When Breath Becomes Air Book Summary in Hindi
Introduction-
When Breath Becomes Air- साहित्य और न्यूरोसाइंस – पूरे जीवन में लेखक ने इन दो पैशन्स को जिया.
क्या सबकुछ वैसा ही हो रहा है जैसा आपने प्लान किया था. शायद आप कुछ और पढ़ना चाहते थे और कुछ और ही पढना पड़ रहा है. केवल एक चॉइस आपकी जीवनदिशा बदल सकती है. हो सकता है आप अभी हाई स्कूल में हो और आपको लगता है कि आपका करियर काफी सरल रहेगा. हम सभी को पता है कि जीवन कभी भी, कोई भी मोड़ ले सकता है जिसके बारे में हमने कभी सोचा भी न हो. हम कुछ कर भी पाते.
पॉल कलानिथी का जीवन भी अपवाद नहीं है. न्यूरोसर्जरी के उनके करियर ने उन्हें और भी ज्यादा योग्य बना दिया जहाँ एक छोटा-सा निर्णय भी जीने-मरने का सवाल बन जाता है. साथ ही आप उनका टर्मिनल कैंसर पर डायग्नोसिस भी पढ़ेंगे.
अपनी किशोरावस्था में पॉल कलानिथी ऑरवेल, कैमुस, सात्रे, पोई व थोरौ जैसे लेखकों से बेहद प्रभावित थे. उन्होंने कॉलेज में लिटरेचर पढने का मन बनाया. लेकिन इससे पहले जो गर्मी की छुट्टियाँ आई, तभी उन्होंने ह्यूमन बायोलॉजी के बारे में जाना और मामला उलट गया.
जब कलानिथी स्टेनफोर्ड कॉलेज जाने की तैयारी कर रहे थे, तभी उनकी गर्लफ्रेंड ने उन्हें जेरेमी लेवेन की एक किताब दी. जिसका नाम था – सैटन: हिज साइकोथैरेपी एंड क्योर बाय अनफोरच्युनेट डॉक्टर कास्लेर, जे.एस.पी.एस. उन्हें लेवेन का ये विचार बहुत पसंद आया कि ब्रेन सिर्फ आर्गेनिक मशीन है जो आदमी के दिमाग का अस्तित्व कायम रखता है. कलानिथी ने बायोलॉजी व न्यूरोसाइंस में एडमिशन ले लिया.
अपने पूरे कॉलेज करियर में कलानिथी ऐसे ही बड़े सवालों के जवाब ढूंढते रहे कि जीवन का अर्थ क्या है? उन्होंने साहित्य और न्यूरोसाइंस – दोनों में जवाब तलाशा. उन्हें फिक्शन पढना पसंद था. साहित्य को वो इंसानी दिमाग का एक्सप्रेशन मानते थे.
अब ये कोई आसान कंसेप्ट तो थी नहीं. उन्होंने टी. एस. एलियट की वेस्ट लैंड पढ़ी जिसमें ये सिद्धांत उभारा गया है कि इंसानी ज़िन्दगी का सही अर्थ रिश्तों में ही है.
हालाँकि साहित्य से उन्हें सभी सवालों के जवाब तो मिलने वाले थे नहीं इसलिए उन्होंने न्यूरोसाइंस की पढाई भी चालू रखी. ब्रेन माइंड को स्थिर रखता है और रिश्ते मेंटेन रखने की योग्यता ब्रेन से ही आती है.
जब वो किसी के घर जाते और वहाँ किसी ब्रेन इंजरी के पेशेंट को देखते जो कि पूरी तरह से रिश्तों को मेंटेन नहीं रख पाते; इससे उनका विश्वास इस सिद्धांत पर गहरा होता गया.
न्यूरोसाइंस ने उन्हें ब्रेन के नियमों को समझने का मार्ग दिया. अपने इन्हीं अनुभवों के आधार पर उन्होंने मेडिकल स्कूल में दाखिला लिया. लेकिन क्या केवल इन्हीं सिद्धांतों के आधार पर वो ज़िन्दगी और मौत के सही अर्थ को समझ पाते?
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मेडिकल स्कूल ने कलानिथी को – ज़िन्दगी और मौत का सही अर्थ समझाया.
When Breath Becomes Air- महीनों तक गहन विचार करने के बाद कलानिथी को येल स्कूल ऑफ़ मेडिसिन में आशा की एक किरण नजर आई. वहाँ की एनाटोमी लैब में उन्होंने खुद को ज़िन्दगी और मौत की सच्चाई के करीब पाया. अपनी पढाई के दौरान उन्हें कई घंटे डेड बॉडीज की स्टडी करनी होती थी. उनकी स्किन को छीलना, टिश्यु को फाड़ना और बोन्स को देखना. सभी मेडिकल स्टूडेंट्स उन मुर्दा शरीरों का चेहरा ढके हुए रखते थे
और उनका नाम तक नहीं जानते थे. लेकिन कलानिथी भूल नहीं पाते थे कि वे इंसान थे. एक दिन एक मृत शरीर का पेट खोलने पर उन्हें वहाँ कुछ दवाई की गोलियां मिली. उन्हें लगा कि यही होता है मरने में भी जीवन की आशा.
कलानिथी का जीने-मरने का अनुभव इस लैब से बाहर भी बहुत कुछ था. एक मेडिकल स्टूडेंट होने के नाते वो रोजाना वो इन शक्तिशाली कन्सेप्ट्स को महसूस करते थे.
उदाहरण के लिए हम देख सकते हैं कि लेबर रुम और डिलीवरी वार्ड में उन्हें क्या महसूस होता था. उन्हें जब पहली बार किसी बच्चे को जन्म लेते हुए देखना था तो उन्हें वहाँ मौत देखनी पड़ी.
जब पहली बार वो एक डिलीवरी वार्ड में थे तभी उन्हें ये सब देखना पड़ा था. उन्हें कहा गया कि एक औरत डिलीवरी के लिए आ रही है जिसे जुड़वाँ बच्चे होने वाले हैं. वो साढ़े तेविस हफ़्तों की ही प्रेग्नेंट थी कि उसे समय से पहले ही पेन होने लगा. डॉक्टर्स ने उसके बच्चों को बचाने की भरपूर कोशिश की.
उन्होंने सिजेरियन करने का फैसला किया. कलानिथी ने पहली बार उन नवजात बच्चों को गर्भ से बाहर निकालते हुए देखा लेकिन उन बच्चों के अंग पूरी तरह से विकसित नहीं हुए थे इसलिए वे जी नहीं पाये. कलानिथी ने यहाँ एक पल जीवन और अगले पल मौत की झलक देखी.
एक रेजिडेंट के रुप में कलानिथी को मौत को और करीब 6 से देखने का मौका मिला. मेडिकल स्कूल के चौथे साल में कलानिथी ने न्यूरोसर्जरी में स्पेशल डिग्री लेने का फैसला कर लिया. उन्हें पता था कि ये आसान नहीं है लेकिन उनका बहुत दिल हो रहा था. ग्रेज्युएशन के बाद उन्होने स्टेनफोर्ड में रेजिडेंट के रुप में रहना शुरु किया जहाँ उन्हें अगले सात सालों तक रहना था.
जल्दी ही उन्हें अहसास हो गया कि उन्हें कितनी ज्यादा दबाव वाली स्थितियों में काम करना है. एक दिन उनके पास मैथ्यू नाम का एक लड़का आया जिसके सिर में दर्द था. परीक्षण से पता चला कि उसे ब्रेन ट्यूमर है. कलानिथी को तय करना था कि उसका इलाज कैसे करना है.
ट्यूमर को हटाने पर हो सकता था कि मैथ्यू वापस अपने बचपन में चला जाये क्योंकि ये ट्यूमर हाइपोथैलेमस में स्थित था. ब्रेन का ये हिस्सा भूख, नींद जैसी बेसिक बातों का होता हैं. यहाँ कोई गलती होने पर परिणाम भयंकर हो सकते हैं. निर्णय लेना आसान नहीं था. कलानिथी ने ट्यूमर हटाने के लिए ऑपरेशन करने का निर्णय लिया.
रेजीडेंसी के पहले ही साल में कलानिथी ने बहुत-से लोगों को मरते हुए देखा. उसमें उनके खुद के पेशेंट्स भी थे. उन्होंने हेड ट्रामा, गनशॉट से हुए घाव, लड़ाई, ट्रैफिक एक्सीडेंट्स से लोगों को मरते हुए देखा. एक शराबी के शरीर में खून का थक्का न बनने की वजह से ज्यादा खून बहने से; उसे मरते हुए देखा.
यहाँ तक कि उस मेडिकल प्रैक्टिशनर को मरते देखा जो बीमारी पहचानने में एक्सपर्ट थी पर फेफड़ों के इन्फेक्शन से मर गई. जहाँ उसने सालों तक काम किया था वहीं उसकी बॉडी को पोस्टमॉर्टम के लिए ले जाया गया.
अब सोचिये! जब पहला साल इतना चैलेंजिंग रहा तो आगामी 5 साल भी आसान तो नहीं हो सकते ना.
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बढती जिम्मेदारियों और थकान के बीच कलानिथी को महसूस हुआ कि वो अपने काम का एक खास पहलू नकार रहे है.
When Breath Becomes Air- अपने दुसरे साल में उन्हें इमरजेंसी के लिए नियुक्त किया गया. इसका मतलब था कि जरूरत पड़ने पर सबसे पहले उन्हें ही बुलाया जायेगा. ये जिम्मेदारी उनकी योग्यता से कहीं ज्यादा थी. अब ये पूरी तरह से उनकी जिम्मेदारी थी कि लोगों की ज़िन्दगी कैसे बचाना है.
एक दिन ब्रेन ट्रामा से पीड़ित एक पेशेंट ऑपरेटिंग रूम में लाया गया. टीम ने उसे बचा लिया लेकिन उसने हमेशा के लिए बोलने और अपने हाथ से खाने की शक्ति खो दी. कुछ भी नहीं हो सकता था. उसे अपनी बाकी जिंदगी इसी तरह बितानी थी. इसलिए जब ऐसे पेशेंट्स की पल्स चलती रहती थी तो कलानिथी दुविधा में होते थे कि क्या उसकी ज़िन्दगी बचाना सही होगा?
कई घंटे लगातार काम करने के बाद कलानिथी खुद से ‘ सवाल पूछते कि क्या पेशेंट्स के साथ मानवीय व्यवहार किया जा रहा है? एक हफ्ते में सौ घंटे काम करना और आगे बढ़ने का प्रेशर; उन्हें बहुत ही थका रहा था. उन्हें सिरदर्द रहने लगा. वे रात को एनर्जी ड्रिंक लेते. रात को घर जाने से पहले कार में ही एक झपकी लेते थे.
ऐसी अपसेट हालत में वे अपने पेशेंट्स को देखते. उनकी एक महिला पेशेंट थी जिसे अपने ब्रेन कैंसर का पता चला था. कलानिथी ने फोकस किये बिना जल्दी-जल्दी उसकी बातें सिर्फ सुन ली.
उसके डर पर ध्यान दिए बिना उन्होंने उससे कहा कि उसे सर्जरी ही करवानी पड़ेगी. बाद में उन्हें अहसास हुआ कि वे मेडिकल प्रोफेशन में इसलिए आये थे ताकि वे लोगों के कनेक्शन से जीवन का सही अर्थ समझ पाये. उन्हें पेशेंट्स के साथ अपनी रिलेशनशिप का सम्मान करना ही होगा.
रेजीडेंसी के चौथे साल में कलानिधि को अपने फील्ड से बाहर की ट्रेनिंग का अवसर मिला. वे स्टेनफोर्ड की एक न्यूरोसाइंस लैब में काम करने लगे जहाँ उन्हें न्यूरोसाइंटिस्ट बनने की स्टडी करनी थी. न्यूरोसाइंटिस्ट वो एक्सपर्ट होता है जो नर्वस सिस्टम, न्युरोंस की एनाटोमी, व बायोकेमिस्ट्री और उनके नेटवर्क की स्टडी करता है.
आप कल्पना कर सकते हैं कि एक इन्सान का एक ही साथ न्यूरोसर्जन और न्यूरोसाइंटिस्ट होना कितना मुश्किल लेकिन सम्मानजनक होता है. कलानिथी ने एक और साहसिक निर्णय लिया. जहाँ कई न्यूरोसाइंटिस्ट लैब में ऐसी तकनीकों का अध्ययन करते थे जो उनकी मददगार होगी; कलानिथी उनसे उलट विषयों की स्टडी करते थे. ये तकनीक कुछ ऐसी थी जिसमें लकवाग्रस्त व्यक्ति कम्प्यूटर या रोबोटिक लेग चला सके.
उन्हें न्यूरोमोड्युलेशन में रुचि थी जिसमें रोबोटिक लिम्बस द्वारा माइंड को सिग्नल भेजे जाते हैं. अगर ये रिसर्च सफल हो जाये तो टेक्नीशियन कृत्रिम लिम्बस बना सकते हैं जो पेशेंट के ब्रेन को अपनी आस-पास की चीजों के प्रति प्रतिक्रिया देने में सक्षम बनाये. मान लीजिये किसी व्यक्ति के पाँव नहीं है और ब्रेन भी ट्रामा की वजह से ज्यादा काम नहीं करता. वो व्यक्ति किसी उबड़-खाबड़ जगह पर चल रहा है तो उसका कृत्रिम अंग उसे फीडबैक दे कि उसे कैसे और किस ओर चलना है.
इस काम पर शोध करने के अलावा कलानिथी लैब में नहीं रुकते थे. दो साल बाद वे हॉस्पिटल में चीफ रेजिडेंट के रूप में लौटे. न्यूरोसर्जन बनने की ट्रेनिंग के दौरान उनसे उम्मीद की गई कि वे काफी चुस्त और होशियार रहें क्योंकि अब उनकी जिम्मेदारी पहले से ज्यादा बढ़ गई थी.
इस समय उन्हें अहसास हुआ कि टेक्निकल स्किल बेहद जरूरी है. पेशेंट्स और उनके परिवार को सहारा देने के लिए केवल दुआओं से कुछ नहीं होता योग्यता होना भी जरूरी है.
कलानिथी को पता चला कि जिस लड़के मैथ्यू की उन्होंने सालों पहले सफल सर्जरी की थी; वो अभी बहुत बुरी हालत में है. वो काफी हिंसक और उत्तेजक हो गया है. उस पर हमेशा नजर रखनी पड़ती है. कलानिथी ने ट्यूमर हटाते समय गलती से उसके ब्रेन के एक पीस को नुक्सान पहुंचा दिया था.
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रेसिडेंसी पूरी करने से पहले कलानिथी को एक कडवा सच पता चला.
When Breath Becomes Air- हालाँकि कलानिथी ने गलतियाँ की लेकिन उन्हें ठीक किया और सीखा भी. जबर्दस्त दबाव में भी उन्होंने कठिन मेहनत की.उनकी रेजीडेंसी पूरी होने वाली थी. उन्होंने सभी बाधाओं को पार करते हुए; सभी कामों को पूरा किया. उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले. सभी सीनियर डॉक्टर्स; उन्होंने जिनके साथ काम किया; उनका सम्मान करते थे.
स्टेनफोर्ड में उनके टैलेंट का पूरा सम्मान हुआ. उन्होंने उन्हें वहीं पर न्यूरोसर्जन-न्यूरोसाइंटिस्ट के रुप में काम करने का ऑफर दिया. साथ ही वो न्यूरोमोड्युलेशन पर भी फोकस कर सकते थे.
लेकिन जब उनकी रेजीडेंसी में 15 महीने बचे थे, तब उनके भाग्य ने फिर करवट ली. लगातार छ: महीनों से उनका वजन कम हो रहा था. उन्हें कमर में ऐसा तेज दर्द होता था जैसा पहले कभी नहीं हुआ. डॉक्टर के पास जाने पर उनका एक्स रे हुआ. डॉक्टर ने कहा कि ये बहुत ज्यादा काम की थकान की वजह से हुआ है.
कलानिथी को विश्वास नहीं हुआ लेकिन वो लौट आये. 15 वो अपनी रेजीडेंसी पूरी करना चाहते थे जिसके लिए अब तक इतनी कड़ी मेहनत की थी. इस बार उन्हें चेस्ट में दर्द हुआ. वजन लगातार कम हो रहा था. 145 पाउंड्स वजन कम हो चूका था और कफ की भी समस्या थी. उन्हें ये सभी कैंसर के संकेत लग रहे थे.
इस बार डॉक्टर ने चेस्ट का स्कैन किया और वो ब्लर था. वो तुरंत इसका मतलब समझ गए. उनके लंग्स में बहुत-से ट्युमर्स थे. उनकी स्पाइन और लिवर का शेप बिगड़ गया था. कैंसर उनके पूरे शरीर में फ़ैल चूका था. केस काफी बिगड़ गया था.
अगर आपको पता चले कि आपकी मौत बहुत नजदीक है तो आप अपने बचे हुए दिन कैसे गुजरना चाहेंगे. ये बेहद मुश्किल सवाल था और उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अब वे अपने जीवन और करियर के साथ कैसे आगे बढे. वे अपनी डॉक्टर एमा के काफी क्लोज थे. उन्होंने कहा कि उनके पास कितना समय बाकी है, वे नहीं जानते और काफी परेशान हैं.
अगर वे 10 साल जिए तो वे न्यूरोसर्जरी जारी रखेंगे. और अगर उनके पास सिर्फ एक-दो साल ही है तो वे लिखना पसंद करेंगे. उन्हें लेखन व साहित्य – दोनों पसंद थे. एमा ने उन्हें सलाह दी कि वे सही चीजो पर फोकस करें.
वे बहुत भ्रम में थे कि एक पेशेंट होने के साथ ही वे एक डॉक्टर कैसे हो सकते हैं. एक डॉक्टर होने पर वे तकनीकी जवाबों का अंबार लगा सकते थे पर पेशेंट होने पर वे साहित्य में ही दार्शनिक जवाब ढूंढ सकते थे.
एक और सवाल उन्हें जकड़े हुए था. उनकी पत्नी लूसी जल्दी ही बेबी प्लान करना चाहती थी. इसलिए डायग्नोसिस के बाद वे दोनों स्पर्म बैंक गए जहाँ उन्होंने लो रिस्क, हेल्दी ऑप्शन के बारे में जानकारी ली. अब उन्हें हर हाल में जल्दी बच्चा चाहिये था. अंत में उन्होंने तय किया कि इलाज शुरू होने से पहले ही कलानिथी अपने स्पर्म स्टोर करवा देंगे. बाद में लूसी इनसेमिनेशन द्वारा प्रेग्नेंट हुई.
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कलानिथी की हालत अच्छी नहीं थी लेकिन उन्होंने अपनी बेटी को देखा और फिर जल्दी ही उनकी मृत्यु हो गई.
When Breath Becomes Air- 4 जुलाई 2014 को उनकी बेटी, एलिजाबेथ अकैडिया ने जन्म लिया. उसका एक नाम कैडी भी है. जब उसके पिता उसके जन्म लेने का इंतजार कर रहे थे तो बहुत ही कमजोर हो चुके थे. जब लूसी लेबर रूम में थी तो बार-बार अंदर-बाहर होने की वजह से कलानिथी को कमजोरी महसूस होने लगी. हालाँकि वे पहले से थोड़ा-सा रिकवर हुए थे पर आगे के बारे में कुछ नही सोच रहे थे. जब लूसी ने बेबी को जन्म दिया तो वे खड़े भी नहीं हो पा रहे थे. वे लेबर रूम में ही एक बेड पर लेट गए.जब अपने परिवार के साथ वे घर आये तो उनकी बॉडी काँप रही थी. वे बैठना, पढ़ना और खाने-पीने जैसे काम भी सहारे बिना नहीं कर पा रहे थे.
जब कैडी पाँच महीने की हुई और क्रिसमस आया तो कलानिथी का कैंसर और भी बुरे हालात में पंहुच गया. अब कैंसर पर किसी भी इलाज का असर नहीं हो रहा था. न दवाइयों का, न ही कीमोथेरेपी का. वे ज्यादा से ज्यादा वीक होते गए. हालाँकि वो परिवार दुःख में डूबा था फिर भी फ्रेंड्स को डिनर पर बुलाना, कैंडी के साथ खेलना – जैसे तरीकों से वे दिल बहला रहे थे.
फरवरी के अंत तक कलानिथी ज्यादा से ज्यादा बीमार हो रहे थे, यहाँ तक कि उनका खाना भी छूट गया था.
हॉस्पिटल में हुए स्कैन से पता चला कि कैंसर न सिर्फ उनके लंग्स तक फ़ैल गया है बल्कि उनके ब्रेन में भी ट्यूमर्स हो गए हैं. उन्हें पता था कि इसका असर दिमाग पर इतना गहरा होगा कि वे तर्कपूर्ण तरीके से न सोच पायेंगे और न ही जीवन का अर्थ ढूंढ पायेंगे.
जब लूसी आठ महीने की हो गई तब कलानिथी को साँस लेने में तकलीफ हुई. उन्हें इमरजेंसी में ले जाया गया, जहाँ सबको पता था कि वे कभी ठीक नहीं हो पायेंगे. वहाँ उन्हें ब्रीदिंग सपोर्ट पर रखा गया जो कि केवल अस्थायी समाधान था. उन्हें पता था कि एकबार वेंटिलेटर पर आने के बाद वे कभी इससे बाहर नहीं आ पायेंगे इसलिए उन्होंने खुद को लाइफ सपोर्ट पर ही रखा. उन्हें पता था कि उनका जीवन अर्थ खोता जा रहा है और अब इस तरह जीने का कोई फायदा भी नहीं था. उन्हें ब्रीदिंग सपोर्ट के साथ-साथ दर्द का अहसास कम करने के लिए मोर्फिन भी दी गई.
एक-एक करके लोग आये और उनके सम्मान में स्नेहभरी बातें कहने लगे. 9 मार्च 2015 को मात्र 37 वर्ष की आयु में उन्होंने अंतिम साँस ली. दुरखों के सागर में डूबी लूसी उनके साथ बिताये वो आखिरी महीने याद करती कि वे कितने स्नेह
और विश्वास से भरे थे. जैसे-जैसे मौत करीब आ रही थी; वे दोनों और करीब आ रहे थे. उन्हें वैसा ही महसूस हो रहा था जब सालों पहले वे मिले थे.
उनका परिवार भी एक-दूसरे को सहारा दे रहा था. कलानिथी के परेंट्स और भाई हॉस्पिटल में लूसी और कैंडी का सहारा बने हुए थे. वे वहाँ कई विषयों पर हल्की-फुल्की बातें करते, जोर से किताबे पढ़ते, उनकी माँ के हाथ का बना भारतीय डोसा खाते. अंत में लूसी को महसूस हुआ कि उन्हें अपनी पति की अधूरी मेन्युस्क्रिप्ट प्रकाशित करवानी चाहिये. हालाँकि कलानिथी ने जैसी उम्मीद पहले की थी; उस तरह तो वे अपनी किताब नहीं लिख पाये लेकिन बुरी सेहत के बावजूद भी वे इसे पूरा करने की कोशिश में लगे रहे. इस किताब में बयाँ है कि कैसे उन्होंने धीरे-धीरे उनकी ओर बढ़ती मौत का सामना किया.
लूसी को विश्वास था कि इसी किताब के सहारे कलानिथी की आखिरी इच्छा पूरी होगी. वे न सिर्फ लोगों को ये समझाना चाहते थे कि सभी मौत को ज़िन्दगी का एक हिस्सा मानें बल्कि मौत सामने भी हो तो बाकी ज़िन्दगी को पूरी शिद्दत के साथ जियें.
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कुल मिलाकर
साहित्य के प्रशंसक और न्यूरोसर्जन होने के नाते पॉल कलानिथी ने जीवन और मृत्यु को बेहद करीब से जाना. दोनों के अर्थ पर चिंतन किया. उनकी कहानी एक ऐसी मुग्ध कर देने वाली कहानी है जो मानवता, नैतिकता और अर्थ को नए आयाम देती है.