1927 लाहौर में मुझे अरेस्ट किया गया. मैं बहुत हैरान हुआ, मुझे तो पता भी नहीं था कि पुलिस मुझे ढूंढ रही है.मैं एक गार्डन के पास से गुज़र रहा था जब पुलिस वालों ने मुझे चारों तरफ से घेर लिया.

मैं बहुत शांत था, मेरे मन में कोई भावना नहीं चल रही थी, मैं ना तो गुस्से में था ना मैं घबराया हुआ था. मैं चपचाप उन के साथ चल दिया. मझे पलिस स्टेशन ले जाया गया जहां मुझे एक महीने तक बंद रखा गया. पुलिस को लग रहा था कि मैं काकोरी पार्टी से जुड़ा हुआ हूँ. उन्होंने कहा कि मैं लखनऊ में इसलिए हूँ क्योंकि कोर्ट में ट्रायल शुरू हो गयी है. उन्होंने ये भी कहा कि शहीदों को भगाने के प्लान में मैं भी शामिल था. पुलिस ने मुझ पर इलज़ाम लगाया कि कुछ मेम्बेर्स के साथ मिलकर मैंने बोम्बजमा किये और इसे टेस्ट करने के लिए 1926 में दशहरा फेस्टिवल के समय इससे ब्लास्ट किया.

पुलिस ने मुझे कहा कि अगर मैं उन्हें रेवोल्यूशनरी पार्टी में चल रहे काम और बातों की खबर दूंगा तो वो मुझे छोड़ देंगे और कोर्ट में मेरे केस को बंद कर दिया जाएगा.

मैं उनके प्रपोजल पर बहुत हँसा, मुझे उनकी किसी बात पर भरोसा नहीं था. मुझे पता था ये बस एक जाल है. मेरी ही तरह कोई भी दूसरा रेवोल्यूशनरी सोच का आदमी कभी मासूम लोगों पर बोम्ब ब्लास्ट करके उन्हें घायल नहीं कर सकता. सीआईडी के सीनियर सुपरिटेंडेंट मुझे ये बताने आये कि मेरे साथ क्या क्या हो सकता है. अगर मैंने उन्हें कुछ नहीं बताया तो वो कोर्ट में मेरा केस शुरू कर देंगे. मुझे जल्दी सज़ा दिलाने के लिए वो मेरा नाम काकोरी केस के अलावा दशहरा में हुए मर्डर के साथ जोड़ देंगे.

उन्होंने बताया कि पुलिस के पास मेरे खिलाफ इतने सबूत हैं कि मुझे आसानी से फांसी पर लटका दिया जाएगा. मुझे पता था कि पुलिस मेरे साथ कुछ भी कर सकती थी. कुछ लोगों ने मुझे भगवान् से प्रार्थना करने को कहा. पर अब तक तो मैं नास्तिक बन चुका था. मैं सोचता था कि मैं नास्तिक बस तब होता हूँ जब शांत और खुश होता हूँ. मुझे लगा शायद काकोरी शहीदों की तरह मैं भी तकलीफ और मुसीबत के समय में भगवान् से प्रार्थना करने लग जाऊंगा. पर मुझे एहसास हुआ कि इस बुरे वक़्त में भी, जब मुझे फांसी भी हो सकती है, मैं भगवान् में विश्वास नहीं कर पा रहा था, मैं प्रार्थना नहीं कर पा रहा था.

और मैं अपनी बात पर टिका रहा.आप कह सकते हैं कि मैंने टेस्ट पास” कर लिया था. मुझे खुद को बचाने की कभी इच्छा ही नहीं हुई. मैं पूरी तरह हर बार नास्तिक ही बना रहा. भगवान् पर भरोसा मुसीबतों को झेलने की शक्ति देता है, उसे आसान बना देता है. इंसान को भगवान् में एक सहारा और आस दिखाई देती है. लेकिन अगर ये सोच हो कि कोई भगवान् है ही नहीं तो आदमी को खुद पर ही भरोसा करना पड़ता है, वो किसी पर डिपेंडेंट नहीं रहता.उसे खुद अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ता है, ज़िन्दगी के तूफ़ान और मुश्किलों से अकेले लड़ना पड़ता है.

ऐसे ज़रुरत के समय में आदमी घमंडी नहीं हो सकता, वो भगवान् को चैलेंज करने की हिम्मत नहीं कर सकता.

ऐसा लग रहा था कि मैं एक तूफ़ान के बीच फंसाहूँ, अगले एक हफ्ते में कोर्ट अपना फैसला सुनाने वाली थी. मेरे पास कोई उम्मीद या सहारा नहीं था सिवाय इस बात के कि मैंहमेशा अपने प्रिंसिपल्स केलिए लड़ा,मैं जिस बात पर सबसे ज्यादा विश्वास करता हूँ, उसके लिए मैं हमेशा खड़ा रहा और इसकी वजह से अब मेरी जान भी जा सकती है.

हिन्दू रिलिजन को मानने वाला रेवोल्यूशनरी सोचता होगा कि वो अगले जन्म में राजा बन कर पैदा होगा. क्रिस्चियन रेवोल्यूशनरी सोचेगा कि वो हमेशा के लिए स्वर्ग में रहेगा. पर मैं, मैं क्या उम्मीद करूँ मैं तो नास्तिक हूँ? मैं बस ये जानता हूँ कि जब वो रस्सी मेरे गले में होगी और मेरे पैरों ने नीचे से बीम को हटा दिया जाएगा वही सबसे बड़ा सच होगा, वही मेरा अंत होगा. कोई अगला जन्म या मौत के बाद ज़िन्दगी नहीं होगी. बस मैं और मेरी आत्मा हमेशा के लिए चले जाएँगे, और कुछ नहीं होगा.

मेरे पास बस एक छोटी सी ज़िन्दगी थी जो मैंने एक मकसद के लिए जिया.मेरा अपना कोई सेल्फिश मकसद नहीं था. मुझे इसके बदले में कुछ नहीं चाहिए, कोई इनाम नहीं चाहिए ना इस जन्म में ना किसी अगले जन्म में. मैंने अपना जीवन अपने देश की आजादी के लिए लगा दिया क्योंकि मैं बस वही चाहता था.

अपने जीवन को लोगों की सेवा और मदद करने में लगाना, पूरे मन से लोगों के दुखों को दूर करना,वो भी बिना किसी इनाम की चाहत में, जैसे की अगले जन्म में राजा बनना या स्वर्ग में रहने की इच्छा रखना, यही सच्ची सेवा है और सबसे महान काम है.

क्या इसमें आपको घमंड नजर आता है? क्या इस महान काम को करने में आपको कहीं भी घमंड दिखता है? नहीं, बिलकुल नहीं. हमें उन लोगों को माफ़ कर देना चाहिए जो इस गहरी बात को समझ नहीं सकते, महसूस नहीं कर सकते. जो मुझ पर इलज़ाम लगाते हैं उनके पास बस कहने के लिए दिल है मगर भावनाएं नहीं.

ये बहुत दुःख की बात है कि मेरा खुद पर जो भरोसा है उसे घमंड समझा गया. ये बात तकलीफ देती है लेकिन आप दूसरों की सोच को कण्ट्रोल नहीं कर सकते. अगर किसी बात पर सवाल उठाओ या किसी बड़े आदमी के खिलाफ कछ बोलो तो इसे आपका घमंड कहा जाता है. लोग सोचते हैं कि ये खुद को बहुत बड़ा और महान समझता है. क्या ऐसी सोच अन्धविश्वास नहीं है? एक रेवोल्यूशनरी होने के कारण मैं आज़ाद ख्यालों वाला हूँ. मुझे पुरानी बातों और सोच को चैलेंज करने का हक़ होना चाहिए. एक्जाम्पल के लिए गांधीजी की बात करते हैं. क्योंकि वो एक महान इंसान थे उनके खिलाफ कोई कुछ नहीं बोल सकता. उन्होंने पॉलिटिक्स, इकोनॉमिक्स, एथिक्स और रिलिजन के बारे में जो भी कहा सब ठीक ही होगा. कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप उनकी बात से सहमत हैं या नहीं, बस आपको उसे सच मान कर अपनाना होगा.

क्या इस तरह की सोच हमें कभी आगे बढ़ने देगी? मुझे पक्का पता है कि बिलकुल नहीं. ये आज़ाद सोच तो नहीं है, ये तो बस एक रिएक्शन है. ये अन्ध विश्वास जैसा ही है. ये वैसा ही है जैसे आप भगवान् की पूजा करते जा रहे हैं क्योंकि आपके घर के बड़ों ने ऐसा किया था.

मैं साफ़ बता चुका हूँ कि घमंड मेरे नास्तिक होने का कारण नहीं है. इसे पढ़ने वाले रीडर्स पर डिपेंड करता है कि वो मेरे जवाब से सतुष्टं हैं या नहीं. मैं ये भी जानता हूँ कि इस समय भगवान् पर भरोसा करने से मुझे शक्ति मिलेगी, मेरी मुसीबत कुछ कम हो जाएगी.इस तकलीफ में भी आनंद आने लगेगा. पर मैं तो नास्तिक हूँ इसलिए चीजें मुश्किल और रूखी सूखी हैं.

अपने फ्यूचर का सामना करने के लिए मुझे किसी अन्धविश्वास की ज़रुरत नहीं है. मैं मुक्ति पाने की इच्छा में खुद को खोना नहीं चाहता. मैं रियलिटी में जीना चाहता हूँ. मेरी किस्मत में जो लिखा होगा मैं उसे एक्सेप्ट कर लूँगा और मैं इसे कारण को सोच समझ कर एक्सेप्ट करूंगा. ये थोडा मुश्किल है लेकिन मैं पूरी कोशिश करूँगा कि मैं सफल हो जाऊं.

अगर मेरे नास्तिक होने का कारण घमंड नहीं है तो फिर क्या है? अब मैं इसका जवाब देने जा रहा हूँ.

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पुराने समय के लोगों के पास इस दुनिया के राज़ को समझाने का कोई तरीका नहीं था इसलिए उन्होंने भगवान् के होने का आईडिया निकाला. उनके पास कोई सबूत नहीं था कि सूरज कैसे उगता है और कैसे शाम होने पर ढल जाता है. उन्हें पता नहीं था की बारिश क्यों होती है या आग कैसे काम करता है. इसलिए हर एक ने अपनी बात को समझाने के लिए अलग अलग बातें बनानी शुरू कर दी.

यही कारण है कि आज इतने अलग अलग रिलिजन है. वेस्ट और ईस्ट के लोगों की भगवान् से जुडी अलग अलग कहानियाँ हैं. ये दुनिया कैसे बनी और नेचर की घटनाओं से जुडी हुई अलग अलग कहानियाँ हैं. ईस्ट में हिन्दू और मुस्लिम दो अलग रिलिजन हैं यहाँ तक की इंडिया में ब्राह्मण,जैन, बुद्ध धर्म सब एक दूसरे से बहुत अलग हैं. ब्राह्मण समाज में भी सनातन धर्म और आर्य समाज के विचार और सोच एक दुसरे से नहीं मिलते.

हर रिलिजन की अलग सोच है और उनका मानना और कहना है कि उनकी सोच और बातें ही सच और सही हैं. यही सोच मुझे दुःख पहुंचाती है.

काश की पुराने समय के बुद्धिमान और समझदार लोग एक साथ एक होकर सोचते तो इस दुनिया के रहस्य का असली कारण उन्हें समझ में आ जाता. पर ऐसा तो हआ नहीं. कोई अपनी बात से पीछे हटने को तैयार ही नहीं था, कोई दूसरे की बात मानने को तैयार नहीं था. इसका रिजल्ट ये हुआ कि हम इंसान सच्चाई से बहुत दूर हो गए हैं, हमें असलियत का ज्ञान ही नहीं है. अब इस समय, भगवान् पर विश्वास करने वालों के लिए मेरे कुछ सवाल हैं. पहला, भगवान् ने ये दुनिया क्यों बनाई? ऐसी दुनिया क्यों बनाई जिसमें इतना दुःख और दर्द है? क्यों इंसानों में इतनी कमियाँ हैं, सब कुछ मिल जाने के बाद भी क्यों उनकी इच्छाएं कभी ख़त्म नहीं होती? अब ये मत कहना कि ये भगवान् का रूल है क्योंकि अगर उन्होंने ऐसे रूल्स बनाए हैं तो वो सबसे शक्तिशाली कैसे हुए? क्या उन्हें ये सब देख कर ख़ुशी मिलती है? अगर हाँ, तब तो वो बिलकुल नीरो के जैसे हैं. नीरो एक रोमन राजा था जिसने अपने शौक और मज़े के लिए हज़ारों लोगों को मार दिया था, हज़ारों लोगों को दुखी किया था.

नीरो को सब शैतान, अत्याचारी राजा और पत्थर दिल इंसान कहने लगे थे. तो भगवान् नीरो से अलग कैसे हुए? क्यों हर रोज़ हर समय लोगों को इतना दुःख और तकलीफ झेलना पड़ता है? इस दुनिया में हर समय इतनी अशांति क्यों रहती है? इसके पीछे क्या लॉजिक हो सकता है? मैं सभी मुस्लिम और क्रिस्चियन लोगों से पूछता हूँ, इन सब का क्या जवाब है आपके पास? आप तो अगले जन्म में विश्वास नहीं करते इसलिए आप ये नही कह सकते कि ये सब पुराने बुरे काम करने की सज़ा है. आप तो ये मानते हैं कि भगवान् ने ये दुनिया छ दिन में बनाई थी और हर दिन के ख़त्म होने पर वो कहते थे “सब अच्छा है”.

सारे मुस्लिम और क्रिस्चियन आज अपने भगवान् से पूछिए. उन्हें सारी पुरानी बातें बताइए जैसे जितनी भी लड़ाईयां हुई हैं, 040404204040404204 बाढ़

और सूखा पडा है, भूकंप और तूफ़ान आया है. अभी जो हो रहा है उसके बारे में भी बताइए जैसे टेररिज्म, गरीबी और बच्चों के साथ गलत व्यवहार. क्या तब भी आपके भगवान् “सब अच्छा है” कहेंगे?

दुनिया में हर जगह लोग गन्दी बस्ती में भूख से मर रहे हैं. लोगों से ज्यादा काम करा कर उन्हें कम पैसे दिए जा रहे हैं. अमीर और अमीर होते जा रहे हैं, उन्होंने गरीबों का जीना मुश्किल कर रखा है.

हर रोज जरुरत से ज्यादा जो सामान बनता है उसे समुद्र में फेंक दिया जाता है. उसे बनाने वाले लोग गरीब हैं और उन्हें देने की बजाय इतना सामान बर्बाद कर दिया जाता है. लोगों को गुलाम बना कर उन्हें सताया जा रहा है और हम राजाओं की बड़ी बड़ी मूर्तियाँ बनाते हैं, उनका सम्मान करते हैं. दिखाओ अपने भगवान् को ये सब, क्या वो अब भी कहेंगे “सब अच्छा है”?

भगवान् इन सभी दुखों का क्या कारण बताते हैं? चुप क्यों हो गए, कोई जवाब नहीं हैं ना आपके पास. अब मैं हिन्दुओं से पूछता हूँ. आप कहते हैं कि आज अगर कोई दुःख झेल रहा है तो इसका कारण उसके पिछले जन्म के बुरे काम हैं. आप का मानना है कि जो आज राजा बन कर पैदा हुए हैं वो पिछले जनम में साधू संत थे इसलिए ये उनके अच्छे काम का फल है. तो हिन्दुओं से मैं ये कहूंगा कि आपके दादा परदादा बहुत होशियार थे. उन्होंने इतनी चतुराई से एक ऐसा सिस्टम बनाया जिसमें बहाना बना कर बचा जा सके. पर देखते हैं इनकी ये सोच कैसे सवालों का जवाब दे पाती है.

मेरे प्यारे हिन्दुओं ये मैं आपसे से कह रहा हूँ. अगले और पिछले जन्म की बातें उन लोगों ने बनाई है जिनके पास पॉवर है, पैसा है. वो सिर्फ अपना पॉवर, अपनी पोजीशन बचाने के लिए ऐसी बातें करते हैं. वो अपने से नीचे जो लोग हैं उन्हें ये जताना चाहते हैं कि वो सुखी हैं क्योकि पिछले जन्म में उन्होने अच्छे काम किये थे और वो गरीब हैं क्योंकि उन्होंने सिर्फ पाप किया था.

और बेचारे गरीब वो अपना हक़ भी मांगने से डरते हैं. उनमें इसे बदलने की हिम्मत ही नहीं है. ये अमीर पावरफुल लोगों और रिलीजियस लीडर्स ने ऐसा सिस्टम बनाया है जिसमें पिछले जन्म और सज़ा जैसी बातें बताई जाती हैं जिससे लोगों के मन में डर बैठ जाता है. गरीबों ने कोड़ों की मार, जेल, फांसी की सज़ा और कभी ना ख़त्म होने वाली गरीबीको स्वीकार कर लिया है क्योंकि वो समझते हैं कि उन्होंने हमेशा पाप ही किया इसलिए वो इसी के लायक हैं. इसलिए ज्ञान देने वाले और अमीर इस दुनिया के 99% चीज़ों और पैसों पर अपना हक़ जमा के बैठे हैं. हिन्दुओं मैं आपसे पूछता हूँ, जब आपके भगवान् सब देख रहे हैं तो वो लोगों को गलत काम क्यों करने देते हैं, उन्हें रोकते क्यों नहीं?

अगर वो चाहें तो उन्हें रोक सकते हैं. क्योंकि जंग में मासूम लोगों की जान चली जाती है? उन्होंने खुद ऐसे राजाओं को क्यों नहीं मारा या उनके अन्दर की बुराई को क्यों नहीं मारा? भगवान् ये जंग होने से रोकते क्यों नहीं? भगवान् ब्रिटिश सरकार का मन क्यों नहीं बदल देते ताकि वो खुद ही भारत छोड़ कर चले जाएँ? अमिर और सेठ के दिल में लालच ख़त्म क्यों नहीं करते ताकि जनता चैन से एक अच्छी जिंदगी जी सके?

मेरे प्यारे भारतीयों, मैं आपसे कहता हूँ. ब्रिटिश हम पर इसलिए राज नहीं कर रहे क्योंकि भगवान् की मर्जी है बल्कि ये इसलिए है क्योंकि हम उन्हें रोकने की कोशिश ही नहीं करते, हम उनसे लड़ते ही नहीं. हाँ, उनके पास गन, राइफल, बोम्ब, बुलेट सब है मगर वो इसलिए सफल हए क्योंकि हमने लडने की कोशिश नहीं की, हम अपनी परवाह ही नहीं करते, हमें बस सहने की आदत पड़ गई है. उन्होंने हमारे देश को लूटा क्योंकि हमनें उन्हें ऐसा करने दिया. इन सब में तुम्हारे भगवान् कहाँ हैं, क्या कर रहे हैं वो? क्या वो सिर्फ देख रहे हैं और हमारे दर्द का मज़ा ले रहे हैं? अगर ऐसा है तब तो वो बहुत ज़ालिम है बिलकुल नीरो की तरह.

चलिए अब बात करते हैं कि ये दुनिया कैसे बनी. अगर मैं नास्तिक हूँ तो मैं कैसे समझाऊं कि ये यूनिवर्स कैसे बनी? मैं कैसे समझाऊं के आदमी का जन्म कब हुआ कैसे हुआ? मेरे पास एक सिंपल जवाब है.

क्रिएशन नेचर का एक प्रोसेस है. हज़ारों साल पहले, यूनिवर्स में घूमने वाले डस्ट पार्टिकल्स और अलग अलग तरह की गैस जब एक साथ आ कर जुड़ गयी तो एक बादल जैसा बन गया, इसे नेब्युला कहते हैं जिससे फिर हमारा earth बना.

ऐसे ही एनिमल्स और आदमी का जन्म हुआ. चार्ल्स डार्विन की बुक “ओरिजिन ऑफ़ स्पीशीज” में बताया गया है कि जब कछ आर्गेनिक सब्स्टन्स (तत्व) साथ मिले तो एक सिंपल जीव बना. पानी में बैक्टीरिया से फिर प्लांट्स, मछलियाँ, फिर अम्फिबियन (जो पानी और ज़मीन दोनों में रह सकते हैं), reptiles (जो अंडे देते हैं), बर्ड्स और मैमल्स (जो अंडे नहीं देते बच्चे को जन्म देते हैं) वे डेवेलप हुए. आदमी का जन्म नेचर में बदलाव और डेवलपमेंट के कारण हुआ है.

अब आप कहेंगे कि कुछ लोग जन्म से बीमार हैं या उनकी बॉडी में कोई कमी क्यों है? अगर मैं नास्तिक हूँ तो मैं कैसे समझाऊंगा कि कोई बच्चा पैदा हुआ तो वो चल फिर क्यों नहीं सकता, कुछ बच्चे देख क्यों नहीं सकते? क्या इसलिए कि उसने पिछले जन्म में पाप किये थे? डॉक्टर्स ने इसका कारण खोज लिया है. जन्म के समय कोई भी कमी चाहे वो बॉडी की हो या माइंड की, सबका कारण genes होता है जो हमें हमारे पेरेंट्स से मिलता है. कभी कभी genes की वजह से या प्रेगनेंसी के समय कुछ कमियाँ रह जाती हैं. ये कोई पिछले जन्म के कारण नहीं होता है.

अब आप मझसे पड़ेंगे कि अगर भगवान है ही नहीं तो इंसानों को ये थॉट कैसे आया? मेरा जवाब सिंपल है. लोग भगवान् पर वैसे ही विश्वास करते हैं जैसे वो भूत प्रेत पर करते हैं. ये सिर्फ कहानियों और इमेजिनेशन के कारण बना है. भगवान् में और भूत प्रेत में बस यही फर्क है कि सबका मानना है कि भगवान् एक अच्छी एनर्जी हैं और सिर्फ अच्छा काम ही करते हैं. इस सोच को इतना गहरा और मज़बूत बनाया गया है कि ये अब तक कायम है.

इंसान ने रिलिजन को ज़िन्दगी की मुसीबतों का सामना करने के लिए बनाया. उसने भगवान् को माता, पिता, भाई, बहन का नाम दिया ताकि अगर कभी वो बिलकुल अकेला पड़ जाए, जब सब दोस्त और फॅमिली साथ छोड़ दे, तब भी उसे लगे कि ऊपर कोई है जो हमेशा उसके साथ है और वो भगवान् बहुत शातिशाली है,जो कभी धोखा नहीं देंगे. इस सोच से इंसानों को शान्ति मिलती है कि वो कभी अकेला नहीं होगा, भगवान उसका साथ कभी नहीं छोडेंगे. पुराने समय के लोगों को इस सोच से मदद मिलती थी. इसलिए हम कह सकते हैं कि इंसान ने भगवान् में विश्वास सिर्फ इसलिए किया ताकि वो उनके दुःख को ख़त्म करने में उनकी मदद कर सकें.

अगर कोई इंसान रियलिटी में जीना चाहता है या नास्तिक होता है तो वो सिर्फ खुद पर विश्वास करता है, यही सोच मेरी भी है. इसलिए मैं इस बात पर जोर दे कर कहना चाहता हूँ कि घमंड ने मुझे नास्तिक नहीं बनाया. हर बात को टेस्ट करना, उसे समझना और फिर उस पर विश्वास करने की सोच ने मुझे नास्तिक बनाया है.

सिर्फ इसलिए कि मौत सामने है मैं प्रार्थना करने लगू तो ये और भी ज्यादा गलत होगा. मेरे हिसाब से प्रार्थना करना इंसान की सबसे सेल्फिश आदत है जो वो खुद को बचाने के लिए करता है, प्रार्थना में वो हमेशा कुछ ना कुछ मांगता ही रहता है. मैंने मेरे जैसे दूसरे नास्तिक लोगों के बारे में पढ़ा है जिन्होंने मुसीबत का बहादुरी से सामना किया. इसलिए मैं अपना सर उठाकर हिम्मत से फांसी की सजा को हंस कर गले लगाऊंगा.

एक दोस्त ने मुझसे कहा कि देखना मरने से पहले तुम ज़रूर प्रार्थना करोगे. पर मैंने कहा नहीं ऐसा कभी नहीं होगा. ऐसा करने से मैं बस डरपोक और झूठा ही कहलाऊंगा. मैं अपनी बात पर अंत तक खड़ा रहूँगा, मैं प्रार्थना नहीं करूंगा. अगर अभी भी मेरे रीडर्स को लगता है कि ये मेरा घमंड है, तो यही सही.

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CONCLUSION-

तो इस बुक में आपने भगत सिंह के बारे में पढ़ा. आपने समझा कि वो नास्तिक क्यों थे. आपने समझा कि ये उनका घमंड नहीं था बल्कि उनकी आज़ाद सोच थी. आपने जाना कि भगत सिंह के हिसाब से इंसान ने भगवान् को सिर्फ इसलिए बनाया है ताकि वो मुसीबत से उसे बचा सकें. शायद अब हमें सोचने की ज़रुरत है कि क्या नास्तिक होना गलत है? अगर आप भगवान् पर विश्वास नहीं करते तो क्या इसका मतलब ये है कि आप लोगों पर हुकुम चला रहे हैं या खुद को भगवान् समझ रहे हैं? क्या इसका मतलब ये है कि आप बुरे इंसान हैं? भगत सिंह लोगों की ज़िन्दगी बदलना चाहते थे, उसमें सुधार करना चाहते थे. वो चाहते थे कि गरीबी हट जाए. इंडिया आज़ाद तो हो गया है लेकिन एक स्ट्रोंग डेवलप्ड देश बनने के लिए हम अभी भी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं. भगत सिंह से कुछ लेना चाहते हो तो ये सीख लो कि हमें खुद अपने पैरों पर खड़ा होना होगा और मेहनत करके अपने गोल को पाना होगा, कोई भगवान् या कोई एनर्जी ये आपके लिए नहीं कर सकती. हमारे देश का भाग्य हमारे हाथों में है, इसे बचाने और आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी हमारी है. आप सफल होते हैं या नहीं ये सिर्फ आप पर डिपेंड करता है, किसी और पर नहीं.

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