Marketing Management Book Summary in Hindi

Marketing Management

इंट्रोडक्शन (INTRODUCTION)

क्या आप मार्केटिंग का मोस्ट इफेक्टिव मेथड जानते है? क्या आप ये जानना चाहते है कि एक बिजनेस मार्किट में बाकियों को कैसे डोमिनेट करके कस्टमर्स की लोएलिटी जीत लेता है ? क्या आप जानना नहीं चाहते कि नाइकी, किम्बी -क्लार्क, वाल मार्ट, केटरपिलर और आईकीईए (IKEA) जैसे सक्सेसफुल ब्रांड्स अपनी हाई लेवल मार्केटिंग कैसे करते है? इस बुक समरी में आप मार्केटिंग मैनेजमेंट के बारे में पढेंगे. इसमें आपको मार्केटिंग स्ट्रेटीज़ और मार्केटिंग रीसर्च के बारे में बताएँगे.

इस बुक में आपको ये भी सीखने को मिलेगा कि कैसे मार्केटर्स इन्फोर्मेशन कलेक्ट करके और एनालाइज करके बेस्ट प्रोडक्ट्स और सेर्विसेस दे सकते है. आपको हम कंज्यूमर बिहेवियर के बारे में भी बताएँगे और उसे इन्फ्लुएंश करने वाले बिहेवियर और फैक्टर्स के बारे में भी. मार्केटिंग सिर्फ पैसे कमाना नहीं है. ये आपको सिखाती है कि कैसे आप प्लानिंग और परफेक्ट एक्जीक्यूशन से बेस्ट प्रोडक्ट या सर्विस मार्किट में उतार सकते है. ये शोर्ट टर्म सोल्यूशंन के बारे में नहीं है. और एंड में हम बात करेंगे कस्टमर्स को बेस्ट वैल्यू देने की.

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डिफाइनिंग मार्केटिंग (DEFINING MARKETING)

मार्केटिंग क्या है? हम इस ब्रॉड कांसेप्ट को 3 वर्ड्स में डिसक्राइब कर सकते है. और वो है” मीटिंग नीड्स प्रोफिटेबिलिटी”. जिसका मतलब है लोगो की नीड्स का पता करना, फिर कस्टमर्स की नीड्स के हिसाब से प्रोडक्ट क्रियेट करके यूज़ प्रॉफिट कमाना. मार्केटिंग का गोल होता है कि कस्टमर्स को इतनी अच्छी तरह समझ लो कि उनके लिए परफेक्ट प्रोडक्ट बना सको. जब कोई प्रोडक्ट पूरी तरह से कस्टमर्स की डिमांड को सेटिसफाई कर लेता है तो इसे गुड मार्केटिंग बोलते है. अगर मार्केटिंग की प्लानिंग और एक्जीक्यूशन प्रॉपर तरीके से हो तो प्रोडक्ट अपने आप बिकेगा. फिर आपको गिमिक सेल यानी किसी झूठी ट्रिक्स की कोई ज़रुरत नहीं पड़ेगी. और एक बार जब प्रोडक्ट मार्किट में अवलेबल होगा तो लोग खुद ही आकर खरीदेंगे. वो खुद उस प्रोडक्ट को यूज़ करने के लिए एक्साईटेड रहेंगे. लेकिन गुड मार्केटिंग सिर्फ प्रोडक्ट लॉन्च पे खत्म नहीं होती, इसे आगे भी कंटीन्यू करना जरूरी है. ज्यादातर जितने भी सक्सेसफुल ब्रांड्स है वो कस्टमर्स की डिमांड्स पूरी करने के लिए नए-नए तरीके ढूढ़ते रहते है और साथ ही कॉम्पटीशन से बचने के भी. वर्ल्ड के बिगेस्ट ब्रांड्स में नाइकी एक है. और नाइकी का कोर मार्केटिंग मैसेज है कि ये हाई क्वालिटी रबर शूज़ प्रोवाइड कराता है जो स्पेशली एथलीट्स के लिए बनाये गए है. और ब्रांड्स इसी बेस्ड पर चल रहा है

नाइकी ने “पिरामिड ऑफ़ इन्फ्लूएंश” ( “pyramid of influence”) के बारे में सोचा. आईडिया ये । था कि एथलीट्स का एक स्माल ग्रुप अपने शूज़ और स्पोर्ट्वेयर से बाकि के एसपाईरिंग एथलीट्स को भी इन्फ्लूएंश करेगा.

आज नाईकी ने खुद को हाई परफोर्मिंग एथलीट्स के एक मार्केटिंग ब्रांड के रूप में एस्टेबिलिश कर लिया है. 1985 में नाईकी ने माइकल जोर्डन को ब्रांड एम्बेसडर साइन किया. वैसे तो सपोर्ट के फील्ड में ये माइकल जोर्डन की शुरुवात थी लेकिन इतने कम टाइम में ही उसने कमाल की परफोर्मेंस दी थी. और ये स्ट्रेटेज़ी काम आई क्योंकि एक ही साल में एयर जोर्डन ने $100 मिलियन का कलेक्शन किया था.

1998 में नाईकी ने अपना फर्स्ट “जस्ट डू इट” एड कैम्पेन रीलीज़ किया. इसमें एथलीट्स को अपने गोल्स चेज़ करने के लिए क्लियर मैसेज दिया गया था. इन एड्स के श्रू नाईकी ने स्पोर्ट्स में अपने एक सेल्फ-एमपॉवरमेट की इमेज एस्टेबिलिश कर ली थी. “जस्ट डू इट” आज भी नाईकी का स्लोगन है. नाईकी ने जब यूरोपियन मार्किट में एक्स्पेंड किया तो कंपनी ने अपनी अप्रोच चेंज कर दी थी. उन्हें लगा कि”जस्ट डू इट” कैम्पेन योरोप के लिए थोडा एग्रेसिव हो जाएगा. इसलिए नाईकी ने फूटबाल को कैपिटलाइज किया जो योरोप का मोस्ट पोपुलर सपोर्ट है.

नाईकी ने योरोप की कई सारी लोकल और नेशनल फुटबाल टीम्स को स्पोंसर किया. और ऊपर से 2007 में नाईकी ने उम्ब्रो (Umbro) को एक्वायर कर लिया था जो फुटबाल शूज़, यूनिफोर्स और इक्विपमेंट का एक ब्रिटिश ब्रांड है. आज नाईकी अकेले पूरे वर्ल्ड में 100 फुटबाल टीम्स के लिए यूनिफोर्म सप्लाई करती है. 2008 के एशिया समर ओलंपिक्स में नाईकी ने अपनी एक पहचान बनाई. हालाँकि इस इवेंट का ऑफिशियल स्पोंसर एडीडास (Adidas) था लेकिन नाईकी ने ओलिंपिक एथलीट्स को अपने शूज़ पहनाकर एड्स निकाले. इसी तरह कंपनी ने एथलीट्स को स्पोंसर किया जिनमे ज़्यादातर चाइनीज़ थे और 12 में ]] अमेरिकन बास्केटबाल टीम के मेंबर थे.

इस मार्केटिंग स्ट्रेटीज़ का रिजल्ट ये निकला कि एशिया में नाईकी की सेल 15% तक इनक्रीज हो के $3.3 बिलियन तक पहुँच गयी थी. बहुत से एक्सपर्ट्स का ये मानना था की नाईकी की मार्केटिंग स्ट्रेटीज़ इस इवेंट के दौरान एडीडास से ज्यादा इफेक्टिव थी जोकि ओलंपिक्स का ऑफिशियल स्पोंसर था. नाईकी ने टाइगर वुड्स और मारिया शारापोरा जैसे फेमस एथलीट्स के साथ भी पार्टनरशिप किया.हालाँकि 2008 में जब रोजेर फेडरर और राफेल नाडेल के बीच विंबलडन मैच हुआ था तब दोनों चैंपियंस को नाईकी ने ही स्पोंसर किया था. उनके शूज़ से लेकर ड्रेस –सब नाईकी के थे. तब ऐसा लग रहा था कि ये मैच नहीं है बल्कि नाईकी का 5 घंटे का कॉमर्शियल चल रहा हो. “डिजाइन्ड फॉर एथलीट्स बाई एथलीट्स” ये नाईकी का मंत्रा है. एक तरह से कंपनी को हाई परफोर्मिंग एथलीट्स के रूप में अपना टारगेट मार्किट मिल गया है. नाईकी ने ऐसे शूज़, एपेरल और इक्विपमेंट क्रियेट किये जो इन एथलीट्स को चाहिए थे. और इसी वजह से आज नाईकी सपोर्ट की दुनिया का लीडिंग ब्रांड बन चूका है. “जस्ट डू इट” नाईकी का ट्रेड मार्क है जो वर्ल्ड के सारे एथलीट्स को इंस्पायर कर रहा है.

डेवलपिंग मार्केटिंग स्ट्राटीजी (DEVELOPING MARKETING STRATEGIES)

किसी भी ब्रांड की मार्केटिंग एक्टिविटीज के पीछे उसकी मार्केटिंग स्ट्राटीज़होती है जिसके लिए डिसप्लीन और फ्लेक्सीबिलिटी दोनों की ज़रूरत पड़ती है. मार्केटिंग स्ट्राटीज़ में डिसप्लीन होना बहुत इम्पोर्टेट है क्योंकि ये बिजनेस के कोर में होना चाहिए. ये एक तरह से आपका कमिटमेंट है लेकिन ये रिजिड भी नहीं होना चाहिए. कंपनी को टाइम्स के हिसाब से फ्लेक्सिबल होना चाहिए और मार्किट की चेंजिंग डिमांड को कंसीडर करना चाहिए. दुसरे वर्ड्स में मार्केटिंग स्ट्राटीज को इम्प्रूव करते रहो लेकिन कोर वैल्यू को मत छोड़ो. पहले के टाइम में बिजनेस में ट्रेडिशनल मार्केटिंग का बोलबाला था.

प्रोडक्ट क्रियेट करने के बाद उसकी मार्केटिंग तभी होती थी जब उसे सेल करने का टाइम आता था. लेकिन आज के मॉडर्न टाइम में ये सिम्पल आईडिया अब काम नहीं आएगा. क्योंकि आज कॉम्पटीशन बहुत ज्यादा है.

और इसके अलावा आज का कस्टमर ज्यादा स्मार्ट भी है. आज मार्किट में कई सारे प्रोडक्ट्स और सर्विसेस आ गयी है जो बेस्ट वैल्यू और बेस्ट प्राइस के लिए कॉम्पटीट करती है. और इंटरनेट की वजह से आज का कस्टमर ज्यादा इन्फोर्ड है. आज किसी भी बिजनेस के लिए अपनी मार्केटिंग स्टिक रखना और लॉयल कस्टमर्स बनाना किसी बिग चेलेंज से कम नहीं है. तो ऐसी सिचुएशन में इफेक्टिव मार्केटिंग स्ट्राटीज़ कैसे डेवलप की जाए? किसी भी बिजनेस का गोल होता है” डिलीवर कस्टमर वैल्यू एट अ प्रॉफिट”. जितना ज्यादा वैल्यू आप दोगे उतना ज्यादा प्रॉफिट आपको मिलेगा. मार्केटिंग स्ट्राटीज़ वैल्यू ड्राइवन होनी चाहिए. इफेक्टिव मार्केटिंग का फर्स्ट फेज़ है एसटीपी यानी सेगमेंटेशन, टारगेटिंग एंड पोजिशनिंग (STP or Segmentation, Targeting and Positioning). और ये प्रोडक्ट क्रिएट से भी पहले का स्टेज है. सेगमेंटेशन (Segmentation) का मीनिंग है मार्किट को कई हिस्सों में बाँट दीजिये. टारगेटिंग का मीनिंग है स्पेशिफिक क्लाइंट्स को टारगेट करना. और पोजिशनिंग है ये पता लगाना कि आपका प्रोडक्ट क्या वैल्यू देगा और ये बाकियों से डिफरेंट कैसे है.

आप कैसे डिसाइड करेंगे कि कौन आपका प्रोडक्ट यूज़ करेगा? आपको किस टाइप के कस्टमर्स चाहिए, ये समझना बहुत ज़रूरी है. क्योंकि उन स्पेशिफिक कस्टमर्स की डिमांड पर प्रोडक्ट क्रियेट करना ही आपका गोल है. क्योंकि जिन कस्टमर्स को आपने टारगेट किया है, सिर्फ वही हायर वैल्यू के लिए हायर प्राइस दे सकते है. और यही कस्टमर्स आपके प्रोडक्ट को रेक्मंड (Recommend) भी करना चाहेंगे. इसलिए एसटीपी (STP) प्रोडक्शन से पहले की जाती है. सेकंड फेज़ है वैल्यू क्रियेट करना जोकि प्रोडक्शन करते वक्त की जाती है.

इस स्टेज पर आके एक बिजनेस अपने प्रोडक्ट के स्पेशिफिक फीचर्स के बारे में और उसके डिस्ट्रीब्यूशन और प्राइसिंग के बारे में डिसाइड करता है. थर्ड फेज़ है वैल्यू कम्यूनिकेट करना. प्रोडक्ट लॉन्च के टाइम और उसके बाद कस्टमर्स को प्रोडक्ट की वैल्यू के बारे में बताया जाता है. कंपनी वेबसाईट, सोशल मिडिया, ब्लोग्स, प्रिंट्स और टीवी कमर्शियल्स जैसे प्लेटफॉर्स में मार्केटिंग स्ट्राटीज़ रिफ्लेक्ट होनी चाहिए. स्पोर्ट्स चैनेल ईएसपीएन(ESPN) इफेक्टिव मार्केटिंग स्ट्राटीज़ वाली एक ऐसी ही कंपनी है. ईएसपीएन (ESPN) का मीनिंग है एंटरटेनमेंट और स्पोर्टस प्रोग्रामिंग नेटवर्क. ये कंपनी 1978 में एस्टेबिलिश हुई थी. उन दिनों ईएसपीएन ने कनेक्टीकट(Connecticut) में सिंगल सेटेलाईट की हेल्प से रीजनल स्पोर्ट्स न्यूज़ दिखाने स्टार्ट किये थे. 1990 के टाइम में ईएसपीएन ने एक स्पोर्ट्स अथॉरिटी के रूप में अपनी मार्केटिंग करनी शुरू कर दी थी फिर चाहे वो टेलीविजन हो या प्रिंट मिडिया. कुछ सालो में ही ईएसपीएन ने अपना बिजनेस कई कैटेगरीज में एक्सपेंड कर लिया था. आज ईएसपीएन कई सारे केबल चैनल्स, एक मैगजीन, एक वेबसाईट और कई लोकल रेडियो स्टेशन्स ओपेरट करता है. ईएसपीएन ने अपनी ओरिजिनल टीवी और मूवी सिरीज़ तो बनाई ही है, इसके साथ स्पोर्ट्स मर्चेडाइज भी क्रियेट की है.

कंपनी एनुअली $5 बिलियन अर्न करती है. 1996 में वाल्ट डिज्नी कंपनी ने ईएसपीएन को खरीद लिया. ईएसपीएन ने अपना मार्केटिंग स्लोगन क्रियेट किया” सर्विंग स्पोर्ट्स फेंस, एनीटाइम, एनीवेयर” और तब से कंपनी इस ब्रांडिंग पर चलती आई है. ईएसपीएन का ब्रांड मैसेज इतना पॉवरफुल था कि एक बार एक स्पोर्ट्स फेन ने कहा” अगर ईएसपीएन औरत होता तो मै उससे शादी कर लेता”. फेंटेसी लीग से लेकर ऑनलाइन गेमिंग तक और सोशल मिडिया के साथ-साथ मोबाईल एप्स बनाने तक, ईएसपीएन स्पोर्ट्स फेंस को सर्व करने के अपने कमिटमेंट को निभा रहा है. ईएसपीएन ने अपना कोर मार्केटिंग हमेशा याद रखा लेकिन वो हमेशा करंट ट्रेंड्स के साथ भी फ्लेक्सीबल रहा. कंपनी ने ना सिर्फ अमेरिका में बल्कि बाकी कई दूसरी कंट्रीज में भी एक स्पोर्ट्स अथॉरिटी के रूप में अपनी पहचान बनाई है.

 

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क्लेक्टिंग इन्फोर्मेशन एंड फॉरकास्टिंग डिमांड (COLLECTING INFORMATION AND FORECASTING DEMAND)

मार्केटिंग में इन्फोर्मेशन बड़ी इम्पोर्टेट होती है. जो बिजनेस सुपीरियर इन्फोर्मेशन कलेक्ट करता है वो कस्टमर को उतने ही बैटर ढंग से समझ सकता है, उसी हिसाब से फिर वो बैटर प्रोडक्ट्स डेवलप करेगा और बैटर मार्केटिंग प्लान एक्जीक्यूट कर पायेगा. बिजनेस में कंटीन्यूयस फ्लो ऑफ़ इन्फोर्मेशन होना बहुत ज़रूरी है ताकि मार्केटिंग मैनेजर राईट डिसीजन ले सके. हर कंपनी में एमआईएस यानी मार्केटिंग इन्फोर्मेशन सिस्टम होता है जिसमे लोगो की हेल्प से, टूल्स और प्रोसीजर से ऐनालाइजिंग डेटा कलेक्ट की जाती है. और ये एम्आईएस का काम है कि वो इन इन्फोर्मेशन्स को टाइमली और एक्यूरेट वे में मार्केटिंग मैनेजर्स में डिस्ट्रीब्यूट करे. सक्सेसफुल ब्रांड्स एमआईएस में इन्वेस्ट करते है और इसका उन्हें काफी बेनिफिट भी मिलता है. मार्केटिंग इन्फोर्मेशन सिस्टम के 3 पार्ट है. फर्स्ट वाला है इंटरनल कंपनी रिकार्ड्स. सेकंड है

मार्केटिंग इंटेलीजेजेंस एक्टिविटी और थर्ड वन है मार्केटिंग रिसर्च. इंटरनल कंपनी रिकॉर्ड में आर्डर फॉर्म, सेल्स इन्वोइस, इन्वेंट्री लिस्ट और डेली ट्रांजिकशन का कलेक्टेड डेटा होता है.

वाल मार्ट टाइप की कंपनीज में सेल्स रिपोर्ट काफी मैटर करती है ताकि लाखो कस्टमर्स की डिमांड का रिकॉर्ड रखा जा सके. वाल मार्ट के पास एफिशिएंट सेल्स और इन्वेंट्री सिस्टम है जो” हर कस्टमर, हर स्टोर और हर रोज़ का डेटा कलेक्ट करता है. और ये सिस्टम्स हर घंटे बाद अपडेट किये जाते है. इंटरनेट के इनक्रीजिंग यूज़ की वजह से कंपनीज के पास “कूकीज” की एडवांटेज है जो इंडीविजुअल कस्टमर के ऑनलाइन बिहेवियर का रिकॉर्ड रखती है. बिजनेस टार्गेटेड मार्केटिंग के लिए कूकीज काफी हेल्पफुल टूल है. कस्टमर्स को भी अपना राईट प्रोडक्ट या सर्विसेस मिल जाती है तो ये उनके लिए भी एडवांटेज है. बिजनेस ऑनलाइन हो या ऑफलाइन, इसका खुद का डेटाबेस होना ज़रूरी है. इसमें customer के demographics यानी वो कहाँ से है, कितनी ऐज का है इत्यादि और psychographics यानी वो कैसे बिहेव करता है इसका डाटा भी होना चाहियें. जिसका मतलब है कि बिजनेस को अपने कस्टमर्स की सिर्फ एज, जेंडर और लोकेशन ही नहीं बल्कि ज्यादा टारगेट इन्फोर्मेशन जैसे होबीज़, ओपीनियन और लाइफस्टाइल का भी आईडिया हो. रिलाएबल database की वजह से मार्किटर्स ऐसे टारगेट एडवरटीज़मेंट्स और सेल्स लैटर क्रियेट कर सकेंगे जो सीधा राईट कस्टमर्स को अपील करेगा, और कंपनी की सेल्स इम्प्रूव करेगा.

कंज्यूमर इलेक्ट्रोनिक्स कंपनी बेस्ट बाय (Best Buy ) के पास 15 टेराबाइट्स से भी ज्यादा डेटाबेस है. और ये इन्फोर्मेशन उनके पास 7 सालो के टाइम में कलेक्ट हुई है. बेस्ट बाय ने इन्फोर्मेशन का इतना बड़ा अमाउंट सारे फोन कॉल के रिकोर्ड्स, ईमेल्स, सेल्स इनवॉइस और बाकी दुसरे सोर्सेस से कलेक्ट किया. डेटाबेस कलेक्शन के बाद कंपनी अपना इंटेलीजेंट एल्गोरीदम (intelligent algorithms) रन करती है. बेस्ट बाय ने 100 मिलियन इंडीविजुअल्स को कैटेगरीज में क्लासीफाई किया हुआ है.

कुछ कस्टमर्स ऐसे है जिन्हें “बज़” (“Buzz”) कहा जाता है, और जो यंग टेक्नोलोजी ब्फ्स होते है यानि उन्हे टेक्नोलाजी के बारे में बहुत ज्यादा knowledge होती है. फिर कुछ कस्टमर्स है जिन्हें “जिल” (“Jill”) बुलाया जाता जोकि mothers hai. “बैरी” (“Barry”) उन कस्टमर्स को बोलते है जो ameer प्रोफेशनल होते है. और कुछ “रे” ( “Ray” ) कस्टमर की कैटेगरी में आते है जो टिपिकल फेमिली मेन होते है. हर कैटेगरी की अपनी ज़रूरत और चॉइस है. और क्योंकि बेस्ट बाय अपने कस्टमर्स को इतने अच्छे से समझती है तो इसकी मार्केटिंग भी इतनी प्रीसाइज़ (precise) है. तभी तो कस्टमर को लगता है कि उनकी चॉइस का प्रोडक्ट सिर्फ उनके लिए ही बनाया गया है.

यही सीक्रेट है कि कस्टमर्स इस ब्रांड के इतने लॉयल है. और हर बार बेस्ट बाय से प्रोडक्ट लेने आते है. तो अब आपको पता चल गया होगा कि क्यों प्रीसाइज़ मार्केटिंग सेल्स इनक्रीज और लॉन्ग टर्म सक्सेस की गारंटी देती है.

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कंडक्टिंग मार्केटिंग रीसर्च (CONDUCTING MARKETING RESEARCH)

तो कंपनीज इंटरनल रिकोर्ड्स के अलावा प्रीसाइज़ मार्केटिंग कैसे कर सकते है? तो जवाब है मार्केटिंग रीसर्च. इस प्रोसेस में कंपनीज कस्टमर्स के बारे में फैक्ट्स कलेक्ट करती है और फिर उन्हें एनालाइज करती है. एक इफेक्टिव मार्केटिंग रीसर्च परफेक्ट प्रोडक्ट क्रियेट करने में हेल्प करती है जो कस्टमर्स को चाहिए. मार्केटिंग रीसर्च के 6 स्टेप्स होते है.

स्टेप ] है प्रोब्लम डीफाइन करना. स्टेप 2 है प्लान डेवलप करना. स्टेप 3 में इन्फोर्मेशन कलेक्ट की जाती है. स्टेप 4 में उस इन्फोर्मेशन को ऐनालाइज किया जाता है. स्टेप 5 में रिजल्ट को प्रेजेंट किया जाता है और लास्ट में स्टेप 6 में डिसीजन लिया जाता है. स्टेप 1 में मार्केटिंग मैनेजर को प्रोब्लम समझने में स्पेशिफिक अप्रोच रखनी चहिये. जैसे एक्जाम्पल के लिए अमेरिकन एयरलाइन्स अपने फर्स्ट क्लास पैसेंजेर्स के लिए इंटरनेट प्रोवाइड कराना चाहती थी.

तो अगर वो प्रोब्लम को कुछ इस तरह डीफाइन करते कि” अपने फर्स्ट क्लास पैसेंजर्स की नीड्स के बारे में सब कुछ पता करो” ) तो ये कुछ ज्यादा ही ब्रोड हो जाता क्योंकि इसमें अननेसेसरी डेटा भी कलेक्ट हो जायेगा. और अगर वो प्रोब्लम ऐसे डीफाइन करते कि” पता करो कि शिकागो से टोक्यो के लिए फ्लाईट बी747 लेने वाले कितने पैसेंजेर्स ऐसे है जो इंटरनेट कनेक्शन के लिए $25 पे करने को तैयार है” तो ये कुछ ज्यादा नैरो हो जाता. तो उन्होंने एक स्पेशिफिक और सिम्पल अप्रोच की. स्टेप ] के लिए अमेरिकन एयरलाइन्स पूछ सकती है” फर्स्ट क्लास पैसेंजर्स के लिए इंटरनेट सर्विस बाकि सर्विसेस जैसे कि पॉवर प्लग या एन्हांस्ड एंटरटेनमेंट से कितनी ज्यादा इम्पोर्टेट है ?” या ” कितने एक्स्ट्रा फर्स्ट क्लास पैसेंजर्स इंटरनेट सर्विस की वजह से अमेरिकन एयरलाइन्स चूज़ कर सकते है ?”

इस स्पेशिफिक प्रॉब्लम के लिए मार्किटर्स स्टेप 2 यानि रीसर्च प्लान कर सकते है. उन्हें कौन-कौन से डेटा सोर्स या रीसर्च इंस्ट्रूमेंट यूज़ करने होंगे और ये कितना कॉस्टली पड़ेगा, ये सारी चीज़े उन्हें फाइंड आउट करनी होंगी. क्या सर्वे ज्यादा इफेक्टिव रहेगा या फोकस ग्रुप? क्या प्रोडक्ट सैम्पलिंग रहेगी या डिस्ट्रीब्यूटिंग क्वेश्चनरीज़? स्टेप 3 है इन्फोर्मेशन कलेक्ट करना. अगर मार्किटर्स सर्वे करना चाहते है तो ये सोशल मिडिया या फोन कॉल्स के श्रू हो सकता है. या कस्टमर्स से फेस टू फेस बात करके जैसे कि शौपिंग माल्स में या किसी पार्टीसिपेंट के घर में.

स्टेप 4 में स्टेटिसस्टिक यूज़ करके टेबुलेटिंग और कलेक्टेड डेटा कम्पेयरिंग की जाती है. स्टेप 5 में मार्किटर्स कलेक्टेड डेटा को रेक्मंडेशन(recommendations ) फॉर्म में या वैल्यूएबल इनसाइट्स में प्रेजेंट करते है. और इसके बाद स्टेप 6 की बारी आती है जिसमे मार्किट रीसर्च के रिजल्ट्स को इवैल्यूएट करते है. इफेक्टिव रीसर्च मार्केटिंग का एक बेस्ट एक्जाम्पल है” किबेरले- क्लार्क (Kimberly-Clark ) का डायपर ब्रांड हगीज़ (diaper brand Huggies). किम्बर्ली-क्लार्क वही कंपनी है जो कोटेक्स सैनीटेरी नैपकिंस और क्लीनेक्स फेशियल टिश्यूज बनाती है.

हगीज़ के लिए मार्किटर्स ने 3 साल तक रीसर्च की तब जाके वो एक नया प्रोडक्ट क्रियेट कर पाए. प्लान ये थे कि पूरी कंट्री में डिफरेंट एथनिसिटी और बैकग्राउंड वाली मदर्स का होम इंटरव्यू लिया जाए. मार्किटर्स ने स्माल कैमेराज भी फिट किये ताकि डायपर चेंजिंग रूटीन का रिस्पोंड मोनिटर किया जा सके. इससे उन्हें ये पता लगा कि न्यू मॉम्स को अक्सर डायपर चेंज करने के लिए स्ट्रगल करना पड़ता था क्योंकि बेबीज लगातार पैर हिलाते रहते है. तो डायपर बेबी की बॉडी के हिसाब से परफेक्ट शेप में होना चाहिए. मदर्स की ये भी डिमांड थी कि उनके बेबीज़ ज्यादा कम्फर्टबल फील करे, उन्हें पता ही ना चले कि उन्हें डायपर पहनाया जा रहा है. इन रीसर्च का रिजल्ट ये निकला कि कंपनी ने अपना नया डायपर काफी पतला और बॉडी फिट बनाया.

ये नया डायपर 16% कम चौड़ा था और इसकी बैक वेस्टबैंड ज्यादा स्ट्रेचेबल थी. मदर्स का ये भी कहना था कि वो अक्सर कार्टून डिजाईन वाले डायपर यूज़ करती है ताकि पहनाते वक्त बेबी खुश रहे. और यही वजह थी कि हगीज़ ने डिज्नी केरेक्टर विनी द पूह का लाइसेंस सिक्योर कर लिया था. इस मार्किट रीसर्च का रिजल्ट ये निकला कि हगीज़ सुप्रीम नैचुरल फिट एक हाइली सक्सेसफुल प्रोडक्ट बन गया और कंपनी की सेल्स एकदम टॉप पे पहुँच गयी. यही नहीं हगीज़ के मार्किट शेयर में भी काफी इन्क्रीमेंट हुआ. 2007 में किम्बर्ली-क्लार्क ने $4 बिलियन के डायपर बेचे.

क्रिएटिंग लॉन्ग टर्म लोयेलिटी रिलेशनशिप (CREATING LONG-TERM LOYALTY RELATIONSHIPS)

आज बहुत से ब्रांड्स मार्किट में है जो सेम प्रोडक्ट के लिए कॉम्पटीशन कर रहे है. लेकिन जो चीज़ किसी एक ब्रांड को बाकियों से अलग करती है वो है लेवल ऑफ़ वैल्यू जो कस्टमर्स को दी जाती है. कई डिकेड्स पहले मार्केटिंग का गोल सिर्फ प्रोडक्ट बेचना होता था. बात सिर्फ बेचने और खरीदने तक रहती है. लेकिन मॉडर्न मार्केटिंग ज्यादा होलिस्टिक है. क्योंकि कॉम्पटीशन काफी ज्यादा है तो मार्केटिंग केयरफूली प्लान की जाती है. सबसे इम्पोर्टेट बात ये है कि इसका गोल कस्टमर्स के साथ रिलेशनशिप बिल्ड पर होना चाहिए. आज के बिजनेसेस को प्रोडक्ट इंजीनियरिंग के अलावा मार्किट इंजीनियरिंग की भी उतनी ही ज़रूरत है. सिम्पल टर्म में बोले तो कोर ऑफ़ बिजनेस होना चाहिए कि कस्टमर्स को ज्यादा वैल्यू दी जा सके. जैसा कि मार्केटिंग एक्सपर्ट्स का कहना है” बिजनेस सक्सीड बाई गेटिंग, कीपिंग एंड ग्रोविंग कस्टमर्स.

कस्टमर्स ही है जिनकी वजह से आप फैक्ट्रीज बिल्ड करते है, एम्प्लोयीज हायर करते है, शेड्यूल मीटिंग्स करते है या किसी बिजनेस एक्टिविटी में एंगेज होते है.

कस्टमर्स के बिना आपका कोई बिजनेस नहीं. आज की मॉडर्न कंपनीज ने भी सीख लिया है कि कस्टमर सेंटर्ड होने की क्या इम्पोर्टेस है. ट्रेडिशनल ओर्गेनाइजर्स सीनियर मैनेजर्स को टॉप पे रखा करते थे लेकिन ये मॉडल अब आउटडेटेड हो गया है. और जो बिजनेस अभी भी इसे फोलो करते है, कभी नहीं चल पाते. मॉडर्न ओर्गेनाइजर्स कस्टमर ओरिएंटेड है. ये अपना बिजनेस मॉडल्स इन्वर्ट करते है. कस्टमर्स को बिजनेस मॉडल के टॉप पे होना चाहिए. उन्हें टॉप प्रायोरिटी दी जानी चाहिए, हाएस्ट इम्पोर्टेस और ग्रेट वैल्यू.

कस्टमर्स के नीचे फ्रंटलाइन लोग है. जोकि स्टाफ, कैशियर्स और सेल्सपर्सन होते है जो कस्टमर्स के साथ डायरेक्ट इंटरएक्ट करते है. यही वो लोग है जो कस्टमर्स को सर्व और सेटिसफाई करते है. नेक्स्ट आते है मिडल मैनेजर्स जो फ्रंटलाइन लोगो को सपोर्ट करते है. सीनियर्स मैनेजर्स सबसे बोटम में आते है. लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि सिर्फ फ्रंटलाइन लोगो को ही कस्टमर्स के साथ डील करनी चाहिए. ये बहुत इम्पोर्टेट है कि कस्टमर्स को जानने और सर्व करने में और कस्टमर्स से मीटिंग करने में हर लेवल को पर्सनली इन्वोल्व रहना चाहिए.

एडम स्मिथ ने एक बार कहा था” द रियल प्राइस ऑफ़ एनीथिंग इज़ द टॉयल एंड ट्रबल ऑफ़ एक्वायरिंग इट” (The real price of anything is the toil and trouble of acquiring it.”). कस्टमर्स ना सिर्फ प्रोडक्ट की मोनेटरी कॉस्ट देखता है टाइम कॉस्ट, एनर्जी कॉस्ट और स्ट्रेस कॉस्ट भी देखता है. वो देखता है कि प्रोडक्ट खरीदना ज्यादा टाइम क्न्ज्यूमिंग या एनेर्जी कांज्यूमिंग तो नहीं है? ज्यादा स्ट्रेसफुल तो नहीं है? अगर प्राइस कम है लेकिन प्रोडक्ट का डिस्ट्रीब्यूशन ठीक से नहीं हुआ है तो भी कस्टमर उसे नहीं खरीदेगा. इसलिए मार्केटिर्स प्रोडक्ट वैल्यू इनक्रीज करने के लिए दो मेथड्स यूज़ करते है. और वो है टोटल कस्टमर बेनिफिट इनक्रीज करना या टोटल कस्टमर कॉस्ट डिक्रीज़ करना.

जब कोई कस्टमर प्रोडक्ट या सर्विस लेता है तो सिर्फ उस आइटम को कंसीडर नहीं कर रहा होता है बल्कि वो फ्रंटलाइन लोगो के साथ अपने इंटरएक्शन और ब्रांड इमेज को भी कंसीडर करके चलता है. प्रोडक्ट लेने में जो सारे बेनिफिट या कॉस्ट की रीक्वायरमेंट होती है उसे सीपीवी या कस्टमर परसीव्ड वैल्यू बोलते है. और जिस ब्रांड का जितना हाई सीपीवी होगा वो उतना ही प्रॉफिटेबल, पोपुलर और सक्सेसफुल होगा. उसका बिगेस्ट मार्किट शेयर होगा, और वो ब्रांड अपने कस्टमर्स की लॉयलिटी की वजह से कॉम्पटीशन में आगे रहेगा. इसका एक एक्जाम्पल है कन्स्ट्रक्शन इक्विपमेंट कंपनी केटरपिलर (equipment company Caterpillar).

केटरपिलर कंपनी के ऊपर लोग हिताची, वॉल्वो या कोमात्सु से ज्यादा क्यों ट्रस्ट करते है, इसके पीछे भी एक वजह है. सबसे पहली और सबसे ज़रूरी वजह तो ये कि केटरपिलर मोस्ट रिलाएबल और ड्यूरेबल हेवी इक्विपमेंट बनाती है. और सबसे इम्पोर्टेट बात ये कि केटरपिलर हाईएस्ट टोटल पर्सीव्ड वैल्यू देती है. कंपनी के पास फुल लाइन कन्स्ट्रक्शन इक्विपमेट्स की एक बड़ी रेंज है. एक कंस्ट्रक्शन बिजनेस में जो कुछ चाहिए वो सब कंपनी प्रोवाइड कराती है. और इसके अलावा उनके पास बैटर पेमेंट प्लान्स और ऑप्शन भी है.

इक्विपमेंट खरीदने के लिए टाइम कॉस्ट, एनेर्जी कॉस्ट और स्ट्रेस कॉस्ट काफी लो है. केटरपिलर के कई सारे डीलर्स है जो सारे अमेरिका में फैले है. हर डीलर इंडीपेंडेट लेवल पे काम करता है और सारे प्रोडक्ट रखता है. इतना ही नहीं इनके डीलर्स वेल ट्रेंड और काफी रिलाएबल भी है जो कस्टमर्स को सही तरीके से असिस्ट करते है. केटरपिलर अमेरिका में ही नहीं बल्कि कई दूसरी कंट्रीज में भी बेस्ट पार्टी और बेस्ट सर्विस सिस्टम प्रोवाइड कराती है, इसकी बेस्ट वैल्यू की वजह से ये अपने कॉम्पटीटर्स से 10% या 20% ज्यादा प्राइस पे प्रोडक्ट बेचती है.

कोमात्सु और बाकि कंपनीज को इस जाएंट के साथ कॉम्पटीशन करने के लिए अभी काफी मार्केटिंग इम्प्रूव करने की ज़रूरत पड़ेगी.

एनालाइज़िंग कंज्यूमर मार्केट्स (ANALYSING CONSUMER MARKETS)

ऐसा क्या है जो कस्टमर्स को खरीदने के लिए ट्रिगर करता है? उन्हें ब्रांड्स या प्रोडक्ट चूज़ करने के लिए कौन सी चीज़ इन्फ्लुएंश करती है ? इस कांसेप्ट को कस्टमर बिहेवियर बोलते है जिसमे स्टडी किया जाता है कि कस्टमर कैसे अपनी नीड्स के हिसाब से प्रोडक्ट सेलेक्ट करता है, खरीदता है और यूज़ करता है. कन्यूमर बिहेवियर को इन्फ्लुएंश करने के कई डिफरेंट फैक्टर्स हो सकते है जैसे कल्चरल, सोशल या पर्सनल फैक्टर्स. आईकेईए (IKEA) एक ऐसी ही कंपनी का एक्जाम्पल है जो कंज्यूमर बिहेवियर एनालाइज करने में काफी अच्छी है.

आईकेईए (IKEA) स्वीडन की कंपनी है जिसने कई सारे इंटरनेशनल और डोमेस्टिक मार्किट में सक्सेसफुल एंट्री की है. तो आईकेईए (IKEA ) ने ये सब कैसे अचीव किया? कैसे ये होम फर्निशिंग में एक लीडिंग ब्रांड बन गयी? एक 17 साल के स्वीडिश लड़के, इंग्वार केमप्रेड (Ingvar Kamprad) ने अपने होमटाउन में एक छोटा सा बिजनेस स्टार्ट किया. आज 70 साल बाद आईकेईए (IKEA) एक बहुत बड़ी कंपनी बन चुकी है जो 50 कंट्रीज में ऑपरेट करती है और जिनके पूरे वर्ल्ड में 500 सभी ज्यादा स्टोर्स है. आईकेईए (IKEA) का मिशन है कस्टमर्स को ग्रेट वैल्यू देकर उनकी लाइफ बैटर बनाना.

और जैसा फाउंडर इंग्वार केमप्रेड (Ingvar Kamprad) ने एक बार बोला था” लोगो के वालेट काफी पतले है, इसलिए हमे उनके इंटरेस्ट का ख्याल रखना चाहिए.” कंपनी को मालूम था कि कंज्यूमर बिहेवियर में कल्चरल फैक्टर कितना इम्पोर्टेट है. चाइना में आईकेईए (IKEA ) ने इयर ऑफ़ रूस्टर सेलिब्रेट करने के लिए रूस्टर थीम प्लेसमेट बेचे. यू.एस में मार्किटर्स ने ओब्जेर्व किया कि लोग वेसेस (vases) खरीदते है और उन्हें ड्रिंकिंग ग्लास की तरह यूज़ करते है. क्योंकि अमेरिकन्स को आईकेईए (IKEA ) के रेगुलर ग्लास काफी स्माल लगते थे.

और इसी वजह से कंपनी ने यू.एस. मार्किट को सर्व करने के लिए लार्ज साइज़ ग्लासेस बनाने शुरू कर दिए. आईकेईए (IKEA) मार्किटर्स अक्सर घरो में जाकर ये जानने की कोशिश करते है कि उनके प्रोडक्ट को कहाँ इम्प्रूवमेंट की ज़रूरत है. जब उन्होंने योरोप और यू.एस के घरो को विजिट किया तो देखा कि लोगो के कैबिनेट यूज़ करने के तरीको में डिफ़रेंस है. योरोपियन अपने कपडे उसमे हैंग करते है जबकि अमेरिकन्स फोल्ड करके रखना पसंद करते है. इसलिए आईकेईए (IKEA ) अमेरिकन मार्किट के लिए ज्यादा डीप ड्राअर्स (deeper drawers) वाले कैबिनेट डिजाईन किये.

आईकेईए मार्किटर्स ने कैलीफोर्निया की हिस्पैनिक कम्यूनिटी के लोगो को भी विजिट किया. उन्होंने देखा कि ये लोगहिस्पैनिक कल्चर से काफी इन्फ्लुएंशड है और उसी तरीके से अपना डाइनिंग एरिया डिजाईन करना पसंद करते है. और आईकेईए (IKEA ) ने इस कल्चरल फैक्टर को ध्यान में रखते हुए अपने कैलीफोर्निया ब्रांच में ब्राईट कलर पेलेट वाली फर्निशिंग ऑफर करनी स्टार्ट कर दी. उन्होंने कुछ और चेयर्स डिजाईन और लार्ज साइज़ टेबल भी एड कर दी ताकि हिस्पैनिक कम्यूनिटी के लोगो को ज्यादा डाइनिंग स्पेस मिल सके और उनकी वाल्स में ज्यादा पिक्चर फ्रेम हैंग हो.

 

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कनक्ल्यू जन (CONCLUSION)

आपने इस बुक के थ्र मार्केटिंग के बारे में सीखा. हमने आपको मार्केटिंग स्ट्राटीज़, मार्किट रीसर्च और कंज्यूमर बिहेवियर के बारे में बताया. आपने इसमें ये भी जाना कि किसी भी मार्केटिंग एक्टिविटी के सेंटर में सिर्फ कस्टमर रहता है. सिर्फ चीप प्रोडक्ट्स बनाना ही काफी नहीं है. एक बिजनेस को सर्विस एफ़ीशीएंशी और कस्टमर्स की कन्विनिएंश जैसी चीज़े भी कंसीडर करनी होगी. मार्केटिंग मैनेजमेंट में काफी टाइम, एफोर्ट और पैसा लगता है. इसलिए बैटर प्लानिंग के बाद ही कोई प्रोडक्ट लॉन्च करे. इसलिए नेक्स्ट टाइम जब आप किसी डिपार्टमेंट स्टोर में जाओ तो अपने फेवरेट ब्रांड की मार्केटिंग स्ट्राटीज़ को स्टडी करना. क्या पता आप कुछ ऐसा सीखे जो आपको एक बैटर चॉइस दे और अपनी लाइफस्टाइल इम्प्रूव करने में हेल्प करे.

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